चुनाव से 48 घंटे पहले लाउडस्पीकर पर रोक

मौन काल यानी मतदान की तारीख से 48 घंटे पहले लाउडस्पीकरों पर प्रचार करना मना है।

लाउडस्पीकरों को किसी वाहन, मकान या बिल्डिंग पर नहीं लगा सकते हैं और अगर कोई ऐसा करता है तो यह आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) का उल्लंघन है। 48 घंटे पूरे होने के बाद इन्हें फिर से इस्तेमाल करने के लिए जिला प्रशासन से अनुमति लेनी होगी।

क्या मतदान के दिन मतदाताओं को मतदान केंद्र पर ले जाना अपराध है?

कोई भी उम्मीदवार या पार्टी या उनके एजेंट मतदान के दिन मतदाताओं को मतदान केंद्र आने-जाने के लिए गाड़ी की सुविधा नहीं दे सकते हैं।

ऐसा करने पर, सजा के तौर पर 500 तक का जुर्माना देना पड़ सकता है।

उदाहरण के लिए, कोई पार्टी या उम्मीदवार मतदान के दिन मतदाताओं को मतदान केन्द्र ले जाने के लिए किराए पर बस लेकर फ्री सेवा नहीं दे सकते हैं।

हालांकि, ये सुविधा चुनाव आयोग से दिव्यांग लोगों को मिल सकती हैं। इसके लिए दिव्यांग व्यक्ति PwD (People with Disability)-पी.डब्ल्यू.डी. ऐप (एंड्रॉइड) पर अपना पंजीकरण कराकर चुनाव अधिकारी से मतदान के दिन के लिए मतदान केंद्र तक आने-जाने के लिए गाड़ी की फ्री सुविधा मांग सकते हैं।

चुनाव प्रचार-प्रसार के लिए धर्म का इस्तेमाल

कोई भी पार्टी या उम्मीदवार, ऐसा किसी भी तरह का प्रचार नहीं कर सकते, जिसके कारण किसी भी जाति या धार्मिक समुदाय के बीच तनाव या नफरत पैदा हो।

आदर्श-आचार संहिता(एम.सी.सी) किसी व्यक्ति या संगठन को चुनाव के दौरान किसी भी उम्मीदवार या राजनीतिक पार्टी को जीत के लिए धर्म का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देती है, भले ही राजनीतिक पार्टी या उम्मीदवार से उनका कोई भी संबंध हो।
उदाहरण के लिए, धार्मिक/सांस्कृतिक संगठन, संघ या व्यक्ति किसी राजनीतिक पार्टी या उम्मीदवार के पक्ष में या उसके खिलाफ प्रचार नहीं कर सकते हैं।

नीचे कुछ ऐसे काम दिए गए हैं, जिन्हे चुनाव प्रचार के दौरान करने की मनाही हैः

  • कोई भी धर्म का इस्तेमाल करते हुए मतदाताओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचा सकता है।
  • कोई भी पार्टी या उम्मीदवार लोगो को ये कहकर वोट नहीं मांग सकते हैं, कि अगर वे उसे वोट नहीं देंगे, तो भगवान इसकी उन्हें सजा देगा।
  • कोई भी व्यक्ति अलग-अलग समूहों के लोगों के बीच मतभेद पैदा करने के लिए धर्म का इस्तेमाल नहीं कर सकता है
  • कोई भी ऐसा कोई दुर्भावनापूर्ण बयान नहीं दे सकता है, जिससे किसी भी नेता के निजी जीवन पर हमला हो।
  • मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर और दूसरे किसी भी पूजा स्थलों का इस्तेमाल किसी भी चुनाव प्रचार के लिए नहीं किया जा सकता है।

यहां प्रचार के लिए धर्म का इस्तेमाल करके एमसीसी के उल्लंघन के कुछ उदाहरण दिए गए हैं, जैसे –

  • अगर मंदिर के प्रवेश द्वार के बाहर नेताओं की तस्वीरों की होर्डिंग लगाई जाती हैं।
  • किसी राजनीतिक पार्टी द्वारा वोट पाने के लिए मंदिर के बाहर भिखारियों को पैसा दिया जाता है।

क्या चुनाव प्रचार के लिए सरकारी विज्ञापनों का इस्तेमाल किया जा सकता है?

सरकारी विज्ञापन का काम आमतौर पर जनता को उनके अधिकारों, कर्तव्यों और उनके हक़ के बारे में जानकारी देना है। इसके अलावा ये सरकारी नीतियों, कार्यक्रमों, सेवाओं और अवसरों के बारे में बताते हैं। लेकिन आचार संहिता के मकसद को पूरा करने के लिए, सरकारी विज्ञापन निष्पक्ष और राजनीतिक रूप से निष्पक्ष होने चाहिए। सरकारी विज्ञापनों के द्वारा किसी भी तरह से सत्ताधारी पार्टी (जिस पार्टी की सरकार है) के राजनीतिक हित को फायदा नहीं मिलना चाहिए।  

उदाहरण के लिए, 

  • सरकार की  बनाई  मिड-डे मील योजना का विज्ञापन करते समय, सत्ताधारी पार्टी इन विज्ञापनों का इस्तेमाल अपनी पार्टी के नेताओं और उम्मीदवारों के गुणगान के लिए नहीं कर सकती हैं। इन विज्ञापनों में पार्टी के नेताओं के नाम और उनका फोटो लगाना आचार-संहिता (एमसीसी) का उल्लंघन है। 
  • कानून के तहत, राशन कार्ड धारकों को एलपीजी गैस पर सब्सिडी दी जाती है। सत्ताधारी दल इसे अपनी पहल बताकर प्रचार नहीं कर सकते हैं।  राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत सरकार को अनिवार्य रूप से लोगों को चावल 3 रुपये प्रति किलो की दर से और गेहूं 2 रुपये प्रति किलो की दर से देना होता है। इस योजन पर सत्ताधारी पार्टी यह दावा नहीं कर सकती कि यह उनकी योजना है और न ही इसका किसी भी तरह का विज्ञापन कर सकती हैं। 

चुनाव के दौरान, सत्ताधारी दल को नीचे बताई गई बातों को करना मना हैः

  • सताधारी पार्टी अपने चुनाव प्रचार में सरकारी विज्ञापनों के लिए आरक्षित सरकारी पैसे का इस्तेमाल नहीं कर सकती है। 
  • सरकारी विज्ञापनों के माध्यम से सत्ताधारी पार्टी की सकारात्मक छवि या दूसरी राजनीतिक पार्टी की नकारात्मक छवि को नहीं दिखाया जा सकता है। 

सरकारी विज्ञापन 

सरकारी विज्ञापनों में नीचे बताई गई बातों को करना मना हैः

  • सरकारी विज्ञापनों में सत्ताधारी पार्टी का नाम लेकर प्रचार करना 
  • सरकारी विज्ञापनों में विपक्षी दलों का नाम लेकर उनके विचारों या कामों की आलोचना करना 
  • सरकारी विज्ञापनों में अपनी पार्टी का राजनीतिक प्रतीक, चिन्ह या झंडा शामिल करना 
  • सरकारी विज्ञापनों की मदद से अपनी पार्टी या अपने उम्मीदवार के लिए आम जनता का समर्थन जुटाना 
  • सरकारी विज्ञापनों की मदद से अपनी पार्टी या नेताओं की वेबसाइटों के लिंक का प्रचार करना

क्या कोई उम्मीदवार राजनीतिक विज्ञापनों के लिए सार्वजनिक संपत्ति का इस्तेमाल कर सकता है?

राजनीतिक पार्टियां या उम्मीदवारों को चुनावी विज्ञापनों के लिए सार्वजनिक संपत्तियों या स्थानों को इस्तेमाल करने की मनाही है।

चुनाव प्रचार के लिए, राजनीतिक पार्टियां और उम्मीदवारों को सार्वजनिक संपत्तियों या स्थानों की  दीवारों पर क्या करने की मनाही है:

  • दीवारों पर लिखना
  • कोई पोस्टर या कागज दीवार पर चिपकाना
  • कोई कटआउट, होर्डिंग, बैनर, झंडे आदि लगाना

सार्वजनिक संपत्तियों के कुछ उदाहरण नीचे दिए गए हैंः

  • रेलवे स्टेशन, रेलवे फ्लाईओवर, बस स्टैंड, हवाई अड्डा, पुल, आदि 
  • सरकारी अस्पताल, डाकघर (पोस्ट ऑफिस) 
  • सरकारी बिल्डिंग, नगरपालिका बिल्डिंग आदि। 

अगर कोई राजनीतिक पार्टी या उम्मीदवार अपनी प्रचार सामग्री को किसी सार्वजनिक संपत्तियों पर लगाते हैं, तो यह आचार-संहिता (एमसीसी)  का उल्लंघन होगा।

क्या आचार-संहिता (एमसीसी) सोशल मीडिया के विज्ञापनों पर भी लागू होता है?

आचार-संहिता(एमसीसी) सभी तरह के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी लागू होती है। सोशल मीडिया की पांच श्रेणियों को आचार-संहिता के अन्दर नियंत्रित किया जाता हैः

  • कोलैबॉरेटिव प्रॉजेक्ट (जैसे कि विकिपीडिया)
  • ब्लॉग और माइक्रोब्लॉग (जैसे कि एक्स पुराना नाम ट्विटर)
  • कंटेंट कम्युनिटी (जैसे यूट्यूब) 
  • सोशल नेटवर्किंग साइट्स (जैसे फेसबुक)
  • वर्चुअल गेम्स (जैसे गेम्स के ऐप और वेबसाइट)

राजनीतिक पार्टियों और उम्मीदवारों को सोशल मीडिया में विज्ञापन करते समय इन नियमों को मानना होता हैंः 

जानकारी देना

नामांकन दाखिल करते समय उम्मीदवारों को फॉर्म सं.26 भरना होता है। इस फॉर्म में उम्मीदवार से जुड़ी जानकारी जैसे ईमेल आईडी, सोशल मीडिया अकाउंट आदि होती हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि उम्मीदवार अपने सभी ओरिजनल सोशल मीडिया अकाउंट को बता सकें। 

विज्ञापनों का पूर्व-प्रमाणीकरण (पहले जांच करवाना)

जिला और राज्य स्तर पर ‘मीडिया प्रमाणीकरण और निगरानी समिति’ होती हैं। इस समिति से सभी सोशल मीडिया विज्ञापनों को प्रकाशित करने से पहले प्रमाणित/जांच कराना जरूरी होता है। इस समिति की जांच के बाद ही कोई  विज्ञापन किसी भी ऑनलाइन सोशल मीडिया फोरम पर दिखाया जा सकता है।

खर्च 

सभी पाटियों और उम्मीदवारों को सोशल मीडिया विज्ञापनों पर होने वाले खर्च को बताना होता है। साथ ही उन्हें मीडिया विज्ञापनों से जुड़े सभी खर्चाे (कंटेंट को बनाने का खर्च, वेतन का खर्च और प्रचार से जुड़ा खर्च ) को लिखित में रखने की जरूरत होती है। 

क्या दूरदर्शन / टेलीविजन पर चुनाव प्रचार के लिए कोई कानून है?

चुनाव के दौरान दूरदर्शन/टेलीविजन  का प्रसारण आम घटनाओं/कार्यक्रमों पर होना चाहिए। टीवी पर दिखाई देने वाला प्रसारण  किसी खास उम्मीदवार या राजनीतिक पार्टी का समर्थन या निंदा करना या मजाक उड़ाने वाला ना हो।  टीवी का प्रसारण देश के लिए सही और आम हित में हो,तो ये आचार-संहिता का उल्लंघन नहीं है। 

जैसे:  

  • किसी क्रिकेट मैच के सीधे प्रसारण के दौरान, नेताओं की फोटो दिखाने वाले विज्ञापनों को बीच में नहीं दिखा सकते हैं। 
  • कोई भी राजनीतिक पार्टी किसी सम्मेलन/सभा का सीधा प्रसारण करते समय नेताओं की फोटो नहीं दिखा सकती है। 
  • कोई भी  राजनीतिक पार्टी किसी नेता के जीवन के बारे में चुनाव से पहले कोई फिल्म नहीं दिखा सकती हैं। क्योंकि ऐसी फिल्म दिखाने के बाद दर्शक उस नेता को वोट देने के लिए प्रभावित हो सकते हैं।

किसी भी पंजीकृत/रजिस्टर्ड राजनीतिक पार्टी, समूह, संगठन, संघ और उम्मीदवार द्वारा किसी भी तरह के राजनीतिक विज्ञापन को टीवी चैनलों और केबल नेटवर्क पर दिखाने से रोकने के लिए, जिला और राज्य के ‘मीडिया प्रमाणन और निगरानी समिति’ से पहले प्रमाणित करना जरूरी है। अगर ‘मीडिया प्रमाणन और निगरानी समिति’ के बिना अनुमति के कोई विज्ञापन  टीवी या केबल नेटवर्क में दिखाया जाता है। तो वे इसकी जानकारी रिटर्निंग ऑफिसर को दें।  इसके बाद रिटर्निंग ऑफिसर उस उम्मीदवार को नोटिस भेजकर उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं।

चुनाव प्रचार के दौरान रेडियो विज्ञापनों को कैसे नियंत्रित किया जाता है?

राजनीतिक पार्टियां और उम्मीदवार अपने विज्ञापन को रेडियो में प्रसारित कर सकते हैं। सभी जिलों और राज्यों के हर एक रेडियो पर प्रसारित विज्ञापनों पर ‘मीडिया प्रमाणन और निगरानी समिति’ (एमसीएमसी)  की निगरानी होती है।  वे एफ.एम.चैनलों पर सुनाई देने वाले  सभी राजनीतिक पार्टियों के रेडियो जिंगल पर निगरानी रखते हैं । निगरानी का कारण आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन को रोकना होता है। रेडियो जिंगल इन बातों पर नहीं हो सकते हैं: 

  • राजनेताओं के निजी जीवन की आलोचना पर 
  • धार्मिक समुदायों पर कोई हमला 
  • अश्लील/अभद्र और अपमानजनक सूचक  
  • हिंसा भड़काने वाला 
  • भारत की अखंडताए एकता और संप्रभुता को नुकसान करने वाला 

एफ.एम. चैनलों पर नज़र रखने के लिए एक रजिस्टर  बनाकर, उन चैनलों का नाम और संख्या खास तौर से लिखी जाती है। हर एफ.एम. चैनल को 30 मिनट के समय में सुनने के लिए दो अधिकारियों को रखा जाता है। उदाहरण के लिए, अगर कोई राजनीतिक पार्टी किसी दूसरे पार्टी या उम्मीदवार का मजाक उड़ा रही है, तो एमसीएमसी उसे हटाने या वापस लेने का आदेश देगी।

प्रचार के दौरान प्रिंट मीडिया को कैसे नियंत्रित किया जाता है?

समाचार पत्र / अखबार  (प्रिंट मीडिया)

समाचार पत्रों सहित सभी तरह के प्रिंट मीडिया को आचार-संहिता के नियमों का पालन करना होता है। प्रेस का कर्तव्य है कि:

  •  प्रेस (प्रिंट मीडिया) निष्पक्ष रहकर, चुनाव और उम्मीदवारों के बारे में लिखें। किसी भी खबर या रिपोर्ट को बढ़ाचढ़ा कर नहीं दें। उदाहरण के लिए, वे  किसी उम्मीदवार के चुनाव प्रचार के बारे में कोई फर्जी या झूठी खबर नहीं छाप सकते हैं।
  • वे चुनाव प्रचार की रिपोर्टिंग करते समय नफरत न फैलाएं। वे ऐसा कुछ भी ना करें, जिससे धर्म, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर लोगों के बीच नफरत को बढ़ावा मिले। उदाहरण के लिए, जब कोई नेता सत्ता में आने पर मुसलमानों को सबक सिखाने की बात कहे, तो इन खबरों को बढ़ावा ना दें।
  • किसी भी उम्मीदवार के चरित्र और आचरण के बारे में गलत या बुराई करने वाले बयान छापने से बचें। 
  • किसी भी उम्मीदवार या राजनीतिक दल के खिलाफ किसी भी तरह के झूठे आरोपों को छापने से बचें।

पेड न्यूज (खबरों को छापने के लिए पैसे लेना)  :

  • किसी राजनीतिक पार्टी या उम्मीदवार के बारे में लिखने के लिए किसी भी तरह का इनाम या पैसा लेने से बचें। 
  • सरकारी खजाने के पैसों से सत्ताधारी दल की उपलब्धियों से जुड़ा कोई भी विज्ञापन अखबार में छापता हैं। तो यह आचार-संहिता (एमसीसी) का उल्लंघन है। इस तरह के उल्लंघन पर मुद्रक और प्रकाशक को सजा हो सकती है। इसमें किसी राजनीतिक पार्टी को नुकसान या ठेस पहुंचाने वाले विज्ञापन छापना भी शामिल है। 

पोस्टर और पैम्फलेट

आचार-संहिता (एमसीसी) केवल उन छपे हुए पर्चे, हैंड-बिल या किसी भी दूसरे तरह के पोस्टर पर लगती है, जिसे किसी उम्मीदवार या राजनीतिक पार्टी के प्रसार को बढ़ावा देने या फिर उसे रोकने के लिए बांटा  जाता है। उदाहरण के लिए, कोई राजनीतिक पार्टी अगर किसी उम्मीदवार की बदली हुई (मोर्फ्ड) फोटो वाला पोस्टर छापती है, तो यह आचार-संहिता का उल्लंघन है, और इसके लिए छापने वाले को सजा दी जा सकती है।

तारीख की घोषणा

तारीख की घोषण के लिए कोई हैंड-बिल, प्लेकार्ड या पोस्टर इस्तेमाल नहीं हो सकता है। इस मनाही में चुनावी सभा की तारीख, समय, स्थान और दूसरी जानकारियां या चुनाव एजेंटों या कार्यकर्ताओं को हर रोज के लिए निर्देश देने जैसी बातें शामिल है।उदाहरण के लिए, कोई राजनीतिक पार्टी अगर किसी उम्मीदवार की बदली हुई फोटो वाला पोस्टर छापता है, तो यह आचार-संहिता (एमसीसी) का उल्लंघन है । इसकी सजा मुद्रक और प्रकाशक को दी जा सकती है।

मुद्रक और प्रकाशक का नाम छापना

अखबारों, पोस्टरों और पैम्पलेटों में छापे किसी भी विज्ञापन पर मुद्रक और प्रकाशक का नाम लिखा होना जरूरी है। अगर  विज्ञापन में कोई भी ऐसा कंटेंट (लिखी बात या फोटो) छपा हो, जो आचार-संहिता का उल्लंघन करती है। तो इस उल्लंघन का जिम्मेदार मुद्रक या प्रकाशक होगा। इसकी सजा छह महीने की जेल या  2,000 रुपये तक का जुर्माना या फिर दोनों हो सकता है।

अखबारों, पोस्टरों और पैम्पलेटों और दूसरे प्रिंट मीडिया के सभी मुद्रकों को छपाई से पहले नीचे बताए कामों को करना होता हैः 

  • प्रकाशक/पब्लिशर्स  को अपनी पहचान के रूप में अपने हस्ताक्षर और दो गवाहों के साथ एक घोषणा पत्र जारी करना होता है। 
  • घोषणा पत्र और दस्तावेज की एक कॉपी प्रिंट करके राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (अगर  यह किसी राज्य की राजधानी में छपी है) या उस जिले के जिला मजिस्ट्रेट को भेजनी होती है, जहां इसे छापा जा रहा है। 

समाचार पत्रों, पोस्टरों और पैम्पलेटों के इलेक्ट्रॉनिक रूप (वर्जन)

अगर समाचार पत्र, पोस्टर या पैम्फलेट इलेक्ट्रॉनिक रूप में हैं, तो कानून के अनुसार पब्लिशर्स प्रकाशकों को विज्ञापन की एक कॉपी को जिला और राज्य स्तरीय ‘मीडिया प्रमाणन और निगरानी समिति’ को भेजकर पूर्व.प्रमाणित करवाना होगा। वहां इस बात की जांच होगी कि यह विज्ञापन किसी कानून या आचार-संहिता का उल्लंघन तो नहीं कर रहा है।

चुनाव प्रचार के दौरान बिलबोर्ड्स और होर्डिंग्स

पोस्टर, बिलबोर्ड और होर्डिंग्स में परिवार नियोजन, सामाजिक कल्याण जैसी योजनाओं की जानकारी को दिखाया जा सकता है।  वहीं इन पर चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों की उपलब्धियों, नेताओं के फोटो और पार्टी के निशान को नहीं दिखा सकते हैं। 

कोई भी राजनीतिक पार्टी या उम्मीदवार होर्डिंग, बिलबोर्ड्स, झंडा, नोटिस आदि लगाने के लिए किसी की जमीन, मकान या चारदीवारी का इस्तेमाल उनकी बिना अनुमति के नहीं कर सकता है। अगर कोई बिना अनुमति के ये सब करता हैं, तो ये यह उनकी संपत्ति के साथ छेड़छाड़ माना जाएगा। 

कुछ भी ऐसा करने पर, वह व्यक्ति नजदीकी जिला निर्वाचन कार्यालय में शिकायत कर सकता है।

उदाहरण के लिए, अगर सत्तारूढ़ पार्टी अपने राजनीतिक पार्टी के सदस्यों की फोटो के साथ किसी हाई-वे (राजमार्ग) पर एक होर्डिंग लगाता है, तो यह आचार संहिता का उल्लंघन है।