एक महिला को गिरफ्तार करना

गिरफ्तारी करते समय, पालन किये जाने वाले आवश्यक सभी नियमों के अलावा, एक महिला को गिरफ्तार करते समय पुलिस को कुछ अन्य महत्वपूर्ण चीजों को ध्यान में रखना होगा। वे हैं:

  • सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले एक महिला को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता (जब तक कि असाधारण परिस्थितियाँ हैं नहीं)।
  • जब एक महिला को गिरफ्तार किया जा रहा है उस वक्त, एक महिला पुलिस सिपाही को उपस्थित रहना चाहिए।
  • असाधारण परिस्थितियों में, जब रात में एक महिला को गिरफ्तार किया जाना है तो, महिला पुलिस अधिकारी को एक लिखित अनुमति, स्थानीय न्यायिक मजिस्ट्रेट से लेनी होगी।
  • हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अब, कुछ हद तक इस नियम में ढ़ील दी है। अगर गिरफ्तार करने वाला अधिकारी समुचित रूप से संतुष्ट है और यदि महिला अधिकारी उपलब्ध नहीं है, और महिला अधिकारी की उपलब्धि में देरी, जांच में बाधा डाल सकती है, तो वह स्वयं जाकर महिला को गिरफ्तार कर सकता है। लेकिन गिरफ्तारी से ठीक पहले या, उसके तुरंत बाद उसे अपने ‘गिरफ्तारी ज्ञापन’ में, अपनी कार्यवाइयों के कारणों और परिस्थितियों के बारे में, बताना होगा।

अग्रिम जमानत

कानून हर वैसे व्यक्ति को जमानत के लिए आवेदन करने की इजाजत देता है, जिसे भले ही अभी गिरफ्तार नहीं किया गया हो, लेकिन निकट भविष्य में उसे अपनी गिरफ्तारी का भय/संदेह है। इस प्रकार की जमानत को अग्रिम जमानत के रूप में जाना जाता है। पुलिस उस व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं कर सकती जिसके पास अग्रिम जमानत का आदेश है।

अग्रिम जमानत तभी हो सकेगी जब आपके खिलाफ प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज की गई है, या यदि पुलिस आपको किसी एफआईआर के आधार पर गिरफ्तार करने आ चुकी है। कई राज्यों में यह नियम लागू नहीं है, उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश।

अक्सर लोगों के खिलाफ झूठे और बेबुनियाद मामलों में एफआईआर दायर किए जाते हैं। इससे लोगों की प्रतिष्ठा और समय का नुकसान पहुंचाया जा सकता है। ऐसी समस्याओं से बचने के लिए, और यदि उन्हें यह विश्वास करने का आधार हैं कि उन्हें भविष्य में गैर-जमानती अपराध के लिए गिरफ्तार किया जा सकता है, तो वे, गिरफ्तार किए जाने से पहले उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय में जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं। अगर न्यायालय इस जमानत आवेदन के लिए उचित कारण देखता है, तो न्यायालय जमानत की अनुमति दे सकता है। अग्रिम जमानत के अर्जी के सुनवाई के दौरान आवेदक को अदालत के समक्ष उपस्थित रहना अनिवार्य है।

जमानत द्वारा प्रदान की गई इस प्रकार की सुरक्षा केवल सीमित अवधि के लिए होती है, और आमतौर तब तक मान्य है, जब तक पुलिस ने आपके खिलाफ आरोप नहीं गढ़े हैं। हालांकि, कोई भी व्यक्ति उच्च न्यायालय में अग्रिम जमानत की अवधि बढ़ाने के लिये आवेदन कर सकता है।

यदि कोई पुलिस अधिकारी आपका एफआईआर दर्ज करने से इन्कार करता है तो इसकी शिकायत कहां करें

यदि कोई पुलिस अधिकारी आपकी शिकायत स्वीकार नहीं करता है तो आप अपनी शिकायत लिखकर पुलिस अधीक्षक को भेज सकते हैं। यदि पुलिस अधीक्षक को लगता है कि आपके मामले में दम है तो वह उस मामले की जांच-पड़ताल शुरू करने के लिए पुलिस कर्मी की नियुक्ति कर सकता/सकती है।

गिरफ्तारी करने का अधिकार

हांला कि कानून के विभिन्न अधिकारियों को गिरफ्तारी करने का अधिकार है, वे आम तौर पर पुलिस द्वारा ही किए जाते हैं। पुलिस द्वारा गिरफ्तारी के बारे में अधिक समझने के लिए कृपया हमारे ‘व्याख्याता’ (‘एक्सप्लेनर’) को पढ़ें।

कानून, पुलिस के अलावा मजिस्ट्रेटों को, लोगों को गिरफ्तार करने और उन्हें हिरासत में लेने का अधिकार देता है अगर किसी व्यक्ति ने अपराध किया हो। दो प्रकार के मजिस्ट्रेट होते हैं, कार्यकारी मजिस्ट्रेट और न्यायिक मजिस्ट्रेट। एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट का उदाहरण है, तहसीलदार। और एक न्यायिक मजिस्ट्रेट का उदाहरण है न्यायाधीश।

कानून, कुछ परिस्थितियों में, सामान्य लोगों को भी गिरफ्तारी करने की अनुमति देता है अगर वे किसी और को एक गंभीर अपराध करते देखते हैं। ऐसे मामलों में, गिरफ्तार करने वाले व्यक्ति, उसको रोक कर रक्खे नहीं रह सकता है, बल्कि उसे बिना किसी अनावश्यक देरी के, निकटतम पुलिस स्टेशन में ले जाकर एक पुलिस अधिकारी को सौंप देना चाहिए।

वाहन चलाते समय मोबाइल फोन का उपयोग करना

आप किसी भी मोटर वाहन को चलाते समय मोबाइल फोन का उपयोग नहीं कर सकते, क्योंकि यह चालक और जनता के लिए खतरा पैदा कर सकता है। इसे खतरनाक ड्राइविंग भी माना जा सकता है, जिसके लिए आपको दंडित किया जाएगा:

• पहली बार (पहला अपराध): 6 महीने से 1 साल तक की जेल या 1,000 से रु. 5,000 रुपये के बीच जुर्माना, या दोनों 1। लागू जुर्माना राशि राज्यों में भिन्न हो सकती है।

• बाद का अपराध: अगर आप पहला अपराध करने के तीन साल के भीतर दोबारा यह अपराध करते हैं, तो आपको 2 साल तक की जेल या 10,000 रुपये का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जाएगा। लागू जुर्माना राशि राज्यों में भिन्न हो सकती है।

नीचे दो राज्यों के लिए जुर्माने की राशि दी गई है:

राज्य  अपराध की आवृत्ति  जुर्माना राशि (भारतीय रुपयों में) 
दिल्ली पहला अपराध 1,000 – 5,000

 

बाद का अपराध 10,000
कर्नाटक पहला अपराध दो पहिया वाहन/तीन पहिया वाहन – 1,500 

हल्के मोटर वाहन– 3,000 

अन्य – 5,000

 

बाद का अपराध 10,000
  1. धारा 184, मोटर वाहन अधिनियम, 1988[]

अग्रिम जमानत के लिए शर्तें

अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर रहे व्यक्ति को निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना होगा, या उसका वादा करना होगा:

-आवश्यकता होने पर वह व्यक्ति, पुलिस अधिकारी द्वारा पूछताछ के लिए उपलब्ध रहेगा।
-वह व्यक्ति, प्रयत्यक्ष रुप से या अप्रत्यक्ष रुप से, किसी ऐसे व्यक्ति को जिसे इस मामले के तथ्यों की जानकारी है, उसे अदालत में या किसी पुलिस अधिकारी के समक्ष प्रकट करने से, न रोकेगा, न धमकी देगा या डरायेगा, न कोई वादा करेगा।
-वह व्यक्ति, न्यायालय की पूर्व अनुमति के बिना, भारत नहीं छोड़ेगा।
-शेष शर्तें, नियमित जमानत के शर्तों के समान हैं।

अवैध गिरफ्तारी के खिलाफ मौलिक अधिकार

अगर आपको पता है कि किसी व्यक्ति को, पुलिस या किसी प्राधिकारी ने हवालात में रक्खा है, या गिरफ्तार किया है लेकिन कोई कारण नहीं बता रहा है, तो ऐसे मामलों में, गिरफ्तार व्यक्ति या उसका कोई रिश्तेदार, भारत के किसी भी उच्च न्यायालय में या सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, बंदी प्रत्यक्षीकरण (ह्बीस कॉर्पस) याचिका दायर कर सकता है।

भारत का संविधान हर किसी को न्यायालय से यह निवेदन करने का मौलिक अधिकार देता है कि न्यायालय, गिरफ्तार करने वाले प्राधिकारी को, गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को पेश करने के लिये आदेश करे, और यह भी जाँच करे कि क्या यह गिरफ्तारी वैध है।

इस मौलिक अधिकार का उपयोग तब किया जाता है जब किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है और उसे एक ‘हवालात प्राधिकारी’ (डीटेनिंग ऑथोरिटी) की हिरासत में रक्खे रहता है:

  1. बिना गिरफ्तारी के कारणों के बारे में सूचित किए; या
  2. अपनी पसंद के कानूनी व्यवसायिक द्वारा बचाव किये जाने के अधिकार से वंचित कर दिया है।

यह मौलिक अधिकार अत्यंत ही व्यापक है। कब बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर किया जा सकता है इसे अधिक समझने के लिए कृपया किसी कानूनी व्यवसायी से बात करें।

वाहन चलाते समय हेलमेट नहीं पहनना

दोपहिया मोटरसाइकिल चलाने वालों को हेलमेट या सुरक्षात्मक हेडगीयर पहनना होता है 1। इसके अलावा, प्रत्येक व्यक्ति, जिसमें 4 वर्ष से अधिक आयु के बच्चे 1 शामिल हैं, जो दोपहिया मोटरसाइकिल की सवारी कर रहे हैं, उन्हें भी हेलमेट पहनना होगा। इस हेडगियर में दो विशेषताएं होनी चाहिए 1 :

• दुर्घटना के मामले में चोट से सुरक्षा प्रदान करने की विशेषताएं

• पहनने वाले के सिर पर (जैसे, पट्टियों से) सुरक्षित रूप से बांधा जाना चाहिए

केवल सिख लोग जो पगड़ी पहनते हैं और महिलाओं को अनिवार्य रूप से हेलमेट पहनने की आवश्यकता नहीं है। 1 हालाँकि, यह अपवाद राज्यों में भिन्न होता है।

अगर आप वाहन चलाते समय हेलमेट नहीं पहनते हैं तो आपको कम से कम एक हजार रुपये का जुर्माना देना होगा और आपको 3 महीने के लिए लाइसेंस रखने से अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा 2 लागू जुर्माना राशि राज्यों में भिन्न हो सकती है।

नीचे दो राज्यों के लिए जुर्माने की राशि दी गई है:

राज्य  जुर्माना राशि (भारतीय रुपयों में)
दिल्ली 1,000
कर्नाटक 500
  1. धारा 129, मोटर वाहन अधिनियम, 1988[][][][]
  2. धारा 194D, मोटर वाहन अधिनियम, 1988[]

बिना जमानत के, कारावास का अधिकतम सीमा

जो लोग जेल में हैं, और उनके खिलाफ मुकदमे चल रहे हैं तो उन्हें अंडर-ट्रायल कैदी कहा जाता है। चूंकि भारत में मुकदमें कई वर्षों तक चलते रहते हैं, इसलिए अंडर-ट्रायल कैदियों को, अपराध के लिये दोषी सिद्ध हुए बिना, लंबे समय तक जेल में रहने से, उन्हें बचाया जाना चाहिए। कानून में अंडर-ट्रायल कैदियों की रक्षा के लिए जमानत के प्रावधान हैं।

अगर एक व्यक्ति को किसी अपराध के लिए गिरफ्तार किया गया है और वह उस अपराध के लिए निर्दिष्ट कारावास की अधिकतम सीमा से आधे समय तक जेल में रह चुका है, तो न्यायालय को उन्हें रिहा करने का आदेश जरूर देना चाहिये।

फिर भी, यदि न्यायालय को पर्याप्त कारण मिलते हैं तो वह अंडर-ट्रायल कैदी की निरंतर हिरासत में रखने का आदेश दे सकता है, यद्यपि वे सजा के अधिकतम सीमा के आधे समय से अधिक तक जेल में रह चुके हैं।

मजिस्ट्रेट के सामने पेशी

कोई भी व्यक्ति जिसे गिरफ्तार किया गया है और पुलिस की हिरासत में रक्खा गया है, गिरफ्तारी के चौबीस घंटे की अवधि के अंदर उसे निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाना चाहिए। पुलिस द्वारा हर गिरफ्तार व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना इसलिए जरूरी है यह सुनिश्चित हो सके कि व्यक्ति की गिरफ्तारी के पीछे समुचित कानूनी आधार हैं। गिरफ्तारी के ज्ञापन समेत सभी दस्तावेजों की प्रतियों को, संबंधित मजिस्ट्रेट को उनके रिकॉर्ड के लिए भेजी जानी चाहिए। ऐसे मामलों में जब आरोपी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं किया जा रहा है, तो एक बंदी प्रत्यक्षीकरण (ह्बीस कॉर्पस) याचिका दायर की जा सकती है।