जमानत देने से इनकार करना

गैर-जमानती अपराधों के लिए न्यायालय आपको जमानत देने से इनकार कर सकता है, जब आपके द्वारा किए गए अपराध का दण्ड निम्न श्रेणी में हो तो अदालत आपको जमानत देने से इन्कार कर सकता है:
-मौत की सजा,
-आजीवन कारावास,
-7 साल से अधिक जेल की सजा,
-अगर अपराध संज्ञेय (कॉग्निज़ेबल) है, या

  • यदि आपको दो या दो से अधिक मौकों पर संज्ञेय अपराध के लिये दोषी पाया गया है, जिसके लिये आपको तीन साल या उससे अधिक के कारावास (लेकिन सात साल से कम नहीं) की सजा से दंडित किया जा चुका है।

एफ़आईआर कहां दर्ज की जा सकती है

किसी भी पुलिस थाने में एफआइआर दर्ज की जा सकती है। यह हो सकता है कि अपराध उस पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में नहीं हुआ हो, पर इससे चलते शिकायत दर्ज कराने में कोई अड़चन नहीं है। पुलिस के लिए यह अनिवार्य है वह उपलब्ध कराई गई जानकारी को दर्ज करे, और फिर उसे उस थाने में स्थानांतरित करना जिसके क्षेत्र में/अधिकार क्षेत्र में अपराध हुआ है। उदाहरण के लिए, यदि कोई अपराध का मामला उत्तरी दिल्ली में हुआ हो तो उसकी सूचना दक्षिणी दिल्ली के किसी भी थाने में दर्ज कराई जा सकती है।

इस संकल्पना को सामान्य तौर पर “जीरो एफआइआर” के रूप में जाना जाता है और इसे सन् 2013 में शुरू किया गया था। जीरो एफआइआर शुरू होने से पहले बड़े पैमाने पर देरी हुआ करती थी क्योंकि जिस इलाके में अपराध हुआ होता था, वहां की ही पुलिस स्टेशन सूचना को दर्ज कर सकती थी।

गिरफ्तार होते समय आपके अधिकार

जब आपकी गिरफ्तारी हो रही है, उस समय आपके पास कुछ अधिकार हैं, जो हैं:

  • आप पुलिस से, उनकी पहचान पूछ सकते हैं क्योंकि उन्हें अपने पदनाम सहित नाम का स्पष्ट टैग पहने रहना चाहिये, जो सही हो, और साफ दिखे।
  • आप पुलिस से अपने वकील को फोन करने के लिए कह सकते हैं। अगर आपका अपना वकील नहीं है या आप वकील का खर्चा बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं, तो आप न्यायालय से अपने लिए एक वकील नियुक्त करने के लिए निवेदन कर सकते हैं।
  • आप पुलिस को, अपनी गिरफ्तारी का वारंट, पुलिस रिपोर्ट और आपकी गिरफ्तारी से संबंधित अन्य दस्तावेजों को दिखाने के लिए कह सकते हैं, और पुलिस को, यह सब आपको दिखाना ही होगा।
  • आपको अपने हस्ताक्षर करने से पहले, पुलिस द्वारा तैयार किये गये गिरफ्तारी के ज्ञापन की सटीकता की जाँच जरूर कर लेनी चाहिए। गिरफ्तारी के ज्ञापन में गिरफ्तारी की तारीख और समय लिखित होना चाहिए, और कम से कम एक गवाह द्वारा प्रमाणित किया रहना चाहिए।
  • पुलिस द्वारा आपको यह सूचित किया जाना चाहिए कि इस अपराध के लिए आपको जमानत मिल सकती है।
  • आप किसी प्रशिक्षित डॉक्टर द्वारा, अपने शरीर पर प्रमुख और मामूली चोटों को जांच कराने के लिए कह सकते हैं और पुलिस को इसका पालन करना होगा। यदि आप उनकी हिरासत में हैं तो यह जाँच हर 48 घंटों पर की जानी चाहिए। इस शारीरिक जाँच को ‘निरीक्षण ज्ञापन’ (‘इन्सपेक्शन मेमो’) में दर्ज की जानी चाहिए और इस पर पुलिस अधिकारी द्वारा हस्ताक्षर किया जाना चाहिए। जब आप उनकी हिरासत में होते हैं तो पुलिस द्वारा अपराधी पर हिंसा करने से रोकने के लिए, यह किया जाता है।
  • आपको हस्ताक्षरित निरीक्षण ज्ञापन की एक प्रति प्राप्त होनी चाहिए।

नाबालिग ड्राइविंग

सार्वजनिक स्थान पर मोटर वाहन चलाने के लिए आपकी आयु न्यूनतम आयु से अधिक होनी चाहिए।

कानून द्वारा निर्धारित आयु सीमा नीचे दी गई है:

• किसी भी मोटर वाहन को चलाने के लिए (50 सीसी से कम इंजन क्षमता वाली मोटरसाइकिल को छोड़कर): 18 वर्ष 1

• 50 सीसी से कम इंजन क्षमता वाली मोटरसाइकिल चलाने के लिए: 16 वर्ष 1

• परिवहन वाहन चलाने के लिए (उदाहरण के लिए, एक ट्रक): 20 वर्ष

अगर किसी विशेष प्रकार का मोटर वाहन चलाने के लिए आपकी आयु न्यूनतम आयु से कम है, लेकिन आप फिर भी उसे चलाते हैं, तो आपको 5000 रुपये के जुर्माने या 3 महीने तक की जेल या दोनों के साथ दंडित किया जा सकता है। 2 लागू जुर्माना राशि राज्यों में भिन्न हो सकती है।

नीचे दो राज्यों के लिए जुर्माने की राशि दी गई है:

राज्य  वाहन का प्रकार  जुर्माना राशि (भारतीय रुपयों में)
दिल्ली लागू नहीं 5,000
कर्नाटक दो पहिया वाहन/तीन पहिया वाहन 1,000
हल्का मोटर वाहन 2,000
अन्य 5,000
  1. धारा 4(1), मोटर वाहन अधिनियम, 1988[][]
  2. धारा 181, मोटर वाहन अधिनियम, 1988[]

जमानत रद्द करना

ऐसे मामलों में जहां न्यायालय का मानना है कि कार्यवाही के किसी भी चरणों के दौरान, वह व्यक्ति:
-गवाहों को भयभीत करने, रिश्वत देने या छेड़छाड़ करने में लगा है,
-फरार होने या भागने की कोशिश कर रहा है।

तब न्यायालय उसकी जमानत रद्द कर सकती है, और उस व्यक्ति को फिर से गिरफ्तार कर सकती है। यह बात दोनों, जमानती और गैर-जमानती अपराधों पर लागू होती है। जमानत रद्द तब होता है जब व्यक्ति, अपनी रिहाई के बाद ऐसा आचरण करता है जिससे मुकदमें की निष्पक्ष कार्यवाही की संभावना पर बाधा उत्पन्न हो सकती है।

महिला से संबंधित अपराधों के लिए एफ़आईआर दर्ज करना

यदि आप निम्नलिखित में से किसी अपराध के बारे में जानकारी देना चाहते हैं तो ऐसी जानकारी किसी महिला पुलिस अधिकारी या किसी अन्य महिला अधिकारी को ही दर्ज करानी होती है:

ऊपर बताए गए 3 से 12 तक के अपराधों के लिए अगर किसी मानसिक या शारीरिक विकलांगता (अस्थाई या स्थायी दोनों) से पीड़ित किसी महिला पर ऐसा अपराध किया गया है या ऐसे अपराध का आरोप लगाया गया है तो ऐसी जानकारी किसी पुलिस अधिकारी को उनके आवास या किसी ऐसे स्थान पर दर्ज की जाएगी जो रिपोर्टिंग करने वाले व्यक्ति के लिए सुविधाजनक हो। परिस्थितियों के आधार पर, वे रिपोर्ट करने के लिये किसी दुभाषिए या विशेष शिक्षाविद् की सहायता का भी अनुरोध कर सकते हैं।

पुलिस के कर्तव्य:

सूचित करना

गिरफ्तारी के 12 घंटों के भीतर, पुलिस अधिकारी को इसके बारे में पुलिस नियंत्रण कक्ष (पुलिस कंट्रोल रूम) को सूचित करना होगा:

  • आपकी गिरफ्तारी के बारे में
  • वह जगह जहां आपको हिरासत में रक्खा जा रहा है।

छान-बीन करना

जांच के दौरान पुलिस केस की छान-बीन करेगी और इसकी एक केस डायरी बनाएगी। केस डायरी एक अधिकारी द्वारा रखी गई दैनिक डायरी है जो जांच में होने वाली सभी घटनाओं का विवरण देती है। पुलिस मजिस्ट्रेट को, केस डायरी की प्रविष्टियों (एंट्रीज़) की एक प्रतिलिपि देने की जरूरत होगी।

आरोप पत्र (चार्जशीट )

जांच के आधार पर पुलिस फिर एक आरोप पत्र दायर करेगी। यदि आरोपी व्यक्ति पुलिस हिरासत में है तो, आरोप पत्र 90 दिनों के भीतर ही दायर कर दिया जाना चाहिए।

खतरनाक ड्राइविंग

अगर आप मोटर वाहन को तेज गति से या इस तरह चलाते हैं, जो जनता के लिए खतरनाक है, या जो कार चलाने वालों, अन्य सड़क उपयोगकर्ताओं और सड़क के पास के लोगों के लिए खतरे या परेशानी का कारण बनता है, तो इसे खतरनाक ड्राइविंग माना जाता है 1। नीचे सूचीबद्ध खतरनाक ड्राइविंग के कुछ उदाहरण दिए गए हैं:

• लाल बत्ती तोड़ना

• स्टॉप साइन (रुकने के साइन) का उल्लंघन करना।

• वाहन चलाते समय मोबाइल फोन जैसे किसी भी संचार उपकरण का उपयोग करना।

• अन्य वाहनों को अवैध रूप से पास करना या ओवरटेक करना।

• यातायात के प्रवाह के विपरीत गाड़ी चलाना, जैसे गलत दिशा में गाड़ी चलाना।

अगर आप खतरनाक तरीके से गाड़ी चलाते हैं, तो आपको छह महीने से लेकर एक साल तक की जेल या 1,000 से 5000 रुपये के बीच जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है। तीन साल के भीतर बाद के प्रत्येक अपराध के लिए, आपको 2 साल तक की जेल या 10,000 रुपये का जुर्माना, या दोनों के साथ दंडित किया जा सकता है। 1 लागू जुर्माना राशि राज्यों में भिन्न हो सकती है।

नीचे दो राज्यों के लिए जुर्माने की राशि दी गई है:

राज्य अपराध की निरंतरता जुर्माना राशि (भारतीय रुपयों में) 
दिल्ली पहला अपराध 1,000 – 5,000 
बाद का अपराध 10,000
कर्नाटक पहला अपराध 1,000 – 5,000

(ड्राइविंग करते समय हैंडहेल्ड संचार उपकरणों के उपयोग के लिए जुर्माना शामिल नहीं है)

कोई बाद का अपराध 10,000
  1. धारा 184, मोटर वाहन अधिनियम, 1988[][]

गैर-जमानती अपराधों के लिए जमानत

गैर-जमानती अपराध के आरोप में भी, कुछ मामलों में आपको जमानत दी जा सकती है:

  • अगर जांच या मुकदमे के किसी भी चरण में, अधिकारी या न्याालय को यह लगता है कि अभियुक्त ने गैर-जमानती अपराध नहीं किया है, तो आरोपी को जमानत दी जा सकती है।
  • यदि गैर-जमानती अपराध के आरोप में किसी व्यक्ति के मुकदमे में 60 दिनों से ज्यादा समय लगता है, और वह व्यक्ति 60 दिन से जेल में हो, तो अदालत उसे रिहा कर सकती है और उसे जमानत दे सकती है।

आरोप पत्र

एक बार जब आपने अपराध की सूचना एफआइआर दर्ज करके दे दी, तो इसके बाद प्रभारी अधिकारी को यह रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को भेजनी होगी, जो बिना किसी अनावश्यक देरी के मामले पर ध्यान देंगे और जांच को आगे बढ़ाएंगे। यह अनिवार्य कदम है जिसका पालन पुलिस को करना होगा, क्योंकि इसके चलते मजिस्ट्रेट को जांच अपने नियंत्रण में लेने की अनुमति मिलती है और यदि आवश्यक हो तो वे इसपर पुलिस को उचित दिशा-निर्देश देते हैं।

पुलिस मामले के तथ्यों और स्थितियों की जांच करेगी, और यदि आवश्यक पड़ी तो अपराध करने वाले व्यक्ति की पहचान करके उसे गिरफ्तार करने की कोशिश करेगी।

यदि पुलिस अधिकारी को लगता है कि मामला गंभीर प्रकृति का नहीं है तो वह जांच करने के लिए एक अधीनस्थ अधिकारी को निर्धारित कर सकता है। साथ ही यदि उन्हें ऐसा लगता है कि आगे जांच के लिए पर्याप्त आधार नहीं हैं तो वे कुछ भी नहीं करेंगे।

जब पुलिस जांच की कार्रवाई पूरी कर लेती है और उसे आपराधिक मामला को आगे बढ़ाने के लिये पर्याप्त सबूत मिल जाते हैं तो वे आरोप पत्र दाखिल करते हैं। यदि जांच के बाद उन्हें उस अपराध को साबित करने का कुछ नहीं मिलता है तो वे मजिस्ट्रेट के समक्ष ‘समापन (क्लोज़र) रिपोर्ट’ दाखिल कर, मामले को बंद करने का सुझाव देंगे।

आरोप पत्र का दाखिल होने के साथ ही किसी आपराधिक मुकदमें की शुरूआत होती है। पुलिस के पास आरोप पत्र या समापन रिपोर्ट दाखिल करने के लिये कोई समय सीमा नहीं होती है। यहां तक कि मजिस्ट्रेट भी किसी विशेष अवधि के अंदर आरोप पत्र दाखिल करने के लिए पुलिस को बाध्य नहीं कर सकता है। लेकिन यदि कोई अभियुक्त जेल में है तो उसके पास आरोप पत्र दाखिल करने के लिए या तो 60 दिन (जहां अपराध की सजा 10 साल से कम हो), या 90 दिन (जहां अपराध की सजा 10 साल से अधिक हो) का समय है।