वसीयत बदलना

आप अपनी इच्छानुसार जितनी बार चाहें अपनी वसीयत को बदल सकते हैं। वसीयत के पंजीकृत होने के बाद भी, आप के द्वारा इसमें परिवर्तन करना संभव है।

यदि आप अपनी इच्छाओं को सही तरीके से व्यक्त करने के लिए अपनी वसीयत में बड़ा परिवर्तन कर रहे हैं, तो आपको आदर्श रूप से एक ‘कोडिसिल’ को निष्पादित करना चाहिए। ‘कोडिसिल’ एक लिखित बयान है, जो मौजूदा वसीयत के पूरक के रूप में होता है, या इसे संशोधित करता है। इसे, मूल वसीयत की भांति ही निष्पादित किया जाना चाहिए।

आप अपनी वसीयत में परिवर्तन करने के लिये, उसमें से कुछ हटा सकते हैं, कुछ संशोधित कर सकते हैं, या नई बात जोड़ सकते हैं। परन्तु आपको इन परिवर्तनों के समीप हाशिये में या वसीयत के अन्त में अपने, इनका हवाला देते हुए हस्ताक्षर करने होंगे और अपने गवाहों के हस्ताक्षर करवाने होंगे। पहले से निष्पादित वसीयत में कोई परिवर्तन नहीं किए जा सकते हैं (सिवाय इसे ज्यादा स्पष्ट करने या समझने योग्य बनाने के लिए)

एक अनधिकृत लेनदेन को उलटना

ग्राहक से अनधिकृत लेनदेन की सूचना प्राप्त करने के बाद, बैंक लेनदेन को उलट देगा और अधिकृत इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन में शामिल राशि को क्रेडिट कर देगा। यह ग्राहक से अधिसूचना प्राप्त होने की तारीख से 10 कार्य दिवसों के भीतर किया जाना चाहिए। ऐसा करने के लिए बैंकों को बीमा दावों के निपटारे का इंतजार नहीं करना चाहिए। बैंक अनधिकृत लेनदेन की तिथि के अनुसार मूल्य के अनुसार धन जमा करेगा।

शिकायत करने के लिए शुल्क

उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत दायर की गई प्रत्येक शिकायत एक नाम मात्र शुल्क के साथ होनी चाहिए जो किसी राष्ट्रीयकृत बैंक के डिमांड ड्राफ्ट के रूप में या पोस्टल ऑर्डर के माध्यम से या इलेक्ट्रॉनिक रूप में देय है। वस्‍तुओं या सेवाओं के मूल्य के आधार पर शुल्क संरचना नीचे दी गई है –

जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग को देय शुल्क-

वस्‍तु या सेवा का मूल्य शुल्क 
5 लाख रुपये से कम नि:शुल्क
रु.5 लाख-10 लाख रुपये रु.200
रु.10 लाख-रु.20 लाख 400
रु.20 लाख-50 लाख रु. रु.1000
रु.50 लाख-रु.1 करोड़ रु.2000

राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग को देय शुल्क: 

अच्छी या सेवा का मूल्य शुल्क 
रु.1 करोड़-रु.2 करोड़ रु.2500
रु.2 करोड़-रु.4 करोड़ रु.3000
रु.4 करोड़-रु.6 करोड़ 4000
रु.6 करोड़-रु.8 करोड़ रु.5000
रु.8 करोड़-रु.10 करोड़ रु.6000

राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग को देय शुल्क-

माल या सेवा का मूल्य  शुल्क 
10 करोड़ रुपये से ज्‍़यादा रु.7500

ध्यान देने वाली एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इस प्रकार एकत्र की गई फीस राज्य स्तर या राष्ट्रीय स्तर पर, जैसा भी मामला हो, उपभोक्ता कल्याण कोष में जाती है। जहां ऐसी निधि मौजूद नहीं है, उसे राज्य सरकार को निर्देशित किया जाता है। शुल्क का उपयोग उपभोक्ता कल्याण परियोजनाओं को जारी रखने के लिए किया जाता है।

टैक्स रिटर्न भरना

टैक्स रिटर्न दाखिल करना एक विस्तृत और लंबी प्रक्रिया हो सकती है, जिसमें कई पहलुओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

शुरुआत में इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर) फाइल करने के लिए आपको यह पता लगाना होगा कि आप किस कैटेगरी के करदाता हैं। इसमें मानक कर दरों के आधार पर आपकी टैक्स योग्य आय की गणना करना भी शामिल है। कुछ टैक्स कटौती भी हो सकती है जिसका लाभ आप अपनी कर देयता को कम करने के लिए उठा सकते हैं।

जब आप टैक्स रिटर्न भरने जाते हैं, तो आपको सबसे महत्वपूर्ण रूप से यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आप अपने लिए लागू सही आईटीआर फॉर्म का चयन करें तथा निर्दिष्ट समयसीमा के भीतर ही अपना रिटर्न जमा करें।

ऐसे कई तरीके हैं जिसके माध्यम से आप आईटीआर फाइल कर सकते हैं, फिजिकल रूप से या इलेक्ट्रॉनिक रूप से, और प्रत्येक फाइलिंग विकल्प की एक अलग प्रक्रिया होती है। इलेक्ट्रॉनिक फाइलिंग में भी, आपके पास ऑफलाइन और ऑनलाइन विकल्प मौजूद हैं। चाहे आप अपना आईटीआर किसी भी रूप में दाखिल करें, आपको इसे जमा करने पर इसे सत्यापित करना होगा। कभी-कभी, आपको अपने आईटीआर फॉर्म में कुछ विवरणों को सही करना पड़ सकता है, या अगर आपने अतिरिक्त टैक्स का भुगतान किया है तो धनवापसी का दावा करना पड़ सकता है।

इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करना एक गंभीर मामला है, इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। आपको अपना रिटर्न दाखिल करते समय बहुत सावधान रहना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि वे सही समय पर और सटीक जानकारी के साथ रिटर्न फाइल किया जाए। अगर आप इनकम टैक्स से जुड़े किसी कानून का उल्लंघन करते हैं तो आपको सजा हो सकती है। इसलिए, अगर रिटर्न दाखिल करने के किसी भी पहलू के बारे में आपको कोई संदेह है, तो आपको सलाह दी जाती है कि आप आयकर अधिकारियों से संपर्क करें और उनसे मदद लें।

टैक्स रिटर्न भरना

टैक्स रिटर्न दाखिल करना एक विस्तृत और लंबी प्रक्रिया हो सकती है, जिसमें कई पहलुओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए। शुरुआत में इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर) फाइल करने के लिए आपको यह पता लगाना होगा कि आप किस कैटेगरी के करदाता हैं। इसमें मानक कर दरों के आधार पर आपकी टैक्स योग्य आय की गणना करना भी शामिल है। कुछ टैक्स कटौती भी हो सकती है जिसका लाभ आप अपनी कर देयता को कम करने के लिए उठा सकते हैं।

जब आप टैक्स रिटर्न भरने जाते हैं, तो आपको सबसे महत्वपूर्ण रूप से यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आप अपने लिए लागू सही आईटीआर फॉर्म का चयन करें तथा निर्दिष्ट समयसीमा के भीतर ही अपना रिटर्न जमा करें।

ऐसे कई तरीके हैं जिसके माध्यम से आप आईटीआर फाइल कर सकते हैं, फिजिकल रूप से या इलेक्ट्रॉनिक रूप से, और प्रत्येक फाइलिंग विकल्प की एक अलग प्रक्रिया होती है। इलेक्ट्रॉनिक फाइलिंग में भी, आपके पास ऑफलाइन और ऑनलाइन विकल्प मौजूद हैं। चाहे आप अपना आईटीआर किसी भी रूप में दाखिल करें, आपको इसे जमा करने पर इसे सत्यापित करना होगा। कभी-कभी, आपको अपने आईटीआर फॉर्म में कुछ विवरणों को सही करना पड़ सकता है, या अगर आपने अतिरिक्त टैक्स का भुगतान किया है तो धनवापसी का दावा करना पड़ सकता है।

इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करना एक गंभीर मामला है, इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। आपको अपना रिटर्न दाखिल करते समय बहुत सावधान रहना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि वे सही समय पर और सटीक जानकारी के साथ रिटर्न फाइल किया जाए। अगर आप इनकम टैक्स से जुड़े किसी कानून का उल्लंघन करते हैं तो आपको सजा हो सकती है। इसलिए, अगर रिटर्न दाखिल करने के किसी भी पहलू के बारे में आपको कोई संदेह है, तो आपको सलाह दी जाती है कि आप आयकर अधिकारियों से संपर्क करें और उनसे मदद लें।

बाहरी चेकों के लिए स्पीड क्लियरिंग

उसी शहर में या बाहर किसी बैंक शाखा में बैंक खाता रखने वाले व्यक्ति को चेक दिए जा सकते हैं। जब उसी शहर से बाहर के व्यक्ति को चेक दिया जाता है तो वह बाहरी चेक बन जाता है।

स्पीड क्लियरिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जो स्थानीय स्तर पर ऐसे चेक को क्लियर करना संभव बनाती है। एमआईसीआर और कोर बैंकिंग सिस्टम (सीबीएस) की मदद से ऐसे चेक को क्लियर करने की पूरी प्रक्रिया आसान और तेज हो गई है। इसे ‘ग्रिड-आधारित चेक ट्रंकेशन सिस्टम’ के रूप में भी जाना जाता है।

स्पीड क्लियरिंग प्रक्रिया के अस्तित्व में आने से पहले, यदि आपने अपने बैंक में एक बाहरी चेक जमा किया है, तो यह पहले आपके शहर के स्थानीय क्लियरिंग हाउस में जाता था और फिर भुगतान को प्रोसेस करने के लिए चेक को बाहरी शाखा में भेजा जाता था। अब, स्पीड क्लियरिंग के जरिए, चेक को निकासी के लिए अदाकर्ता बैंक की स्थानीय शाखा में भेजा जाता है।

इसलिए, स्पीड क्लियरिंग सिस्टम से पैसों की निकासी तेज हो जाती है।

लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट

कुछ शहरों में, किराए के समझौते के बजाय, लीव एंड लाइसेंस समझौते का उपयोग किया जाता है। इस समझौते का उपयोग करके, संपत्ति का मालिक आपको सिर्फ एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए अपने घर का उपयोग करने की अनुमति देता है।

लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट में, किराए पर मकान देने वाले व्यक्ति को लाइसेंसकर्ता कहा जाता है, और मकान को किराए पर लेने वाले व्यक्ति को लाइसेंसधारी कहा जाता है।

लीव एंड लाइसेंस समझौते में भाग लेते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें:

एक लाइसेंसधारी को ‘किरायेदार का संरक्षण’ (टीनेंट प्रोटेक्शन) उपलब्ध नहीं है।

कानून के अनुसार आप तकनीकी रूप से एक किरायेदार नहीं हैं और इसलिए आप कुछ अधिकार से वंचित हैं। इसके बजाय, आप एक लाइसेंसधारी हैं, और आपने एक विशिष्ट अवधि के लिए, इस परिसर को उपयोग करने का एक सीमित अधिकार प्राप्त किया है।

समझौते द्वारा निर्देशित

लाइसेंसकर्ता और लाइसेंसधारी दोनों के अधिकार और कर्तव्य, मुख्य रूप से समझौते द्वारा तय किए जाते हैं। यदि समझौते के किसी भी नियम का उल्लंघन किया जाता है, तो इसे अनुबंध के उल्लंघन करने या तोड़ने के रूप में माना जाता है। और इसके लिए एक नागरिक मुकदमा न्यायालय में दायर किया जा सकता है।

प्रोबेट की प्रक्रिया

कुछ मामलों में आपको, एक वसीयत के लाभार्थी के रूप में अपना अधिकार स्थापित करने के लिए, उस वसीयत के ‘प्रोबेट’ को प्राप्त करना आवश्यक है। आपको प्रोबेट के लिए, अदालत में आवेदन करना होगा। यह वसीयत के निष्पादन के लिये, उसकी वास्तविकता और वैधता का, अदालत के द्वारा दिया गया प्रमाण पत्र है। ‘प्रोबेट’ प्राप्त करने का यह मतलब नहीं है कि संपत्ति पर आपका अधिकार स्थापित हो गया। पर यह निश्चित रूप से, मृतक की संपत्ति को प्रबंधित करने के लिये निर्वाहक के अधिकार का आधिकारिक प्रमाण है। हालांकि आपके लिये, प्रोबेट प्राप्त करने की कोई अधिकारिक समय सीमा नहीं है, फिर भी आपको इसमें देरी नहीं करनी चाहिए।

चेन्नै और मुंबई में रहने वाले हिंदुओं, बौद्धों, जैनों और सिखों की वसीयतों के लिए ‘प्रोबेट’ अनिवार्य है, या उस स्थिति में प्रोबेट अनिवार्य है यदि उनकी संपत्ति चेन्नै और मुंबई में है। यह कानून केरल के बाहर के ईसाइयों और कोलकाता, चेन्नै तथा मुंबई में रहने वाले पारसियों के लिये (जिनकी मृत्यु 1962 के बाद हुई हो) के मामले में लागू है। आपको वसीयत के लिए ‘प्रोबेट’ प्राप्त करने की आवश्यकता है या नहीं, इसकी पुष्टि किसी वकील से कर लें।

अनधिकृत लेनदेन को सूचित करने के लिए ग्राहक की जिम्मेदारी

ग्राहकों को सूचित किया जाना चाहिए कि वे किसी भी अनधिकृत लेनदेन के बारे में अपने बैंक को जल्द से जल्द या यथाशीघ्र संभव अवसर पर सूचित करें। बैंक को सूचित करने में जितना अधिक समय लगेगा, बैंक/ग्राहक को हानि का जोखिम उतना ही अधिक होगा।

बैंक ग्राहक को इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग लेनदेन और ग्राहक द्वारा प्राप्त एसएमएस/प्रतिक्रिया के बारे में सूचित करते हुए भेजे गए एसएमएस के समय को नोट करेगा। यह ग्राहक की देयता की सीमा का पता लगाने के लिए किया जाता है।

 

उपभोक्ता अधिकारों के उल्‍लंघन के लिए दंड

उपभोक्ता अधिकारों के उल्‍लंघन के लिए किसी व्यक्ति या संस्था को दंडित करने की शक्ति केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण के पास होती है। यह दंड विभिन्न तरीकों से तय किया जाता है जैसे जुर्माना, दोषपूर्ण सामान वापस लेना, ऐसी वस्तुओं/सेवाओं की प्रतिपूर्ति, या अनुचित व्यापार प्रथाओं को बंद करना।

झूठे या भ्रामक विज्ञापनों के लिए दंड

निर्माता, विज्ञापनदाता या समर्थनकर्ता झूठे या भ्रामक विज्ञापनों के लिए उत्तरदायी होते हैं। हालांकि, इन मामलों में पैरोकार का दायित्व तभी बनता है जब उन्होंने इस तरह के विज्ञापन का समर्थन करने से पहले अपना शोध न किया हो। सज़ा इस प्रकार तय होती है-

• पहले अपराध के लिए – जुर्माना जो रु.10 लाख तक और 2 साल तक की जेल हो सकती है।

• हर दोहराये जाने वाले अपराध के लिए-जुर्माना जो रु.50 लाख तक हो सकता है और 5 साल तक की जेल हो सकती है।

• केंद्रीय प्राधिकरण उन्हें 1 साल तक के लिए किसी भी उत्पाद का विज्ञापन करने से भी रोक सकता है। बाद के अपराधों के मामले में, इसे 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है।

• केंद्रीय प्राधिकरण के इन निर्देशों का पालन न किये जाने की सूरत में 6 महीने तक की जेल या 20 लाख.रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।

मिलावटी उत्पादों की बिक्री के लिए दंड 

मिलावटी खाद्य-पदार्थों की बिक्री, आयात, भंडारण या वितरण में शामिल निर्माता या खुदरा विक्रेता की कोई भी व्‍यापार दंडनीय है। ऐसे में निम्नलिखित दंड लागू होते हैं-

• जब उपभोक्ता को कोई हानि न पहुंचे, जैसे किसी तरह का दर्द या मौत, 6 महीने तक की जेल और 1 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।

• जब चोट उपभोक्ता को गंभीर चोट न लगी हो, तो 1 साल तक की जेल और 3 लाख रुपये तक जुर्माने का दंड दिया जा सकता है।

• उपभोक्ता को गंभीर चोट लगने के मामले में 7 साल तक की जेल और 5 लाख रुपये तक के जुर्माने की सज़ा मिल सकती है।

• मिलावट के कारण उपभोक्ता की मृत्यु हो जाने पर तो कम से कम 7 साल की जेल और यहां तक कि आजीवन कारावास, तथा कम से कम 10 लाख रुपये तक के जुर्माना का दंड दिया जा सकता है।

इसके अतिरिक्त, पहला अपराध होने पर उपभोक्ता प्राधिकरण, निर्माता के लाइसेंस को 2 साल तक के लिए निलंबित कर सकता है। अपराध की पुनरावृत्ति पर ऐसे निर्माता के लाइसेंस को पूरी तरह से रद्द भी किया सकता है।

नकली माल की बिक्री के लिए दंड 

नकली सामान वे होते हैं जिन पर झूठा दावा किया जाता है कि वे असली हैं या फिर वे असल, मूल सामान की अनुकृति होते हैं। ये अक्सर निम्न गुणवत्ता वाले होते हैं और मूल सामान के कानूनी मालिकों के ट्रेडमार्क व कॉपीराइट का उल्‍लंघन करते हैं। एक महत्वपूर्ण उदाहरण स्थानीय बाज़ारों में मिलने वाली दवाओं या सस्ते मेकअप उत्पादों का है। इन सामानों की बिक्री, आयात, भंडारण या वितरण में शामिल निर्माता का कोई भी कृत्‍य निम्नानुसार दंडनीय है-

क. यदि उपभोक्ता को गंभीर नुकसान नहीं होता है, तो 1 साल तक की जेल और 3 लाख रुपये तक का जुर्माना लग सकता है।

ख. जब इस तरह के नकली सामान से उपभोक्ता को गंभीर नुकसान होता है, तो निर्माता को 7 साल तक की जेल और 5 लाख रुपये तक के जुर्माने की सज़ा मिल सकती है।

ग. जब खरीदे गये उत्‍पाद से उपभोक्ता की मृत्यु हो जाती है, तो न्यूनतम 7 वर्ष की जेल से लेकर आजीवन कारावास तक और न्यूनतम 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।