अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के खिलाफ झूठा मामला/बयान

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति के खिलाफ झूठा मामला दर्ज करना और सरकारी अधिकारी को झूठी सूचना देना जिसकी वजह से अधिकारी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को परेशान करता है, दोनों अवैध हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप पुलिस के पास जाते हैं और किसी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्य पर अपराध का झूठा आरोप लगाते हैं, तो इसके लिए आपको दंडित किया जा सकता है।

यदि किसी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्य पर झूठा आरोप लगाया जाता है:

• मौत के दंडनीय अपराध के कारण का आरोप, आपको आजीवन कारावास और जुर्माना भुगतना होगा।

• एक झूठा बयान जिसके कारण अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को मौत की सजा दी जाती है, तो इसके लिए आपको भी मौत की सजा हो सकती है।

• 7 साल या उससे अधिक कारावास के दंडनीय अपराध के कारण, आपको 6 महीने से 7 साल तक की कैद हो सकती है।

 

निरोध नीति

प्रत्येक शैक्षणिक वर्ष के अंत में पांचवीं और आठवीं कक्षा के लिए एक सामान्य परीक्षा आयोजित की जाती है।

यदि कोई बच्चा आयोजित परीक्षा में असफल फेल हो जाता है, तो उसे अतिरिक्त शिक्षा प्रदान की जाती है और परिणाम घोषित होने के दो महीने के भीतर परीक्षा में फिर से बैठने का अवसर दिया जाता है। पुन: परीक्षा में असफल होने पर छात्रों को पांचवीपांचवीं या आठवीं कक्षा में वापस दाखिलदाखिला कियादिया जा सकता है। इसके लिए विवेकाधिकार सरकार के पास है। दिल्ली और गुजरात जैसे राज्यों ने कक्षा 5 और 8 में अपने पुनर्मूल्यांकन में असफल होने वाले छात्रों को रोकने के लिए इसे लागू किया है।

यह अवरोध नो-डिटेंशन नीति कहती है कि:

• प्रारंभिक शिक्षा पूरी होने तक किसी भी बच्चे को स्कूल से निष्कासित नहीं किया जा सकता है।

• परीक्षा में असफल होने पर किसी भी बच्चे को स्कूल से निष्कासित नहीं किया जा सकता है।

प्रारंभिक शिक्षा पूरी होने तक किसी भी बच्चे को बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण करने की आवश्यकता नहीं होगी।

आवेदन के निर्णय पर अपील करना

यदि आपको पीआईओ से 30 दिनों के भीतर कोई निर्णय नहीं मिलता है, तो आप ‘पीआईओ’ से ऊँचे अधिकारी के समक्ष, पीआईओ के निर्णय के खिलाफ अपील कर सकते हैं। आपको अपने अपील को 30 दिनों के अंदर दर्ज करना होगा। अगर अधिकारी को लगता है कि देर होने का कारण सही है तो इस समय की अवधि को बढ़ा दिया जा सकता है।

आम तौर पर, एक सार्वजनिक प्राधिकरण अपने वेबसाइट पर या कार्यालय में यह बताएगा कि उनका अपीलीय प्राधिकारी (अप्पेलेट ऑथोरिटी) कौन है। यह एक ऐसा अधिकारी होगा जो ‘पीआईओ’ से ऊ़ँचे रैंक का होगा। कोई तीसरी पार्टी भी ‘पीआईओ’ के आदेश के खिलाफ 30 दिनों के भीतर अपील दायर कर सकती है।

यदि आप पहले अपील के निर्णय से संतुष्ट नहीं हैं, तो आप दूसरी अपील 90 दिनों के अंदर सुझाए गए प्रारूप में, केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग को कर सकते हैं।

सूचना देने से इनकार करना उचित था, यह सिद्ध करने की पूरी ज़िम्मेदारी ‘पीआईओ’ पर है जिन्होंने इस सूचना को देने से इंकार कर दिया है। सूचना आयोग को 30 दिनों में अपील पर निर्णय ले लेनी चाहिए। इसे पैंतालिस दिन तक बढ़ाया जा सकता है पर इस अवधि के बढ़ाये जाने का कारण भी दर्ज करना होगा।

अपील पर निर्णय लेने के लिए, सूचना आयोग उस सार्वजनिक प्राधिकरण से मांग कर सकता है कि वे:

-सूचना को एक विशेष तरीके से दें -एक ‘पीआईओ’ को नियुक्त करें -प्रासांगिक सूचना को प्रकाशित करें -अपने दस्तावेजों को सही ढंग से रक्खें -अपने अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम को आयोजित करें -एक वार्षिक रिपोर्ट दिया करें -किसी भी शिकायतकर्ता को मुआवजा दें

यह उन पर जुर्माना लगा सकता है और कुछ विशिष्ट आवेदनों को ठुकरा सकता है।

अपराध/अत्याचार की रिपोर्ट करना

यदि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति के रूप में आपकी पहचान के कारण आपके खिलाफ कोई अपराध किया गया है, तो आप तत्काल राहत पाने के लिए इनमें से किसी भी स्थान पर संपर्क कर सकते हैं:

पुलिस 

आप या तो 100 पर कॉल कर सकते हैं या घटना की रिपोर्ट करने के लिए पुलिस स्टेशन जा सकते हैं। पुलिस आपके विवरण को नोट कर लेगी और यदि आवश्यक हो तो आपको तत्काल सहायता प्रदान करने के लिए आपके स्थान पर पहुंचेंगी। वे आपकी जानकारी और घटना के विवरण को एक एफआईआर में लिखेंगे और आपको इसकी एक प्रति निःशुल्क प्रदान करेंगे।

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग 

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग अनुसूचित जातियों के हितों की जांच और निगरानी करने के लिए संविधान के तहत गठित एक निकाय है। उनके पास उन मामलों में विशिष्ट शिकायतों की जांच करने का अधिकार भी है जहां अनुसूचित जाति के लोग अपने अधिकारों से वंचित हैं। आप या तो उनकी टोल फ्री हेल्पलाइन पर कॉल कर सकते हैं या अधिक जानकारी के लिए उनकी वेबसाइट पर जा सकते हैं।

टोल फ्री नंबर: 1800 1800 345

वेबसाइट: http://ncsc.nic.in/

ईमेल: ncsccomplaints@gmail.com

राज्य आयोगों के संपर्क विवरण: http://ncsc.nic.in/contactus

अनुसूचित जनजाति के लिए राष्ट्रीय आयोग 

नसीएससी की तरह अनुसूचित जनजातियों के लिए भी एक राष्ट्रीय आयोग मौजूद है। उनके पास अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के खिलाफ किए गए अत्याचारों के लिए दर्ज शिकायतों की जांच करने का अधिकार है।

वेबसाइट: https://ncst.nic.in/

राष्ट्रीय आयोग के साथ-साथ इसके क्षेत्रीय कार्यालयों के लिए संपर्क जानकारी यहां पाई जा सकती है: https://ncst.nic.in/content/contact-us

रिट याचिका ऑनलाइन कैसे दायर करें?

1. भारत के सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर जाएं।

2. यहाँ, दिये गए होम मेन्यू के नीचे ई-फाइलिंग मेन्यू पर क्लिक करें।

3. अगर पहली बार याचिका दायर की जा रही है, तो पेज के सबसे दाहिने कोने पर ‘नया पंजीकरण'(न्यू रजिस्ट्रेशन) पर क्लिक करें। यदि रजिस्ट्रेशन पहले ही हो चुका है, तो स्टेप-7 पर जाएँ।

4. जब ‘यूजर टाइप’ पूछा जाए, तो ‘पेटिशनर इन पर्सन’ को चुनें, जिसके उपर यह सब मेनू दिखाई देगा।

5. आवश्यक जानकारी भरने के बाद, पेज के अंत में ‘साइन अप’ बटन पर क्लिक करें।

6. यहाँ रजिस्ट्रेशन पूरा करने के बाद, ‘ई-फीलिंग’ पेज पर वापस जाएं।

7. ‘लॉगिन’ विकल्प पर क्लिक करें।

8. जो मेनू दिखाई देगा। उसमें आवश्यक जानकारी भरें।

9. लॉग इन करने के बाद, ‘न्यू ई-फाइलिंग’ पर क्लिक करें।

10. एक पेज खुलेगा, जिसमें आवश्यक जानकारी भरें। यदि याचिका निचली अदालत के किसी फैसले के खिलाफ है, तो ‘लोअर कोर्ट’ बटन पर क्लिक करें। इसी तरह, हर कैटेगरी पर क्लिक करें और मांगी गई जानकारी को भरें।

11. यदि याचिका के साथ कोई अन्य दस्तावेज जमा करन हो, तो ‘पेटीशन विथ अदर डॉक्यूमेंट’ पर क्लिक करें।

12. सभी आवश्यक जानकारी भरने और पैसों का भुगतान पूरा होने के बाद, एक आवेदन संख्या दी जाएगी।

कौन सी सूचनाओं को छूट दी गई हैं

यदि आपका आवेदन निम्नलिखित प्रकार की सूचना के लिए अनुरोध करता है, तो सार्वजनिक प्राधिकरण कानूनी रूप से आपको ऐसी सूचना देने से इंकार कर सकता है:

-ऐसी सूचना जो किसी अन्य देश के साथ सरकार की सुरक्षा और आर्थिक हितों को प्रभावित करती है I -ऐसी सूचना जो कि किसी भी अदालत या ट्रिब्यूनल द्वारा, प्रकाशित होने से प्रतिबंधित है I -ऐसी सूचना जिसके परिणामस्वरूप विधानमंडल के विशेषाधिकार का उल्लंघन होगा I -ऐसी सूचना जो वाणिज्यिक हितों को नुकसान पहुंचाएगी I -ऐसी सूचना जो विश्वास के आधार पर बने रिश्ते के कारण उत्पन्न हुई है -ऐसी सूचना जो एक विदेशी सरकार द्दारा एक रहस्य (सीक्रेट) के रूप में दी गई है I -ऐसी सूचना जो किसी मुखबिर (व्हिस्लब्लॉअर) की पहचान का खुलासा कर सकता है या उसकी जिन्दगी खतरे मे डाल सकता है I -ऐसी सूचना जो आपराधिक मामलों में पुलिस जांच या गिरफ्तारी में कठिनाई पैदा कर सकता है I कैबिनेट मंत्रियों के रिकॉर्ड्स (निर्णय होने के बाद ही, उसके तर्कों और सामग्रियों को सार्वजनिक किया जा सकता है) I -व्यक्तिगत सूचनाएँ (यदि ऐसी मांग की जाती है तो, संसद या राज्य विधानमंडल को ऐसी सूचनाओं का खुलासा करना होगा) I

अगर सूचना कॉपीराइट का उल्लंघन करती है, तो ‘पीआईओ’ सूचना के अनुरोध को ठुकरा सकता है। इसके अलावा, अगर अनुरोध की गई कोई भी सूचना जो 20 साल से अधिक पुरानी है तो यह छूट उस पर लागू नहीं होती है। ऐसे मामलों में, आवेदक को यह दे दिया जाना चाहिए। हालांकि, 20 वर्ष से अधिक पुरानी होने के बाबजूद, अन्य देशों के साथ सुरक्षा और आर्थिक हितों से संबंधित सूचनाएँ, संसदीय विशेषाधिकार के उल्लंघन और कैबिनेट कार्यवाही से संबंधित सूचनाओं को इनकार किया जा सकता है।

पीड़ितों और गवाहों के अधिकार

यह विशेष कानून पीड़ितों, उनके आश्रितों और इस कानून के तहत दायर शिकायतों के गवाह के रूप में कार्य करने वालों को कुछ अधिकारों की गारंटी देता है। ये अधिकार हैं:

हिंसा से बचाव

• पीड़ितों, उनके आश्रितों और गवाहों को किसी भी तरह की धमकी, जबरदस्ती, प्रलोभन उत्प्रेरण , हिंसा या यहां तक कि हिंसा की धमकी से भी बचाना सुरक्षित करना चाहिए।

• अगर उन्हें धमकाया जा रहा है, प्रताड़ित किया जा रहा है, परेशान किया जा रहा है या यहां तक कि हिंसा की धमकी भी दी जा रही है तो जांच अधिकारी या स्टेशन हाउस अधिकारी को किसी पीड़ित, मुखबिर या गवाहों की शिकायत एफआईआर के रूप में दर्ज करनी चाहिए। उन्हें एफआईआर की एक कॉपी नि:शुल्क दी जानी चाहिए।

सम्मान के साथ व्यवहार करने किये जाने का अधिकार 

• पीड़ितों के साथ निष्पक्षता, सम्मान और मर्यादा के साथ व्यवहार किया जाना चाहिए। उनकी उम्र, लिंग या शैक्षिक कमी के कारण पीड़ितों की किसी भी विशेष जरूरत पर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए।

न्यायालय में अधिकार 

• विशेष लोक अभियोजक या सरकारी अधिकारियों को पीड़ितों या उनके आश्रितों को इस कानून के तहत होने वाली किसी भी अदालती कार्यवाही के बारे में सूचित करना चाहिए। उन्हें किसी भी अदालती कार्यवाही की उचित, सटीक और समय पर सूचना का अधिकार है, भले ही आरोपी व्यक्ति जमानत के लिए आवेदन करता हो।

• पीड़ितों या उनके आश्रितों को विशेष न्यायालय में अनुरोध करके अन्य पक्षों से दस्तावेजों, सामग्रियों या गवाहों को पेश करने का अनुरोध करने का अधिकार है।

• पीड़ितों और उनके आश्रितों को आरोपी व्यक्ति की जमानत, रिहाई, मुक्ति, पैरोल, दोषसिद्धि या सजा से संबंधित कार्यवाही में सुनवाई का अधिकार है। उन्हें दोषी व्यक्ति की दोषसिद्धि, बरी होने या सजा सुनाए जाने पर लिखित निवेदन करने का भी अधिकार है।

• इस कानून के तहत सभी अदालती कार्यवाही वीडियो रिकॉर्ड की जानी चाहिए।

विशेष सुरक्षा 

• विशेष न्यायालय को पीड़ित, उनके आश्रितों, सूचनाओं या गवाहों को निम्नलिखित अवश्य प्रदान करना चाहिए: न्याय प्रदान करने के लिए पूर्ण सुरक्षा

  • जांच, पूछताछ और मुकदमे के दौरान यात्रा और रखरखाव खर्च।
  • जांच, पूछताछ और मुकदमे के दौरान सामाजिक-आर्थिक पुनर्वास

पुनर्वास 

• या तो विशेष लोक अभियोजक या पीड़ित, उनके आश्रित, गवाह और सूचनाएँ विशेष न्यायालय में निम्नलिखित के लिए आवेदन कर सकते हैं:

  • आदेश, निर्णय या मामले के किसी भी रिकॉर्ड में गवाहों के नाम और पते छिपाएं जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हों। गवाहों की पहचान और पते का खुलासा नहीं करने के निर्देश जारी करें।
  • पीड़ित, मुखबिर या गवाह के उत्पीड़न से संबंधित शिकायत पर तत्काल कार्रवाई करना और यदि आवश्यक हो तो उसी दिन सुरक्षा के आदेश पारित करें।

रिट याचिका ऑफलाइन कैसे दायर करें?

1. रिट याचिका दायर करने के लिए फॉर्म/प्रपत्र प्राप्त करें अपने मौलिक अधिकार की रक्षा करने की मांग करने वाला व्यक्ति संबंधित अदालत अर्थात हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सकता है। संबंधित कोर्ट द्वारा दिए गए निर्धारित फॉर्म/प्रपत्र में ही याचिका दायर की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर करने के लिए निर्धारित फॉर्म वहीं से प्राप्त किया जा सकता है। उच्च न्यायालयों के लिए, प्रत्येक हाई कोर्ट द्वारा निर्धारित अलग-अलग फॉर्म/प्रपत्र, हैं जिसे संबंधित हाई कोर्ट की वेबसाइट से प्राप्त किया जा सकता है।

2. याचिका का ड्राफ्ट तैयार करें संबंधित कोर्ट से फॉर्म लेने के बाद, याचिका में निम्नलिखित जानकारी भरना आवश्यक है:

• याचिका दायर करने वाले व्यक्ति का नाम और अन्य जानकारी।

• उस व्यक्ति/संस्था का नाम और उससे संबंधित अन्य जानकारी जिसके खिलाफ याचिका दायर की जा रही है।

• पीड़ित व्यक्ति के किस मौलिक अधिकार का हनन हुआ है।

• पीड़ित व्यक्ति द्वारा उठाई गयी न्याय की मांग।

• मांग उठाने के कारण।

• (यदि याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की जा रही है) क्या इस मामले के लिए किसी हाई कोर्ट में याचिका दायर की जा चुकी है? और यदि हां, तो उस हाई कोर्ट द्वारा पारित आदेश।

3. यदि आवश्यक हो तो दस्तावेज संलग्न करें,

• यदि याचिका निचली अदालत के आदेश के खिलाफ है, तो ऐसे आदेश की मूल या प्रमाणित प्रति याचिका के साथ संलग्न की जानी चाहिए।

• याचिका दायर करने वाले तथ्यों का शपथ-पत्र/हलफनामा/एफिडेविट।

• कोई अन्य जरूरी दस्तावेज। यदि कोई दस्तावेज याचिकाकर्ता के पास मूल रूप (हार्ड कॉपी) में नहीं है, तो ऐसे दस्तावेजों की एक सूची याचिका के साथ संलग्न की जानी चाहिए।

4. याचिका जमा करें याचिका को पूरी तरह से ड्राफ्ट करने के बाद, इसे याचिकाकर्ता की प्राथमिकता के अनुसार सुप्रीम कोर्ट या संबंधित हाई कोर्ट, के फाइलिंग काउंटर पर जमा किया जाना चाहिए।

स्कूलों की जिम्मेदारी

स्कूलों द्वारा पालन किए जाने वाले मानदंड और मानक

शिक्षा के अधिकार का कानून यह निर्धारित करता है कि प्रथम कक्षा से पांचवीं कक्षा के लिए छात्र-शिक्षक अनुपात 30:1 और छठी कक्षा से आठवीं कक्षा के लिए 35:1 बनाए रखा जाना चाहिए। यह भी प्रावधान करता है कि यहां होना चाहिए:

• प्रत्येक शिक्षक के लिए कम से कम एक कक्षा

• लड़कों और लड़कियों के लिए अलग शौचालय

• बाधा रहित पहुंच

• एक खेल का मैदान

• बच्चों के लिए सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल की सुविधा

• एक रसोई जहां स्कूल में मध्याह्न भोजन पकाया जा सकता है प्रत्येक स्कूल में एक पुस्तकालय कहानी-किताबों सहित सभी विषयों पर समाचार पत्र, पत्रिकाएं और किताबें उपलब्ध कराता है।

• एक शिक्षक के पास तैयारी के घंटों सहित प्रति सप्ताह कम से कम 45 कार्य घंटे होने चाहिए।

एक स्कूल प्रबंधन समिति का निर्माण

सरकार द्वारा चलाए जा रहे या इसके द्वारा सहायता प्राप्त सभी स्कूलों को एक स्कूल प्रबंधन समिति (एसएमसी) बनाना अनिवार्य है। एसएमसी में स्थानीय प्राधिकरण के निर्वाचित प्रतिनिधि और माता-पिता शामिल होते हैं, जिसमें स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता से बनी समिति का ¾ हिस्सा होता है। एसएमसी स्कूल के कामकाज की निगरानी, ​​स्कूल के लिए विकास योजना तैयार करने, स्कूल के लिए अनुदान के उपयोग की निगरानी आदि के लिए तैयार है। हालांकि, अल्पसंख्यक स्कूलों और सहायता प्राप्त स्कूलों के लिए एसएमसी केवल सलाहकार का कार्य करेगा। एसएमसी को एक स्कूल विकास योजना तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है, जो संबंधित राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकरणों द्वारा बनाई गई योजनाओं और अनुदानों के आधार पर होगी।

बच्चों को भोजन उपलब्ध कराना

कानून यह प्रावधान करता है कि छह से चौदह वर्ष की आयु के सभी छात्र जो नामांकन करते हैं और स्कूल में पहली से आठवीं कक्षा के बीच पढ़ते हैं, वे बिना किसी भुगतान के पौष्टिक भोजन के हकदार होंगे। ऐसे भोजन के लिए राशि राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जाएगी। हालांकि, योजना के कार्यान्वयन और गुणवत्ता की निगरानी और भोजन की तैयारी की निगरानी स्कूल प्रबंधन समिति द्वारा की जाती है। ये भोजन स्कूल की छुट्टियों को छोड़कर सभी दिनों में उपलब्ध कराया जाना चाहिए और स्कूल में परोसा जाना चाहिए।

आवेदन के संबंध में शिकायत करना

यदि आपको, ‘पीआईओ’ ने आपके आरटीआई आवेदन को जिस तरीके से हैन्डल किया है, उसके बारे में शिकायत करनी है, तो आप इस अधिनियम के तहत स्थापित उच्च अधिकारीगण-केंद्रीय सूचना आयोग (सेन्ट्रल इन्फौर्मेशन कमीशन), या राज्य सूचना आयोग (स्टेट ईनफौर्मेशन कमीशन) से संपर्क कर सकते हैं। इस अधिनियम के तहत यह उनका कर्तव्य है वो आपकी शिकायत के बारे में पूछताछ करें। आप शिकायत निम्नलिखित परिस्थितियों में कर सकते हैं:

-जब सार्वजनिक प्राधिकरण ने ‘पीआईओ’ को ही नियुक्त नहीं किया है; -जब ‘पीआईओ’ ने सूचना देने से इनकार कर दिया है; -जब ‘पीआईओ’ ने आपको प्रस्तावित अविधि के अंदर सूचना नहीं दी है; -जब ‘पीआईओ’ ने आपको सूचना देने के लिए बहुत अधिक शुल्क मांगे हैं; तथा -जब ‘पीआईओ’ ने आपको अपर्याप्त या गलत सूचना दी है।

अगर आयोग आश्वस्त होता है कि शिकायत का आधार उचित हैं, तो वह इस मामले में जांच शुरू करेगा। जांच करने के मामले में, उसके अधिकार सिविल कोर्ट के समान होंगे। इसका मतलब है कि यह लोगों से आने और गवाही देने, या प्रासंगिक दस्तावेज सबूत के रूप में जमा करने, इन दस्तावेजों का निरीक्षण करने, और किसी भी सार्वजनिक रिकॉर्ड को लाने के लिए कह सकता है।