फिल्मों/चलचित्रों की सेंसरशिप

जब कोई प्राधिकरण (जैसे सरकार) किसी संचार की कांट-छांट करता है या उसमें फेरबदल कर उसे दबाता है, तो उसे सेंसरशिप कहा जाता है। सरकार आधिकारिक तौर पर फिल्मों को सेंसर नहीं करती, केवल उन्हें प्रमाणित करती है।

आम जनता के लिए फिल्में/मूवी देखने के लिए सेंसर बोर्ड को उन्हें प्रमाणित करना होता है। कुछ शर्तों को पूरा करने के बाद ही कई फिल्में प्रमाणित होती हैं और फिल्म निर्माता उन शर्तों के मुताबिक फिल्म में कुछ बदलाव करते हैं। इस सेंसरिंग को आम तौर पर अपने भावी दर्शकों तक विषयवस्तु को पहुंचने से रोकने या छिपाने के रूप में देखा जाता है।

कानून कहता है कि बोर्ड किसी फिल्म को प्रमाणित करने से मना कर सकता है अगर उसका कोई हिस्सा, या पूरा भाग भारत की संप्रभुता के खिलाफ जाता है, या दूसरे देशों के साथ उसके संबंधों को प्रभावित करता है। वे करवाई भी कर सकते है, यदि फिल्म:

• बहुत अश्लील है,

• नैतिकता के खिलाफ है, या

• अगर इससे सार्वजनिक अशांति या किसी की बदनामी होने की संभावना है।

केंद्र सरकार के पास शक्ति है कि वह और कईअधिक ‘दिशा-निर्देश’ जारी कर सकती है ताकि बोर्ड यह निर्णय ले सके कि आगे कैसे कार्रवाई करनी है। आपको इन्हें पढ़ना चाहिए।

दिशा-निर्देशों में कही गई कुछ बातें इस प्रकार हैं-

• फिल्में ‘साफ-सूथरी’ होनी चाहिए

• इनमें असामाजिक गतिविधियों को, या शराब पीने/नशीले पदार्थों के सेवन को गौरवान्वित नहीं किया जा सकता है, और

• इनमें बेकार की हिंसा नहीं होनी चाहिए

• फिल्मों को ‘नीच प्रवृत्ति’ का या ‘अश्लील’ नहीं होना चाहिए।

• इसमें महिलाओं को नीचा नहीं दिखाना चाहिए और महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा को ‘कम-से-कम’ दिखाया जाना चाहिए

• इनमें राष्ट्रविरोधी या सांप्रदायिक प्रवृत्तियों को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता

 

सीबीएफसी कार्रवाई

अगर आप किसी थिएटर में आम लोगों को फिल्म/मूवी दिखाना चाहते हैं, तो आपको सर्टिफिकेट के लिए सीबीएफसी के पास आवेदन करना होगा। सिनेमैटोग्राफ के नियम 21 में आवेदन दाखिल करने की प्रक्रिया की विस्तृत सूचना दी गई है। बोर्ड फिल्म की जांच करता है, और उसे आपकी बात भी सुननी होती है। फिर, यह निम्न में से कोई एक कार्रवाई कर सकता है:

• 4 प्रमाणपत्रों में से एक के साथ फिल्म को रिलीज करना:

  •  यू (अप्रतिबंधित), यानी कोई भी फिल्म देख सकता है
  •  यू/ए (अप्रतिबंधित लेकिन वयस्क की निगरानी में), जिसका अर्थ है कि कोई भी फिल्म देख सकता है लेकिन माता-पिता को 12 साल से कम उम्र के बच्चों को इसे देखने की अनुमति देने में सावधानी बरतनी चाहिए
  •  ए (केवल वयस्क), जिसका अर्थ है कि केवल वयस्क ही फिल्म देख सकते हैं
  •  एस, एक असामान्य प्रमाणपत्र है, जिसका अर्थ है कि केवल कुछ पेशेवर, जैसे डॉक्टर या वैज्ञानिक ही फिल्म देख सकते हैं

• बोर्ड द्वारा प्रमाणित किए जाने से पहले फिल्म निर्माता को उपरोक्त चार प्रमाणपत्रों में से एक का इस्तेमाल करके फिल्म में बदलाव करने के लिए कहना।

• फिल्म को प्रमाणित करने से बिल्कुल मना करना। फिल्म रिलीज नहीं हो सकती है।

 

प्रमाणपत्र के बिना फिल्म दिखाना

बिना सर्टिफिकेट के लोगों को फिल्म दिखाने के दंड निम्नलिखित है:

अप्रमाणित फिल्म दिखाने की सजा है:

  • कम से कम 3 महीने और अधिकतम तीन साल की जेल, और
  • ₹20,000 और ₹1,00,000 के बीच जुर्माना।

अगर व्यक्ति नोटिस मिलने के बाद भी फिल्म दिखाता है तो उसे रोजाना ₹20,000 का जुर्माना देना होगा। अगर न्यायाधीश को लगता है तो वह इस सजा को कम कर सकता है। सिनेमैटोग्राफ एक्ट, 1952 की धारा 7 के तहत न्यायालय के आदेश से फिल्म निर्माता को सरकार को फिल्म जब्त भी करवानी पड़ सकती है।

एक वयस्क या विशेष फिल्म बच्चों या लोगों को बिना प्रमाणित किए दिखाने की सजा है:

  • कम से कम 3 साल की जेल, और / या
  • ₹1,00,000 तक का जुर्माना।

फिल्म प्रमाणित होने के बाद उसमें बदलाव करने की सजा है:

  • कम से कम 3 साल की जेल, और/या
  • ₹1,00,000 तक का जुर्माना।

अगर नोटिस के बाद भी फिल्म चलती है तो जुर्माना ₹20,000 प्रति दिन तक हो सकता है। सरकार फिल्म को जब्त करने के लिए भी कदम उठा सकती है।

टीवी के विषयवस्तु की सेंसरशिप

टीवी पर सेंसरशिप से संबंधित कानून अलग हैं। सरकार निम्नलिखित चीजें कर सकती है:

  • चैनल को सेंसर करना या यहां तक ​​कि पूरे केबल ऑपरेटर जैसे स्टार टीवी चैनल को सेंसर कर देना
  • ऐसी किसी भी विषयवस्तु को रोकना, जिससे समूहों के बीच नफरत या सार्वजनिक अशांति उत्पन्न हो।
  • अगर कोई विषयवस्तु उस कोड का उल्लंघन करती है जिसका सभी चैनल पालन करते हैं तो उसे रोकना।

उनकी शर्तों की एक लंबी सूची है। जैसे, कंटेंट सबको पसंद आना चाहिए या वह किसी तरह की शालीनता को ठेस न पहुंचाएं, किसी की भावनाएं आहत न करें, अंधविश्वास को बढ़ावा न दे या वह महिलाओं के लिए अपमानजनक न हो।

इंटरनेट पर सेंसरशिप

इंटरनेट पर सेंसरशिप दो तरह से की जा सकती है:

1. राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरनाक किसी भी कंटेंट को सरकार रोक सकती है। यह सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करने वाले या लोगों को अपराध के लिए प्रोत्साहित करने वाले कंटेंट को भी रोक सकती है। जब सरकार ऑनलाइन कंटेंट को रोकती है, तो वे कानून के तहत एक प्रक्रिया का पालन करते हैं।

2. किसी भी “अवैध कंटेंट” को हटाना इंटरनेट सेवा प्रदाताओं और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की जिम्मेदारी है। अवैध कंटेंट कुछ भी हो सकता है जैसे घोर हानिकारक, परेशान करने वाला या तिरस्कार करने वाला आदि। कोर्ट से आदेश मिलने पर उन्हें इसे हटाना होगा।

यूट्यूब, हॉटस्टार, नेटफ्लिक्स आदि कभी-कभी बिना सेंसर वाली फिल्में दिखाते हैं। सेंसर बोर्ड ने कहा कि वे सभी आवेदकों (फिल्म निर्माता) से मांग करेंगे कि वे अपनी फिल्मों के सेंसर किये गए हिस्से को इंटरनेट पर कहीं भी रिलीज नहीं कर सकें सिनेमैटोग्राफ एक्ट यहां सीधे तौर पर लागू नहीं होगा।