चेक भुनाना

चेक को भुनाने के लिए इन चरणों का पालन करें।

आपको जारी किए गए चेक के प्रकार का विश्लेषण करें।

बियरर चेक

यदि यह एक बियरर चेक है, तो चेक पर कोई नाम नहीं लिखा होगा। आप निम्नलिखित कर सकते हैं:

• बैंक की किसी भी शाखा (शहर में) में जाएं, जिस शाखा का चेक है

• इसे भुगतान के लिए प्रस्तुत करें

• बैंक टेलर, चेक के विवरण का सत्यापन करेगा और उसका भुगतान करेगा

• चेक तभी और वहीं क्लियर हो जाएगा और आपको कैश मिल जाएगा

ऑर्डर चेक

अगर यह ऑर्डर चेक है तो उस पर आपका नाम लिखा होगा। आप ऐसा कर सकते हैं:

• शहर में बैंक की किसी भी शाखा में जाएं, जिसका बैंक का चेक है और

• इसे भुगतान के लिए प्रस्तुत करें

• बैंक टेलर, चेक पर विवरण को सत्यापित करेगा और इसका भुगतान करेगा-चेक तभी और वहीं क्लियर हो जाएगा और आपको नकद मिल जाएगा

अकाउंट पेयी चेक/पाने वाले के खाते में देय चेक

यदि यह एक अकाउंट पेयी चेक है, तो चेक के पीछे अपना नाम, अपना खाता नंबर और संपर्क नंबर लिखें, जमा पर्ची भरें और निम्नलिखित दो विकल्पों में से किसी एक का प्रयोग करें।

बैंक/एटीएम ड्रॉपबॉक्स जमा

आप या तो अपने बैंक के एटीएम में जा सकते हैं या सीधे अपने बैंक की किसी भी शाखा में जा सकते हैं जहां आपका खाता है।

यदि आपके बैंक के एटीएम में चेक जमा पर्ची और एक ड्रॉप बॉक्स है, तो सबसे सुविधाजनक विकल्प निम्नलिखित करना है:

• चेक जमा पर्ची भरना। एक जमा पर्ची के दो भाग होते हैं; आप जितना छोटा हिस्सा भरकर अपने पास रखते हैं और जितना बड़ा हिस्सा भरते हैं और ड्रॉप बॉक्स में अपने चेक के साथ जमा करते हैं।

• पर्ची के अपने हिस्से को फाड़कर अपने पास रख लें

• चेक और जमा पर्ची के अन्य भाग को पिन करें

• एटीएम ड्रॉपबॉक्स में डालें।

हालांकि, इस ड्रॉपबॉक्स विकल्प के साथ, आपको बैंक से आपके चेक और जमा पर्ची की प्राप्ति की पावती नहीं मिलेगी। इसका मतलब यह है कि अगर किसी भी मौके पर चेक गुम हो जाता है, तो आप बैंक से चेक की स्थिति के बारे में पता नहीं कर पाएंगे। हालांकि, आप अभी भी इंटरनेट बैंकिंग के माध्यम से या बैंक को एक पत्र लिखकर अपना चेक रोक सकते हैं। अगर आपकी बैंक शाखा के एटीएम में ड्रॉपबॉक्स की सुविधा नहीं है तो आपको बैंक जाकर चेक ड्रॉप करना होगा। विस्तृत प्रक्रिया नीचे दी गई है।

एटीएम जमा राशि

कुछ एटीएम के पास एटीएम मशीन में ही चेक जमा करने का विकल्प होता है। कृपया मशीन में निर्धारित प्रक्रिया का पालन करें और तदनुसार जमा करें।

बैंक जमाराशि

• चेक डिपॉजिट पर्ची भरें

• विभिन्न पर्चियों के बीच उपयुक्त चेक डिपॉजिट पर्ची प्रपत्र प्राप्त करें जो आमतौर पर शाखा के ड्रॉपबॉक्स क्षेत्र में रखी जाती हैं। सुनिश्चित करें कि आपके पास उचित पर्ची है।

• अपना बैंक खाता संख्या, शाखा का नाम, चेक राशि आदि सावधानी से भरें। उपयुक्त स्थान पर हस्ताक्षर करें। चेक का विवरण भी भरें, जैसे कि चेक नंबर, जिस बैंक से चेक निकाला गया है, राशि, जिस तारीख को ऐसा चेक निकाला गया था, आदि। सुनिश्चित करें कि आप इन विवरणों को संबंधित स्थानों पर भरें।

• पर्ची के अपने हिस्से को फाड़ें, चेक और पर्ची के दूसरे हिस्से पर पिन लगाएं और उन्हें ड्रॉपबॉक्स में डाल दें।

बरती जाने वाली सावधानियां

मकान किराए पर देते समय एक एग्रीमेंट किया जाता है, लेकिन ऐसा करते वक्त अक्सर किराए संबंधी कानूनी प्रक्रियाओं का ठीक से पालन नहीं किया जाता है।

चूंकि यह एक अनुबंध है और इसमें संपत्ति और पैसे का लेन-देन शामिल है, इसलिए मकान किराए पर लेते/देते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है:

आपने मकान मालिक/लाइसेंसकर्ता/किरायेदार/लाइसेंसधारी के साथ आपका संबंध एक आनुबांधिक संबंध है। अर्थात आपका कानूनी संबंध एक सौदे पर आधारित है, जिसमें कुछ स्पष्टतः शर्तें होती है।

इन सब के बावजूद

  • यदि आपने मकान किराये पर लेते समय कोई लीज एग्रीमेंट किया है तो आपके पास कुछ अन्य संरक्षण उपलब्ध है।
  • इस प्रकार का कानूनी संरक्षण आपको लीव और लाइसेंस एग्रीमेंट के तहत नहीं उपलब्ध होगा।

सौदे के सिद्वांत और स्पष्ट शर्ते दोनों प्रकार की करारों को लागू होतीं है, भले ही उनसे जो भी संरक्षण उपलब्ध हो।

आपको यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जिन शर्तों पर सहमति हुई है या जिस रकम का भुगतान किया है, उसके पर्याप्त सबूत आपके पास हैं।

इसे इस तरह किया जा सकता है:

  • समझौते की एक लिखित प्रतिलिपि होनी चाहिए
  • कागज/व्हाट्सएप/ईमेल/संदेश (यदि संभव हो तो), या मौखिक रूप से की गई चर्चा को लिख लेना चाहिए, और
  • यदि कोई भुगतान किया गया है तो उसकी रसीदें (यदि संभव हो तो) रख लेनी चाहिये।

इससे यह सुनिश्चित होता है कि यदि कोई व्यक्ति किसी भुगतान या सहमति के शर्तों पर विवाद करता है तो आप सहमति के शर्तों पर किये गये भुगतान का प्रमाण दिखा सकते हैं।

वसीयत के लिये एक निष्पादक (Executor) की नियुक्ति

जिस व्यक्ति को आप अपनी मृत्यु के बाद, वसीयत में दिए गए अनुदेशों को निष्पादित करने अथार्त लागू करने का दायित्व सौंपते हैं, उसे आपकी विल का निष्पादक कहा जाता है।

आप किसी ऐसे व्यक्ति को अपना निष्पादक नियुक्त कर सकते हैं, जो मानसिक रूप से स्वस्थ हो और 18 वर्ष से अधिक उम्र का हो। आपको चाहिए कि आप ऐसे व्यक्ति का चयन करेंं, जिस पर अापका पूरा विश्वास हो और जो निष्पादक के रूप में कार्य करने का इच्छुक और सक्षम हों।

यदि आपने अपने विल में कोई निष्पादक नियुक्त नहीं किया हो, तो न्यालय को अधिकार है कि वह कोई ऐसा प्रशासक नियुक्त कर सकता है, जो आपकी विल को निष्पादित करेगा।

ऑनलाइन बैंक धोखाधड़ी के लिए शिकायत दर्ज करना

पुलिस स्टेशन 

जब आप ऑनलाइन बैंक धोखाधड़ी की शिकायत करने के लिए पुलिस स्टेशन जाते हैं, तो वे आपसे एफआईआर दर्ज करने के लिए कहेंगे। आपको यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आप अपने साथ हुई ऑनलाइन धोखाधड़ी के बारे में सभी जानकारी दें।

ऑनलाइन शिकायत 

पुलिस थाने के साइबर अपराध प्रकोष्ठ में प्राथमिकी दर्ज करने के अलावा, आप गृह मंत्रालय के ऑनलाइन अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल पर भी ऑनलाइन शिकायत दर्ज कर सकते हैं। घटना की विस्तृत जानकारी देकर शिकायत दर्ज करें। आप धोखाधड़ी वाले लेनदेन के संबंध में प्राप्त ई-मेल या संदेशों के स्क्रीनशॉट जैसी फ़ाइलें अपलोड करना भी चुन सकते हैं

उपभोक्ता शिकायत मंच

उपभोक्ता संरक्षण कानून संबद्ध प्राधिकरणों और शिकायत मंचों को निर्दिष्‍ट करता है कि कोई उपभोक्ता अपने उपभोक्ता-अधिकारों का उल्‍लंघन होने पर उनसे संपर्क कर सकता है। जिले, राज्य, और राष्‍ट्रीय स्तर पर तीन उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग हैं। इन सभी मंचों का कर्तव्य है कि वे एक उपभोक्ता के सरोकार सुनें और सुनिश्चित करें कि हर सरोकार को उचित महत्व दिया जाए। इन आयोगों का अधिकार क्षेत्र इस हिसाब से तय होता है-

1. प्रयुक्‍त वस्तुओं या सेवाओं का मूल्य (कीमत)

2. उपभोक्ता या विक्रेता का निवास स्थान या किसी एक पक्ष का कार्यस्थल या जहां विवाद शुरू हुआ

3. वह स्थान जहां शिकायत दर्ज करने वाला व्यक्ति रहता है

विवाद शुरू होने के बाद 2 साल के भीतर, उपभोक्ता विवाद निवारण आयोगों में सुनवाई के लिहाज़ से शिकायतें दर्ज की जानी चाहिए। शिकायत निवारण / आयोग जिनसे उपभोक्ता अधिकारों के उल्‍लंघन के लिए संपर्क किया जा सकता है और उनके द्वारा न्‍याय-निर्णीत मामले इस प्रकार हैं-

जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (डीसीडीआरसी) 

जिला आयोग एक जिला स्तरीय शिकायत निवारण मंच है जो एक करोड़ रुपये से कम कीमत के सामान संबंधी शिकायतों को देखता है। आयोग 21 दिनों की अवधि के भीतर शिकायत को स्वीकार या अस्वीकार करता है। यदि आयोग निर्दिष्‍ट समय में जवाब नहीं देता है, तो शिकायत स्वीकार कर ली जाएगी और जिला आयोग उसकी जांच करेंगे। शिकायत खारिज करने से पहले, आयोग को शिकायतकर्ता को सुनवाई का मौका देना चाहिए। आयोग के पास प्राप्‍त की गयी वस्तुओं या सेवाओं से जुड़ी किसी भी समस्या या दोष को दूर करने का आदेश देने की शक्ति है, या वह शिकायतकर्ता को राहत के रूप में जुर्माने का भुगतान करने का आदेश दे सकता है। जिला आयोग का आदेश जारी होने के 45 दिनों के भीतर मामले के पक्षकारों के पास जिला आयोग के आदेश के विरुद्ध अपील, राज्य आयोग में दायर करने का विकल्प भी है। आप राष्ट्रीय उपभोक्ता निवारण वेबसाइट पर दिये गये जिला आयोगों का विवरण पा सकते हैं। .

राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एससीडीआरसी) 

राज्य आयोग संबंधित राज्य की राजधानी में स्थित एक राज्य स्तरीय शिकायत निवारण मंच है, जहां 1 करोड़ से 10 करोड़ रुपये के मूल्य के सामान के संबंध में शिकायतें दर्ज की जा सकती हैं। देश में लगभग 35 राज्य आयोग हैं, जहां जिला आयोग की शिकायतों, अपीलों और अनुचित अनुबंधों के मामलों की सुनवाई होती है। राज्य आयोग के निर्णय के खिलाफ अपील राष्ट्रीय आयोग में आदेश जारी होने की तारीख से 30 दिनों के भीतर दायर की जा सकती है। ऐसी अपील दायर होने के बाद, राष्ट्रीय आयोग द्वारा उस पर 90 दिनों के भीतर निर्णय लिया जाना आवश्यक है।

राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) 

राष्ट्रीय आयोग, उपभोक्ता शिकायत निवारण का सर्वोच्च प्राधिकरण है। यह राष्ट्रीय राजधानी, नयी दिल्‍ली में स्थित है। उन वस्तुओं या सेवाओं संबंधी शिकायतें जिनकी कीमत 10 करोड़ रुपये से अधिक है, तथा राज्य आयोग या केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण के आदेशों के खिलाफ अपीलें एनसीडीआरसी में दायर की जा सकती हैं। राष्ट्रीय आयोग के निर्णय के खिलाफ अपील पारित आदेश की तारीख से 30 दिनों की अवधि के भीतर सर्वोच्च न्यायालय में दायर की जा सकती है। आयोग के आदेश उसकी वेबसाइट पर प्रकाशित होते हैं। आयोग के पास अपने आदेश प्रकाशित करने का कानूनी अधिकार है और इन आदेशों को प्रकाशित करने के लिए आयोग के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती है। राष्ट्रीय आयोग पोर्टल अपने मंच के माध्यम से पंजीकरण और इलेक्ट्रॉनिक शिकायत दर्ज करने संबंधी वीडियो निर्देश भी प्रदान करता है।

शिकायतों पर निर्णय लेने का समय 

एक उपभोक्ता शिकायत पर आयोग द्वारा 3 महीने की अवधि के भीतर निर्णय लिया जाना चाहिए। उत्पादों / दोषों के परीक्षण की आवश्यकता होने पर इसे 5 महीने तक बढ़ाया जा सकता है।

आयोगों द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ अपीलें 

यदि निर्दिष्‍ट अवधि में आयोग द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ अपील नहीं की गयी हो तो वे अंतिम होते हैं। इस नियम के अपवाद हैं, क्योंकि आयोग के पास उन मामलों को स्वीकार करने का अधिकार है, जिनके लिए निर्धारित समय में अपील दायर नहीं की गयी हो। इन प्रावधानों के अलावा, मामलों को एक जिला आयोग से दूसरे में और एक राज्य आयोग से दूसरे में क्रमशः राज्य व राष्ट्रीय आयोगों द्वारा स्थानांतरित किया जा सकता है; यदि और जब भी पार्टियां आवेदन करें तो। एक उपभोक्ता जिसने ऊपर उल्लिखित किसी भी फोरम में शिकायत दर्ज करायी है, वह ऑनलाइन केस स्टेटस पोर्टल के माध्यम से अपने मामले को ट्रैक कर सकता है। अपने मामले को ट्रैक करने के लिए आप अपने वकील से अपने केस नंबर का विवरण मांग सकते हैं।

इनकम टैक्स रिटर्न या फॉर्म (आई.टी.आर)

इनकम टैक्स रिटर्न (आई.टी.आर) एक ऐसा फॉर्म है जिसके माध्यम से किसी व्यक्ति द्वारा एक वित्तीय वर्ष में अर्जित आय और ऐसी आय पर भुगतान किए गए टैक्स की जानकारी को आयकर विभाग में सूचित किया जाता है।

आय की प्रकृति और स्थिति के आधार पर, करदाताओं के विभिन्न वर्गों के लिए अलग-अलग आई.टी.आर फॉर्म निर्धारित हैं। प्रत्येक करदाता को केवल एक विशिष्ट आई.टी.आर फॉर्म के तहत टैक्स रिटर्न दाखिल करना होता है, और आपके आय के लिए जो आई.टी.आर फॉर्म लागू है, आपको वही फॉर्म भरना होगा। गलत आई.टी.आर फॉर्म दाखिल करने पर उसे अमान्य और दोषपूर्ण माना जाएगा।

इनकम टैक्स फॉर्म/आयकर प्रपत्र

आईटीआर फॉर्म आयकर विभाग की वेबसाइट से डाउनलोड किए जा सकते हैं। जब इनकम रिटर्न के डेटा के लिए आईटीआर-1 (सहज), आईटीआर-2, आईटीआर-3, आईटीआर-4 (सुगम), आईटीआर-5, आईटीआर-6, आईटीआर-7 भरे जाने के बाद सत्यापित होने पर ही आपको आयकर विभाग से एक पावती फॉर्म प्राप्त होगा।

आईटीआर-1 (सहज)

50 लाख तक की कुल आय वाले भारत में जो भी लोग रहते हैं, उन व्यक्तियों को यह आईटीआर फॉर्म दाखिल करना होगा। आप भारत के निवासी होंगे अगर आप:

• पिछले साल में यहाँ कम से कम 182 दिनों के लिए रहें हो,

• भारत में पिछले साल के पूर्व के चार वर्षों में कम से कम 365 दिनों के लिए रहें हो, और पिछले वर्ष में कम से कम साठ दिनों के लिए रहें हो, आपको यह फॉर्म तब भरना होगा जब आपका आय का स्रोत:

• आपका वेतन या पेंशन हो,

• एक घर की संपत्ति हो,

• और आपके अन्य स्रोत जैसे ब्याज आदि। (इसमें लॉटरी जीत, घुड़दौड़ आदि से आय शामिल नहीं है)

• 5,000 रुपये तक की कृषि आय हो।

यदि आप एक ऐसे व्यक्ति हैं जो भारत में नहीं रह रहे हैं या किसी कंपनी में निदेशक हैं या भारत के बाहर आप एक ऐसे व्यक्ति हैं जिसकी किसी भी स्रोत से आय हो, तो आप पर आईटीआर-1 फॉर्म लागू नहीं होता है।

आईटीआर-2

यह फॉर्म निम्नलिखित पर लागू होता है:

• एक व्यक्ति जिस पर आईटीआर-1 लागू नहीं होता है, या

• एक अविभाजित हिन्दू परिवार (एचयूएफ) जिसकी कुल आय में किसी व्यवसाय या पेशे का लाभ और वृद्धि शामिल नहीं है।

उदाहरण के लिए, यदि रमा किसी कंपनी में निदेशक हैं, तो उन्हें आईटीआर-2 के तहत टैक्स रिटर्न दाखिल करना होगा, क्योंकि वह आईटीआर-1 के अंतर्गत नहीं आती हैं।

आपको यह फॉर्म तब भरना होगा जब आय का स्रोत:

• आपके पूंजीगत लाभ से हो,

• एक से अधिक गृह संपत्ति से हो,

• विदेशी आय/विदेशी संपत्ति से हो।

आईटीआर-3

यह फॉर्म केवल निम्नलिखित पर ही लागू होता है:

• एक व्यक्ति या अविभाजित हिन्दू परिवार (एचयूएफ) जिसके लिए आईटीआर-1, आईटीआर-2 और आईटीआर-4 फॉर्म लागू नहीं होते हैं, और

• जिसकी आय किसी व्यवसाय या पेशे के लाभ और वृद्धि से होती है।

उदाहरण के लिए, अगर श्याम किसी फर्म में पार्टनर है और सालाना 50 लाख रुपये से ज्यादा कमाता है तो उसे आईटीआर-3 भरना होगा।

आईटीआर-4 (सुगम)

यह फॉर्म भारत में रहने वाले व्यक्तियों, एचयूएफ और फर्मों (सीमित देयता भागीदारी को छोड़कर) पर लागू होता है, जिनकी कुल वार्षिक आय 50 लाख रुपये तक है।

आय का निम्नलिखित स्रोत होने पर आईटीआर-4 लागू होता है:

• व्यवसाय से आय,

• पेशे से आय,

• वेतन या पेंशन से आय,

• एक गृह संपत्ति से आय,

• ब्याज आदि जैसे अन्य स्रोतों से आय (इसमें लॉटरी जीत और घुड़दौड़ से आय शामिल नहीं है) एक व्यक्ति जो भारत में नहीं रहता है या किसी कंपनी का निदेशक है, तो उसे यह आईटीआर -4 फॉर्म भरने की आवश्यकता नहीं है।

आईटीआर-5

यह फॉर्म निम्नलिखित पर लागू होता है:

• फर्म,

• एलएलपी(सिमित देयता भागीदारी),

• व्यक्तियों का संघ/व्यक्तियों का निकाय,

• कृत्रिम न्यायिक व्यक्ति,

• स्थानीय प्राधिकरण,

• प्रतिनिधि निर्धारिती -एक प्रतिनिधि निर्धारिती किसी अनिवासी व्यक्ति का एजेंट हो सकता है, यह एक अवयस्क/विक्षिप्त दिमाग/ मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति का अभिभावक हो सकता है, यह एक संरक्षक आदि हो सकता है जो किसी अन्य व्यक्ति की ओर से आय प्राप्त करने या प्रबंध करने के लिए अधिकृत होता है।

• सहकारी समिति

• समिति पंजीकरण अधिनियम के तहत पंजीकृत सोसायटी या समिति यह व्यक्तियों, एचयूएफ, कंपनी और आईटीआर -7 दाखिल करने वाले व्यक्तियों पर लागू नहीं है।

आईटीआर -6

जो चैरिटी या चैरिटी कारणों से कर में छूट का दावा करने वाली कंपनियों के अलावा, यह फॉर्म बाकी सभी कंपनियों के लिए लागू है। आप यहां कर मुक्त संस्थानों की सूची देख सकते हैं।

आईटीआर-7

यह फॉर्म व्यक्तियों (कंपनियों सहित) पर लागू होता है, जैसे:

• किसी ट्रस्ट के तहत चैरिटी या धार्मिक उद्देश्यों के लिए रखी गई संपत्ति से आय प्राप्त करने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर,

• राजनीतिक दलों पर,

• समाचार एजेंसियां, म्युचुअल फंड, ट्रेड यूनियन आदि पर,

• सभी विश्वविद्यालय या कॉलेज पर।

आईटीआर-सत्यापन प्रपत्र

यह फॉर्म उन स्थितियों पर लागू होता है जहां आईटीआर-1 (सहज), आईटीआर-2, आईटीआर-3, आईटीआर-4 (सुगम), आईटीआर-5, आईटीआर-7 में इनकम रिटर्न का डेटा दाखिल किया जाता है, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक रूप से सत्यापित नहीं रहता है।

 

चेक क्लियरिंग

चेक क्लियरिंग का अर्थ है चेक पर उल्लिखित राशि को भुगतान पाने वाले के खाते में स्थानांतरित करके एक बैंक से दूसरे बैंक में चेक प्रोसेस करना। चेक क्लियरिंग सिस्टम के दो सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले रूप हैं:

• चेक ट्रंकेशन सिस्टम

• स्पीड क्लियरिंग

करार/ एग्रीमेंट की चेकलिस्ट

किरायेदारों/लाइसेंसधारी और मकान मालिकों/लाइसेंसकर्ता दोनों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए, आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि आपके पास एक लिखित करार है। इस करार को अंतिम रूप देते समय, इसमें उल्लिखित सभी शर्तों को पढ़ना बहुत महत्वपूर्ण है।

ये शर्तें न केवल आपकी किराया राशि और सुरक्षा जमाराशि तय करती हैं, बल्कि कई अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं को भी शामिल करती है, जैसे कि घर/संपत्ति का रखरखाव, संबंधित बिलों का भुगतान, घर छोड़ने की सूचना अवधि (नोटिस पीरियड), आदि।

सुनिश्चित करें कि आपके लीज या लीव एंड लाइसेंस समझौते में निम्नलिखित प्रावधान मौजूद हैं:

  • किरायेदार/लाइसेंसधारी और मकान मालिक/लाइसेंसकर्ता के नाम
  • करार का उद्देश्य
  • करार की अवधि
  • किराए की राशि
  • किराए के भुगतान की तारीख
  • सुरक्षा जमाराशि
  • अनुरक्षण राशि
  • मरम्मतों की जिम्मेदारी सुनिश्चित करना
  • फर्नीचर/फिटिंग/अन्य वस्तुओं की सूची
  • समझौते की समाप्ति का नोटिस
  • परिसर में मकान मालिक के प्रवेश की नोटिस
  • सोसाइटी/आरडब्ल्यूए के सभी उपनियमों का पालन करने की घोषणा
  • मकान मालिक/लाइसेंसकर्ता की अनुमति के बाद ही किसी उप-किराएदार रखने की घोषणा
  • विवाद समाधान के लिए किस न्यायालय में जाना
  • एक निश्चित अवधि के बाद किराए में वृद्धि की दर, यदि कुछ है तो।
  • मकान मालिक / लाइसेंसकर्ता या किरायेदार / लाइसेंसधारी के हस्ताक्षर
  • दो गवाहों के हस्ताक्षर

किसी विल के लिए प्रशासक या निष्पादक नियुक्त करना

न्यायालय को यह अधिकार है कि वह ऐसा प्रशासक या निष्पादक नियुक्त कर सकता है, जो उस स्थिति में आपकी विल काे निष्पादित करेगा –

  • यदि आपने अपनी विल में कोई निष्पादक नियुक्त नहीं किया हो।
  • यदि आपके द्वारा नियुक्त निष्पादक, निष्पादक के रूप में कार्य करने के लिए सक्षम न हो।
  • यदि आपके द्वारा नियुक्त निष्पादक, निष्पादक का दायित्व निभाने से इंकार कर दे।

यदि आप किसी ऐसी विल के लाभार्थी हों, जिसका कोई निष्पादक न हो या जिस व्यक्ति को निष्पादक के रूप में नामित किया गया हो, वह इन कार्यों का निष्पादन नहीं करना चाहता हो, तो आप एक प्रशासक नियुक्त करने के लिए न्यायालय में आवेदन-पत्र दे सकते हैं।

यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु अपनी विल के लिए कोई निष्पादक नामित किए बिना हो जाती है, तो उसके विल में उल्लिखित लाभार्थी द्वारा प्रशासन-पत्र जारी किए जाने के लिए आवेदन-पत्र देना होगा। इसकी प्रक्रिया वही होगी, जो प्रोबेटर जारी करने की प्रक्रिया है।

उपभोक्ता फोरम में मामला दर्ज करना

उपभोक्ता फोरम जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर मौजूद है। आप 2 कारकों के आधार पर वहां मामला दर्ज कर सकते हैं:

1. आपके द्वारा खोए गए धन की राशि:

  • जिला फोरम : रु. 20 लाख
  • राज्य आयोग : रु. 20 लाख से रु. 1 करोड़
  • राष्ट्रीय आयोग: 1 करोड़ रुपये से अधिक।

2. नुकसान कहां हुआ

  • आप शिकायत उस स्थान पर दर्ज कर सकते हैं, जहां पैसे गवाए थे, या जहां विरोधी पक्ष (अर्थात, बैंक) अपना व्यवसाय करता है।

आपको उपभोक्ता मंचों से तभी संपर्क करना चाहिए जब आपको लगे कि बैंक ने लापरवाही की है, और आपको उचित सेवा नहीं दी है। फोरम वास्तविक अपराधी पर मुकदमा नहीं चलाता है।

आम तौर पर, उपभोक्ता अदालतों के साथ-साथ बैंकिंग लोकपाल के समक्ष मामले एक साथ दायर नहीं किए जा सकते हैं।