हिंदू विवाहों में अस्थायी अलगाव

तलाक के अलावा, जिसकी एक निश्चित अंतिमता है, यदि आप तलाक चाहते हैं तो बेहतर ढंग से समझने के लिए आप और आपका जीवनसाथी न्यायिक अलगाव के डिक्री का विकल्प भी चुन सकते हैं।

इस उपाय के माध्यम से, न्यायालय आदेश देता है कि आपको आधिकारिक तौर पर अस्थायी रूप से अलग कर दिया गया है।

न्यायिक पृथक्करण का तलाक के समान कानूनी प्रभाव नहीं होता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि इसके बावजूद भी आपकी शादी जारी रहती है। न्यायिक अलगाव के दौरान आप कानूनी रूप से पुनर्विवाह नहीं कर सकते।

आप तलाक के समान कारणों से न्यायिक पृथक्करण की डिक्री के लिए आवेदन कर सकते हैं। लेकिन इसका उतना असर नहीं होगा जितना तलाक का होता है। आप वह विवाहित जोड़ा बने रहेंगे, जो अलग रहता है।

न्यायिक पृथक्करण का आदेश पारित होने के बाद, आप और आपका जीवनसाथी निम्नलिखित दो विकल्पों में से एक का प्रयोग कर सकते हैं:

विकल्प I: न्यायिक पृथक्करण के आदेश को रद्द करना। आप इस आदेश को रद्द करने के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं। आप इस आदेश को रद्द करने के बाद अपने जीवनसाथी के साथ सामंजस्य बिठाने और एक साथ वापस आने और एक विवाहित जोड़े के रूप में रहने में सक्षम हैं।

विकल्प II: तलाक ले लें। न्यायिक अलगाव का आदेश प्राप्त करने के एक वर्ष बाद, यदि आप और आपके पति या पत्नी को लगता है कि सुलह की कोई संभावना नहीं है तो आप तलाक के लिए केस फाइल कर सकते हैं।

इस अवधि के दौरान, आप अपने जीवनसाथी से गुजारा भत्ता पाने के हकदार हैं। अधिक जानकारी के लिए कृपया इसे पढ़ें। इसके अलावा, अदालतें बच्चों की कस्टडी के सवाल पर फैसला करेंगी।

दत्तक ग्रहण कानून के तहत दंड/सजा

भले ही आपने जिस भी कानून के तहत बच्चे को गोद लिया हो, अगर आप कुछ ऐसा काम करते हैं, तो आपको दंडित किया जा सकता है, जैसे:

बच्चे को अवैध रूप से विदेश ले जाना

• कोर्ट के वैध आदेश के बिना अगर आप किसी बच्चे को विदेश ले जाते हैं या भेजते हैं, या उस बच्चे को किसी अन्य देश में दूसरे व्यक्ति को सौंपने की व्यवस्था करते हैं, तो आपको 1 लाख रुपये का जुर्माना या 3 साल तक की जेल की सजा या फिर दोनों हो सकता है।

बच्चे का परित्याग/उपेक्षा/अनादर/दुर्व्यवहार करना 

• अगर आप, 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चे की देखभाल करने वाले/माता-पिता के रूप में, बच्चे का त्याग करने के लिए उसे जानबूझकर किसी भी स्थान पर छोड़ देते हैं, तो आपको जुर्माना या 7 साल तक की जेल की सजा या फिर दोनों हो सकता है।

• अगर आप, एक बच्चे की देखभाल करने वाले/माता-पिता के रूप में, उस पर हमला करते हैं, उसे छोड़ देते हैं, उसके साथ दुर्व्यवहार करते हैं, उसे बेनकाब करते हैं या जानबूझकर उस बच्चे की उपेक्षा करते हैं या ऐसा होने का कारण बनते हैं, जिससे बच्चे को अनावश्यक मानसिक या शारीरिक पीड़ा होने की संभावना होती है, आपको 1 लाख रुपये का जुर्माना या 3 साल तक की जेल की सजा या फिर दोनों हो सकता है। अगर इस तरह की क्रूरता, जो बच्चे को शारीरिक रूप से अक्षम या मानसिक रूप से बीमार बनाती है या उसे नियमित कामों को करने के लिए मानसिक रूप से अयोग्य बनाती है या उसकी जान को ख़तरा होता है, तो आपको 5 लाख रुपये का जुर्माना के साथ 3 साल से 10 साल तक की जेल की सजा हो सकती है।

गैर-धार्मिक कानून के तहत गोद लेने पर, आपको दंडित किया जाएगा अगर आप:

• जेजे अधिनियम के प्रावधानों का पालन किए बिना किसी भी अनाथ, परित्यक्त या सरेंडर किये गए बच्चे को गोद लेते हैं या देते हैं। इसके लिए आपको 1 लाख रुपये का जुर्माना या 3 साल तक की जेल की सजा या फिर दोनों हो सकता है। अगर ऐसा अपराध किसी मान्यता प्राप्त दत्तक ग्रहण एजेंसी द्वारा किया जाता है, तो उसे ऊपर दी गयी सजा के अलावा उसके एजेंसी का पंजीकरण और मान्यता को भी कम से कम एक साल के लिए वापस ले ली जाएगी।

हिंदू कानून के तहत गोद लेने पर, आपको दंडित किया जाएगा अगर आप:

 गोद लेने के एवज में इनाम या पैसों का लेन-देन करते हैं: तो इसके लिए, जुर्माना या 6 महीने की जेल की सजा या फिर दोनों हो सकता है, राज्य सरकार की अनुमति के बाद।

विवाह अधिकारी कौन होता है?

विवाह अधिकारी वह व्यक्ति होता है, जिसे राज्य सरकार द्वारा सरकारी राजपत्र में अधिसूचना देने के बाद नियुक्त किया जाता है। विवाह अधिकारी का मुख्य कर्तव्य पंजीकरण की सुविधा और पार्टियों को विवाह का प्रमाण पत्र प्रदान करना है।

हिंदू विवाह में तलाक के लिए कब फाइल कर सकते हैं

आप तलाक का मामला तभी दायर कर सकते हैं जब आपके पास हिंदू कानून में मान्यता प्राप्त कोई कारण हो। ये कारण आपके जीवनसाथी द्वारा दुर्व्यवहार से लेकर मानसिक विकार से पीड़ित आपके जीवनसाथी तक हो सकते हैं।

भारत में, कानून विशिष्ट कारणों का प्रावधान करता है जिसके तहत आप तलाक के लिए केस फाइल कर सकते हैं।

दुर्व्यवहार

• जब आपका जीवनसाथी आपके प्रति क्रूरता कर रहा हो।

• जब आपके पति या पत्नी ने किसी अन्य व्यक्ति के साथ संभोग किया हो।

• जब आपके जीवनसाथी ने आपको छोड़ दिया हो।

बीमारी 

• जब आपका जीवनसाथी किसी यौन रोग से पीड़ित हो जो आपको भी लग सकता है।

• जब आपके जीवनसाथी को कोई मानसिक विकार हो।

जीवनसाथी की अनुपस्थिति 

• जब आपका जीवनसाथी आपसे अलग हो गया हो।

• जब आपके पति या पत्नी को 7 साल या उससे अधिक समय से मृत मान लिया गया हो।

• जब आपके जीवनसाथी ने किसी धार्मिक व्यवस्था में प्रवेश कर संसार का त्याग कर दिया हो।

• जब आप और आपके पति या पत्नी एक वर्ष से अधिक समय तक एक साथ वापस नहीं आए हैं, तब भी जब न्यायालय द्वारा न्यायिक पृथक्करण की डिक्री पारित की गई हो।

• न्यायालय द्वारा आपको या आपके जीवनसाथी को आपके वैवाहिक दायित्वों को फिर से शुरू करने के लिए कहने का आदेश पारित करने के बाद भी, एक वर्ष से अधिक समय से कोई भी दायित्व पूरा न किया गया हो।

सहायता और समर्थन

अगर आपको किसी सहायता, समर्थन की आवश्यकता है या आप गोद लेने के संबंध में कोई मुद्दा उठाना चाहते हैं, तो आप निम्नलिखित अधिकारियों से संपर्क कर सकते हैं:

केंद्रीय दत्तक संसाधन संस्था (कारा) (CARA)

CARA मुख्य रूप से संबंधित/मान्यता प्राप्त दत्तक ग्रहण एजेंसियों के माध्यम से गैर-धार्मिक दत्तक ग्रहण कानून के तहत, अनाथ बच्चें, परित्यक्त बच्चें और सरेंडर करने वाले बच्चों के लिए कार्य करता है।

CARA की हेल्पलाइन: 1800-11-1311। आप इस नंबर पर सोमवार से शुक्रवार के बीच सुबह 9:00 बजे से शाम 5:30 बजे के बीच कॉल कर सकते हैं।

CARA का ईमेल पता: carahdesk.wdc@nic.in

न्यायालयों की भूमिका

गोद लेने की प्रक्रिया के दौरान कोर्ट बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कोर्ट द्वारा निभाई गई कुछ महत्वपूर्ण भूमिकाएं नीचे दी गई हैं:

दत्तक-ग्रहण आदेश (गैर-धार्मिक कानून)

गैर-धार्मिक कानून के तहत गोद लेने पर, कोर्ट बच्चे के संबंधित दस्तावेजों के साथ एस.ए.ए (विशेष दत्तक ग्रहण एजेंसी) से आवेदन प्राप्त करता है ताकि कोर्ट यह आकलन कर सके कि गोद लेने के लिए आदेश दिया जा सकता है या नहीं। आवेदन में ये सभी होना चाहिए:

• बाल देखभाल संस्थानों जैसे एस.ए.ए और सह-आवेदकों (यदि कोई हो) का विवरण

• भावी दत्तक माता-पिता का विवरण जैसे कि उनका नाम, बच्चे को गोद लेने के लिए संसाधन/संपत्ति/स्रोत की जानकारी और मार्गदर्शन प्रणाली पंजीकरण संख्या।

• गोद लिए जाने वाले बच्चे का विवरण

• बच्चे को गोद लेने के लिए कानूनी रूप से मुक्त घोषित किया गया है या नहीं, उसका प्रमाण या सबूत।

• भावी दत्तक माता-पिता ने दत्तक-पूर्व पालन-पोषण व देखभाल हलफनामे पर किये गए हस्ताक्षर का प्रमाण, जिसमें SAA, DCPU (जिला बाल संरक्षण इकाई) के सामाजिक कार्यकर्ताओं को घर का निरीक्षण करने की अनुमति होती हैं।

• दत्तक ग्रहण समिति के निर्णय की एक प्रति/कॉपी

आवेदन में और क्या-क्या विवरण शामिल हैं, यह समझने के लिए आवेदन का एक प्रारूप को यहां पढ़ें। गोद लेने के इस आदेश को पारित कर के, कोर्ट गोद लेने वाले व्यक्ति को बच्चे का भावी दत्तक माता-पिता बनने की अनुमति देगा। दत्तक ग्रहण आदेश पारित करने से पहले, कोर्ट का यह कर्तव्य है कि वह निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखें:

• कि दत्तक ग्रहण बच्चे के कल्याण के लिए हो।

• कि बच्चे की उम्र और स्थिति की समझ के आधार पर उसकी इच्छाओं को ध्यान में रखा जाए।

• कि बच्चे का भावी दत्तक माता-पिता, उसे गोद लेने के लिए कोई भी ईनाम या पैसों का लेन-देन न किया हो।

• कोर्ट द्वारा दत्तक ग्रहण की कार्यवाही एक बंद कमरे में या गुप्त ढंग से होनी चाहिए।

गोद लेने की अनुमति (हिंदू कानून)

हिंदू कानून के तहत गोद लेने पर, एक अभिभावक को कुछ मामलों में बच्चे को गोद लेने के लिए, या उसे गोद छोड़ने के लिए कोर्ट की अनुमति की आवश्यकता होती है, जो इस प्रकार हैं:

• जब माता और पिता दोनों की मृत्यु हो गई हो;

• जब माता और पिता दोनों ने पूरी तरह से संसार को त्याग दिया हो;

• जब पिता और माता दोनों ने बच्चे को छोड़ दिया हो;

• जब संबंधित कोर्ट द्वारा पिता और माता दोनों को असमर्थ या बीमार घोषित कर गया हो;

• जब बच्चे के माता-पिता के बारे में कोई जानकारी न हो।

अपील (गैर-धार्मिक कानून और हिंदू कानून)

गैर-धार्मिक कानून के तहत गोद लेने पर, अगर आप बच्चे को गोद लेने के दौरान संबंधित अधिकारियों द्वारा दिए गए आदेशों से संतुष्ट नहीं हैं या गोद लेने के लिए आपके द्वारा दिए गए आवेदन को खारिज कर दिया गया हो, तो उस दिए गए आदेश के 30 दिनों के भीतर आप बाल न्यायालय में अपील कर सकते हैं। हालांकि, भले ही 30 दिनों से अधिक समय बीत चुका हो, फिर भी आप अपील करने का प्रयास कर सकते हैं, और अगर कोर्ट का यह मानना ​​है कि निर्धारित 30 दिनों के भीतर अपील करने में सक्षम नहीं होने के लिए आपके पास पर्याप्त कारण हैं, तो इस पर विचार किया जाएगा। अगर आप कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश से संतुष्ट नहीं हैं, तो आप अपने राज्य के उच्च न्यायालय (हाई कोर्ट) में अपील दायर कर सकते हैं।