विभाजन विवाद क्या है और इन्हें कैसे सुलझाया जाता है?

हिंदू संयुक्त परिवार की संपत्ति को हिंदू वसीयतनामा कानून यानी हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार बंटवारा करने से जुड़े विवादों के रूप में विभाजन (बंटवारा) विवाद को देखा जा सकता है।

संपत्ति विभाजन के विवादों को सुलझाने के दो तरीके हैंः

1. पारिवारिक समझौता 

पारिवारिक समझौता परिवार के सदस्यों के बीच आपसी समझ से परिवार की संपत्ति को बांटने और अदालती लड़ाई से बचने के लिए किया गया एक समझौता है। यह विभाजन दस्तावेज के  फाॅमेट जैसा ही होता है। पारिवारिक समझौते को पंजीकृत और मुहर लगाना जरूरी नहीं है। हालांकि, परिवार के सभी सदस्यों के हस्ताक्षर बिना किसी धोखाधड़ी, जबरदस्ती या बिना किसी के दबाव के स्वेच्छा से होने चाहिए।

2. विभाजन मुकदमा

संपत्ति के विभाजन के लिए मुकदमा एक अदालती मामला है। ऐसे मामलों में परिवार के सदस्य संपत्ति को बांटने के नियमों और शर्तों पर राजी नहीं होते और आमतौर पर संपत्ति को अपने हिसाब से बांटना चाहते हैं। यहां पहला काम सावधानीपूर्वक मसौदा तैयार करना और परिवार की संपत्ति से जुड़े संपत्ति के अन्य कानूनी उत्तराधिकारियों को कानूनी नोटिस भेजना है।

ऑनलाइन बैंक धोखाधड़ी को रोकने के लिए बैंकों की जिम्मेदारी

बैंकों को अपने ग्राहकों को इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग लेनदेन के लिए अनिवार्य रूप से एसएमएस अलर्ट के लिए पंजीकरण करने के लिए कहना चाहिए। जहां कहीं भी उपलब्ध हो, उन्हें अपने ग्राहकों को इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग लेनदेन के लिए ई-मेल अलर्ट के लिए पंजीकरण करने के लिए कहना चाहिए।

एसएमएस अलर्ट अनिवार्य रूप से ग्राहकों को भेजे जाएंगे, जबकि इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग लेनदेन की स्थिति में जहां कहीं भी पंजीकृत हैं, ईमेल अलर्ट भेजे जा सकते हैं। ग्राहकों को उनकी इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग सेवाओं के किसी भी अनधिकृत उपयोग तथा अनधिकृत लेनदेन की रिपोर्ट करने के लिए और/या कार्ड आदि जैसे भुगतान साधन की हानि या चोरी की रिपोर्ट करने के लिए, बैंकों को ग्राहकों को कई 24×7 समर्पित चैनलों के माध्यम की सुविधा, (कम से कम, वेबसाइट, फोन बैंकिंग, एसएमएस, ई-मेल, इंस्टेंट वॉयस रिस्पांस, टोल-फ्री हेल्पलाइन, होम ब्रांच को रिपोर्ट करना, आदि) प्रदान करनी चाहिए। बैंकों को ग्राहकों को एसएमएस और ई-मेल अलर्ट पर हीं ‘रिप्लाई’ भेज कर तुरंत उत्तर देने का अधिकार देना होगा, ताकि ग्राहकों को इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन पर आपत्ति को सूचित करने के लिए वेब पेज या ई-मेल पते की खोज करने की आवश्यकता न हो।

बैंकों को अपनी वेबसाइट के होम पेज पर अनधिकृत इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन की रिपोर्ट करने के विशिष्ट विकल्प के साथ शिकायत दर्ज करने के लिए एक सीधा लिंक भी प्रदान करना होगा। हानि/धोखाधड़ी रिपोर्टिंग प्रणाली को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पंजीकृत शिकायत संख्या के साथ शिकायत को स्वीकार करने वाले ग्राहकों को तत्काल प्रतिक्रिया (ऑटो प्रतिक्रिया सहित) भेजी जाए। बैंकों को अलर्ट की डिलीवरी का समय और तारीख और ग्राहक की प्रतिक्रिया की प्राप्ति, यदि कोई हो, को रिकॉर्ड करना चाहिए।

जो ग्राहक बैंक को मोबाइल नंबर प्रदान नहीं करते हैं, उन्हें बैंक एटीएम नकद निकासी के अलावा इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन की सुविधा नहीं दे सकते हैं। ग्राहक से अनधिकृत लेनदेन की रिपोर्ट प्राप्त होने पर, बैंकों को खाते में और अनधिकृत लेनदेन को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए।

उपभोक्ता शिकायतों के प्रकार

उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत प्रत्येक व्यक्ति को निम्नलिखित प्रकार की उपभोक्ता शिकायतें दर्ज करने का अधिकार है-

ई-कॉमर्स शिकायतें 

‘ई-कॉमर्स’ का अर्थ डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक नेटवर्क पर (डिजिटल उत्पादों सहित) सामान या सेवाओं को खरीदना या बेचना है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन, वितरण, विपणन, बिक्री या वितरण शामिल है।

ई-कॉमर्स संस्थाएं, जैसे कि फ्लिपकार्ट और अमेज़ॉन सरीखी ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट्स को लंबे समय से ऐसे सेवा प्रदाताओं के रूप में बरता जाता रहा है, जो लाभ के लिए काम करती हैं। इनके द्वारा जब भी उपभोक्ता अधिकारों का उल्‍लंघन हुआ है, तो उन्हें उत्तरदायी ठहराया गया है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 द्वारा लाये गये प्रमुख सुधारों में से एक यह है कि यह इन ई-कॉमर्स संस्थाओं को नियंत्रित करने के लिए वह नियमावली निर्धारित करता है-

• ई-कॉमर्स संस्थाओं को शिकायत के 48 घंटे के भीतर जवाब देना होगा।

• शिकायत कहीं से भी की जा सकती है, भले ही खरीदारी कहीं से भी की गयी हो।

• अमेज़ॉन, फ्लिपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स संस्थाओं को अब विक्रेताओं के ब्‍योरे प्रदर्शित करना ज़रूरी है, जैसे उनका कानूनी नाम, भौगोलिक पता, संपर्क विवरण, आदि।

• इन संस्थाओं को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से माल की कीमतों में हेरफेर नहीं करना चाहिए, और बिक्री के किसी भी अनुचित या भ्रामक तरीके को नहीं अपनाना चाहिए।

• उन्हें उत्पाद के गुणों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने और नकली समीक्षाएं पोस्ट करने की मनाही है।

• कानून, उपभोक्ताओं की व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा के आदेश देता है।

भ्रामक विज्ञापनों की शिकायतें 

कोई विज्ञापन, टेलीविज़न, रेडियो या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, समाचार पत्रों, बैनर, पोस्टर, हैंडबिल, दीवार-लेखन आदि के माध्यम से एक प्रचार होता है। एक भ्रामक विज्ञापन वस्तुओं और सेवाओं के बारे में असत्य बातें कहता है, जो उपभोक्ता को उन्हें खरीदने के लिए गुमराह कर सकता है। ये विज्ञापन किसी उत्पाद या सेवाओं की उपयोगिता, गुणवत्ता और मात्रा के बारे में झूठे दावे कर सकते हैं, या जानबूझकर उत्पाद के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी (जैसे ज्ञात दुष्प्रभाव) छिपा सकते हैं, आदि। भ्रामक दावे करने पर विज्ञापनदाताओं पर मुकदमा चलाया जा सकता है। ऐसे विज्ञापन, जिनमें उस खास लाभकारी पहला संयोजन वाले पहले टूथपेस्ट होने का दावा शामिल है, जबकि वास्तव में ऐसा लाभकारी संयोजन उसमें नहीं होता है, या ऐसी विज्ञापन योजनाएं जो उपभोक्ताओं को फायदा पहुंचाये बिना कंपनी का अपना लाभ बढ़ाने की कोशिश करती हैं, आदि।

अनुचित व्यापार चलन की शिकायतें 

उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत अनुचित व्यापार प्रथाओं की एक व्यापक परिभाषा है। उसमें माल के मानक, गुणवत्ता और मात्रा के बारे में, और इस्‍तेमालशुदा / पुरानी वस्तुओं को नये माल के रूप में बेचने के भी झूठे बयान शामिल हैं। इसमें वारंटी के झूठे दावे, या वारंटी अवधि का वैज्ञानिक रूप से परीक्षण न किये जाने जैसी चीज़ें भी शामिल हैं। इसके परिणामस्वरूप कई मुकदमे हुए हैं, जिनमें से एक में एक नूडल-निर्माता अपने पैकेटों पर झूठी सीसा सामग्री बता रहा था। एक और मामले में दवाओं के लेबल बदल कर उनकी समाप्ति अवधि को कृत्रिम ढंग से आगे बढ़ा दिया जाता था, लेबल पर बतायी गयी सामग्री से अलग ही अवयवों से बने माल की बिक्री, आदि।

प्रतिबंधात्मक व्यापार आचरण संबंधी शिकायतें 

प्रतिबंधात्मक व्यापार क्रियाकलापों का अर्थ है ऐसा व्यापार व्‍यवहार जो माल की कीमत, या वितरण में हेरफेर करता है, जो बाजार में आपूर्ति के प्रवाह को प्रभावित करता है। इससे उपभोक्ताओं को अनुचित लागत या प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है। आम तौर पर यह कुछेक ऐसे तरीकों से किया जाता है-मूल्य आरोपण, एकाधिकार से सौदेबाज़ी करना, बेचे हुए माल के रीसेल मूल्यों को नियंत्रित करना, कोई सामान या सेवा खरीदने के लिए दूसरे सामान या सेवाओं को खरीदना भी अनिवार्य कर देना। इसका एक प्रत्‍यक्ष उदाहरण है, इलेक्ट्रॉनिक सामानों का डिलीवरी और फिक्सिंग का मनमाना मूल्‍य वसूलना। नतीजतन, उपभोक्ता चाहे-अनचाहे सेवा का भुगतान कर देता है, जिससे उन्हें मजबूरन अनुचित खर्च करना पड़ता है।

खराब माल की शिकायत 

दोषपूर्ण सामान वह सामान है जिसमें गुणवत्ता, मात्रा, शुद्धता या मानक संबंधी ऐसा कोई दोष, अपूर्णता या कमी है, प्रचलित कानून के तहत जिसका पालन करना विक्रेता के लिए आवश्यक है। कुछ उदाहरण मिलावटी या दोषपूर्ण ढंग से तैयार पेय पदार्थ, खराब मशीनरी, बेढंगी कलाकृतियां आदि हैं।

नकली सामान की शिकायत 

नकली सामान वे होते हैं जिन पर झूठा दावा किया जाता है कि वे असली हैं या वे जो असल की नकल होते हैं। ये अक्सर निम्न गुणवत्ता वाले होते हैं और मूल सामान के कानूनी मालिकों के ट्रेडमार्क और कॉपीराइट का उल्‍लंघन करते हैं। एक महत्वपूर्ण उदाहरण स्थानीय बाज़ारों में मिलने वाली दवाओं या सस्ते मेकअप उत्पादों का है। अक्सर, नकली दवाएं किसी अन्य दवा के नाम से बेची जाती हैं, या वे भ्रामक तरीके से किसी अन्य दवा की नकल के बतौर या उसके बदले में बेची जाती हैं।

एमआरपी (अधिकतम खुदरा मूल्य) से ज्‍़यादा पैसे लेना 

किसी उत्पाद के अधिकतम खुदरा मूल्य के बतौर निर्धारित मूल्य से ज्‍़यादा दाम लेते समय, विक्रेता, उपभोक्ता से आम तौर पर यह वसूली धोखे से या झूठ बोल कर करते हैं। यह उपभोक्ता अधिकारों का घोर उल्‍लंघन है।

खाने की शिकायतें 

वर्तमान कानून, खाद्य उत्पादों संबंधी शिकायतों पर भी ध्‍यान देता है। उदाहरण के लिए, ग्राहक फूड सेफ्टी कनेक्ट पोर्टल पर पैकेजित आहार के बारे में अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं जैसे कि उसका मिलावटी होना, उसका समय समाप्‍त होना, FSSAI लाइसेंस का न होना, आदि या स्वच्छता की कमी, उसमें कीड़े मौजूद होने आदि जैसे सेवा संबंधी मुद्दे।

आयकर किसे भरना होता है?

प्रत्येक व्यक्ति को आयकर का भुगतान करना पड़ता है। ‘व्यक्ति 16’ शब्द को आयकर कानून के तहत परिभाषित किया गया है जिसमें शामिल हैं:

• एक व्यक्ति। उदाहरण के लिए, वेतन पाने वाला एक कर्मचारी आदि।

• अविभाजित हिन्दू परिवार (एच.यू.एफ.)। उदाहरण के लिए, श्री राकेश, श्रीमती राकेश और उनके पुत्रों के एक अविभाजित हिन्दू परिवार (एच.यू.एफ.) होने के कारण संयुक्त परिवार के नाते उनके अलग-अलग सदस्यों के अलावा संयुक्त परिवार पर भी कर लगाया जा सकता है। • व्यक्तियों का संघ या व्यक्तियों का निकाय। उदाहरण के लिए, एक सहकारी आवास समिति (हाउसिंग कॉपरेटिव सोसाइटी)।

• फर्म। उदाहरण के लिए, ‘टैक्समैन एंड कंपनी’ नामक एक फर्म-जिसका स्वामित्व श्री राकेश और श्रीमती राकेश के पास है।

• एलएलपी(सीमित देयता भागीदारी)/एलएलपी(लिमिटेड लायबिलिटी प्रॉपर्टी)। उदाहरण के लिए एबीसी एलएलपी। एक एलएलपी में, प्रत्येक भागीदार/पार्टनर दूसरे पार्टनर के कदाचार या लापरवाही के लिए जिम्मेदार या उत्तरदायी नहीं होता है।

• कंपनियाँ। उदाहरण के लिए, ABC लिमिटेड, XYZ लिमिटेड।

• स्थानीय प्राधिकारी और कोई कृत्रिम न्यायिक व्यक्ति जो ऊपर दिए गए किसी भी बिंदु में से शामिल नहीं है। जैसे, विश्वविद्यालय और संस्थान, नगर निगम, आदि।

इस प्रकार, ‘व्यक्ति’ शब्द की परिभाषा से यह देखा जा सकता है कि, एक स्वभाविक या सामान्य व्यक्ति के अलावा, यानी, एक व्यक्ति, जो अन्य कृत्रिम संस्थाएं जैसे कंपनी, एच.यू.एफ., आदि के लिए भी आयकर का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होंगे। व्यक्तियों के सभी संघ, व्यक्तियों के निकाय, स्थानीय प्राधिकरण, कृत्रिम न्यायिक व्यक्ति को आयकर का भुगतान करना होगा, भले ही वे लाभ या आय कमाने के उद्देश्य से बनाया गया हो, या फिर बिना उद्देश्य के बनाए गए हों। भारत में कुछ संस्थाओं को कर का भुगतान नहीं करना पड़ता है क्योंकि उन्हें कानून के तहत कर का भुगतान करने से छूट दी गई है। अधिक जानने के लिए यहां पढ़ें।

चेक भुनाना

चेक को भुनाने के लिए इन चरणों का पालन करें।

आपको जारी किए गए चेक के प्रकार का विश्लेषण करें।

बियरर चेक

यदि यह एक बियरर चेक है, तो चेक पर कोई नाम नहीं लिखा होगा। आप निम्नलिखित कर सकते हैं:

• बैंक की किसी भी शाखा (शहर में) में जाएं, जिस शाखा का चेक है

• इसे भुगतान के लिए प्रस्तुत करें

• बैंक टेलर, चेक के विवरण का सत्यापन करेगा और उसका भुगतान करेगा

• चेक तभी और वहीं क्लियर हो जाएगा और आपको कैश मिल जाएगा

ऑर्डर चेक

अगर यह ऑर्डर चेक है तो उस पर आपका नाम लिखा होगा। आप ऐसा कर सकते हैं:

• शहर में बैंक की किसी भी शाखा में जाएं, जिसका बैंक का चेक है और

• इसे भुगतान के लिए प्रस्तुत करें

• बैंक टेलर, चेक पर विवरण को सत्यापित करेगा और इसका भुगतान करेगा-चेक तभी और वहीं क्लियर हो जाएगा और आपको नकद मिल जाएगा

अकाउंट पेयी चेक/पाने वाले के खाते में देय चेक

यदि यह एक अकाउंट पेयी चेक है, तो चेक के पीछे अपना नाम, अपना खाता नंबर और संपर्क नंबर लिखें, जमा पर्ची भरें और निम्नलिखित दो विकल्पों में से किसी एक का प्रयोग करें।

बैंक/एटीएम ड्रॉपबॉक्स जमा

आप या तो अपने बैंक के एटीएम में जा सकते हैं या सीधे अपने बैंक की किसी भी शाखा में जा सकते हैं जहां आपका खाता है।

यदि आपके बैंक के एटीएम में चेक जमा पर्ची और एक ड्रॉप बॉक्स है, तो सबसे सुविधाजनक विकल्प निम्नलिखित करना है:

• चेक जमा पर्ची भरना। एक जमा पर्ची के दो भाग होते हैं; आप जितना छोटा हिस्सा भरकर अपने पास रखते हैं और जितना बड़ा हिस्सा भरते हैं और ड्रॉप बॉक्स में अपने चेक के साथ जमा करते हैं।

• पर्ची के अपने हिस्से को फाड़कर अपने पास रख लें

• चेक और जमा पर्ची के अन्य भाग को पिन करें

• एटीएम ड्रॉपबॉक्स में डालें।

हालांकि, इस ड्रॉपबॉक्स विकल्प के साथ, आपको बैंक से आपके चेक और जमा पर्ची की प्राप्ति की पावती नहीं मिलेगी। इसका मतलब यह है कि अगर किसी भी मौके पर चेक गुम हो जाता है, तो आप बैंक से चेक की स्थिति के बारे में पता नहीं कर पाएंगे। हालांकि, आप अभी भी इंटरनेट बैंकिंग के माध्यम से या बैंक को एक पत्र लिखकर अपना चेक रोक सकते हैं। अगर आपकी बैंक शाखा के एटीएम में ड्रॉपबॉक्स की सुविधा नहीं है तो आपको बैंक जाकर चेक ड्रॉप करना होगा। विस्तृत प्रक्रिया नीचे दी गई है।

एटीएम जमा राशि

कुछ एटीएम के पास एटीएम मशीन में ही चेक जमा करने का विकल्प होता है। कृपया मशीन में निर्धारित प्रक्रिया का पालन करें और तदनुसार जमा करें।

बैंक जमाराशि

• चेक डिपॉजिट पर्ची भरें

• विभिन्न पर्चियों के बीच उपयुक्त चेक डिपॉजिट पर्ची प्रपत्र प्राप्त करें जो आमतौर पर शाखा के ड्रॉपबॉक्स क्षेत्र में रखी जाती हैं। सुनिश्चित करें कि आपके पास उचित पर्ची है।

• अपना बैंक खाता संख्या, शाखा का नाम, चेक राशि आदि सावधानी से भरें। उपयुक्त स्थान पर हस्ताक्षर करें। चेक का विवरण भी भरें, जैसे कि चेक नंबर, जिस बैंक से चेक निकाला गया है, राशि, जिस तारीख को ऐसा चेक निकाला गया था, आदि। सुनिश्चित करें कि आप इन विवरणों को संबंधित स्थानों पर भरें।

• पर्ची के अपने हिस्से को फाड़ें, चेक और पर्ची के दूसरे हिस्से पर पिन लगाएं और उन्हें ड्रॉपबॉक्स में डाल दें।

बरती जाने वाली सावधानियां

मकान किराए पर देते समय एक एग्रीमेंट किया जाता है, लेकिन ऐसा करते वक्त अक्सर किराए संबंधी कानूनी प्रक्रियाओं का ठीक से पालन नहीं किया जाता है।

चूंकि यह एक अनुबंध है और इसमें संपत्ति और पैसे का लेन-देन शामिल है, इसलिए मकान किराए पर लेते/देते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है:

आपने मकान मालिक/लाइसेंसकर्ता/किरायेदार/लाइसेंसधारी के साथ आपका संबंध एक आनुबांधिक संबंध है। अर्थात आपका कानूनी संबंध एक सौदे पर आधारित है, जिसमें कुछ स्पष्टतः शर्तें होती है।

इन सब के बावजूद

  • यदि आपने मकान किराये पर लेते समय कोई लीज एग्रीमेंट किया है तो आपके पास कुछ अन्य संरक्षण उपलब्ध है।
  • इस प्रकार का कानूनी संरक्षण आपको लीव और लाइसेंस एग्रीमेंट के तहत नहीं उपलब्ध होगा।

सौदे के सिद्वांत और स्पष्ट शर्ते दोनों प्रकार की करारों को लागू होतीं है, भले ही उनसे जो भी संरक्षण उपलब्ध हो।

आपको यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जिन शर्तों पर सहमति हुई है या जिस रकम का भुगतान किया है, उसके पर्याप्त सबूत आपके पास हैं।

इसे इस तरह किया जा सकता है:

  • समझौते की एक लिखित प्रतिलिपि होनी चाहिए
  • कागज/व्हाट्सएप/ईमेल/संदेश (यदि संभव हो तो), या मौखिक रूप से की गई चर्चा को लिख लेना चाहिए, और
  • यदि कोई भुगतान किया गया है तो उसकी रसीदें (यदि संभव हो तो) रख लेनी चाहिये।

इससे यह सुनिश्चित होता है कि यदि कोई व्यक्ति किसी भुगतान या सहमति के शर्तों पर विवाद करता है तो आप सहमति के शर्तों पर किये गये भुगतान का प्रमाण दिखा सकते हैं।

वसीयत के लिये एक निष्पादक (Executor) की नियुक्ति

जिस व्यक्ति को आप अपनी मृत्यु के बाद, वसीयत में दिए गए अनुदेशों को निष्पादित करने अथार्त लागू करने का दायित्व सौंपते हैं, उसे आपकी विल का निष्पादक कहा जाता है।

आप किसी ऐसे व्यक्ति को अपना निष्पादक नियुक्त कर सकते हैं, जो मानसिक रूप से स्वस्थ हो और 18 वर्ष से अधिक उम्र का हो। आपको चाहिए कि आप ऐसे व्यक्ति का चयन करेंं, जिस पर अापका पूरा विश्वास हो और जो निष्पादक के रूप में कार्य करने का इच्छुक और सक्षम हों।

यदि आपने अपने विल में कोई निष्पादक नियुक्त नहीं किया हो, तो न्यालय को अधिकार है कि वह कोई ऐसा प्रशासक नियुक्त कर सकता है, जो आपकी विल को निष्पादित करेगा।

ज़मीन माप विवाद को कैसे सुलझा सकते हैं?

अगल- बगल में जमीन रखने वाले मालिकों के बीच अगर प्लॉट के  माप को लेकर कोई विवाद है। इस स्थिति में, वे सरकारी क्षेत्रमापक (पटवारी) की मदद लेकर संयुक्त सर्वे कराके इसका हल निकाल सकते हैं।

इस तरह के विवाद को सुलझाते समय स्वामित्व दस्तावेजों और राजस्व रिकॉर्ड की जानकारी को देखा जाना चाहिए। आप इन्हें अपनी स्थानीय तहसीलदार के कार्यालय में रिकॉर्ड ऑफ राइट्स (आरओआर) या ऑनलाइन देख सकते हैं, अगर राज्य ने आरओआर को डिजिटाइज़ किया है। एक पक्ष द्वारा दूसरे की ज़मीन पर किए गए किसी भी अतिक्रमण को हटाना होगा। उदाहरण के लिए, इस तरह के अतिक्रमण में एक बाड़ लगाना शामिल है, जो किसी दूसरे की संपत्ति में प्रवेश करता है या एक इमारत को अपनी संपत्ति की सीमाओं से बाहर फैलाता है या पेड़ की डालियों को पड़ोसियों की संपत्ति में फैलाना हो सकता है, जो चोट/नुकसान का कारण हो।

अगर बताए गए उपायों से हल नहीं निकलता है, तो पीड़ित पक्ष कोर्ट जा सकता है।

ऑनलाइन बैंक धोखाधड़ी के लिए शिकायत दर्ज करना

पुलिस स्टेशन 

जब आप ऑनलाइन बैंक धोखाधड़ी की शिकायत करने के लिए पुलिस स्टेशन जाते हैं, तो वे आपसे एफआईआर दर्ज करने के लिए कहेंगे। आपको यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आप अपने साथ हुई ऑनलाइन धोखाधड़ी के बारे में सभी जानकारी दें।

ऑनलाइन शिकायत 

पुलिस थाने के साइबर अपराध प्रकोष्ठ में प्राथमिकी दर्ज करने के अलावा, आप गृह मंत्रालय के ऑनलाइन अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल पर भी ऑनलाइन शिकायत दर्ज कर सकते हैं। घटना की विस्तृत जानकारी देकर शिकायत दर्ज करें। आप धोखाधड़ी वाले लेनदेन के संबंध में प्राप्त ई-मेल या संदेशों के स्क्रीनशॉट जैसी फ़ाइलें अपलोड करना भी चुन सकते हैं

उपभोक्ता शिकायत मंच

उपभोक्ता संरक्षण कानून संबद्ध प्राधिकरणों और शिकायत मंचों को निर्दिष्‍ट करता है कि कोई उपभोक्ता अपने उपभोक्ता-अधिकारों का उल्‍लंघन होने पर उनसे संपर्क कर सकता है। जिले, राज्य, और राष्‍ट्रीय स्तर पर तीन उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग हैं। इन सभी मंचों का कर्तव्य है कि वे एक उपभोक्ता के सरोकार सुनें और सुनिश्चित करें कि हर सरोकार को उचित महत्व दिया जाए। इन आयोगों का अधिकार क्षेत्र इस हिसाब से तय होता है-

1. प्रयुक्‍त वस्तुओं या सेवाओं का मूल्य (कीमत)

2. उपभोक्ता या विक्रेता का निवास स्थान या किसी एक पक्ष का कार्यस्थल या जहां विवाद शुरू हुआ

3. वह स्थान जहां शिकायत दर्ज करने वाला व्यक्ति रहता है

विवाद शुरू होने के बाद 2 साल के भीतर, उपभोक्ता विवाद निवारण आयोगों में सुनवाई के लिहाज़ से शिकायतें दर्ज की जानी चाहिए। शिकायत निवारण / आयोग जिनसे उपभोक्ता अधिकारों के उल्‍लंघन के लिए संपर्क किया जा सकता है और उनके द्वारा न्‍याय-निर्णीत मामले इस प्रकार हैं-

जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (डीसीडीआरसी) 

जिला आयोग एक जिला स्तरीय शिकायत निवारण मंच है जो एक करोड़ रुपये से कम कीमत के सामान संबंधी शिकायतों को देखता है। आयोग 21 दिनों की अवधि के भीतर शिकायत को स्वीकार या अस्वीकार करता है। यदि आयोग निर्दिष्‍ट समय में जवाब नहीं देता है, तो शिकायत स्वीकार कर ली जाएगी और जिला आयोग उसकी जांच करेंगे। शिकायत खारिज करने से पहले, आयोग को शिकायतकर्ता को सुनवाई का मौका देना चाहिए। आयोग के पास प्राप्‍त की गयी वस्तुओं या सेवाओं से जुड़ी किसी भी समस्या या दोष को दूर करने का आदेश देने की शक्ति है, या वह शिकायतकर्ता को राहत के रूप में जुर्माने का भुगतान करने का आदेश दे सकता है। जिला आयोग का आदेश जारी होने के 45 दिनों के भीतर मामले के पक्षकारों के पास जिला आयोग के आदेश के विरुद्ध अपील, राज्य आयोग में दायर करने का विकल्प भी है। आप राष्ट्रीय उपभोक्ता निवारण वेबसाइट पर दिये गये जिला आयोगों का विवरण पा सकते हैं। .

राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एससीडीआरसी) 

राज्य आयोग संबंधित राज्य की राजधानी में स्थित एक राज्य स्तरीय शिकायत निवारण मंच है, जहां 1 करोड़ से 10 करोड़ रुपये के मूल्य के सामान के संबंध में शिकायतें दर्ज की जा सकती हैं। देश में लगभग 35 राज्य आयोग हैं, जहां जिला आयोग की शिकायतों, अपीलों और अनुचित अनुबंधों के मामलों की सुनवाई होती है। राज्य आयोग के निर्णय के खिलाफ अपील राष्ट्रीय आयोग में आदेश जारी होने की तारीख से 30 दिनों के भीतर दायर की जा सकती है। ऐसी अपील दायर होने के बाद, राष्ट्रीय आयोग द्वारा उस पर 90 दिनों के भीतर निर्णय लिया जाना आवश्यक है।

राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) 

राष्ट्रीय आयोग, उपभोक्ता शिकायत निवारण का सर्वोच्च प्राधिकरण है। यह राष्ट्रीय राजधानी, नयी दिल्‍ली में स्थित है। उन वस्तुओं या सेवाओं संबंधी शिकायतें जिनकी कीमत 10 करोड़ रुपये से अधिक है, तथा राज्य आयोग या केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण के आदेशों के खिलाफ अपीलें एनसीडीआरसी में दायर की जा सकती हैं। राष्ट्रीय आयोग के निर्णय के खिलाफ अपील पारित आदेश की तारीख से 30 दिनों की अवधि के भीतर सर्वोच्च न्यायालय में दायर की जा सकती है। आयोग के आदेश उसकी वेबसाइट पर प्रकाशित होते हैं। आयोग के पास अपने आदेश प्रकाशित करने का कानूनी अधिकार है और इन आदेशों को प्रकाशित करने के लिए आयोग के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती है। राष्ट्रीय आयोग पोर्टल अपने मंच के माध्यम से पंजीकरण और इलेक्ट्रॉनिक शिकायत दर्ज करने संबंधी वीडियो निर्देश भी प्रदान करता है।

शिकायतों पर निर्णय लेने का समय 

एक उपभोक्ता शिकायत पर आयोग द्वारा 3 महीने की अवधि के भीतर निर्णय लिया जाना चाहिए। उत्पादों / दोषों के परीक्षण की आवश्यकता होने पर इसे 5 महीने तक बढ़ाया जा सकता है।

आयोगों द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ अपीलें 

यदि निर्दिष्‍ट अवधि में आयोग द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ अपील नहीं की गयी हो तो वे अंतिम होते हैं। इस नियम के अपवाद हैं, क्योंकि आयोग के पास उन मामलों को स्वीकार करने का अधिकार है, जिनके लिए निर्धारित समय में अपील दायर नहीं की गयी हो। इन प्रावधानों के अलावा, मामलों को एक जिला आयोग से दूसरे में और एक राज्य आयोग से दूसरे में क्रमशः राज्य व राष्ट्रीय आयोगों द्वारा स्थानांतरित किया जा सकता है; यदि और जब भी पार्टियां आवेदन करें तो। एक उपभोक्ता जिसने ऊपर उल्लिखित किसी भी फोरम में शिकायत दर्ज करायी है, वह ऑनलाइन केस स्टेटस पोर्टल के माध्यम से अपने मामले को ट्रैक कर सकता है। अपने मामले को ट्रैक करने के लिए आप अपने वकील से अपने केस नंबर का विवरण मांग सकते हैं।