इनकम टैक्स रिटर्न या फॉर्म (आई.टी.आर)

इनकम टैक्स रिटर्न (आई.टी.आर) एक ऐसा फॉर्म है जिसके माध्यम से किसी व्यक्ति द्वारा एक वित्तीय वर्ष में अर्जित आय और ऐसी आय पर भुगतान किए गए टैक्स की जानकारी को आयकर विभाग में सूचित किया जाता है।

आय की प्रकृति और स्थिति के आधार पर, करदाताओं के विभिन्न वर्गों के लिए अलग-अलग आई.टी.आर फॉर्म निर्धारित हैं। प्रत्येक करदाता को केवल एक विशिष्ट आई.टी.आर फॉर्म के तहत टैक्स रिटर्न दाखिल करना होता है, और आपके आय के लिए जो आई.टी.आर फॉर्म लागू है, आपको वही फॉर्म भरना होगा। गलत आई.टी.आर फॉर्म दाखिल करने पर उसे अमान्य और दोषपूर्ण माना जाएगा।

इनकम टैक्स फॉर्म/आयकर प्रपत्र

आईटीआर फॉर्म आयकर विभाग की वेबसाइट से डाउनलोड किए जा सकते हैं। जब इनकम रिटर्न के डेटा के लिए आईटीआर-1 (सहज), आईटीआर-2, आईटीआर-3, आईटीआर-4 (सुगम), आईटीआर-5, आईटीआर-6, आईटीआर-7 भरे जाने के बाद सत्यापित होने पर ही आपको आयकर विभाग से एक पावती फॉर्म प्राप्त होगा।

आईटीआर-1 (सहज)

50 लाख तक की कुल आय वाले भारत में जो भी लोग रहते हैं, उन व्यक्तियों को यह आईटीआर फॉर्म दाखिल करना होगा। आप भारत के निवासी होंगे अगर आप:

• पिछले साल में यहाँ कम से कम 182 दिनों के लिए रहें हो,

• भारत में पिछले साल के पूर्व के चार वर्षों में कम से कम 365 दिनों के लिए रहें हो, और पिछले वर्ष में कम से कम साठ दिनों के लिए रहें हो, आपको यह फॉर्म तब भरना होगा जब आपका आय का स्रोत:

• आपका वेतन या पेंशन हो,

• एक घर की संपत्ति हो,

• और आपके अन्य स्रोत जैसे ब्याज आदि। (इसमें लॉटरी जीत, घुड़दौड़ आदि से आय शामिल नहीं है)

• 5,000 रुपये तक की कृषि आय हो।

यदि आप एक ऐसे व्यक्ति हैं जो भारत में नहीं रह रहे हैं या किसी कंपनी में निदेशक हैं या भारत के बाहर आप एक ऐसे व्यक्ति हैं जिसकी किसी भी स्रोत से आय हो, तो आप पर आईटीआर-1 फॉर्म लागू नहीं होता है।

आईटीआर-2

यह फॉर्म निम्नलिखित पर लागू होता है:

• एक व्यक्ति जिस पर आईटीआर-1 लागू नहीं होता है, या

• एक अविभाजित हिन्दू परिवार (एचयूएफ) जिसकी कुल आय में किसी व्यवसाय या पेशे का लाभ और वृद्धि शामिल नहीं है।

उदाहरण के लिए, यदि रमा किसी कंपनी में निदेशक हैं, तो उन्हें आईटीआर-2 के तहत टैक्स रिटर्न दाखिल करना होगा, क्योंकि वह आईटीआर-1 के अंतर्गत नहीं आती हैं।

आपको यह फॉर्म तब भरना होगा जब आय का स्रोत:

• आपके पूंजीगत लाभ से हो,

• एक से अधिक गृह संपत्ति से हो,

• विदेशी आय/विदेशी संपत्ति से हो।

आईटीआर-3

यह फॉर्म केवल निम्नलिखित पर ही लागू होता है:

• एक व्यक्ति या अविभाजित हिन्दू परिवार (एचयूएफ) जिसके लिए आईटीआर-1, आईटीआर-2 और आईटीआर-4 फॉर्म लागू नहीं होते हैं, और

• जिसकी आय किसी व्यवसाय या पेशे के लाभ और वृद्धि से होती है।

उदाहरण के लिए, अगर श्याम किसी फर्म में पार्टनर है और सालाना 50 लाख रुपये से ज्यादा कमाता है तो उसे आईटीआर-3 भरना होगा।

आईटीआर-4 (सुगम)

यह फॉर्म भारत में रहने वाले व्यक्तियों, एचयूएफ और फर्मों (सीमित देयता भागीदारी को छोड़कर) पर लागू होता है, जिनकी कुल वार्षिक आय 50 लाख रुपये तक है।

आय का निम्नलिखित स्रोत होने पर आईटीआर-4 लागू होता है:

• व्यवसाय से आय,

• पेशे से आय,

• वेतन या पेंशन से आय,

• एक गृह संपत्ति से आय,

• ब्याज आदि जैसे अन्य स्रोतों से आय (इसमें लॉटरी जीत और घुड़दौड़ से आय शामिल नहीं है) एक व्यक्ति जो भारत में नहीं रहता है या किसी कंपनी का निदेशक है, तो उसे यह आईटीआर -4 फॉर्म भरने की आवश्यकता नहीं है।

आईटीआर-5

यह फॉर्म निम्नलिखित पर लागू होता है:

• फर्म,

• एलएलपी(सिमित देयता भागीदारी),

• व्यक्तियों का संघ/व्यक्तियों का निकाय,

• कृत्रिम न्यायिक व्यक्ति,

• स्थानीय प्राधिकरण,

• प्रतिनिधि निर्धारिती -एक प्रतिनिधि निर्धारिती किसी अनिवासी व्यक्ति का एजेंट हो सकता है, यह एक अवयस्क/विक्षिप्त दिमाग/ मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति का अभिभावक हो सकता है, यह एक संरक्षक आदि हो सकता है जो किसी अन्य व्यक्ति की ओर से आय प्राप्त करने या प्रबंध करने के लिए अधिकृत होता है।

• सहकारी समिति

• समिति पंजीकरण अधिनियम के तहत पंजीकृत सोसायटी या समिति यह व्यक्तियों, एचयूएफ, कंपनी और आईटीआर -7 दाखिल करने वाले व्यक्तियों पर लागू नहीं है।

आईटीआर -6

जो चैरिटी या चैरिटी कारणों से कर में छूट का दावा करने वाली कंपनियों के अलावा, यह फॉर्म बाकी सभी कंपनियों के लिए लागू है। आप यहां कर मुक्त संस्थानों की सूची देख सकते हैं।

आईटीआर-7

यह फॉर्म व्यक्तियों (कंपनियों सहित) पर लागू होता है, जैसे:

• किसी ट्रस्ट के तहत चैरिटी या धार्मिक उद्देश्यों के लिए रखी गई संपत्ति से आय प्राप्त करने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर,

• राजनीतिक दलों पर,

• समाचार एजेंसियां, म्युचुअल फंड, ट्रेड यूनियन आदि पर,

• सभी विश्वविद्यालय या कॉलेज पर।

आईटीआर-सत्यापन प्रपत्र

यह फॉर्म उन स्थितियों पर लागू होता है जहां आईटीआर-1 (सहज), आईटीआर-2, आईटीआर-3, आईटीआर-4 (सुगम), आईटीआर-5, आईटीआर-7 में इनकम रिटर्न का डेटा दाखिल किया जाता है, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक रूप से सत्यापित नहीं रहता है।

 

चेक क्लियरिंग

चेक क्लियरिंग का अर्थ है चेक पर उल्लिखित राशि को भुगतान पाने वाले के खाते में स्थानांतरित करके एक बैंक से दूसरे बैंक में चेक प्रोसेस करना। चेक क्लियरिंग सिस्टम के दो सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले रूप हैं:

• चेक ट्रंकेशन सिस्टम

• स्पीड क्लियरिंग

करार/ एग्रीमेंट की चेकलिस्ट

किरायेदारों/लाइसेंसधारी और मकान मालिकों/लाइसेंसकर्ता दोनों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए, आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि आपके पास एक लिखित करार है। इस करार को अंतिम रूप देते समय, इसमें उल्लिखित सभी शर्तों को पढ़ना बहुत महत्वपूर्ण है।

ये शर्तें न केवल आपकी किराया राशि और सुरक्षा जमाराशि तय करती हैं, बल्कि कई अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं को भी शामिल करती है, जैसे कि घर/संपत्ति का रखरखाव, संबंधित बिलों का भुगतान, घर छोड़ने की सूचना अवधि (नोटिस पीरियड), आदि।

सुनिश्चित करें कि आपके लीज या लीव एंड लाइसेंस समझौते में निम्नलिखित प्रावधान मौजूद हैं:

  • किरायेदार/लाइसेंसधारी और मकान मालिक/लाइसेंसकर्ता के नाम
  • करार का उद्देश्य
  • करार की अवधि
  • किराए की राशि
  • किराए के भुगतान की तारीख
  • सुरक्षा जमाराशि
  • अनुरक्षण राशि
  • मरम्मतों की जिम्मेदारी सुनिश्चित करना
  • फर्नीचर/फिटिंग/अन्य वस्तुओं की सूची
  • समझौते की समाप्ति का नोटिस
  • परिसर में मकान मालिक के प्रवेश की नोटिस
  • सोसाइटी/आरडब्ल्यूए के सभी उपनियमों का पालन करने की घोषणा
  • मकान मालिक/लाइसेंसकर्ता की अनुमति के बाद ही किसी उप-किराएदार रखने की घोषणा
  • विवाद समाधान के लिए किस न्यायालय में जाना
  • एक निश्चित अवधि के बाद किराए में वृद्धि की दर, यदि कुछ है तो।
  • मकान मालिक / लाइसेंसकर्ता या किरायेदार / लाइसेंसधारी के हस्ताक्षर
  • दो गवाहों के हस्ताक्षर

किसी विल के लिए प्रशासक या निष्पादक नियुक्त करना

न्यायालय को यह अधिकार है कि वह ऐसा प्रशासक या निष्पादक नियुक्त कर सकता है, जो उस स्थिति में आपकी विल काे निष्पादित करेगा –

  • यदि आपने अपनी विल में कोई निष्पादक नियुक्त नहीं किया हो।
  • यदि आपके द्वारा नियुक्त निष्पादक, निष्पादक के रूप में कार्य करने के लिए सक्षम न हो।
  • यदि आपके द्वारा नियुक्त निष्पादक, निष्पादक का दायित्व निभाने से इंकार कर दे।

यदि आप किसी ऐसी विल के लाभार्थी हों, जिसका कोई निष्पादक न हो या जिस व्यक्ति को निष्पादक के रूप में नामित किया गया हो, वह इन कार्यों का निष्पादन नहीं करना चाहता हो, तो आप एक प्रशासक नियुक्त करने के लिए न्यायालय में आवेदन-पत्र दे सकते हैं।

यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु अपनी विल के लिए कोई निष्पादक नामित किए बिना हो जाती है, तो उसके विल में उल्लिखित लाभार्थी द्वारा प्रशासन-पत्र जारी किए जाने के लिए आवेदन-पत्र देना होगा। इसकी प्रक्रिया वही होगी, जो प्रोबेटर जारी करने की प्रक्रिया है।

अगर कोई मेरी संपत्ति पर अतिक्रमण करता है, तो मुझे क्या करना चाहिए?

अगर कोई आपकी संपत्ति पर अतिक्रमण या अतिचार (बिना अधिकार के प्रवेश करना) करता है या कोई निर्माण आपकी संपत्ति की सीमा रेखा से आगे करता है, तो इसे बताए गए तीन तरीके से हल कर सकते हैंः

अतिचार: अगर कोई आपकी संपत्ति में अपराध करने, आपको डराने, अपमान करने या चिढ़ाने के इरादे से या वैध रूप से प्रवेश करके अवैध रूप से वहां रहने लगता है, तो बताई गई सभी स्थितियों में प्रवेश अवैध ही माना जाएगा।

भारतीय दंड संहिता के तहत यह अपराध आपराधिक अतिचार की श्रेणी में आता है।1 इसके खिलाफ आप आपराधिक शिकायत दर्ज करा सकते हैं।

संपत्ति का सीमांकन: दूसरा विकल्प दीवार या बाड़ बनाकर ज़मीन का सीमांकन करना है। यह ज़मीन की सीमाओं को ठीक रखता है और सीमांकित ज़मीन की सुरक्षा को बनाए रखता है।  साथ ही ज़मीन को अतिक्रमण या कब्जा करने वालों से भी बचाता है।

संपत्ति के अतिक्रमण के लिए सिविल मुकदमा: तीसरा विकल्प सिविल कोर्ट में एक आवेदन करना और अतिक्रमण के खिलाफ आदेश मांगना है। आप किसी को भी आपकी ज़मीन पर कब्ज़ा करने से रोकने के लिए कोर्ट से स्थायी निषेधाज्ञा की मांग कर सकते हैं।

उपभोक्ता फोरम में मामला दर्ज करना

उपभोक्ता फोरम जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर मौजूद है। आप 2 कारकों के आधार पर वहां मामला दर्ज कर सकते हैं:

1. आपके द्वारा खोए गए धन की राशि:

  • जिला फोरम : रु. 20 लाख
  • राज्य आयोग : रु. 20 लाख से रु. 1 करोड़
  • राष्ट्रीय आयोग: 1 करोड़ रुपये से अधिक।

2. नुकसान कहां हुआ

  • आप शिकायत उस स्थान पर दर्ज कर सकते हैं, जहां पैसे गवाए थे, या जहां विरोधी पक्ष (अर्थात, बैंक) अपना व्यवसाय करता है।

आपको उपभोक्ता मंचों से तभी संपर्क करना चाहिए जब आपको लगे कि बैंक ने लापरवाही की है, और आपको उचित सेवा नहीं दी है। फोरम वास्तविक अपराधी पर मुकदमा नहीं चलाता है।

आम तौर पर, उपभोक्ता अदालतों के साथ-साथ बैंकिंग लोकपाल के समक्ष मामले एक साथ दायर नहीं किए जा सकते हैं।

ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म के खिलाफ उपभोक्ता शिकायतें

उपभोक्ता ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म और खुदरा विक्रेताओं के माध्यम से खरीदे गए डिजिटल और अन्य उत्पादों से जुड़े अनुचित व्यापार व्‍यवहारों के खिलाफ भी शिकायत कर सकते हैं। सामान या सेवाएं बेचने वाले किसी भी डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक प्लैटफॉर्म का मालिक, संचालक या उसका प्रबंधक एक ई-कॉमर्स इकाई होता है। भारत में एक ई-कॉमर्स इकाई अलग से ई-कॉमर्स नियमों द्वारा शासित होती है।

ये नियम केवल पेशेवर व वाणिज्यिक व्यवसायों पर लागू होते हैं, न कि उन व्यक्तियों पर जो अपनी व्‍यक्तिगतगत क्षमता में अपना काम करते हैं। उदाहरण के लिए, एक उपभोक्ता अमेज़न के खिलाफ शिकायत कर सकता है क्योंकि यह एक ई-कॉमर्स इकाई है जो नियमित रूप से अपनी ई-कॉमर्स वेबसाइट से सामान बेचने के व्‍यापार में लगी हुई है। इसके बावजूद, अगर अमेज़न जैसे प्लैटफॉर्म पर किसी उत्पाद के साथ कोई समस्या है, तो अमेज़न उत्पाद देयता कार्यों के लिए उत्तरदायी होगा, न कि उत्पाद निर्माता।

हालांकि दिलचस्प बात यह है कि ई-कॉमर्स इकाई के लिए उत्पाद देयता भारत से बाहर फैली हुई है। यानी ये प्लैटफॉर्म अपने देश के घरेलू कानूनों के अलावा, उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत समान रूप से उत्तरदायी हैं। उदाहरण के लिए, Liyid जैसी विदेशी ई-कॉमर्स इकाई भारत में अपने उत्पादों की डिलीवरी करती है; दोषपूर्ण / खराब उत्पादों के कारण होने वाले किसी भी नुकसान के मामले में, भारत में और विदेशों में Liyid के खिलाफ उत्पाद देयता की कार्रवाई की जा सकती है।

ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्मों के उत्तरदायित्‍व 

ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म्‍स निम्नलिखित के लिए उत्तरदायी होते हैं-

• उनकी साइटों पर मूल्य हेरफेर,

• प्रदान की गई सेवाओं में लापरवाही और ग्राहकों के साथ भेदभाव।

• भ्रामक विज्ञापन, अनुचित व्यापार व्यवहार और उत्पादों के ग़लत विवरण/जानकारी।

• दोषपूर्ण उत्पाद को वापस लेने या उसका भुगतान करने से इनकार।

• ग्राहक द्वारा प्राप्‍त वस्तुओं या सेवाओं के संबंध में चेतावनियां या निर्देश प्रदान न करना।

• किसी भी प्लैटफॉर्म पर बिक्री के लिए विज्ञापित वस्तुओं या सेवाओं की प्रामाणिकता और छवियों के बारे में ग़लत विवरण, और उल्‍लंघन।

हालांकि, यदि उत्पाद के खतरे सामान्य रूप से ज्ञात हैं तो वे उत्तरदायी नहीं होंगे। उदाहरण के लिए, यदि कोई उपभोक्ता फ्लेमथ्रोअर्स जैसे खतरनाक उत्पाद का दुरुपयोग करता है या उसमें कुछ हेरफेर करता है तो इसके लिए ई-कॉमर्स इकाई को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।

ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म से शिकायत 

ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म को ‘शिकायत निवारण तंत्र’ स्थापित करना चाहिए और भारतीय ग्राहकों के सरोकार पर कार्यवाही करने के लिए एक ‘शिकायत अधिकारी’ नियुक्त करना चाहिए। शिकायत निवारण तंत्र के बारे में विवरण ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म पर प्रदर्शित किया जाना चाहिए। शिकायत अधिकारी को 48 घंटे के भीतर शिकायत स्वीकार करते हुए एक महीने की अवधि के भीतर समस्या का समाधान करना चाहिए।

इनकम टैक्स रिटर्न कैसे फाइल करें?

आयकर विभाग के साथ टैक्स रिटर्न फॉर्म निम्न में से किसी भी तरीके से फाइल किया जा सकता हैः

• रिटर्न को एक पेपर फॉर्म (ऑफलाइन) में आयकर कार्यालय में जमा करना,

• डिजिटल हस्ताक्षर करके इलेक्ट्रॉनिक रूप से रिटर्न जमा करना,

• इलेक्ट्रॉनिक सत्यापन कोड के तहत आईटीआर डेटा को इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रेषित करना,

• आईटीआर डेटा को इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रेषित करना, और बाद में रिटर्न का सत्यापन जमा करना

आईटीआर फाइल करने की प्रक्रिया

इनकम टैक्स रिटर्न मैन्युअल रूप से और साथ ही इलेक्ट्रॉनिक रूप से यानी ई-फाइलिंग के माध्यम से भरा जा सकता है।

विकल्प 1: मैनुअल फाइलिंग

मैन्युअल रूप से रिटर्न भरने के लिए, आपको आयकर विभाग के कार्यालय में जाना होगा। आप यहां अपने नजदीकी टैक्स ऑफिस का पता लगा सकते हैं। आप यह सुनिश्चित करें कि फॉर्म को पूरी तरह से भर कर और उसमें सभी आवश्यक जानकारी को सही ढंग से प्रदान करें। आईटीआर फॉर्म अटैचमेंट-रहित फॉर्म हैं और इसलिए, आपको इनकम रिटर्न के साथ कोई भी दस्तावेज (जैसे निवेश का प्रमाण, टीडीएस प्रमाण पत्र, आदि) को लगाने की आवश्यकता नहीं है। हालांकि, इन दस्तावेजों को सुरक्षित रूप से रखा जाना चाहिए, और जब मूल्यांकन, पूछताछ आदि जैसी स्थितियों में मांगी जाए, तो इन दस्तावेजों को टैक्स अधिकारियों के सामने प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

विकल्प 2: इलेक्ट्रॉनिक रूप से फाइल करना

फिजिकल रूप से रिटर्न दाखिल करने की तुलना में इंटरनेट या ऑनलाइन के माध्यम से अपने टैक्स रिटर्न को इलेक्ट्रॉनिक रूप से भरना एक आसान प्रक्रिया है, क्योंकि इसमें आपको दस्तावेजों की प्रिंट आउट लेने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। साथ ही, यह एक सरल प्रक्रिया है और इसे आयकर वेबसाइट के माध्यम से मुफ्त में ऑनलाइन भरा जा सकता है।

आईटीआर की इलेक्ट्रॉनिक फाइलिंग या ई-फाइलिंग दो तरह से हो सकती है: ऑफलाइन और ऑनलाइन

ऑफलाइन मोड में, आप इनकम टैक्स वेबसाइट से आईटीआर फॉर्म डाउनलोड करें, इसे ऑफलाइन भरें और फिर वेबसाइट पर अपलोड करें। ऑनलाइन मोड में (केवल आईटीआर फॉर्म 1 और 4 के लिए लागू), आप सीधे ऑनलाइन फॉर्म भरते हैं।

चेक ट्रंकेशन सिस्टम

चेक ट्रंकेशन चेक क्लियरिंग सिस्टम का एक रूप है। यह एक भौतिक पेपर चेक को एक स्थानापन्न इलेक्ट्रॉनिक रूप में डिजिटाइज़ करता है। यह चेक पर उल्लिखित राशि को भुगतान करने वाले बैंक को प्रेषित करने के लिए किया जाता है। इसे ‘स्थानीय चेक समाशोधन’ भी कहा जाता है।

इस प्रक्रिया में, क्लियरिंग हाउस द्वारा भुगतान करने वाली शाखा को चेक की एक इलेक्ट्रॉनिक इमेज भेजी जाती है। इस इमेज में चेक की प्रस्तुति की तारीख, प्रस्तुत करने वाला बैंक, एमआईसीआर पर डेटा [मैग्नेटिक इंक कैरेक्टर रिकग्निशन] आदि जैसी सभी प्रासंगिक जानकारी शामिल है। इस प्रक्रिया से, भुगतान करने वाली शाखा को ये विवरण स्वचालित रूप से प्राप्त हो जाते हैं।

किसी चेक को एक बैंक से दूसरे बैंक में भौतिक रूप से स्थानांतरित करने की तुलना में चेक क्लियरिंग की यह एक बहुत ही सरल और तेज़ प्रक्रिया है। चूंकि चेक ट्रंकेशन से चेक प्राप्त करने की प्रक्रिया तेज हो जाती है, इससे ग्राहकों को बेहतर सेवा मिलती है और भौतिक पारवहन में चेक के खो जाने की गुंजाइश कम हो जाती है। यह प्रक्रिया तेज और अधिक सुरक्षित है।

मकान/फ्लैट किराए पर लेना

एक मकान या फ्लैट को किराए पर लेने में कई प्रक्रियाएं और कार्यविधियां शामिल हैं। यदि आप इन प्रक्रियाओं और कार्यविधियों से अवगत नहीं हैं, तो आप से कोई गलत लाभ उठा सकता है। मकान किराए पर लेते समय अपनी सुरक्षा के लिए कृपया निम्नलिखित बातों को जान लें:

  • मकान कैसे ढूढ़ें
  • अपना करार तय करना
  • लिखित एग्रीमेन्ट पर हस्ताक्षर करना
  • करार का पंजीकरण कराना या उस पर नोटरी से हस्ताक्षर करवाना
  • करार के सम्बन्ध में स्टॉम्प ड्यूटी का भुगतान करना
  • किराये का भुगतान करना
  • पुलिस से सत्यापन कराना