मृत्यु के बाद भी भरण-पोषण का उत्तरदायित्व

माता-पिता के भरण-पोषण का कर्तव्य किसी व्यक्ति के लिये, स्वयम् के मृत्यु के बाद भी रहती है। एक आवेदन पर न्यायालय यह आदेश दे सकता है कि किसी व्यक्ति के धन और संपत्ति का एक हिस्सा वृद्ध और निर्बल माता-पिता को दे दिया जाए। ऐसे मामलों में भरण-पोषण की राशि, उस मृत व्यक्ति पर लागू होने वाले उत्तराधिकार के नियमों के अनुसार आंकी जाएगी। आपको जो राशि देय होगी वह न्यायालय कई कारकों पर विचारने के बाद तय करेगी जैसे:

  • कर्ज चुकाने के बाद, मृत सहायक की सभी संपत्तियों का पूरा मूल्य, जिसमें उसकी संपत्ति से मिलने वाली आय सम्मिलित हो,
  • उसकी वसीयत (यदि कोई हो) के प्रावधान
  • आपके रिश्ते की निकटता और प्रकृति
  • आपकी जरुरतें और आवश्कताएं (यथोचित गणना), या
  • उस पर, भरण-पोषण के लिए आश्रित लोगों की संख्या।

इस्लामी निकाह को समाप्त करना

इस्लामिक कानून के तहत निकाह एक अनुबंध है, जो लिखित या मौखिक रूप में हो सकता है। कानून के तहत एक शादीशुदा मुस्लिम जोड़े को कुछ वैवाहिक दायित्वों को पूरा करना होता है जैसे कि साथ रहना और यौन संबंध बनाना। वैवाहिक दायित्वों के अलावा, उन्हें कुछ कानूनी दायित्वों को भी पूरा करना होता है, जैसे:

• पति और पत्नी की संपत्ति (भूमि, फ्लैट, निवेश और बीमा) का बंटवारा।

• पत्नी को गुजारा भत्ता देना।

• पत्नी का दहेज/मेहर का अधिकार।

जब इस्लाम में निकाह समाप्त हो जाता है, तो इसका मतलब यह है कि आपने अपने पति या पत्नी के साथ जो अनुबंध किया है वह भी समाप्त हो गया है। परिणामतः पति और पत्नी के बीच सभी दायित्व समाप्त हो जाते हैं, लेकिन सभी कानूनी दायित्वों का अंत नहीं होता।

निकाह को दो तरीकों से समाप्त किया जा सकता है।

जीवनसाथी की मृत्यु होने पर 

पति या पत्नी की मृत्यु से निकाह समाप्त हो जाता है। चूंकि निकाह की प्रकृति एक अनुबंध की है, तो पति या पत्नी की मृत्यु के परिणामस्वरूप उनके बीच अनुबंध समाप्त हो जाता है।

तलाक 

इस्लाम में तलाक कोर्ट को शामिल किए बिना भी किया जा सकता है। हालांकि, आप तलाक के दौरान जरूरत पड़ने पर न्यायालय को शामिल कर सकते हैं। तलाक का आवेदन पत्नी या पति कोई भी कर सकता है। निकाह निम्नलिखित में से किसी भी तरीके से समाप्त हो सकता है:

• जब पति इसे समाप्त करना चाहता है।

• जब पत्नी इसे समाप्त करना चाहती है।

• जब पति-पत्नी दोनों इसे समाप्त करना चाहते हैं।

ज्यादातर मामलों में, पुरुष के पास कहने के लिए महिला की तुलना में अधिक विकल्प होते हैं कि वह अदालत का दरवाजा खटखटाए बिना निकाह समाप्त करना चाहते हैं। महिला के पास ऐसा करने का केवल एक उपाय है। हालांकि, कोर्ट के माध्यम से उसके पास अन्य मार्ग भी है।

बाल विवाह

बाल विवाह उन पक्षों के बीच विवाह माना जाता है जहां:

• शादी करने वाले दोनों लोग अवयस्क हों, या

• उनमें से कोई भी एक बच्चा हो या अवयस्क हो।

एक महिला के लिए शादी की उम्र 18 साल है।

एक पुरुष के लिए शादी की उम्र 21 साल है।

मुस्लम स्वीय विधि के तहत शादी की उम्र यौवन (15 साल की उम्र) है। इसलिए, यदि आपकी आयु क्रमशः 18 वर्ष/21 वर्ष से कम है और आपकी शादी हो जाती है, तो आपकी शादी अवैध नहीं है। परंतु अगर, आप चाहें तो बाल विवाह कानून के तहत अपनी शादी को शून्यकरणीय कर सकते हैं।

ईसाई कानून के तहत कौन विवाह कर सकता है?

कोई भी दो व्यक्ति, जहां एक या दोनों प्रतिभागी ईसाई हैं, ईसाई कानून के तहत विवाह कर सकते हैं। कानून की नजर में, कोई भी व्यक्ति जो वास्तव में ईसाई धर्म में विश्वास करता है, वह ईसाई होगा। उन्होंने इस आस्था में बपतिस्मा लिया है या नहीं, यह एक ईसाई के रूप में उनकी स्थिति को निर्धारित नहीं करेगा। बल्कि, कानून धर्म में व्यक्ति के आस्था की प्रामाणिकता को देखता है, यह निर्धारित करने के लिए कि वह ईसाई है या नहीं।

विवाह के लिए न्यूनतम आयु 

जबकि कानून विवाह करने के लिए न्यूनतम आयु नियत नहीं करता है, कानून नाबालिगों के विवाह के लिए एक विशेष प्रक्रिया प्रदान करता है। ईसाई विवाह के प्रयोजनों के लिए, एक नाबालिग 21 वर्ष से कम आयु का कोई भी व्यक्ति है, और जो विधवा/विधुर नहीं है। हालांकि, बाल विवाह निषेध अधिनियम एक बच्चे (18 वर्ष से कम) से जुड़े हर विवाह को अवैध बनाता है, लेकिन यदि बच्चा विकल्प देता है तो उसे अमान्य योग्य समझता है। ऐसी स्थितियों में जहां नाबालिग की उम्र 18 से 21 वर्ष के बीच है, उन्हें कानून के तहत विवाह करने के लिए अपने पिता, अभिभावक या माता की सहमति की आवश्यकता होती है। नाबालिग की विवाह की विशेष प्रक्रियाओं के बारे में अधिक जानने के लिए, हमारे ईसाई कानून के तहत नाबालिगों के विवाह पर लिखित लेख को पढ़ें।

ईसाई कानून के तहत निषिद्ध विवाह

कुछ व्यक्तिगत कानून किसी व्यक्ति को एक निश्चित व्यक्ति से विवाह करने से पूरी तरह से प्रतिबंधित कर सकते हैं, जैसे कि भाई-बहनों के बीच विवाह। ईसाई विवाह कानून ऐसे निषिद्ध विवाहों की अनुमति नहीं देता है और इस तरह के विवाह को इस कानून के तहत अमान्य माना जाता है। हालांकि, किसी व्यक्ति के पास अभी भी विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह करने का विकल्प होता है, और व्यक्तिगत कानूनों की बाधा ऐसी विवाह के लिए लागू नहीं होती है। विशेष या अंतर-धार्मिक विवाहों के बारे में अधिक जानने के लिए, अंतर-धार्मिक विवाह पर हमारे लेख को पढ़ें।

हिंदू विवाह कानून के तहत विवाह समाप्त करना

विवाह संबंधी कानून भावनात्मक और वैवाहिक आवश्यकताओं को मान्यता देता है; इसमें कई कानूनी दायित्व शामिल हैं जैसे संपत्ति का मालिक होना, अपने बच्चों की देखभाल करना आदि। जब आप अपनी शादी समाप्त करते हैं, तो वैवाहिक संबंध समाप्त हो जाते हैं। लेकिन कुछ कानूनी बाध्यताएं फिर भी बनी रह सकती हैं।

वैवाहिक संबंध

कानून वैवाहिक संबंधों में इन् व्यक्यों को शामिल करता है :

• भावनात्मक सहारा

• यौन संबंध

• बच्चे और घरेलू जिम्मेदारियां

• वित्तीय सहायता

कानूनी दायित्व

आपकी शादी के दौरान आपके और आपके जीवनसाथी के कुछ कानूनी दायित्व हैं।

इनमें से कुछ दायित्व तलाक होने के बाद भी जारी रह सकते हैं। इन कानूनी दायित्वों के उदाहरण हैं:

गुजारा भत्ता या रखरखाव

• न्यायालय आपसे आपके जीवनसाथी को पैसे देने के लिए भी कह सकता है और यह एक कानूनी दायित्व है जो आपको तलाक के बाद उठाना होगा। इसे रखरखाव के रूप में जाना जाता है।

माता-पिता की ज़िम्मेदारी

• न्यायालय यह तय कर सकता है कि आपके बच्चों की कस्टडी किसके पास होगी और आर्थिक रूप से उनकी देखभाल कैसे की जाएगी।

 

इस्लामिक कानून की विभिन्न विचारधाराएं कौनसी हैं?

इस्लामिक कानूनों की कई विचारधाराएं हैं। इस्लामी विवाह पर कानून विद्वानों द्वारा कुरान की व्याख्या से आता है। इस प्रकार, अधिकांश इस्लामी निकाह पीढ़ियों से पालन किए जाने वाली व्याख्या से प्राप्त रीति-रिवाजों के आधार पर तय होते हैं। इस्लाम का पालन करने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होने वाले कानून और रीति-रिवाज व्यक्ति के संप्रदाय के आधार पर भिन्न होते हैं। इसके अलावा, संप्रदायों के भीतर रीति-रिवाजों की विभिन्न शाखाएं उभरी हैं। इन शाखाओं में विशिष्ट कानून हैं जिन्हें “स्कूल ऑफ लॉ” के रूप में जाना जाता है।

भारत में, मुस्लिम पर्सनल लॉ के कुछ हिस्सों को 1937 में मुस्लिम स्वीय विधि (शरीयत) अधिनियम, 1937 के साथ-साथ मुस्लिम निकाह विघटन अधिनियम, 1939 के रूप में लिखा गया था। इन दोनों कानूनों से कई मायनों में पारिवारिक कानूनों में सुधार हुआ है। परन्तु, इस्लामी निकाह इस्लामिक धार्मिक नियमों के आधार पर ही तय होते हैं। इस्लाम में दो संप्रदाय हैं- सुन्नी और शिया। प्रत्येक संप्रदाय अपनी एक अलग कानूनी विचारधारा का पालन करता है । इसका मतलब यह है कि संप्रदाय के आधार पर, दूल्हा और दुल्हन के लिए निकाह की प्रक्रिया अलग-अलग होती है।

गोद लेना किसे कहते हैं?

‘गोद लेना’ वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से गोद लेने वाले भावी माता-पिता कानूनी रूप से बच्चे की जिम्मेदारी लेते हैं, जिसमें बच्चे को पहले से ही दिए गए सभी अधिकार, विशेषाधिकार और जिम्मेदारियां शामिल हैं। गोद लेने की कानूनी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद, बच्चे को उनके असली माता-पिता से स्थायी रूप से अलग कर दिया जाता है और उन्हें गोद लेने वाले माता-पिता का बच्चा माना जाता है।

भारत में, गोद लेने के कानून माता-पिता और बच्चे के धर्म पर आधारित हैं। आप नीचे दिए गए विकल्पों में से चुन सकते हैं कि कौन सा कानून आप पर लागू होता है।

अगर आप हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख हैं

अगर आप एक हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख हैं (सामूहिक रूप से हिंदू के रूप में संदर्भित) तो आपके पास हिंदू दत्तक कानून के तहत गोद लेने का विकल्प है, जिसे हिंदू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम,1956/हिन्दू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट,1956 (HAMA) कहा जाता है। इसमें हिंदू बच्चों को गोद लेने का प्रावधान है। यदि आप मुस्लिम, ईसाई, पारसी या यहूदी या अनुसूचित जनजाति से हैं तो आप इस कानून के तहत गोद नहीं ले सकते।

अन्य सभी धर्मों के लिए

अगर आप किसी धार्मिक कानून के तहत गोद नहीं लेना चाहते हैं या फिर आप उस कानून के तहत गोद नहीं ले सकते, तो आपके पास किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (JJ Act) के तहत गोद लेने का विकल्प है, जो एक सामान्य दत्तक कानून है जिसके तहत किसी भी धर्म के कोई भी व्यक्ति हिंदू, अनुसूचित जनजाति आदि सहित किसी भी धर्म के बच्चों को गोद ले सकते हैं। इस कानून के तहत गोद लेने की प्रक्रिया कैसे काम करती है, इसे समझने के लिए और पढ़ें। अगर आप समझना चाहते हैं कि आपको किस कानून के तहत गोद लेना चाहिए तो नीचे दी गई तालिका देखें:

हिन्दू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट, 1956 (HAMA)

(हिंदू कानून)

किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015

(गैर-धार्मिक कानून)

गोद लेने वाले माता-पिता केवल हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख हो सकते हैं। अगर आप मुस्लिम, ईसाई, पारसी या यहूदी हैं या अनुसूचित जनजाति से हैं तो आप इस कानून के तहत गोद नहीं ले सकते। गोद लेने वाले माता-पिता किसी भी धर्म, जाति या जनजाति के हो सकते हैं।
केवल हिंदू बच्चों को ही गोद लिया जा सकता है।  किसी भी धर्म के बच्चे को गोद लिया जा सकता है।
15 साल तक के बच्चों को गोद लिया जा सकता है। 18 साल तक के बच्चों को गोद लिया जा सकता है।
गोद लेने की प्रक्रिया को विस्तार से नहीं दिया गया है, आमतौर पर बच्चे को गोद लेने के लिए एक पत्र पर हस्ताक्षर किया जाता है। विभिन्न श्रेणियों के लिए गोद लेने की प्रक्रिया अलग-अलग है, और यह इस पर निर्भर करता है कि आप कौन हैं:

भारतीय निवासी द्वारा गोद लेना (भारत में रहने वाले लोग)।

भारतीय नागरिकों द्वारा किसी दूसरे देश के बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया (गैर-धार्मिक कानून)

भारत के प्रवासी नागरिक (ओ.सी.आई) या भारत में रहने वाला एक विदेशी नागरिक द्वारा गोद लेने की प्रक्रिया (गैर-धार्मिक कानून)

ओ.सी.आई या अनिवासी भारतीय (एन.आर.आई) या किसी दूसरे देश में रहने वाले विदेशी नागरिक (गैर-धार्मिक कानून) द्वारा गोद लेना

सौतेले माता-पिता द्वारा गोद लेने की प्रक्रिया (गैर-धार्मिक कानून)

• रिश्तेदारों द्वारा गोद लेने की प्रक्रिया (गैर-धार्मिक कानून)

 

 

 

 

 

 

 

 

 

न्यायालय द्वारा अकृतता की डिक्री

अमान्यता का एक निर्णय (न्यायालय द्वारा अकृतता (Nullity) की डिक्री)एक न्यायिक निर्णय है जो यह निर्धारित करता है कि विवाह कभी अस्तित्व में था ही नहीं। यह तलाक से इस मायने में अलग है कि वह विवाह को मानता है और तब उसे समाप्त करता है। अमान्यता का निर्णय घोषित करता है कि विवाह था ही नहीं और हमेशा शून्य रहा है क्योंकि ऐसी कई शर्तें हैं जिनके तहत भारत में विवाह को अवैध विवाह माना जा सकता है। एक पक्ष को दूसरे पक्ष के खिलाफ अदालत के समक्ष एक याचिका पेश करनी होती है, जिसमें विस्तार से रद्द करने का कारण बताया जाता है। 

संतान द्वारा माता-पिता की देखभाल

भारतीय कानून के अनुसार, परिस्थितियों के आधार पर, सभी व्यक्तियों को अपने माता-पिता के भरण-पोषण और आश्रय की जिम्मेदारी लेना आवश्यक है, चाहे वो उनके जैविक माता-पिता हों, सौतेले हों, या दत्तक हों। ‘माता पिता और वरिष्ठ नागरिक के भरण-पोषण एवं देखभाल’ अधिनियम, 2007 एक विशेष कानून है जिसके तहत एक वरिष्ठ नागरिक (60 वर्ष से ऊपर) अपने वयस्क संतानों या कानूनी उत्तराधिकारी से भरण-पोषण के लिए न्यायधिकरण (ट्रिब्यूनल) में आवेदन कर सकते हैं। इन दोनों कानूनों के तहत आप भरण-पोषण के लिए आवेदन कर सकते हैं, यदि आप खुद अपनी देखभाल करने में असमर्थ हैं।

कानूनी हिंदू विवाह

किसी शादी को हिंदू विवाह के रूप में कानूनी मान्यता देने के लिए, निम्नलिखित शर्तें जरूर पूरी की जानी चाहिएः

  • कानून की नजर में दंपति को हिंदू होना चाहिए।
  • विवाह करते समय पति की आयु 21 वर्ष और पत्नी की आयु 18 वर्ष से अधिक होनी चाहिए।
  • पति और पत्नी दोनों स्वस्थ चित्त हों।
  • एक दूसरे से विवाह करते समय ना तो पति विवाहित हो सकता है ना ही पत्नी।
  • पति और पत्नी निषिद्ध संबंध में ना हों।
  • पति और पत्नी एक दूसरे के सपिंदा ना हों।

यदि इनमें से कोई भी शर्त पूरी नहीं की जाती है, तो कानून आपके विवाह को वैध नहीं मान सकता, और कुछ मामलों में, आपको सजा भी हो सकती है।