ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म के खिलाफ उपभोक्ता शिकायतें

उपभोक्ता ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म और खुदरा विक्रेताओं के माध्यम से खरीदे गए डिजिटल और अन्य उत्पादों से जुड़े अनुचित व्यापार व्‍यवहारों के खिलाफ भी शिकायत कर सकते हैं। सामान या सेवाएं बेचने वाले किसी भी डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक प्लैटफॉर्म का मालिक, संचालक या उसका प्रबंधक एक ई-कॉमर्स इकाई होता है। भारत में एक ई-कॉमर्स इकाई अलग से ई-कॉमर्स नियमों द्वारा शासित होती है।

ये नियम केवल पेशेवर व वाणिज्यिक व्यवसायों पर लागू होते हैं, न कि उन व्यक्तियों पर जो अपनी व्‍यक्तिगतगत क्षमता में अपना काम करते हैं। उदाहरण के लिए, एक उपभोक्ता अमेज़न के खिलाफ शिकायत कर सकता है क्योंकि यह एक ई-कॉमर्स इकाई है जो नियमित रूप से अपनी ई-कॉमर्स वेबसाइट से सामान बेचने के व्‍यापार में लगी हुई है। इसके बावजूद, अगर अमेज़न जैसे प्लैटफॉर्म पर किसी उत्पाद के साथ कोई समस्या है, तो अमेज़न उत्पाद देयता कार्यों के लिए उत्तरदायी होगा, न कि उत्पाद निर्माता।

हालांकि दिलचस्प बात यह है कि ई-कॉमर्स इकाई के लिए उत्पाद देयता भारत से बाहर फैली हुई है। यानी ये प्लैटफॉर्म अपने देश के घरेलू कानूनों के अलावा, उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत समान रूप से उत्तरदायी हैं। उदाहरण के लिए, Liyid जैसी विदेशी ई-कॉमर्स इकाई भारत में अपने उत्पादों की डिलीवरी करती है; दोषपूर्ण / खराब उत्पादों के कारण होने वाले किसी भी नुकसान के मामले में, भारत में और विदेशों में Liyid के खिलाफ उत्पाद देयता की कार्रवाई की जा सकती है।

ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्मों के उत्तरदायित्‍व 

ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म्‍स निम्नलिखित के लिए उत्तरदायी होते हैं-

• उनकी साइटों पर मूल्य हेरफेर,

• प्रदान की गई सेवाओं में लापरवाही और ग्राहकों के साथ भेदभाव।

• भ्रामक विज्ञापन, अनुचित व्यापार व्यवहार और उत्पादों के ग़लत विवरण/जानकारी।

• दोषपूर्ण उत्पाद को वापस लेने या उसका भुगतान करने से इनकार।

• ग्राहक द्वारा प्राप्‍त वस्तुओं या सेवाओं के संबंध में चेतावनियां या निर्देश प्रदान न करना।

• किसी भी प्लैटफॉर्म पर बिक्री के लिए विज्ञापित वस्तुओं या सेवाओं की प्रामाणिकता और छवियों के बारे में ग़लत विवरण, और उल्‍लंघन।

हालांकि, यदि उत्पाद के खतरे सामान्य रूप से ज्ञात हैं तो वे उत्तरदायी नहीं होंगे। उदाहरण के लिए, यदि कोई उपभोक्ता फ्लेमथ्रोअर्स जैसे खतरनाक उत्पाद का दुरुपयोग करता है या उसमें कुछ हेरफेर करता है तो इसके लिए ई-कॉमर्स इकाई को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।

ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म से शिकायत 

ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म को ‘शिकायत निवारण तंत्र’ स्थापित करना चाहिए और भारतीय ग्राहकों के सरोकार पर कार्यवाही करने के लिए एक ‘शिकायत अधिकारी’ नियुक्त करना चाहिए। शिकायत निवारण तंत्र के बारे में विवरण ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म पर प्रदर्शित किया जाना चाहिए। शिकायत अधिकारी को 48 घंटे के भीतर शिकायत स्वीकार करते हुए एक महीने की अवधि के भीतर समस्या का समाधान करना चाहिए।

इनकम टैक्स रिटर्न कैसे फाइल करें?

आयकर विभाग के साथ टैक्स रिटर्न फॉर्म निम्न में से किसी भी तरीके से फाइल किया जा सकता हैः

• रिटर्न को एक पेपर फॉर्म (ऑफलाइन) में आयकर कार्यालय में जमा करना,

• डिजिटल हस्ताक्षर करके इलेक्ट्रॉनिक रूप से रिटर्न जमा करना,

• इलेक्ट्रॉनिक सत्यापन कोड के तहत आईटीआर डेटा को इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रेषित करना,

• आईटीआर डेटा को इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रेषित करना, और बाद में रिटर्न का सत्यापन जमा करना

आईटीआर फाइल करने की प्रक्रिया

इनकम टैक्स रिटर्न मैन्युअल रूप से और साथ ही इलेक्ट्रॉनिक रूप से यानी ई-फाइलिंग के माध्यम से भरा जा सकता है।

विकल्प 1: मैनुअल फाइलिंग

मैन्युअल रूप से रिटर्न भरने के लिए, आपको आयकर विभाग के कार्यालय में जाना होगा। आप यहां अपने नजदीकी टैक्स ऑफिस का पता लगा सकते हैं। आप यह सुनिश्चित करें कि फॉर्म को पूरी तरह से भर कर और उसमें सभी आवश्यक जानकारी को सही ढंग से प्रदान करें। आईटीआर फॉर्म अटैचमेंट-रहित फॉर्म हैं और इसलिए, आपको इनकम रिटर्न के साथ कोई भी दस्तावेज (जैसे निवेश का प्रमाण, टीडीएस प्रमाण पत्र, आदि) को लगाने की आवश्यकता नहीं है। हालांकि, इन दस्तावेजों को सुरक्षित रूप से रखा जाना चाहिए, और जब मूल्यांकन, पूछताछ आदि जैसी स्थितियों में मांगी जाए, तो इन दस्तावेजों को टैक्स अधिकारियों के सामने प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

विकल्प 2: इलेक्ट्रॉनिक रूप से फाइल करना

फिजिकल रूप से रिटर्न दाखिल करने की तुलना में इंटरनेट या ऑनलाइन के माध्यम से अपने टैक्स रिटर्न को इलेक्ट्रॉनिक रूप से भरना एक आसान प्रक्रिया है, क्योंकि इसमें आपको दस्तावेजों की प्रिंट आउट लेने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। साथ ही, यह एक सरल प्रक्रिया है और इसे आयकर वेबसाइट के माध्यम से मुफ्त में ऑनलाइन भरा जा सकता है।

आईटीआर की इलेक्ट्रॉनिक फाइलिंग या ई-फाइलिंग दो तरह से हो सकती है: ऑफलाइन और ऑनलाइन

ऑफलाइन मोड में, आप इनकम टैक्स वेबसाइट से आईटीआर फॉर्म डाउनलोड करें, इसे ऑफलाइन भरें और फिर वेबसाइट पर अपलोड करें। ऑनलाइन मोड में (केवल आईटीआर फॉर्म 1 और 4 के लिए लागू), आप सीधे ऑनलाइन फॉर्म भरते हैं।

चेक ट्रंकेशन सिस्टम

चेक ट्रंकेशन चेक क्लियरिंग सिस्टम का एक रूप है। यह एक भौतिक पेपर चेक को एक स्थानापन्न इलेक्ट्रॉनिक रूप में डिजिटाइज़ करता है। यह चेक पर उल्लिखित राशि को भुगतान करने वाले बैंक को प्रेषित करने के लिए किया जाता है। इसे ‘स्थानीय चेक समाशोधन’ भी कहा जाता है।

इस प्रक्रिया में, क्लियरिंग हाउस द्वारा भुगतान करने वाली शाखा को चेक की एक इलेक्ट्रॉनिक इमेज भेजी जाती है। इस इमेज में चेक की प्रस्तुति की तारीख, प्रस्तुत करने वाला बैंक, एमआईसीआर पर डेटा [मैग्नेटिक इंक कैरेक्टर रिकग्निशन] आदि जैसी सभी प्रासंगिक जानकारी शामिल है। इस प्रक्रिया से, भुगतान करने वाली शाखा को ये विवरण स्वचालित रूप से प्राप्त हो जाते हैं।

किसी चेक को एक बैंक से दूसरे बैंक में भौतिक रूप से स्थानांतरित करने की तुलना में चेक क्लियरिंग की यह एक बहुत ही सरल और तेज़ प्रक्रिया है। चूंकि चेक ट्रंकेशन से चेक प्राप्त करने की प्रक्रिया तेज हो जाती है, इससे ग्राहकों को बेहतर सेवा मिलती है और भौतिक पारवहन में चेक के खो जाने की गुंजाइश कम हो जाती है। यह प्रक्रिया तेज और अधिक सुरक्षित है।

मकान/फ्लैट किराए पर लेना

एक मकान या फ्लैट को किराए पर लेने में कई प्रक्रियाएं और कार्यविधियां शामिल हैं। यदि आप इन प्रक्रियाओं और कार्यविधियों से अवगत नहीं हैं, तो आप से कोई गलत लाभ उठा सकता है। मकान किराए पर लेते समय अपनी सुरक्षा के लिए कृपया निम्नलिखित बातों को जान लें:

  • मकान कैसे ढूढ़ें
  • अपना करार तय करना
  • लिखित एग्रीमेन्ट पर हस्ताक्षर करना
  • करार का पंजीकरण कराना या उस पर नोटरी से हस्ताक्षर करवाना
  • करार के सम्बन्ध में स्टॉम्प ड्यूटी का भुगतान करना
  • किराये का भुगतान करना
  • पुलिस से सत्यापन कराना

विल का पंजीकरण

विल का पंजीकृत करना अनिवार्य नहीं है। यदि आप विल को पंजीकृत करने का निर्णय लेते हैं, तो आप यह कार्य स्वयं कर सकते है या किसी प्राधिकृत एजेंट के माध्यम से कर सकते है। आपको अपनी विल और दस्तावेजों के प्रकार का विवरण एक सीलबंद लिफाफे में स्थानीय प्रभाग के उप-आश्वासन (सब-एश्योरेंस) पंजीयक के पास जमा करनेेे होंगे। इस लिफाफे पर आपका नाम और आपके एजेंट (यदि कोई हो) का नाम लिखा होना चाहिए। यदि पंजीयक यह लिफाफा प्राप्त कर लेता है और इससे संतुष्ट हो जाता है तो वह मुहरबंद लिफाफे को अपनी अभिरक्षा में रख लेगा/ लेगी।

आम तौर पर, आपको अपनी वसीयत पर स्टाम्प ड्यूटी का भुगतान नहीं करना पड़ता है। हालांकि, आपको पंजीकरण शुल्क का भुगतान करना होगा, जो विभिन्न राज्यों में अलग-अलग होगा। विभिन्न राज्यों में प्रक्रियाएं भी अलग-अलग हो सकती हैं।

यदि आप अपनी वसीयत को पुन: प्राप्त करना चाहते हैं (इसे बदलने के लिये, या इसे रद्द करने के लिए), तो आप व्यक्तिगत रूप से, या विधिवत अधिकृत एजेंट के माध्यम से, रजिस्ट्रार (पंजीयक) को आवेदन कर सकते हैं। यदि रजिस्ट्रार संतुष्ट है कि आप या आपके एजेंट ने यह आवेदन किया है, तो वह आपके वसीयत को वापस कर देगी। आपकी मृत्यु के बाद कोई भी व्यक्ति, आपकी वसीयत को प्राप्त करने के लिये, या आपकी वसीयत की विषय-वस्तु को देखने की अनुमति के लिए, रजिस्ट्रार को आवेदन कर सकता है।

यदि आपने वसीयत को कोडपत्र (‘कोडिसिल’) के माध्यम से परिवर्तन किए हैं, तो आपको आदर्श रूप से, इसे उसी तरह पंजीकृत भी करवाना चाहिए।

ग्राहक दायित्व

ग्राहक को किसी तीसरे पक्ष के साथ भुगतान क्रेडेंशियल प्रकट/साझा नहीं करना चाहिए। यदि कोई ग्राहक ऐसा करता है तो उसके लापरवाह कार्यों के कारण ग्राहक की देनदारी बढ़ जाएगी। अनधिकृत इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग लेनदेन के मामले में यह साबित करना बैंक की जिम्मेदारी है कि ग्राहक उत्तरदायी है (जो भी हद तक)। अनधिकृत इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग लेनदेन के मामले में बैंक अपने विवेक पर किसी भी ग्राहक दायित्व को माफ करने का निर्णय ले सकते हैं। ग्राहक की लापरवाही के मामलों में भी वे ऐसा कर सकते हैं।

ग्राहक पर शून्य देयता होगी जब:

• एक अनधिकृत लेनदेन अंशदायी धोखाधड़ी या लापरवाह व्यवहार या बैंक की सेवाओं में कमी के कारण हुआ है। यदि आप बैंक को अनधिकृत लेनदेन की रिपोर्ट नहीं करते हैं, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि शून्य देयता होती है चाहे आप इसकी रिपोर्ट करें या नहीं।

• गड़बड़ी ग्राहक या बैंक के पास नहीं, बल्कि सिस्टम में कहीं और हुई है। इस मामले में, आपको अनधिकृत लेनदेन के बारे में सूचना मिलने के तीन कार्य दिवसों के भीतर बैंक को सूचित करना चाहिए।

अनधिकृत लेनदेन के बारे में बैंक से संचार प्राप्त करने के बाद चार से सात कार्य दिवसों की देरी होने पर ग्राहक की सीमित देयता होगी, ऐसी स्थिति में ग्राहक की प्रति लेनदेन देयता, लेनदेन मूल्य या नीचे तालिका में उल्लेख राशि तक सीमित होगी, जो भी कम हो।

ग्राहक की अधिकतम देयता 

खाते का प्रकार  अधिकतम देयता 
मूल बचत जमा खाता रु. 5,000/
अन्य सभी बचत बैंक खाते, प्रीपेड भुगतान साधन और उपहार कार्ड, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के चालू/नकद क्रेडिट/ओवरड्राफ्ट खाते, (धोखाधड़ी की घटना के 365 दिनों पहले के दौरान में)25 लाख रुपये वार्षिक औसत बैलेंस तक की सीमा वाले व्यक्तियों के चालू खाते/नकद क्रेडिट/ओवरड्राफ्ट खाते, 5 लाख रुपये तक की सीमा वाले क्रेडिट कार्ड रु. 10,000/-
अन्य सभी चालू/नकद क्रेडिट/ओवरड्राफ्ट खाते, 5 लाख रुपये से अधिक की सीमा वाले क्रेडिट कार्ड रु. 25,000/-

शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया

कोई भी शिकायत एकीकृत शिकायत निवारण तंत्र पोर्टल (आईएनजीआरएएम) पर ऑनलाइन दर्ज की जा सकती है, या फिर उपभोक्ता अधिकारों का हनन के संदर्भ में जिला या राज्य आयोग जैसे उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरणों के साथ ऑफ़लाइन दर्ज की जा सकती है। इसके अलावा हेल्पलाइन के साथ-साथ फोन आधारित ऍप भी हैं जिनका उपयोग शिकायत दर्ज करने के लिए किया जा सकता है। इस सबके बावजूद, शिकायत का समाधान न होने पर, आप उपभोक्ता मंचों से संपर्क हेतु किसी वकील की मदद ले सकते हैं।

शिकायत प्रक्रिया: टेलीफोन 

चरण -1: जांचें कि क्या आप कानून के तहत उपभोक्ता हैं

शिकायतकर्ता एक उपभोक्ता या एक उपभोक्ता-संघ होना चाहिए।

चरण-2: हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करें

राष्‍ट्रीय छुट्टियों को छोड़कर, शिकायत दर्ज करने के लिए, उपभोक्ता, राष्‍ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन पर कॉल कर सकते हैं-1800-11-4000 या 14404 पर। या फिर, + 91 8130009809 पर एसएमएस के माध्यम से भी शिकायत दर्ज की जा सकती है।

चरण-3: शिकायत का विवरण दें

शिकायतकर्ता और विक्रेता के नाम, संपर्क विवरण और उनके पतों का पूरा ब्‍योरा, हेल्पलाइन प्राधिकरण / अधिकारी को शिकायत के ब्‍योरे के साथ दिया जाना चाहिए। प्राधिकरण आपकी शिकायत दर्ज करेगा और आपको एक विशिष्‍ट शिकायत आईडी देगा।

चरण -4: अपने आवेदन की प्रगति पर नज़र रखें / ट्रैक करें

आपकी शिकायत फिर संबंधित विक्रेता, कंपनी, नियामक, या प्राधिकरण को कार्रवाई के लिए भेज दी जाती है। प्रत्येक शिकायत के लिए की गयी कार्रवाई को लगातार अपडेट किया जाता है। हेल्पलाइन पर कॉल करके या एकीकृत शिकायत निवारण तंत्र पोर्टल के माध्यम से आपकी शिकायत को आपकी शिकायत आईडी से ट्रैक किया जा सकता है।

चरण-5: शिकायत का समाधान

अगर आपकी शिकायत का समाधान नहीं होता है, तो आप संबंधित उपभोक्ता फोरम से संपर्क करके कानूनी प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं। हेल्पलाइन प्राधिकरण कानूनी प्रक्रिया के बारे में आपके किसी भी संदेह को स्पष्ट करने में मदद कर सकता है।

ई-शिकायत प्रक्रिया: इंटरनेट (आईएनजीआरएएम पोर्टल) 

उपभोक्ता मामलों के विभाग ने उपभोक्ताओं, केंद्र और राज्य सरकार की एजेंसियों, निजी कंपनियों, नियामकों, लोकपाल और कॉल सेंटर आदि जैसे सभी हितधारकों को एक मंच पर लाने के लिए एकीकृत शिकायत निवारण तंत्र (आईएनजीआरएएम-INGRAM) के रूप में जाना जाने वाला एक पोर्टल लॉन्च किया है। पोर्टल उपभोक्ताओं के बीच उनके अधिकारों की रक्षा के लिए जागरूकता पैदा करने और उन्हें उनकी जिम्मेदारियों के बारे में सूचित करने में भी मदद करेगा। इस पोर्टल के माध्यम से उपभोक्ता अपनी शिकायत ऑनलाइन दर्ज करा सकते हैं।

चरण -1: जांचें कि क्या आप कानून के तहत उपभोक्ता हैं

शिकायतकर्ता को कानून के तहत एक उपभोक्ता होना चाहिए, जिसका अर्थ है किसी उत्पाद का उपभोक्ता, एक ऍसोसिएशन उपभोक्ता आदि।

चरण -2: INGRAM पोर्टल पर पंजीकरण करें

शिकायतकर्ता को खुद को एक उपभोक्ता के बतौर INGRAM पोर्टल पर पंजीकृत कराना होगा। शिकायतकर्ता को अपनी शिकायत दर्ज करने के लिए आवश्यक विवरण और दस्तावेज़ भरने होंगे, जैसे कि शिकायतकर्ता और विक्रेता का नाम और पता, विवाद के तथ्य और वह राहत जो शिकायतकर्ता चाहता है। शिकायत दर्ज करने के लिए एक बार पंजीकरण आवश्यक है।

पंजीकरण के लिए वेब पोर्टल http://consumerhelpline.gov.in पर जाएं और लॉग-इन लिंक पर क्लिक करें और फिर आवश्यक विवरण देते हुए साइन-अप करें, अपनी ईमेल के माध्यम से सत्यापित करें। यूज़र आईडी और पासवर्ड बनाया जाता है। इस यूज़र आईडी और पासवर्ड का उपयोग करते हुए, पोर्टल में प्रवेश करें और आवश्यक दस्तावेज़ों को संलग्न करते हुए शिकायत के आवश्यक विवरण भरें (यदि उपलब्ध हों)।

चरण-3: शुल्क का भुगतान करें

शिकायतकर्ता को डिजिटल भुगतान मोड के माध्यम से शिकायत पंजीकरण के लिए शुल्क (यदि लागू हो) का भुगतान करना होगा, या भीम ऍप, उमंग ऍप आदि के माध्‍यम से संबंधित उपभोक्ता आयोगों को माल के मूल्य के अनुसार भुगतान करना होगा।

चरण-4: अपने आवेदन पर नज़र रखें / ट्रैक करें

प्रत्येक शिकायत दर्ज की जाती है और उसकी एक विशिष्‍ट शिकायत आईडी जारी की जाती है। शिकायत को कार्रवाई के लिए संबंधित कंपनी, नियामक, प्राधिकरण को अग्रेषित किया जाता है। प्रत्येक शिकायत के बरक्‍स उनके द्वारा की गयी कार्रवाई को अद्यतन किया जाता है। दर्ज की गयी शिकायतों को INGRAM पोर्टल के माध्यम से ट्रैक किया जा सकता है।

उपभोक्ता न्यायालय/मंच 

INGRAM पोर्टल के माध्यम से, यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाता है कि शिकायत का निवारण संबंधित अधिकारियों के साथ किया जाए, जो कि एक कंपनी, लोकपाल आदि हो सकते हैं। लेकिन, अगर समस्या अभी भी लंबित है, तो उपभोक्ता के पास एक वकील की मदद से उपयुक्त उपभोक्ता अदालत या मंच से संपर्क करने का विकल्प होता है। उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में सुनवाई के लिए केवल 2 साल के भीतर दायर की गयी शिकायतों को ही सुनवाई के लिए स्वीकार किया जाएगा।

टैक्स रिटर्न (आई.टी.आर) भरने की समय सीमा

वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए, सामान्यतः आयकर रिटर्न (आईटीआर) दाखिल करने की समय सीमा 30 नवंबर, 2020 है। पिछला वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिए विलंबित और/या रिवाइज्ड टैक्स रिटर्न दाखिल करने की समय सीमा 31 जुलाई, 2020 है।

आप इस टैक्स कैलेंडर में वर्ष 2020 के लिए अन्य महत्वपूर्ण देय तिथियां और आयकर समय सीमा देख सकते हैं।

आईटीआर (इनकम टैक्स रिटर्न) फॉर्म में, आपको फॉर्म भरने के लिए एक श्रेणी का चयन करना होगा, जो निम्नलिखित पर निर्भर करता है:

आईटीआर फॉर्म भरने की तिथि पर -1.) देय तारीख को या उससे पहले फॉर्म भरना 2.) देय तारीख के बाद फॉर्म भरना

इनकम टैक्स रिटर्न के प्रकार पर-आम तौर पर, आप उस निर्धारण वर्ष के लिए लागू एक मूल आईटीआर फॉर्म दाखिल करेंगे। मूल फॉर्म भरने के बाद, यदि आपको उस फॉर्म में किसी भी विवरण को सही या संशोधित करना हो, तो आप मूल फॉर्म के संदर्भ में एक और परिशोधित या संशोधित रिटर्न फॉर्म दाखिल करेंगे।

टैक्स रिटर्न दाखिल करते समय उसकी अलग-अलग समयसीमा

इसके लिए, विभिन्न इनकम टैक्स रिटर्न निम्न प्रकार से दाखिल किए जा सकते हैं:

देय तारीख को या उससे पहले-उदाहरण के लिए, यदि इनकम टैक्स रिटर्न फॉर्म भरने की समय सीमा 30 नवंबर है, और प्रीति 15 नवंबर को अपना इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करती है, तो उसने देय तारीख से पहले आईटीआर दाखिल किया है।

बिलेटेड रिटर्न (देय तिथि के बाद)

आपको दिए गए समय के भीतर अगर आपने अपने अपना इनकम टैक्स रिटर्न जमा नहीं किया है, तो किसी भी वित्तीय वर्ष के लिए, आप उस वर्ष की समाप्ति से पहले, या मूल्यांकन के पूरा होने से पहले (जो भी पहले हो) किसी भी समय रिटर्न जमा कर सकते हैं।

उदाहरण के लिए, एक ऐसी स्थिति मान लीजिए, जहां आपको वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए अपना इनकम टैक्स रिटर्न 30 जून 2020 तक जमा करना था, लेकिन आपने ऐसा नहीं किया। ऐसे में आपका असेसमेंट ईयर 2020-21 होगा। अगर असेसमेंट ईयर 31 मार्च 2021 को खत्म हो रहा है, तो आपको इस तारीख (असेसमेंट ईयर की समाप्ति होने) तक अपना रिटर्न जमा करना होगा। अगर ‘इनकम टैक्स असेसमेंट’ मूल्यांकन वर्ष खत्म होने से पहले होता है, तो आपको असेसमेंट होने से पहले ही अपना बिलेटेड रिटर्न जमा करना होगा।

रिवाइज्ड रिटर्न

रिटर्न/विलंबित रिटर्न जमा करने के बाद, यदि आपको कोई चूक हो गयी हो या आपसे कुछ छूट गया हो या आपने कोई गलत जानकारी भर दी है, तो उस असेसमेंट ईयर की समाप्ति से पहले या मूल्यांकन के पूरा होने से पहले, जो भी पहले हो, आप किसी भी समय एक संशोधित रिटर्न जमा कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि आपने वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए अपना इनकम टैक्स रिटर्न 30 जून 2020 की समय सीमा तक जमा किया है, तो आपका असेसमेंट ईयर 2020-21 होगा।

रिटर्न जमा करने के बाद, यदि आपको पता चलता है कि आपने फॉर्म में कुछ गलत जानकारी दी है, तो आपको सही जानकारी के साथ एक और रिवाइज्ड फॉर्म जमा करना होगा। अगर असेसमेंट ईयर 31 मार्च 2021 को खत्म हो रहा है, तो आपको इस तारीख (असेसमेंट ईयर की समाप्ति तक) तक अपना रिवाइज्ड रिटर्न जमा करना होगा। अगर ‘इनकम टैक्स असेसमेंट’ आकलन वर्ष खत्म होने से पहले होता है, तो आपको असेसमेंट से पहले अपना रिवाइज्ड रिटर्न जमा करना होगा।

मॉडिफाइड रिटर्न

यह उस स्थिति में लागू होता है जहां आपने अपना इनकम टैक्स रिटर्न जमा करने के बाद कोई एग्रीमेंट या समझौता किया है। यदि एग्रीमेंट उस वित्तीय वर्ष पर लागू होता है या उसे प्रभावित करता है जिसके लिए आपने इनकम टैक्स दायर किया है, तो आपको एग्रीमेंट के अनुसार मॉडिफाइड रिटर्न जमा करना होगा। उदाहरण के लिए, यदि आपने वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए अपना इनकम टैक्स रिटर्न 30 जून 2020 की समय सीमा तक जमा किया है, तो आपका असेसमेंट ईयर 2020-21 होगा। रिटर्न जमा करने के बाद, यदि आप एक समझौता करते हैं जो वित्तीय वर्ष के लिए आपके इनकम टैक्स रिटर्न को प्रभावित करता है, तो आपको समझौते के विवरण सहित एक मॉडिफाइड रिटर्न जमा करना होगा।

मॉडिफाइड रिटर्न उस महीने के अंत से तीन महीने के भीतर दाखिल किया जाना चाहिए जिस महीने में आपने एग्रीमेंट किया था। उदाहरण के लिए, यदि आपने जुलाई में एग्रीमेंट किया है, तो आपको अक्टूबर (3 महीने के भीतर) के अंत तक मॉडिफाइड रिटर्न जमा करना होगा।

जब आयकर अधिकारियों द्वारा देरी से रिटर्न भरने की अनुमति दी गई हो,

तो केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) किसी भी आयकर प्राधिकरण को अवधि समाप्त होने (एक्सपायरी पीरियड) के बाद भी इनकम टैक्स में छूट, कटौती, वापसी या राहत के लिए आवेदन की अनुमति देने के लिए अधिकृत कर सकता है। इसके लिए आप किसी चार्टर्ड अकाउंटेंट या वकील की मदद ले सकते हैं।

पृष्ठांकित चेक

पृष्ठांकित चेक का मतलब है कि अगर आपके पास ऑर्डर चेक है तो आप उसे किसी और को एंडोर्स कर सकते हैं। पृष्ठांकित का अर्थ है कि भुगतान पाने वाला उसी ऑर्डर चेक का उपयोग किसी और (लेनदार) को भुगतान करने के लिए चेक के पीछे उस व्यक्ति का नाम लिखकर और उस पर हस्ताक्षर करके कर सकता है। जब किसी व्यक्ति को एक पृष्ठांकित चेक मिलता है, तो वह स्वयं नकद प्राप्त कर सकता है।

उदाहरण: राहुल ने राजू को एक चेक दिया। यदि राजू उस चेक को दिव्या को एंडोर्स करना चाहता है, तो उसे चेक के पीछे दिव्या का नाम लिखना होगा और उस पर हस्ताक्षर करना होगा।

कई लोगों के पक्ष में पृष्ठांकित करना

एक चेक को कितनी भी बार पृष्ठांकित किया जा सकता है। इसका मतलब है कि एक व्यक्ति इसे किसी को दे सकता है, जो इसे किसी और को दे सकता है और इसे कई बार जारी रखा जा सकता है। हालांकि, बैंक उस अंतिम व्यक्ति के खाते में राशि जमा करने से पहले और जानकारी मांग सकता है, जिसे चेक का पृष्ठांकन किया गया है यानी चेक का अंतिम लाभार्थी।

उदाहरण के लिए

जीत ने सोहिनी के पक्ष में एक चेक जारी किया और सोहिनी ने अद्रिजा को दिए गए चेक के पीछे अद्रिजा का नाम लिखकर चेक पृष्ठांकित करने का फैसला किया। अद्रीजा उसी तरह से किसी अन्य व्यक्ति को उसी चेक का पृष्ठांकन कर सकती है। अब, यदि चेक अंततः परम के पास आ गया है तो बैंक परम से विवरण (जैसे आईडी कार्ड) मांग सकता है जब वह नकद प्राप्त करने के लिए बैंक से संपर्क करता है।

चेक जिसे आगे पृष्ठांकित नहीं किया जा सकता

यदि किसी चेक को क्रॉस कर दिया जाता है और उस पर “अकाउंट पेयी ओनली” या “निगोशिएबल नहीं” लिखा होता है, तो इसका मतलब है कि चेक किसी और को पृष्ठांकित नहीं किया जा सकता है। चेक को प्राप्तकर्ता के बैंकर द्वारा उसकी ओर से आवश्यक रूप से एकत्र किया जाना चाहिए।

उदाहरण के लिए

सिमरन ने नम्रता के पक्ष में चेक जारी किया है। लेकिन, उसने “अकाउंट पेयी ओनली” या “नॉट नेगोशिएबल” लिखा है और चेक को क्रॉस कर लिया है। फिर, नम्रता आगे इसका पृष्ठांकन नहीं कर सकती।

एग्रीमेंट के प्रकार

जब आप मकान किराए पर ले रहे हों या किराए पर अपना घर दे रहे हैं, तो एग्रीमेंट करना उपयुक्त है ताकि:

  • जब पैसे, उपयोगिताओं और मरम्मत आदि के बारे में कोई असहमति होती है, तो अनुबंध का विवरण आपस में सहमति बनाने में सार्थक होगा।
  • यदि आप पुलिस/अदालत में शिकायत दर्ज करना चाहते हैं तो आप लिखित समझौते/अनुबंध को प्रमाण के रूप में दिखा सकते हैं।
  • एक किरायेदार/लाइसेंसधारी के रूप में, आप अपने किराए के एग्रीमेंट को अपने अस्थायी निवास के सबूत के रूप में दिखा सकते हैं।

आपके अधिकार और कर्तव्य, मकान मालिक/लाइसेंसकर्ता या किरायेदार/ लाइसेंसधारी के रूप में, मोटे तौर पर समझौते के प्रकार पर निर्भर करती हैं, जिस पर आप मकान किराए पर लेने के उद्देश्य से हस्ताक्षर करते हैं। आवासीय उद्देश्यों से संपत्ति को किराए पर लेने के लिए दो प्रकार के समझौते हैं। यथा-

  • लीज एग्रीमेंट या लीज डीड (आमतौर पर इसे रेंट एग्रीमेंट के रूप में जाना जाता है)
  • लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट