आचार-संहिता (एमसीसी) कब लागू होता है?

चुनाव के घोषणा के साथ ही आचार-संहिता (एमसीसी) लागू हो जाती है।

लोकसभा चुनावों के लिए आम तौर पर आचार-संहिता तब लागू होता है जब भारत के चुनाव आयोग द्वारा चुनाव-कार्यक्रम की घोषणा की जाती है, और तब तक लागू रहता है जब तक कि सभी निर्वाचन/लोकसभा क्षेत्रों के परिणाम न निकल जाए।

2019 के आम चुनावों के लिए, आचार-संहिता 10 मार्च, 2019 को लागू हुआ था, जब चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की गई थी, और यह 23 मई, 2019 तक लागू रहा, जिस दिन अंतिम परिणाम घोषित किया गाया।

आचार-संहिता (एमसीसी) के तहत कौन-कौन आता है?

आचार-संहिता (एमसीसी) इन सब पर लागू होता है:

– राजनीतिक दल या पार्टी,

– उम्मीदवार,

– संगठन,

– समितियां,

– निगम/संस्था/नगरपालिका, और

– केंद्र या राज्य सरकार द्वारा पूर्ण या आंशिक रूप से वित्त पोषित आयोग। जैसे: विद्युत-नियामक आयोग, जल-बोर्ड, परिवहन-निगम, आदि।

आचार-संहिता (एमसीसी) के उल्लंघन का क्या परिणाम है?

आचार-संहिता (एमसीसी) के उल्लंघन के कुछ परिणाम इस प्रकार हैं। यदि कोई एमसीसी नियमों का उल्लंघन करता है, तो आमतौर पर उसे सजा नहीं होगी, लेकिन कुछ मामलों को छोड़कर जिसमें एमसीसी का उल्लंघन ‘भारतीय दंड संहिता और लोक प्रतिनिधित्व’ कानून, 1951 के तहत एक अपराध है। ऐसे मामलों को अंजाम देने वाले व्यक्ति को कारवास हो सकती है। सिर्फ एमसीसी का उल्लंघन करने पर, उसे एक चेतावनी दी जाएगी, लेकिन यदि वह बार-बार उल्लंघन करता है, तो आवश्यक कार्रवाई के लिए उसकी शिकायत चुनाव अधिकारियों को भेज दी जाएगी, और जरूरत पड़ने पर उसकी उम्मीदवारी को भी ख़त्म किया जा सकता है। आचार-संहिता के लागू होते ही चुनाव आयोग सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, और उसके उल्लंघन को रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई करती है।

इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं:

  • चुनाव आयोग सत्ताधारी दल का समर्थन करने वाली सरकारी विज्ञापनों को रोक सकती है। सत्ताधारी दल को अपने राजनीतिक शक्ति/प्रभाव का उपयोग करने और टेलीविजन या सिनेमा के माध्यम से अपने एजेंडे का समर्थन करने से रोकती है। किसी उम्मीदवार या पार्टी को ऐसी किसी भी गतिविधि में शामिल होने से रोकती है जिससे आपसी नफरत या जातियों और समुदायों के बीच तनाव पैदा हो सकता है।
  • अगर कोई व्यक्ति ऐसा बयान देता है जिससे सांप्रदायिक तनाव पैदा हो सकता है, तो जिला चुनाव अधिकारी उसके खिलाफ एफ़.आई.आर दर्ज करने का आदेश दे सकता है।

क्या मतदान के दिन मतदाताओं को मतदान केंद्र पर ले जाना अपराध है?

क उम्मीदवार या उनके एजेंट मतदान केंद्र पर मतदाताओं को नहीं ला सकते हैं यानी मतदान के दिन मतदाताओं को मतदान केंद्र आने-जाने के लिए गाड़ी उपलब्ध नहीं करा सकते हैं।

ऐसी सजा करने पर 500 रुपये तक का जुर्माना है।

उदाहरण के लिए, कोई पार्टी या उम्मीदवार मतदान के दिन, मतदाताओं को मतदान केन्द्र जाने के लिए किराए पर बस लेकर निःशुल्क सेवा नहीं उपलब्ध करा सकता है।

हालांकि, विकलांग व्यक्ति PwD (People with Disability)-पी.डब्ल्यू.डी. ऐप (एंड्रॉइड) पर अपना पंजीकरण करा सकते हैं, और चुनाव अधिकारी उन्हें उस दिन मतदान केंद्र तक आने-जाने के लिए सवारी की सुविधा उपलब्ध करा सकते हैं।

प्रचार-प्रसार के लिए धर्म का किस तरह प्रयोग किया जाता है?

कोई भी पार्टी या उम्मीदवार, ऐसे किसी भी तरह से प्रचार-प्रसार नहीं कर सकता जिसके चलते विभिन्न जातियों और धार्मिक समुदायों के बीच तनाव या नफरत पैदा हो।

आचार-संहिता (एम.सी.सी) किसी भी व्यक्ति या किसी संगठन को निरपेक्ष चुनाव के दौरान किसी उम्मीदवार या राजनीतिक दल की संभावनाओं को आगे बढ़ाने के लिए धर्म का उपयोग करने की अनुमति नहीं देती है, भले ही उनका राजनीतिक दल/व्यक्तिगत उम्मीदवार से कोई भी संबंध क्यों न हो। उदाहरण के लिए, प्रचार-प्रसार के लिए कोई भी राजनीतिक दल, उम्मीदवार, धार्मिक/सांस्कृतिक संगठन, संस्था या कोई व्यक्ति, अपने राजनीतिक दलों या उम्मीदवारों के पक्ष में या फिर उनके खिलाफ कोई बैठक, सम्मेलन, जुलूस, धार्मिक सभा आदि आयोजित नहीं कर सकते हैं।

कुछ निषिद्ध कार्य जो इस प्रकार हैं :

  • कोई भी धर्म का इस्तेमाल नहीं कर सकता और ना ही कोई मतदाताओं की धार्मिक भावनाओं को आहत कर सकता है।
  • कोई भी पार्टी या उम्मीदवार किसी को उकसा कर वोट नहीं मांग सकता है, कि अगर वे उन्हें वोट नहीं देते हैं तो भगवान या दैवीय शक्ति उसे धार्मिक सजा देंगे।
  • किसी भी व्यक्ति को लोगों के अलग-अलग समूहों के बीच असामंजस्य पैदा करने के लिए धर्म का उपयोग नहीं करना चाहिए। – किसी को भी कोई दुर्भावनापूर्ण बयान नहीं देना चाहिए जिससे किसी भी राजनेता के निजी जीवन पर हमला हो।
  • मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर और अन्य पूजा स्थलों का इस्तेमाल किसी भी चुनाव प्रचार के लिए नहीं किया जा सकता है।

चुनाव प्रचार के लिए धर्म का उपयोग करना आचार संहिता (एमसीसी) का उल्लंघन है। इसके कुछ उदाहरण हैं, अगर मंदिर के प्रवेश द्वार के बाहर राजनेताओं की तस्वीरों की होर्डिंग लगाई जाती हैं या अगर किसी राजनीतिक दल द्वारा वोट पाने के लिए मंदिर के बाहर भिखारियों को पैसा दिया जाता है।

क्या चुनाव प्रचार के लिए सरकारी विज्ञापनों का इस्तेमाल किया जा सकता है?

सरकारी विज्ञापन आम तौर पर जनता को उनके अधिकारों, कर्तव्यों और उनके हक़ के बारे में जानकारी देती हैं, इनके अलावा ये सरकारी नीतियों, कार्यक्रमों, सेवाओं और अवसरों के बारे में बताती हैं। आचार संहिता के उद्देश्य को पूरा करने के लिए, सरकारी विज्ञापन निष्पक्ष व राजनीतिक रूप से तटस्थ होना चाहिए और किसी भी तरह से सत्ताधारी दल के राजनीतिक हित को बढ़ावा नहीं देना चाहिए।

उदाहरण के लिए,

सरकार द्वारा प्रस्तावित मिड-डे मील (मध्याह्न भोजन) योजना का विज्ञापन करते समय, सत्ताधारी दल इन विज्ञापनों का उपयोग अपनी पार्टी के नेताओं और उम्मीदवारों का गुणगान करने के लिए नहीं कर सकते हैं। इन विज्ञापनों में पार्टी के नेताओं के नाम और उनका फोटो लगाना आचार-संहिता (एमसीसी) का उल्लंघन माना जाएगा।

कानून के तहत, राशन कार्ड धारकों को एलपीजी गैस पर सब्सिडी दी जाती है। सत्ताधारी दल इसे अपनी पहल के रूप में प्रचार नहीं कर सकते और न ही इसका विज्ञापन कर सकते हैं। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत सरकार को अनिवार्य रूप से लोगों को चावल 3 रुपये प्रति किलो की दर से और गेहूं 2 रुपये प्रति किलो की दर से उपलब्ध कराना होता है। सत्ताधारी दल यह दावा नहीं कर सकते कि यह उनके द्वारा किया गया कार्य है और न ही इसका किसी रूप में विज्ञापन कर सकते हैं।

चुनाव के दौरान, सत्ताधारी दल को निम्नलिखित चीजों को करने की मनाही है:

  • अपने चुनाव प्रचार में सरकारी विज्ञापनों के लिए आरक्षित सरकारी धन का उपयोग नहीं कर सकते हैं।
  • इन विज्ञापनों के माध्यम से सत्ता पार्टी की सकारात्मक छवि या अन्य राजनीतिक पार्टी की नकारात्मक छवि को नहीं दिखाया जा सकता है।

सरकारी विज्ञापन

सरकार के विज्ञापन में निम्नलिखित चीजें नहीं होनी चाहिए:

  • सरकारी गतिविधियों में पार्टी का नाम लेकर चर्चा करना;
  • सरकारी गतिविधियों में विपक्षी दलों का नाम लेकर उनके विचारों या कार्यों पर सीधा हमला करना;
  • सरकारी गतिविधियों में अपनी पार्टी का राजनीतिक प्रतीक, चिन्ह या झंडा शामिल करना;
  • चुनाव के दौरान सरकारी गतिविधियों में अपने राजनीतिक दल या किसी उम्मीदवार के समर्थन में आम जनता की राय को प्रभावित करने का प्रयास
  • सरकारी कार्यक्रमों के दौरान राजनीतिक दलों या राजनेताओं की वेबसाइटों के लिंक के बारे में बताना।

 

क्या कोई उम्मीदवार राजनीतिक विज्ञापनों के लिए सार्वजनिक संपत्ति का इस्तेमाल कर सकता है?

राजनीतिक दलों या उम्मीदवारों को चुनावी विज्ञापनों के लिए सार्वजनिक संपत्तियों या स्थानों का उपयोग करने की अनुमति नहीं है। चुनाव प्रचार के लिए वे दीवारों पर नहीं लिख सकते, कोई पोस्टर या कागज दिवार पर नहीं चिपका सकते, कोई कटआउट, होर्डिंग, बैनर, झंडे आदि सार्वजनिक दिवारों पर नहीं लगा सकते हैं।

सार्वजनिक संपत्तियों के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं:

– रेलवे स्टेशन, रेलवे फ्लाईओवर, बस स्टैंड, हवाई अड्डा, पुल, आदि

– सरकारी अस्पताल, डाकघर (पोस्ट ऑफिस)

– सरकारी भवन, नगरपालिका भवन आदि।

यदि कोई राजनीतिक दल (पार्टी) या उम्मीदवार अपनी कोई भी प्रचार सामग्री किसी सार्वजनिक संपत्ति या स्थान पर लगाता है तो यह आचार-संहिता (एमसीसी) का उल्लंघन माना जाएगा।

क्या आचार-संहिता (एमसीसी) सोशल मीडिया के विज्ञापनों पर भी लागू होता है?

आचार-संहिता (एमसीसी) सभी प्रकार के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी लागू होता है। सोशल मीडिया की पांच श्रेणियां हैं जिन्हें आचार-संहिता (एमसीसी) के तहत नियंत्रित किया जाता है:

  • कोलैबॉरेटिव प्रॉजेक्ट (जैसे कि Wikepedia-विकिपीडिया)।
  • ब्लॉग और माइक्रोब्लॉग (जैसे कि Twitter-ट्विटर)।
  • कंटेंट कम्युनिटी (जैसे Youtube-यूट्यूब)। – सोशल नेटवर्किंग साइट्स (जैसे Facebook-फेसबुक)।
  • वर्चुअल गेम्स जैसे (गेमिंग एप्लिकेशनस)।

राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को सोशल मीडिया के माध्यम से विज्ञापन करते समय कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है, वे हैं:

समुचित जानकारी देना

नामांकन दाखिल करते समय उम्मीदवारों को फॉर्म सं. 26 भरना होता है। फॉर्म में उम्मीदवार का विवरण, जिनमें ईमेल आईडी, सोशल मीडिया अकाउंट आदि शामिल हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि उम्मीदवार अपने सभी प्रामाणिक सोशल मीडिया अकाउंट की घोषणा कर सकें।

विज्ञापनों का पूर्व-प्रमाणीकरण

सभी सोशल मीडिया विज्ञापनों को जिला और राज्य स्तर पर स्थापित मीडिया प्रमाणीकरण और निगरानी समिति द्वारा पहले से प्रमाणित किया जाना अनिवार्य होता है। इस समिति द्वारा विज्ञापन की जांच करने के बाद ही इसे किसी भी सोशल मीडिया फोरम पर ऑनलाइन प्रकाशित किया जा सकता है।

व्यय/खर्च

सभी उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों को सोशल मीडिया विज्ञापनों पर होने वाले खर्च को शामिल करना होगा। विशेष रूप से, उन्हें कंटेंट के रचनात्मक विकास, वेतन और मजदूरी पर परिचालन व्यय, और प्रचार-प्रसार संबंधी खर्चों का एक नोट बनाने की आवश्यकता है।

क्या दूरदर्शन / टेलीविजन पर चुनाव प्रचार के लिए कोई कानून है?

चुनाव के दौरान दूरदर्शन/टेलीविजन प्रसारण सामान्य घटनाओं/कार्यक्रमों पर होना चाहिए जो किसी विशेष उम्मीदवार या राजनीतिक दल का समर्थन या आलोचना या उपहासकिए बिना देश के लिए उचित और सामान्य हित के हों। तो यह आचार-संहिता (एमसीसी) का उल्लंघन नहीं है। जैसे:

  • किसी क्रिकेट मैच के सीधे प्रसारण के दौरान, राजनेताओं की फोटो दिखाने वाले विज्ञापनों को बीच में नहीं चलाया जा सकता है।
  • कोई भी राजनीतिक दल किसी सम्मेलन/सभा का सीधा प्रसारण करते समय राजनेताओं की तस्वीरें नहीं लगा सकता है।
  • एक राजनीतिक दल किसी राजनेता के जीवन के बारे में चुनाव से पहले कोई फिल्म नहीं दिखा सकता, क्योंकि यह दर्शकों को उन्हें वोट देने के लिए प्रभावित/उत्साहित करेगा।

किसी भी पंजीकृत/रजिस्टर्ड राजनीतिक दल, समूह, संगठन, संघ और उम्मीदवार द्वारा किसी भी प्रकार के राजनीतिक विज्ञापन को टीवी चैनलों और केबल नेटवर्क पर रोकने के लिए, जिला और राज्य के ‘मीडिया प्रमाणन और निगरानी समिति’ (एमसीएमसी) द्वारा पूर्व-प्रमाणित किया जाना आवश्यक होता है। यदि एमसीएमसी को पता चलता है कि टीवी या केबल नेटवर्क में किसी उम्मीदवार के पक्ष में बिना उचित अनुमति के कोई विज्ञापन दिया गया है, तो वे तुरंत रिटर्निंग ऑफिसर (आर.ओ) को सूचित करेंगे। इसके बाद रिटर्निंग ऑफिसर उस उम्मीदवार को नोटिस भेजकर उसके खिलाफ कार्रवाई करेगा।

चुनाव प्रचार के दौरान रेडियो विज्ञापनों को कैसे नियंत्रित किया जाता है?

राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के विज्ञापन का माध्यम ‘रेडियो’ भी है और ‘मीडिया प्रमाणन और निगरानी समिति’ (एम.सी.एम.सी) सभी जिलों और राज्य में हरेक रेडियो पर प्रसारित गतिविधियों की निगरानी करती है। वे एफ.एम. चैनलों पर प्रसारित होने वाले सभी राजनीतिक दलों के रेडियो जिंगल की निगरानी करते हैं ताकि यह पता लगाने के लिए उचित कदम उठाया जा सके कि क्या वे आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन तो नहीं कर रहे हैं। रेडियो जिंगल के कंटेंट को किसी भी रूप में,

  • राजनेताओं के निजी जीवन की आलोचना नहीं करनी चाहिए।
  • धार्मिक समुदायों पर हमला नहीं करना चाहिए। · अश्लील/अभद्र और अपमान सूचक नहीं होना चाहिए।
  • हिंसा नहीं भड़काना चाहिए।
  • भारत की अखंडता, एकता और संप्रभुता को प्रभावित नहीं करना चाहिए।

उन एफ.एम. चैनलों पर नज़र रखने के लिए एक रजिस्टर मेन्टेन किया जाता है जिसमें चैनलों का नाम और संख्या विशेष रूप से दर्ज की जाती है। प्रत्येक एफ.एम. चैनल को 30 मिनट के स्लॉट में सुनने के लिए दो अधिकारियों को नियुक्त किया गया है। उदाहरण के लिए, यदि कोई राजनीतिक दल किसी दूसरे दल या उम्मीदवार का मजाक उड़ा रहा है, तो एम.सी.एम.सी. उसे हटाने या वापस लेने का आदेश देगी।