ध्वनि प्रदूषण क्या है?

शोरगुल रोजमर्रा की जिंदगी में सामान्य है, लेकिन जब यह एक निश्चित सीमा से ऊपर चला जाता है, तो इसे ध्वनि प्रदूषण के साथ-साथ सार्वजनिक परेशानी के रूप में भी देखा जाता है। उंचे स्तर का शोरगुल मनुष्य, जीव-जन्तुओं, पेड़-पौधों, और पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकता है। ध्वनि प्रदूषण के सामान्य स्रोतों में उद्योग-धंधे, निर्माण कार्य, जनरेटर सेट आदि शामिल हैं। ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 का कानून भारत में ध्वनि प्रदूषण को नियमित और नियंत्रित करता है।

बिना शोरगुल के शांति से रहने का अधिकार

भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21 के तहत सभी को अपने घर में शांति, आराम और चैन से रहने का अधिकार है, और शोरगुल/हल्ला-गुल्ला से बचने और उसको रोकने का अधिकार है। कोई भी यहां तक कि अपने घर में भी शोरगुल पैदा करने के अधिकार का दावा नहीं कर सकता है जिसके कारण अड़ोस-पड़ोस या अन्य लोगों को परेशानी होती हो। इसलिए किसी भी प्रकार का शोर/आवाज़ जो किसी व्यक्ति के जीवन की सामान्य सुख-शांति में बाधा डालता, उसे भी उपद्रव माना जाता है।

शोर का अर्थ

‘शोर’ शब्द की चर्चा किसी भी कानून में नहीं की गई है, लेकिन भारत में शोर को पर्यावरणीय प्रदूषक माना गया है और इसे पर्यावरण प्रदूषण के मुख्य कारणों में से एक माना जाता है।

नॉइज़ (यानि शोर) लैटिन शब्द ‘NAUSEA’ से लिया गया है। कोर्ट ने शोर को ‘अवांछित ध्वनि के रूप में परिभाषित किया है, जो स्वास्थ्य और संचार के लिए जोखिम भरा है, जो सुनाई पड़ने वाली आवाज़ के रूप में, स्वास्थ्य पर होने प्रतिकूल असर की परवाह किये बिना हमारे पर्यावरण में डंप किया जाता है। ‘ उदाहरण के लिए, हॉर्न से होने वाली कर्कश ध्वनि अवांछित शोर का कारण बनता है लेकिन जो ध्वनि सुनने में अच्छा लगे, वह संगीत है, उसे शोर नहीं कहा जाता है।

ध्वनि प्रदूषण के कारण

शोर के मापने की इकाई को डेसिबल कहा जाता है। आप जिस क्षेत्र में रहते हैं उसके आधार पर आपको ध्वनि सीमा का पालन करना होगा। शोर (नॉइज़) को मापने के लिए वैज्ञानिक उपकरणों (जैसे ध्वनि मीटर) की आवश्यकता होती है, क्योंकि आपके पास हमेशा यह यंत्र उपलब्ध नहीं होता तो हर समय आपको यह जानकारी नहीं होती है कि आप किसी विशेष क्षेत्र के लिए निर्धारित ध्वनि सीमा को पार कर रहे हैं या नहीं। ऐसे मामलों में, आपको:

• यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आप जो भी करते हैं या आप जिस किसी भी उपकरण का इस्तेमाल करते हैं, वह शोरगुल और दूसरों के लिए परेशानी का कारण न बने। उदाहरण के लिए, यदि आप किसी पार्टी के दौरान गाना बजा रहे हैं, तो रात के समय जब लोग सो रहे हों, तब आवाज़ कम रखने की कोशिश करें।

• अपने पड़ोसियों या अपने आस-पास के लोगों द्वारा पुलिस में शिकायत दर्ज कराने की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए। अगर वे कहते हैं कि आपके शोरगुल से उन्हें परेशानी हो रही है, तो शोर को कम करने का प्रयास करें।

कृपया ध्यान रखें कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपने अनजाने में या जानबूझकर शोर किया है; केवल यह मायने रखता है कि क्या आपने बहुत अधिक शोर मचाया है।

ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ शिकायत

यदि किसी शोर से आपको झुंझलाहट, अशांति या कोई क्षति होती है, तो आप पुलिस या अपने राज्य के ‘प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ में शिकायत दर्ज करा सकते हैं। अगर आपको लगता है कि शोर का स्तर आपको परेशान कर रहा है या यह रात के 10:00 बजे से सुबह 6:00 बजे के बीच होता है, तो आप इसकी शिकायत भी कर सकते हैं।

ध्वनि प्रदूषण के लिए सजा

ध्वनि प्रदूषण करना कानून के तहत एक दंडनीय अपराध है, और जिम्मेदार व्यक्ति को निम्नलिखित तरीके से दंडित किया जा सकता है:

सार्वजनिक परेशानी के कारण

जब आपके द्वारा किया गया कोई शोर, जनता को हानि पहुंचाता है, या उसके लिए खतरा या झुंझलाहट का कारण बनता है, तो इस प्रकार से शोर करना सार्वजनिक उपद्रव माना जाता है। उदाहरण के लिए यदि आपका पड़ोसी आधी रात को बहुत जोर से साउंड सिस्टम बजाता है, तो इसे सार्वजनिक उपद्रव माना जायेगा।

इस तरह के उपद्रव के लिए सजा के तौर पर 200 रुपये तक का जुर्माना है। अगर आप कोर्ट द्वारा शोर को रोकने के निर्देश के बाद भी शोरगुल करना जारी रखते हैं तो आपको 6 महीने तक की जेल और जुर्माने की सजा हो सकती है।

पर्यावरण प्रदूषण

चूंकि ध्वनि प्रदूषण पर्यावरण और परिवेश को काफी नुकसान पहुंचाता है, इसलिए इसे कानून के तहत गंभीरता से लिया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी भवन के निर्माण से होने वाले शोर के कारण आपके लिए सामान्य जीवन व्यतीत करना मुश्किल हो रहा है, तो यह ध्वनि प्रदूषण का एक रूप है। इस अपराध के लिए पांच साल तक की जेल या 1 लाख रुपये तक का जुर्माना, या फिर दोनों की सजा हो सकती है।

इसके बावजूद भी यदि ध्वनि प्रदूषण जारी रहता है, तो आपको हर दिन 5,000 रुपये का अतिरिक्त जुर्माना भी लग सकता है। अगर शोर बंद करने के आदेश के बावजूद भी एक साल से अधिक समय तक शोर जारी रहता है, तो आपको 7 साल तक की जेल की सजा हो सकती है।

आपको ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ शिकायत करने का अधिकार है और ऐसी शिकायत मिलने पर अधिकारी (ऑथोरिटी) जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे।

ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव

‘शोर’ हमारे काम, आराम, नींद और संचार या बातचीत को बाधित कर सकता है। यह हमारी सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंचा सकता है और अन्य मनोवैज्ञानिक, और संभवतः रोग संबंधी प्रक्रिया को जन्म दे सकता है। ध्वनि प्रदूषण के स्वास्थ्य पर कुछ बुरे प्रभाव नीचे दिए गए हैं:

बहरापन/ सुनाई न देना

बहरापन कुछ समय के लिए या हमेशा के लिए हो सकता है।

• Noise-Induced Temporary Threshold Shift (NITTS)-एन.आई.टी.टी.एस एक अस्थायी प्रकार का बहरापन है, जो तब होता है जब आप कुछ देर तक ऐसे स्थान पर रहते हैं जहां बहुत शोर हो रहा है।

• Noise-Induced Permanent Threshold Shift (NIPTS) एन.आई.पी.टी.एस एक स्थायी बहरापन है जो अपरिवर्तनीय हानि है। यह लंबे समय तक अत्यधिक शोरगुल वाले स्थान पर रहने के कारण होता है। एन.आई.पी.टी.एस.(NIPTS) आमतौर पर हाई फ्रीक्वेंसी रेडियो तरंगो के कारण होता है, सामान्य तौर बेहद खतरनाक होता है, यह लगभग 4000 हर्ट्ज़ (Hz) वाले तरंगों से होता है।

ये दोनों प्रकार के नुकसान कई बार प्रेसबायक्यूसिस के साथ हो सकते हैं। प्रेसबायक्यूसिस एक स्थायी बहरापन है जो हमारी उम्र बढ़ने की प्रक्रिया के साथ होती है।

संवाद (बातचीत) में बाधक

शोरगुल हमारे ‘बातचीत’ में भी हस्तक्षेप करता है। अगर शोरगुल और बातचीत दोनों एक साथ हों, तो दोनों में से कोई एक ध्वनि हमें सुनाई नहीं देती है। कई महत्वपूर्ण परिस्थितियों में शोरगुल बातचीत में बाधा डाल सकती है:

• व्यावसायिक स्थानों पर जहाँ कामगारों को चेतावनी के संकेत या चिल्लाने की आवाज़ न सुन पाने के कारण चोट लग सकती है।

• कार्यालयों, स्कूलों और घरों में जहाँ शोरगुल झुंझलाहट/परेशानी का एक प्रमुख कारण है।

नींद में खलल पड़ना

शोरगुल नींद में दखल दे सकता है और सो रहे लोगों को जगा सकता है, खासकर नवजात शिशुओं, वृद्ध आदि लोगों को।

झुंझलाहट

शोरगुल से होने वाली झुंझलाहट को उससे उत्पन्न होने वाली नाराजगी की भावना के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। शोर से होने वाली झुंझलाहट शोर के शुरुआत होने के कुछ समय के बाद भी हो सकती है। उदाहरण के लिए, अगर कोई लाउडस्पीकर आपके घर के पास 1 महीने से भी अधिक समय तक बजता है, तो एक समय के बाद आपको झुंझलाहट हो सकती है। हालांकि, हरेक व्यक्ति को शोर से होने वाली झुंझलाहट अलग-अलग कारणों पर निर्भर होता है, जैसे शोर के प्रति संवेदनशीलता या उसे सहन करने की क्षमता, आदि। उदाहरण के लिए, आप अपने घर के पास एक स्पीकर से आने वाले शोर या आवाज़ को तो सहन कर सकते हैं, लेकिन आपके बुजुर्ग दादा-दादी उसे शायद सहन नहीं कर सकते हैं।

काम-काज पर असर

शोर किसी व्यक्ति के ध्यानपूर्वक कार्य करने की क्षमता (अलर्टनेश) में बाधक हो सकता है और उसकी कार्य-क्षमता को बढ़ा या घटा सकता है। उदाहरण के लिए, चौकन्ना होकर कार्य करना, सूचना-संग्रह और विश्लेषण जैसी मानसिक गतिविधियाँ शोरगुल से प्रभावित हो सकती हैं।

शारीरिक क्रियाओं पर पड़ने वाला प्रभाव

‘रक्त वाहिकाओं’ पर शोर का अच्छा-खासा प्रभाव पड़ता है, खासकर छोटी वाली वाहिकाएं जिसे प्रिकैपिलियरी वेसेल्स कहते हैं। कुल मिलाकर, शोर इन रक्त वाहिकाओं को संकरा बना देता है। शोर के कारण पैर की उंगलियों, हाथ की उंगलियों, त्वचा और पेट के अंगों में जाने वाली रक्त वाहिकाएं (पेरिफेरल बल्ड वेसेल्स) सिकुड़ जाती हैं, जिससे शरीर के इन अंगों में सामान्य रूप से आपूर्ति की जाने वाली खून की मात्रा कम हो जाती है। रक्त वाहिकाएं जो मस्तिष्क को खून पहुँचाती है वह शोर के कारण फैलकर चौड़ी हो जाती हैं। यही कारण है कि लगातार तेज आवाज सुनने से सिरदर्द होता है। इन सबसे होने वाली कुछ स्वास्थ्य समस्याएं इस प्रकार हैं:

• गल्वानिक स्किन रेस्पोंस (GSR)-यह पसीने की ग्रंथियों से उत्पन्न होने वाला एक प्रकार का शारीरिक परिवर्तन है जो भावनात्मक स्थिति की तीव्रता को दर्शाता है। यह भावनात्मक स्थिति ध्वनि प्रदूषण के कारण भी संभव है।

• अल्सर से संबंधित गतिविधि में वृद्धि। लंबे समय तक चलने वाला शोर पेट में अल्सर की संभावना को बढ़ा सकता है, क्योंकि ध्वनि प्रदूषण गैस्ट्रिक जूस के प्रवाह को कम कर सकता है और पेट की अम्लता (एसिडिटी) को बदल सकता है।

• आंतों की गतिशीलता (मूवमेंट) में बदलाव आना जो कि पाचन तंत्र और उसके भीतर के भोज्य पदार्थों के चाल में कमी।

• कंकाल पेशी में तनाव का बदल जाना। दूसरे शब्दों में, मांसपेशियों के संकुचन/सिकुड़न से होने वाले दबाव में परिवर्तन होता है।

• ऊँची आवाज़ से संबंधित व्यक्तिपरक प्रतिक्रिया और चिड़चिड़ापन की धारणा

• सुगर, कोलेस्ट्रॉल और एड्रिनेलिन का बढ़ जाना

• हृदय गति में परिवर्तन होना

• रक्तचाप (बी.पी.) का बढ़ जाना

• वाहिकासंकीर्णन/रक्त वाहिकाओं में सिकुड़न। दूसरे शब्दों में, रक्त वाहिकाओं का सिकुड़ जाना जिससे शरीर का रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) बढ़ जाता है। शोरगुल न केवल जागते समय सेहत के लिए हानिकारक होता है, बल्कि सोते समय या अचेतन स्थिति में भी शरीर पर इसका प्रभाव पड़ सकता है।

तनाव

शोर कई तरह से तनाव पैदा कर सकता है, जिसमें सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा, पाचन विकार, और मनोवैज्ञानिक विकार शामिल हैं। उदाहरण के लिए, लगातार तेज आवाज़ या शोरगुल में रहने से आपको थकान हो सकता है।

अजन्मे शिशुओं और बच्चों पर प्रभाव

पेट में पलने वाला बच्चा शोरगुल से पूरी तरह सुरक्षित नहीं होता है। शोर से बच्चे के विकास को जोखिम हो सकता है, जैसे कि जन्म के समय बच्चे का वजन कम होना या ज्यादा होना। शोरगुल वयस्कों या युवाओं को उतना प्रभावित नहीं करता है, लेकिन बच्चों पर इसका खासा प्रभाव पर सकता है, क्योंकि बच्चे अधिक संवेदनशील होते हैं। ध्वनि प्रदूषण के कारण बच्चों की पढ़ने की क्षमता, बोलने की क्षमता, भाषा और भाषा संबंधी कौशल प्रभावित हो सकता है।

ध्वनि प्रदूषण के स्रोत

ध्वनि प्रदूषण काफी हद तक औद्योगीकरण, शहरीकरण और आधुनिक सभ्यता की उपज है। ध्वनि प्रदूषण के दो स्रोत हैं-पहला: औद्योगिक और दूसरा: गैर-औद्योगिक।

  • औद्योगिक स्रोत में विभिन्न उद्योगों से होने वाला शोर और बहुत तेज़ गति एवं तेज़ आवाज़ से काम करने वाली बड़ी मशीनें शामिल हैं।
  •  गैर-औद्योगिक स्रोत में परिवहन, विभिन्न प्रकार के वाहन, ट्रैफिक से होने वाली आवाज़ शामिल है, पास-पड़ोस में होने वाली विभिन्न प्रकार के ध्वनि प्रदूषकों से होने वाले शोर को भी प्राकृतिक और मानव निर्मित श्रेणियों में बांटा जा सकता है।

ध्वनि प्रदूषण के सबसे प्रमुख स्रोत हैं:

सड़क यातायात से होने वाला शोर

बड़े ट्रकों की मोटरों और धुंए निकलने वाली पाइप्स से होने वाली आवाज़ ध्वनि-प्रदूषण के सामान्य स्रोत हैं। ध्वनि-प्रदूषण का एक कारण सड़क पर ट्रकों, बसों और प्राइवेट ऑटो के टायर घिसने से होने वाली आवाज़ भी है। शहरों में, यातायात (ट्रैफिक) से होने वाले शोर, ध्वनि प्रदूषण के मुख्य स्रोत हैं, ऑटो, छोटे ट्रक, बस और मोटरसाइकिल की इंजन और एग्ज़हॉस्ट सिस्टम भी ध्वनि प्रदूषण के मुख्य स्रोत है। वाहनों/गाड़ियों से निकलने वाले शोर के बारे में और अधिक जानने के लिए यहाँ पढ़ें।

विमानों से निकलने वाला शोर

विमान से होने वाली अवाज ध्वनि प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत हैं, और हवाई अड्डों पर विमान की आवाजाही और उस क्षेत्र में जहां विमान को रखा जाता है, यानी औद्योगिक क्षेत्र या वाणिज्यिक क्षेत्र के आधार पर ध्वनि की सीमा (नॉइज़ लिमिट) को कानून द्वारा निर्धारित किया जाता है।

रेलमार्ग या ट्रेनों से होने वाला शोर

लोकोमोटिव इंजन,उसके हॉर्न एवं सीटी की आवाज़, और रेल यार्ड में स्विचिंग और शंटिंग संचालन से होने वाली आवाज़ ध्वनि प्रदूषण के स्रोत हैं। उदाहरण के लिए, रेल कार रिटार्डस एक उपकरण (यंत्र) है, जो मालगाड़ी या रेलवे कोच की गति को कम करता है, इस यंत्र से हाई फ्रीक्वेंसी तरंगें निकलती हैं, जिसके कारण 100 फीट की दूरी पर 120 डीबी (dB) तक ध्वनि उत्पन्न हो सकता है।

निर्माण-कार्य से होने वाला शोर

हायीवे, शहर की सड़कों और इमारतों के निर्माण-कार्य से होने वाला शोर शहरों में ध्वनि और वायु प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है। निर्माण-कार्य होने वाले शोर के स्रोतों में शामिल हैं:

• वायु-दाब से चलने वाले हथौड़े (एयर हैमर)

• एयर कंप्रेसर

• बुलडोजर

• लोडर और

• डंपर ट्रक

औद्योगिक कार्यों से होने वाला शोर

शोरगुल वाले उत्पादन संयंत्रों/फैक्ट्री के बाहर लगे पंखे, मोटर और कम्प्रेसर के कारण उसके आसपास रहने वाले लोग परेशान हो सकते हैं। मशीनों और फैक्ट्रियों से निकलने वाले शोर का अच्छा खासा प्रभाव औद्योगिक श्रमिकों/कामगारों पर पड़ता है, जिसके कारण उनमें सुनाई न पड़ने की बीमारी (बहरापन) हो जाती है, हलांकि यह दुर्भाग्यपूर्ण है पर यह एक आम बात है।

इमारतों/बिल्डिंग में होने वाले शोर

बिल्डिंग के भीतर प्लम्बर के कामों से, बॉयलर, जनरेटर, एयर कंडीशनर और पंखे से होने वाले शोर सुनाई पड़ सकता है, और इससे चिड़चिड़ाहट भी हो सकता है। पड़ोस में गलत ढंग से दीवारें और छत अलगाने/तोड़ने की आवाज़ भी एम्पलीफायर की तरह तेज़ हो सकती है, पैर पटक कर चलने की आवाज़ और शोरगुल वाली गतिविधियों से भी परेशानी हो सकती है। बहार से आने वाली आपातकालीन वाहनों की आवाज़, ट्रैफिक, कबाड़खाना, और शहर के अन्य शोर भी शहरी लोगों के लिए एक समस्या हो सकती है, खासकर जब खिड़कियां खुली हों।

घरों में उपयोग होने वाले चीजों से शोर, उपभोक्ता उत्पादों से शोर

कुछ घरेलू उपकरण (वस्तुएं), जैसे कि वैक्यूम क्लीनर और रसोई में उपयोग होने वाली कुछ मशीन जिससे शोर होता है, वे भी ध्वनि प्रदूषण के सामान्य स्रोत हैं, हालांकि हर दिन होने वाले शोर के स्तर में उनका योगदान आमतौर पर बहुत ज्यादा नहीं होता है।

आतिशबाजी/पटाखे

विशेष अवसरों जैसे दशहरा, दिवाली, शादी-विवाह, आदि के अवसर पर खुशी मनाने के लिए आतिशबाजी की जाती है।
लेकिन पटाखे फोड़ना या जलाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है क्योंकि यह वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण दोनों के लिए जिम्मेदार है। इससे होने वाली आवाज़ खतरनाक होती है, और यह कभी-कभी बहरापन का कारण बन भी हो सकता है।

ध्वनि वर्जित क्षेत्र (साइलेंट जोन)

अस्पतालों और शैक्षणिक संस्थानों के आसपास के 100 मीटर के भीतर का क्षेत्र, और अदालतों के प्रांगण साइलेंट जोन में आते हैं। साइलेंट जोन में आप निम्नलिखित कार्य नहीं कर सकते:

• किसी भी प्रकार का संगीत (या गाना) बजाना

• किसी माईक या लाउडस्पीकर का प्रयोग करना

• किसी प्रकार का साउंड एम्पलीफायर बजाना

• कोई ड्रम या टॉम-टॉम बजाना

• म्युज़िकल या किसी प्रकार का प्रेशर हॉर्न बजाना, या तुरही बजाना या ढिंढोरा पीटना या

• किसी भी प्रकार का वाद्य यंत्र बजाना, या

• भीड़ को आकर्षित करने के लिए किसी भी तरह का नकल (या मिमिकरी) करना, गाना/संगीत या अन्य किसी प्रकार का प्रदर्शन करना।

रात में शोर करना

साइलेंट ज़ोन और आवासीय क्षेत्रों में आप रात के समय (रात्रि 10.00 बजे से सुबह 6.00 बजे के बीच) ध्वनि प्रदूषण या शोरगुल नहीं कर सकते:निम्न चीजों की मनाही है

• आपात स्थिति को छोड़कर हॉर्न का उपयोग मना है।

• बहुत अधिक आवाज करने वाला पटाखे फोड़ना मना है

• निर्माण-कार्य में इस्तेमाल होने वाली मशीन/उपकरण चलाना जिससे बहुत आवाज़ होती हो

अगर आप इनमें से किसी का भी उल्लंघन होते हुए देखते हैं तो आप पुलिस एवं इससे संबंधित अधिकारी के पास शिकायत दर्ज करा सकते हैं, और ऐसी शिकायत दर्ज होने पर संबंधित अधिकारी शोर को रोकने के लिए कार्रवाई करेंगे।

ध्वनि प्रदूषण करने पर सजा

यदि कोई भी व्यक्ति साइलेंट जोन में ध्वनि प्रदूषण करता है, तो उसे जुर्माना लगाया जाएगा और जेल की सजा भी हो सकती है।

विभिन्न क्षेत्रों में ध्वनि की सीमा

प्रत्येक राज्य सरकारें, विभिन्न स्थानों को निम्नलिखित क्षेत्रों में वर्गीकृत करती है, जहां भिन्न-भिन्न ध्वनि सीमाओं का पालन किया जाना है:

• औद्योगिक

• व्यावसायिक

• आवासीय

• साइलेंट ज़ोन (ध्वनि वर्जित क्षेत्र)

विकास प्राधिकरणों, स्थानीय निकायों और अन्य प्राधिकरणों को विकास कार्यों की योजना बनाते समय या नगर, राज्य से संबंधित कार्यों को करते समय शोर के खतरे से बचने और ध्वनि मानकों को बनाए रखने की जिम्मेदारी होती है। उदाहरण के लिए, सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में, एक बर्तन निर्माता के कारोबारी से शोर को कम करने और इसे ध्वनि सीमा के भीतर लाने के लिए जवाब माँगा, क्योंकि इससे निकलने वाली आवाज़ आस-पास के शिक्षकों, छात्रों और पड़ोसियों को परेशान कर रही थी।

भारत में ध्वनि सीमा से संबंधित मानक

क्षेत्र या ज़ोन के आधार पर, ध्वनि की सीमाएं (मानक) तय होता है, जिसे बनाए रखने की आवश्यकता होती है। अगर ध्वनि का स्तर इस तय सीमा (मानक) से ऊपर चला जाता है, तो यह ध्वनि प्रदूषण माना जाएगा।

 

क्षेत्र या ज़ोन dB(A) Leq* में तय सीमा (दिन में सुबह 6.00 बजे से रात 10.00 बजे तक का समय) dB(A) Leq* में तय सीमा (रात में 10.00 बजे से सुबह 6.00 बजे तक का समय)
औद्योगिक क्षेत्र 75 70
व्यावसायिक क्षेत्र 65 55
आवासीय क्षेत्र 55 45
साइलेंस जोन/मौन क्षेत्र 50 40

अगर आप उपर की तालिका में दी गई इन सीमाओं का उल्लंघन करते हैं, तो आपको कानून के तहत जुर्माना और जेल की सजा होगी।

लाउडस्पीकर और पब्लिक एड्रेस सिस्टम

लाउडस्पीकर और पब्लिक एड्रेस सिस्टम भारत में ध्वनि प्रदूषण का एक सामान्य स्रोत है, और इसका उपयोग केवल स्थानीय अधिकारियों से लिखित अनुमति मिलने के बाद ही किया जा सकता है। यदि लाउडस्पीकर और एम्पलीफायर या अन्य उपकरण या गैजेट से ध्वनि प्रदूषण हो रहा है, तो सरकारी अधिकारी इन सब साजो-सामान (यंत्रों) को जब्त कर सकते हैं। जहां लाउडस्पीकर या पब्लिक एड्रेस सिस्टम या किसी अन्य ध्वनि यंत्र का इस्तेमाल किया जा रहा हो, वहाँ ध्वनि का स्तर 30 डीबीए से अधिक नहीं होना चाहिए:

• उस क्षेत्र के आसपास का शोर/ध्वनि मानक 10 डीबी (ए)/10 dB(A) से ऊपर, या

• 75 डीबी (ए)/ 10 dB(A) हो।

अधिकांश ध्वनि का स्तर डीबी(ए)/dB(A) में दिए जाते हैं, जो अलग-अलग आवाजों की फ्रीक्वेंसी के प्रति किसी व्यक्ति के कान की प्रतिक्रिया या संवेदनशीलता को डेसिबल के रूप में दर्शाते हैं।

रात के समय

रात के 10 बजे से सुबह 6 बजे तक किसी खुले स्थान पर लाउडस्पीकर, पब्लिक एड्रेस सिस्टम, साउंड प्रोड्यूसिंग इंस्ट्रूमेंट (ऐसे यंत्र जिससे तेज आवाज़ निकलती हो), या एम्पलीफायर का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। कानून के तहत बंद परिसरों जैसे कि सभागारों, सम्मेलन कक्षों, सामुदायिक हॉलों, बैंक्वेट हॉलों में इन सब यंत्रों का उपयोग हो सकता है, या फिर सार्वजनिक आपातकाल की स्थिति में रात के 10 बजे से सुबह 6 बजे के बीच में इन सब यंत्रों का इस्तेमाल किया जा सकता है।

धार्मिक त्योहार

राज्य सरकार सांस्कृतिक या धार्मिक त्योहारों के अवसर पर रात के समय में (रात के 10.00 बजे से मध्यरात्रि 12.00 बजे के बीच) लाउडस्पीकर बजाने, या सार्वजनिक संबोधन करने, आदि की अनुमति दे सकती है। राज्य सरकार ऐसे दिनों की घोषणा कर सकती है, जिन दिनों में ऐसे उपकरणों को बजाना या इस्तेमाल करना ध्वनि प्रदूषण नहीं माना जाएगा। हालांकि, सरकार एक साल में अधिकतम 15 दिन ही ऐसा करने की अनुमति दे सकती है। उदाहरण के लिए, सरकार दिवाली, ओणम, पोंगल, आदि त्योहारों के दौरान लाउडस्पीकर बजाने की अनुमति दे सकती है।

निजी साउंड सिस्टम

यदि आपके पास खुद का साउंड सिस्टम है या फिर ऐसे यंत्र हैं जिससे तेज ध्वनि निकलती है, तो आप उसकी ध्वनि सीमा को 5 डीबी (ए) से अधिक नहीं कर सकते। अगर लाउडस्पीकर या किसी अन्य ध्वनि उत्पन्न करने वाले यंत्र के कारण आपको परेशानी हो रही है, तो आप ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए शिकायत दर्ज करा सकते हैं और ध्वनि प्रदूषण करने वाले ऐसे व्यक्ति को सजा होगी।

वाहनों का शोर

भारत में वाहन या गाड़ी ध्वनि प्रदूषण का एक सामान्य स्रोत है। अगर आप अपने वाहन के हॉर्न का गलत इस्तेमाल करते हैं तो आप पर जुर्माना लगाया जा सकता है, निम्न परिस्थितियों में हॉर्न बजाना मना है, जैसे:

• साइलेंट जोन में हॉर्न बजाना मना है

• बिना किसी वजह से या लगातार ऐसे तरीके से हॉर्न बजाना मना है, जो आपकी या दूसरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जरुरत से अधिक हो या उसकी आवाज की तीव्रता अत्यधिक हो।

• किसी आपात स्थिति को छोड़कर आवासीय इलाकों में रात के समय ( रात्रि 10 बजे से सुबह 6 बजे तक) हॉर्न बजाना मना है।

• अलग-अलग टोन में हॉर्न बजाना मना है, जिससे बेचैन कर देने वाली कर्कश, तीखी, तेज या खतरनाक आवाज निकलती हो।

यहां तक कि गाड़ियों की फैक्ट्री में भी ध्वनि (हथर्न) की सीमा तय होती है जिसका पालन करना पड़ता है नहीं तो आपको जुर्माना और जेल की सजा हो सकती है।

साइलेंसर

ट्रैक्टरों सहित प्रत्येक मोटर वाहनों में एक साइलेंसर लगाया जाना अनिवार्य है, जो एक एक्सपेंशन चैम्बर के माध्यम से, जहां तक ​​संभव हो, इंजन के एग्जॉस्ट गैस से निकलने वाले शोर को कम कर देता है।

हवाई अड्डा

ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए हवाई अड्डों पर भी ध्वनि को भी नियंत्रित किया जाता है। ध्वनि मानक केवल उन व्यस्त हवाई अड्डों पर लागू होते हैं, जहाँ से हर साल 50,000 से अधिक विमानों की आवाजाही होती है:

• सिविल हवाई अड्डे जहाँ सालाना 15,000 से कम विमानों की आवाजाही होती है वहाँ ये मानक लागू नहीं होते।

• रक्षा संबंधी विमान, विमान के लैंडिंग और टेक ऑफ की आवाज़, विमान के इंजन, हेलीपैड वाले स्थान पर ये मानक लागू नहीं होते।

नीचे दिए गए ध्वनि मानकों का अगर हवाईअड्डे पर पालन नहीं होता है, तो उनके खिलाफ अधिकारी कार्रवाई कर सकते हैं।

एयरपोर्ट टाइप ध्वनि प्रदूषण की तय सीमा डीबी(ए) में, लीक* (सुबह 6.00 बजे से रात 10.00 बजे तक) ध्वनि प्रदूषण की तय सीमा डीबी(ए) में, लीक* (रात 10:00 बजे से सुबह 6:00 बजे तक)
औद्योगिक क्षेत्र 70 65
व्यावसायिक क्षेत्र 65 60

 

ध्वनि-प्रदूषण की शिकायत दर्ज कराना

अगर कोई शोर हो रहा है जिससे आपको झुंझलाहट होती है, या बेचैनी या कोई चोट लगती है, तो आप नीचे दिए गए अधिकारियों के पास शिकायत दर्ज करा सकते हैं। अगर आपको पता है कि शोर का स्तर किसी भी क्षेत्र में तय सीमा यानि कि, ध्वनि-मानक 10 डीबी (ए)/10 dB(A) से अधिक हो गया है या फिर रात के 10:00 बजे से सुबह 6:00 बजे के बीच ध्वनि प्रदूषण होता है, तो भी आप इसके खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकते हैं।

पुलिस

अगर आप ध्वनि प्रदूषण को रोकना चाहते हैं तो आप नजदीकी पुलिस स्टेशन में शिकायत कर सकते हैं, 100 नंबर पर कॉल कर सकते हैं या अपने राज्य के पुलिस शिकायत पोर्टल पर ऑनलाइन शिकायत दर्ज करा सकते हैं। पुलिस थाने का प्रभारी/अधिकारी, पुलिस आयुक्त/कमिश्नर या कोई भी अधिकारी (जो पुलिस उपाधीक्षक/डिप्टी एस.पी. के स्तर का हो) निम्न तरीकों से उस शिकायत पर कार्रवाई कर सकते हैं:

• ध्वनि प्रदूषण करने वाले सजो-सामान को जब्त कर सकते है

• माइक्रोफ़ोन या लाउडस्पीकर, आदि के उपयोग को बंद करवा सकते हैं

• प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में शिकायत दर्ज कराकर ध्वनि प्रदूषण को बंद के लिए लिखित आदेश ला सकते हैं।

केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

केंद्रीय पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सी.पी.सी.बी.) पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के प्रावधानों को लागू कराने के लिए पर्यावरण और वन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएं प्रदान करता है। इसका मुख्य काम नदियों, नालों, कुओं आदि में पानी की सफाई को सुनिश्चित करना और जल प्रदूषण को रोकना है। बोर्ड का यह भी कर्तव्य है कि वह वायु और ध्वनि प्रदूषण में कमी लाकर हवा की गुणवत्ता में सुधार करें। CPCB(सी.पी.सी.बी.) का मुख्य कार्यालय नई दिल्ली में स्थित है और विभिन्न राज्यों में उनके कई क्षेत्रीय कार्यालय भी हैं।

भले ही सी.पी.सी.बी. के कार्यालय कुछ ही राज्यों में हैं, लेकिन हर राज्य में एक कार्यालय ऐसा भी है जिसे राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एस.पी.सी.बी.) के नाम से जाना जाता है। आप शिकायत दर्ज कराने के लिए एस.पी.सी.बी. के इन कार्यालयों में भी संपर्क कर सकते हैं। इन अधिकारियों के पास ध्वनि प्रदूषण को रोकने, प्रतिबंधित करने, नियंत्रित करने या विनियमित करने के लिए लिखित आदेश जारी करने का प्राधिकार (पॉवर) होता है:निम्न प्रकार के यंत्रों पर रोक लग सकता है,

• मुँह से बजने वाला कोई भी संगीत या वाद्य संगीत

• विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्र जिससे तय सीमा से अधिक ध्वनि प्रदूषण या आवाज होता है,

• ऐसे उपकरण जिसमें लाउडस्पीकर, पब्लिक एड्रेस सिस्टम, हॉर्न, निर्माण-कार्य करने वाली मशीनें, सामान या औजार शामिल हैं जो ध्वनि प्रदूषण करने या उत्सर्जन करने में सक्षम हैं

• ध्वनि प्रदूषण करने वाले पटाखों के फोड़ने से होने वाली आवाजें

• व्यवसाय या उद्योग-धंधों से होने वाली आवाजें, उदाहरण के लिए, बर्तनों को बनाने का व्यवसाय/काम, आदि। अधिकारी उस व्यक्ति को अपना बचाव करने का एक मौका दे सकते हैं जिसने शोर मचाया है, और उसको सुनने के बाद फिर से वे उस आदेश को संशोधित भी कर सकते हैं या बदल सकते हैं।

कोर्ट

जिला मजिस्ट्रेट

ध्वनि प्रदूषण के बारे में शिकायत करने के लिए आप किसी वकील की मदद से नजदीकी जिला मजिस्ट्रेट के कोर्ट में जा सकते हैं। कोर्ट के पास ध्वनि प्रदूषण के कारण होने वाले उपद्रव या परेशानी को अस्थायी रूप से रोकने की शक्ति होती है। ध्वनि प्रदूषण करने वाले व्यक्ति के मामलों की सुनवाई करने के बाद कोर्ट निम्नलिखित आदेश जारी कर सकता है:

• कोर्ट शोर (या ध्वनि प्रदूषण) को रोकने के लिए अल्पकालिक आदेश या निषेध आज्ञा जारी कर सकता है

• कोर्ट, शोर को बंद करने या इसे नियंत्रित करने का आदेश दे सकता है

• कोर्ट, शोर या ध्वनि प्रदूषण को बंद करने और शोर को रोकने के लिए स्थायी आदेश पारित कर सकता है

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एन.जी.टी)-एक विशेष न्यायिक निकाय है जहां आप ध्वनि प्रदूषण के मामलों सहित अन्य पर्यावरणीय मामलों की शिकायत दर्ज कराने के लिए जा सकते हैं। एन.जी.टी की स्थापना निम्न उद्देश्य से की गई थी:

• पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रभावी और शीघ्र उपाय या उपचार सुझाव देना /करवाना,

• वनों और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना

• पर्यावरण से संबंधित किसी भी कानूनी अधिकार को लागू करना।

ट्रिब्यूनल केंद्र

एन.जी.टी ट्रिब्यूनल के देश में पांच केन्द्र हैं-देश के उत्तर, मध्य, पूर्व, दक्षिण और पश्चिम में स्थित हैं। प्रमुख बेंच उत्तर क्षेत्र में स्थित है, जिसका मुख्यालय दिल्ली में है। सेंट्रल (मध्य) ज़ोन की बेंच भोपाल में, ईस्ट (पूर्वी) ज़ोन की बेंच कोलकाता में, साउथ (दक्षिणी) ज़ोन की बेंच चेन्नई में और वेस्ट (पश्चिमी) ज़ोन की बेंच पुणे में स्थित है। एन.जी.टी का आदेश अनिवार्य (बाध्यकारी) होता है, और इसके पास पीड़ित व्यक्तियों को मुआवजे के रूप में राहत देने की शक्ति होती है।

एन.जी.टी में शिकायत दर्ज कराना

कोई भी व्यक्ति जो पर्यावरणीय नुकसान या वायु प्रदूषण, पर्यावरण प्रदूषण, जल प्रदूषण, आदि विषयों से संबंधित होने वाले प्रदूषण के लिए राहत और मुआवजे की मांग कर रहा है, वह एन.जी.टी में शिकायत दर्ज कर सकता है। एन.जी.टी का फैसला अनिवार्य होता है, और अगर आप इसके फैसले से नाखुश हैं तो आप 90 दिनों के भीतर सर्वोच्च न्यायालय (यानि सुप्रीम कोर्ट) में फैसले के खिलाफ अपील कर सकते हैं।

अगर आप कोई मुकदमा दायर करना चाहते हैं या निचली अदालत के निर्णय के खिलाफ कोर्ट में अपील करना चाहते हैं तो आप किसी वकील की सहायता ले सकते हैं।