आप अपने जीवन काल में कभी भी अपनी विल तैयार कर सकते हैं, बशर्ते कि आप-
- मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति होंं, और
- 18 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति हों|
अपनी विल तैयार करने वाले व्यक्ति को इस बात की समझ है कि वह क्या करने जा रहा है।
उदाहरण के लिए, मानसिक रूप से अशक्त व्यक्ति भी उस स्थति में अपनी विल तैयार कर सकता है, जब उसे इस बात की समझ है कि वह क्या करने जा रहा है।यदि काई व्यक्ति शराब के नशे में हो और उसे इस बात की समझ न हो कि वह क्या करने जा रहा है, तो वह विल नहीं कर सकता है।
आप अपनी ऐसी सभी संपत्ति काेेे किसी को भी दे सकते हैं, जिस पर आपका पूर्ण स्वामित्व हो। आप ऐसी संपत्ति को किसी को नहीं दे सकते हैं, जिस पर आपका स्वामित्व न हो। कुछ मामलों में आपके पास ऐसी संपत्ति हो सकती है, जिस पर आपका आजीवन हित हो अथार्त किसी व्यक्ति ने अपनी विल के जरिये आपको वह संपत्ति आपके जीवन-काल में उपयोग के लिए दी हो, लेकिन उस पर आपका स्वामित्व न हो।
आप अपनी विल में ऐसी किसी भी चल या अचल सम्पति को शामिल कर सकते हैं, जिसे आपने स्वयं अर्जित किया हो। यदि आप हिंदू संयुक्त परिवार के सदस्य हों, तो अपनी पैतृक संपत्ति में से अपने हिस्से को ही आप अपनी विल में शामिल कर सकते हैं।
जिस व्यक्ति को आप अपनी मृत्यु के बाद, वसीयत में दिए गए अनुदेशों को निष्पादित करने अथार्त लागू करने का दायित्व सौंपते हैं, उसे आपकी विल का निष्पादक कहा जाता है।
आप किसी ऐसे व्यक्ति को अपना निष्पादक नियुक्त कर सकते हैं, जो मानसिक रूप से स्वस्थ हो और 18 वर्ष से अधिक उम्र का हो। आपको चाहिए कि आप ऐसे व्यक्ति का चयन करेंं, जिस पर अापका पूरा विश्वास हो और जो निष्पादक के रूप में कार्य करने का इच्छुक और सक्षम हों।
यदि आपने अपने विल में कोई निष्पादक नियुक्त नहीं किया हो, तो न्यालय को अधिकार है कि वह कोई ऐसा प्रशासक नियुक्त कर सकता है, जो आपकी विल को निष्पादित करेगा।
न्यायालय को यह अधिकार है कि वह ऐसा प्रशासक या निष्पादक नियुक्त कर सकता है, जो उस स्थिति में आपकी विल काे निष्पादित करेगा –
- यदि आपने अपनी विल में कोई निष्पादक नियुक्त नहीं किया हो।
- यदि आपके द्वारा नियुक्त निष्पादक, निष्पादक के रूप में कार्य करने के लिए सक्षम न हो।
- यदि आपके द्वारा नियुक्त निष्पादक, निष्पादक का दायित्व निभाने से इंकार कर दे।
यदि आप किसी ऐसी विल के लाभार्थी हों, जिसका कोई निष्पादक न हो या जिस व्यक्ति को निष्पादक के रूप में नामित किया गया हो, वह इन कार्यों का निष्पादन नहीं करना चाहता हो, तो आप एक प्रशासक नियुक्त करने के लिए न्यायालय में आवेदन-पत्र दे सकते हैं।
यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु अपनी विल के लिए कोई निष्पादक नामित किए बिना हो जाती है, तो उसके विल में उल्लिखित लाभार्थी द्वारा प्रशासन-पत्र जारी किए जाने के लिए आवेदन-पत्र देना होगा। इसकी प्रक्रिया वही होगी, जो प्रोबेटर जारी करने की प्रक्रिया है।
विल का पंजीकृत करना अनिवार्य नहीं है। यदि आप विल को पंजीकृत करने का निर्णय लेते हैं, तो आप यह कार्य स्वयं कर सकते है या किसी प्राधिकृत एजेंट के माध्यम से कर सकते है। आपको अपनी विल और दस्तावेजों के प्रकार का विवरण एक सीलबंद लिफाफे में स्थानीय प्रभाग के उप-आश्वासन (सब-एश्योरेंस) पंजीयक के पास जमा करनेेे होंगे। इस लिफाफे पर आपका नाम और आपके एजेंट (यदि कोई हो) का नाम लिखा होना चाहिए। यदि पंजीयक यह लिफाफा प्राप्त कर लेता है और इससे संतुष्ट हो जाता है तो वह मुहरबंद लिफाफे को अपनी अभिरक्षा में रख लेगा/ लेगी।
आम तौर पर, आपको अपनी वसीयत पर स्टाम्प ड्यूटी का भुगतान नहीं करना पड़ता है। हालांकि, आपको पंजीकरण शुल्क का भुगतान करना होगा, जो विभिन्न राज्यों में अलग-अलग होगा। विभिन्न राज्यों में प्रक्रियाएं भी अलग-अलग हो सकती हैं।
यदि आप अपनी वसीयत को पुन: प्राप्त करना चाहते हैं (इसे बदलने के लिये, या इसे रद्द करने के लिए), तो आप व्यक्तिगत रूप से, या विधिवत अधिकृत एजेंट के माध्यम से, रजिस्ट्रार (पंजीयक) को आवेदन कर सकते हैं। यदि रजिस्ट्रार संतुष्ट है कि आप या आपके एजेंट ने यह आवेदन किया है, तो वह आपके वसीयत को वापस कर देगी। आपकी मृत्यु के बाद कोई भी व्यक्ति, आपकी वसीयत को प्राप्त करने के लिये, या आपकी वसीयत की विषय-वस्तु को देखने की अनुमति के लिए, रजिस्ट्रार को आवेदन कर सकता है।
यदि आपने वसीयत को कोडपत्र (‘कोडिसिल’) के माध्यम से परिवर्तन किए हैं, तो आपको आदर्श रूप से, इसे उसी तरह पंजीकृत भी करवाना चाहिए।
आप अपनी इच्छानुसार जितनी बार चाहें अपनी वसीयत को बदल सकते हैं। वसीयत के पंजीकृत होने के बाद भी, आप के द्वारा इसमें परिवर्तन करना संभव है।
यदि आप अपनी इच्छाओं को सही तरीके से व्यक्त करने के लिए अपनी वसीयत में बड़ा परिवर्तन कर रहे हैं, तो आपको आदर्श रूप से एक ‘कोडिसिल’ को निष्पादित करना चाहिए। ‘कोडिसिल’ एक लिखित बयान है, जो मौजूदा वसीयत के पूरक के रूप में होता है, या इसे संशोधित करता है। इसे, मूल वसीयत की भांति ही निष्पादित किया जाना चाहिए।
आप अपनी वसीयत में परिवर्तन करने के लिये, उसमें से कुछ हटा सकते हैं, कुछ संशोधित कर सकते हैं, या नई बात जोड़ सकते हैं। परन्तु आपको इन परिवर्तनों के समीप हाशिये में या वसीयत के अन्त में अपने, इनका हवाला देते हुए हस्ताक्षर करने होंगे और अपने गवाहों के हस्ताक्षर करवाने होंगे। पहले से निष्पादित वसीयत में कोई परिवर्तन नहीं किए जा सकते हैं (सिवाय इसे ज्यादा स्पष्ट करने या समझने योग्य बनाने के लिए)
कुछ मामलों में आपको, एक वसीयत के लाभार्थी के रूप में अपना अधिकार स्थापित करने के लिए, उस वसीयत के ‘प्रोबेट’ को प्राप्त करना आवश्यक है। आपको प्रोबेट के लिए, अदालत में आवेदन करना होगा। यह वसीयत के निष्पादन के लिये, उसकी वास्तविकता और वैधता का, अदालत के द्वारा दिया गया प्रमाण पत्र है। ‘प्रोबेट’ प्राप्त करने का यह मतलब नहीं है कि संपत्ति पर आपका अधिकार स्थापित हो गया। पर यह निश्चित रूप से, मृतक की संपत्ति को प्रबंधित करने के लिये निर्वाहक के अधिकार का आधिकारिक प्रमाण है। हालांकि आपके लिये, प्रोबेट प्राप्त करने की कोई अधिकारिक समय सीमा नहीं है, फिर भी आपको इसमें देरी नहीं करनी चाहिए।
चेन्नै और मुंबई में रहने वाले हिंदुओं, बौद्धों, जैनों और सिखों की वसीयतों के लिए ‘प्रोबेट’ अनिवार्य है, या उस स्थिति में प्रोबेट अनिवार्य है यदि उनकी संपत्ति चेन्नै और मुंबई में है। यह कानून केरल के बाहर के ईसाइयों और कोलकाता, चेन्नै तथा मुंबई में रहने वाले पारसियों के लिये (जिनकी मृत्यु 1962 के बाद हुई हो) के मामले में लागू है। आपको वसीयत के लिए ‘प्रोबेट’ प्राप्त करने की आवश्यकता है या नहीं, इसकी पुष्टि किसी वकील से कर लें।