आचार-संहिता (एमसीसी) कब लागू होती है?

चुनाव की  घोषणा होते ही, आचार-संहिता (एमसीसी) लागू हो जाती  है।

लोकसभा चुनावों के लिए, आचार-संहिता तब लागू होती है जब भारत का चुनाव आयोग चुनाव की तारीख की घोषणा करता है और यह सभी निर्वाचन/लोकसभा क्षेत्रों के परिणाम न निकल जाए, तब तक लागू रहती है। 

2024 के आम चुनावों की घोषणा 17 मार्च को हुई थी लिहाज़ा तभी से देश में आचार संहिता लागू हो चुकी है और ये अंतिम परिणाम घोषित होने तक यानी 4 जून 2024 तक लागू रहेगी।

आचार-संहिता (एमसीसी) के तहत कौन-कौन आता है?

आचार-संहिता (एमसीसी) इन सब पर लागू होती हैः

  1. राजनीतिक  पार्टी पर
  2. उम्मीदवारों पर 
  3. संगठन  पर
  4. समितियां  पर 
  5. निगम/संस्था/नगरपालिका पर
  6. केंद्र या राज्य सरकार द्वारा पूर्ण या आंशिक रूप से वित्त पोषित आयोग पर , जैसेः विद्युत-नियामक आयोग, जल-बोर्ड, परिवहन-निगम, आदि पर।

आचार-संहिता (एमसीसी) के उल्लंघन का क्या परिणाम है?

अगर कोई एमसीसी नियमों का उल्लंघन करता है, तो आमतौर पर उसे सजा नहीं होगी। वहीं कुछ ऐसे मामलों में जिसमें एमसीसी का उल्लंघन ‘भारतीय दंड संहिता और लोक प्रतिनिधित्व’ कानून, 1951 के तहत एक अपराध है। ऐसे मामलों को करने वाले व्यक्ति को  जेल  हो सकती है। केवल  एमसीसी का उल्लंघन करने पर, उम्मीदवार को चेतावनी दी जाएगी, लेकिन अगर ऐसा  बार-बार होता है।  तो उस पर जरूरी कार्रवाई के लिए उसकी शिकायत चुनाव अधिकारियों को भेज दी जाएगी। चुनाव अधिकारी जरूरत पड़ने पर उम्मीदवार की उम्मीदवारी को भी ख़त्म कर सकता है। आचार-संहिता के लागू होते ही चुनाव आयोग सबसे जरूरी भूमिका निभाता है, और उसके उल्लंघन को रोकने के लिए हर संभव कार्रवाई करता है। 

चुनाव आयोग के काम के कुछ उदाहरण इस तरह हैं: 

  • चुनाव आयोग सत्ताधारी दल को जीतने पर मदद करने वाले सरकारी विज्ञापनों पर रोक लगा सकता है। 
  • सत्ताधारी दल को अपने राजनीतिक शक्ति/प्रभाव का इस्तेमाल और टेलीविजन या सिनेमा में उसके एजेंडे को बढाने से रोकता है। 
  • किसी भी उम्मीदवार या पार्टी को ऐसे किसी भी काम को करने से रोकता है,  जिससे आपसी नफरत या जातियों और समुदायों के बीच तनाव पैदा हो । 
  • अगर कोई व्यक्ति ऐसा बयान देता है, जिससे सांप्रदायिक तनाव पैदा हो सकता है। तो जिला चुनाव अधिकारी उसके खिलाफ एफ़.आई.आर दर्ज करने का आदेश दे सकता है।

क्या मतदान के दिन मतदाताओं को मतदान केंद्र पर ले जाना अपराध है?

कोई भी उम्मीदवार या पार्टी या उनके एजेंट मतदान के दिन मतदाताओं को मतदान केंद्र आने-जाने के लिए गाड़ी की सुविधा नहीं दे सकते हैं।

ऐसा करने पर, सजा के तौर पर 500 तक का जुर्माना देना पड़ सकता है।

उदाहरण के लिए, कोई पार्टी या उम्मीदवार मतदान के दिन मतदाताओं को मतदान केन्द्र ले जाने के लिए किराए पर बस लेकर फ्री सेवा नहीं दे सकते हैं।

हालांकि, ये सुविधा चुनाव आयोग से दिव्यांग लोगों को मिल सकती हैं। इसके लिए दिव्यांग व्यक्ति PwD (People with Disability)-पी.डब्ल्यू.डी. ऐप (एंड्रॉइड) पर अपना पंजीकरण कराकर चुनाव अधिकारी से मतदान के दिन के लिए मतदान केंद्र तक आने-जाने के लिए गाड़ी की फ्री सुविधा मांग सकते हैं।

चुनाव प्रचार-प्रसार के लिए धर्म का इस्तेमाल

कोई भी पार्टी या उम्मीदवार, ऐसा किसी भी तरह का प्रचार नहीं कर सकते, जिसके कारण किसी भी जाति या धार्मिक समुदाय के बीच तनाव या नफरत पैदा हो।

आदर्श-आचार संहिता(एम.सी.सी) किसी व्यक्ति या संगठन को चुनाव के दौरान किसी भी उम्मीदवार या राजनीतिक पार्टी को जीत के लिए धर्म का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देती है, भले ही राजनीतिक पार्टी या उम्मीदवार से उनका कोई भी संबंध हो।
उदाहरण के लिए, धार्मिक/सांस्कृतिक संगठन, संघ या व्यक्ति किसी राजनीतिक पार्टी या उम्मीदवार के पक्ष में या उसके खिलाफ प्रचार नहीं कर सकते हैं।

नीचे कुछ ऐसे काम दिए गए हैं, जिन्हे चुनाव प्रचार के दौरान करने की मनाही हैः

  • कोई भी धर्म का इस्तेमाल करते हुए मतदाताओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचा सकता है।
  • कोई भी पार्टी या उम्मीदवार लोगो को ये कहकर वोट नहीं मांग सकते हैं, कि अगर वे उसे वोट नहीं देंगे, तो भगवान इसकी उन्हें सजा देगा।
  • कोई भी व्यक्ति अलग-अलग समूहों के लोगों के बीच मतभेद पैदा करने के लिए धर्म का इस्तेमाल नहीं कर सकता है
  • कोई भी ऐसा कोई दुर्भावनापूर्ण बयान नहीं दे सकता है, जिससे किसी भी नेता के निजी जीवन पर हमला हो।
  • मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर और दूसरे किसी भी पूजा स्थलों का इस्तेमाल किसी भी चुनाव प्रचार के लिए नहीं किया जा सकता है।

यहां प्रचार के लिए धर्म का इस्तेमाल करके एमसीसी के उल्लंघन के कुछ उदाहरण दिए गए हैं, जैसे –

  • अगर मंदिर के प्रवेश द्वार के बाहर नेताओं की तस्वीरों की होर्डिंग लगाई जाती हैं।
  • किसी राजनीतिक पार्टी द्वारा वोट पाने के लिए मंदिर के बाहर भिखारियों को पैसा दिया जाता है।

क्या चुनाव प्रचार के लिए सरकारी विज्ञापनों का इस्तेमाल किया जा सकता है?

सरकारी विज्ञापन का काम आमतौर पर जनता को उनके अधिकारों, कर्तव्यों और उनके हक़ के बारे में जानकारी देना है। इसके अलावा ये सरकारी नीतियों, कार्यक्रमों, सेवाओं और अवसरों के बारे में बताते हैं। लेकिन आचार संहिता के मकसद को पूरा करने के लिए, सरकारी विज्ञापन निष्पक्ष और राजनीतिक रूप से निष्पक्ष होने चाहिए। सरकारी विज्ञापनों के द्वारा किसी भी तरह से सत्ताधारी पार्टी (जिस पार्टी की सरकार है) के राजनीतिक हित को फायदा नहीं मिलना चाहिए।  

उदाहरण के लिए, 

  • सरकार की  बनाई  मिड-डे मील योजना का विज्ञापन करते समय, सत्ताधारी पार्टी इन विज्ञापनों का इस्तेमाल अपनी पार्टी के नेताओं और उम्मीदवारों के गुणगान के लिए नहीं कर सकती हैं। इन विज्ञापनों में पार्टी के नेताओं के नाम और उनका फोटो लगाना आचार-संहिता (एमसीसी) का उल्लंघन है। 
  • कानून के तहत, राशन कार्ड धारकों को एलपीजी गैस पर सब्सिडी दी जाती है। सत्ताधारी दल इसे अपनी पहल बताकर प्रचार नहीं कर सकते हैं।  राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत सरकार को अनिवार्य रूप से लोगों को चावल 3 रुपये प्रति किलो की दर से और गेहूं 2 रुपये प्रति किलो की दर से देना होता है। इस योजन पर सत्ताधारी पार्टी यह दावा नहीं कर सकती कि यह उनकी योजना है और न ही इसका किसी भी तरह का विज्ञापन कर सकती हैं। 

चुनाव के दौरान, सत्ताधारी दल को नीचे बताई गई बातों को करना मना हैः

  • सताधारी पार्टी अपने चुनाव प्रचार में सरकारी विज्ञापनों के लिए आरक्षित सरकारी पैसे का इस्तेमाल नहीं कर सकती है। 
  • सरकारी विज्ञापनों के माध्यम से सत्ताधारी पार्टी की सकारात्मक छवि या दूसरी राजनीतिक पार्टी की नकारात्मक छवि को नहीं दिखाया जा सकता है। 

सरकारी विज्ञापन 

सरकारी विज्ञापनों में नीचे बताई गई बातों को करना मना हैः

  • सरकारी विज्ञापनों में सत्ताधारी पार्टी का नाम लेकर प्रचार करना 
  • सरकारी विज्ञापनों में विपक्षी दलों का नाम लेकर उनके विचारों या कामों की आलोचना करना 
  • सरकारी विज्ञापनों में अपनी पार्टी का राजनीतिक प्रतीक, चिन्ह या झंडा शामिल करना 
  • सरकारी विज्ञापनों की मदद से अपनी पार्टी या अपने उम्मीदवार के लिए आम जनता का समर्थन जुटाना 
  • सरकारी विज्ञापनों की मदद से अपनी पार्टी या नेताओं की वेबसाइटों के लिंक का प्रचार करना

क्या कोई उम्मीदवार राजनीतिक विज्ञापनों के लिए सार्वजनिक संपत्ति का इस्तेमाल कर सकता है?

राजनीतिक पार्टियां या उम्मीदवारों को चुनावी विज्ञापनों के लिए सार्वजनिक संपत्तियों या स्थानों को इस्तेमाल करने की मनाही है।

चुनाव प्रचार के लिए, राजनीतिक पार्टियां और उम्मीदवारों को सार्वजनिक संपत्तियों या स्थानों की  दीवारों पर क्या करने की मनाही है:

  • दीवारों पर लिखना
  • कोई पोस्टर या कागज दीवार पर चिपकाना
  • कोई कटआउट, होर्डिंग, बैनर, झंडे आदि लगाना

सार्वजनिक संपत्तियों के कुछ उदाहरण नीचे दिए गए हैंः

  • रेलवे स्टेशन, रेलवे फ्लाईओवर, बस स्टैंड, हवाई अड्डा, पुल, आदि 
  • सरकारी अस्पताल, डाकघर (पोस्ट ऑफिस) 
  • सरकारी बिल्डिंग, नगरपालिका बिल्डिंग आदि। 

अगर कोई राजनीतिक पार्टी या उम्मीदवार अपनी प्रचार सामग्री को किसी सार्वजनिक संपत्तियों पर लगाते हैं, तो यह आचार-संहिता (एमसीसी)  का उल्लंघन होगा।

क्या आचार-संहिता (एमसीसी) सोशल मीडिया के विज्ञापनों पर भी लागू होता है?

आचार-संहिता(एमसीसी) सभी तरह के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी लागू होती है। सोशल मीडिया की पांच श्रेणियों को आचार-संहिता के अन्दर नियंत्रित किया जाता हैः

  • कोलैबॉरेटिव प्रॉजेक्ट (जैसे कि विकिपीडिया)
  • ब्लॉग और माइक्रोब्लॉग (जैसे कि एक्स पुराना नाम ट्विटर)
  • कंटेंट कम्युनिटी (जैसे यूट्यूब) 
  • सोशल नेटवर्किंग साइट्स (जैसे फेसबुक)
  • वर्चुअल गेम्स (जैसे गेम्स के ऐप और वेबसाइट)

राजनीतिक पार्टियों और उम्मीदवारों को सोशल मीडिया में विज्ञापन करते समय इन नियमों को मानना होता हैंः 

जानकारी देना

नामांकन दाखिल करते समय उम्मीदवारों को फॉर्म सं.26 भरना होता है। इस फॉर्म में उम्मीदवार से जुड़ी जानकारी जैसे ईमेल आईडी, सोशल मीडिया अकाउंट आदि होती हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि उम्मीदवार अपने सभी ओरिजनल सोशल मीडिया अकाउंट को बता सकें। 

विज्ञापनों का पूर्व-प्रमाणीकरण (पहले जांच करवाना)

जिला और राज्य स्तर पर ‘मीडिया प्रमाणीकरण और निगरानी समिति’ होती हैं। इस समिति से सभी सोशल मीडिया विज्ञापनों को प्रकाशित करने से पहले प्रमाणित/जांच कराना जरूरी होता है। इस समिति की जांच के बाद ही कोई  विज्ञापन किसी भी ऑनलाइन सोशल मीडिया फोरम पर दिखाया जा सकता है।

खर्च 

सभी पाटियों और उम्मीदवारों को सोशल मीडिया विज्ञापनों पर होने वाले खर्च को बताना होता है। साथ ही उन्हें मीडिया विज्ञापनों से जुड़े सभी खर्चाे (कंटेंट को बनाने का खर्च, वेतन का खर्च और प्रचार से जुड़ा खर्च ) को लिखित में रखने की जरूरत होती है। 

क्या दूरदर्शन / टेलीविजन पर चुनाव प्रचार के लिए कोई कानून है?

चुनाव के दौरान दूरदर्शन/टेलीविजन  का प्रसारण आम घटनाओं/कार्यक्रमों पर होना चाहिए। टीवी पर दिखाई देने वाला प्रसारण  किसी खास उम्मीदवार या राजनीतिक पार्टी का समर्थन या निंदा करना या मजाक उड़ाने वाला ना हो।  टीवी का प्रसारण देश के लिए सही और आम हित में हो,तो ये आचार-संहिता का उल्लंघन नहीं है। 

जैसे:  

  • किसी क्रिकेट मैच के सीधे प्रसारण के दौरान, नेताओं की फोटो दिखाने वाले विज्ञापनों को बीच में नहीं दिखा सकते हैं। 
  • कोई भी राजनीतिक पार्टी किसी सम्मेलन/सभा का सीधा प्रसारण करते समय नेताओं की फोटो नहीं दिखा सकती है। 
  • कोई भी  राजनीतिक पार्टी किसी नेता के जीवन के बारे में चुनाव से पहले कोई फिल्म नहीं दिखा सकती हैं। क्योंकि ऐसी फिल्म दिखाने के बाद दर्शक उस नेता को वोट देने के लिए प्रभावित हो सकते हैं।

किसी भी पंजीकृत/रजिस्टर्ड राजनीतिक पार्टी, समूह, संगठन, संघ और उम्मीदवार द्वारा किसी भी तरह के राजनीतिक विज्ञापन को टीवी चैनलों और केबल नेटवर्क पर दिखाने से रोकने के लिए, जिला और राज्य के ‘मीडिया प्रमाणन और निगरानी समिति’ से पहले प्रमाणित करना जरूरी है। अगर ‘मीडिया प्रमाणन और निगरानी समिति’ के बिना अनुमति के कोई विज्ञापन  टीवी या केबल नेटवर्क में दिखाया जाता है। तो वे इसकी जानकारी रिटर्निंग ऑफिसर को दें।  इसके बाद रिटर्निंग ऑफिसर उस उम्मीदवार को नोटिस भेजकर उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं।

चुनाव प्रचार के दौरान रेडियो विज्ञापनों को कैसे नियंत्रित किया जाता है?

राजनीतिक पार्टियां और उम्मीदवार अपने विज्ञापन को रेडियो में प्रसारित कर सकते हैं। सभी जिलों और राज्यों के हर एक रेडियो पर प्रसारित विज्ञापनों पर ‘मीडिया प्रमाणन और निगरानी समिति’ (एमसीएमसी)  की निगरानी होती है।  वे एफ.एम.चैनलों पर सुनाई देने वाले  सभी राजनीतिक पार्टियों के रेडियो जिंगल पर निगरानी रखते हैं । निगरानी का कारण आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन को रोकना होता है। रेडियो जिंगल इन बातों पर नहीं हो सकते हैं: 

  • राजनेताओं के निजी जीवन की आलोचना पर 
  • धार्मिक समुदायों पर कोई हमला 
  • अश्लील/अभद्र और अपमानजनक सूचक  
  • हिंसा भड़काने वाला 
  • भारत की अखंडताए एकता और संप्रभुता को नुकसान करने वाला 

एफ.एम. चैनलों पर नज़र रखने के लिए एक रजिस्टर  बनाकर, उन चैनलों का नाम और संख्या खास तौर से लिखी जाती है। हर एफ.एम. चैनल को 30 मिनट के समय में सुनने के लिए दो अधिकारियों को रखा जाता है। उदाहरण के लिए, अगर कोई राजनीतिक पार्टी किसी दूसरे पार्टी या उम्मीदवार का मजाक उड़ा रही है, तो एमसीएमसी उसे हटाने या वापस लेने का आदेश देगी।