भारत में महिलाओं के लिए मातृत्व लाभ क्या हैं?

मातृत्व लाभ वह पैसे हैं, जो एक नियोक्ता (मालिक या संस्था) एक महिला को तब देता है, जब उसका बच्चा होने वाला हो। यह लाभ गर्भावस्था के दौरान महिला कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा करने में मदद करता है। साथ ही उन्हें सवैतनिक छुट्टियां (पेड लीव) देता है, ताकि वे बिना डरे गर्भावस्था के दौरान छुट्टियां ले सकें।

मैनुअल स्कैवेंजर कौन होता है

कोई भी व्यक्ति जिसे अस्वच्छ शौचालय, खुले नाले या गड्ढे या रेलवे ट्रैक से असंक्रमित मानव अपशिष्ट को हटाने या साफ करने के लिए नियोजित किया जाता है, उसे मैनुअल स्कैवेंजर कहा जाता है। इस व्यक्ति को कोई भी नियुक्त कर सकता है-जैसे कि उनके गांव का कोई व्यक्ति या किसी एजेंसी या कोई ठेकेदार।यह मायने नहीं रखता कि उसे नियमित रोजगार दिया गया है या फिर उसे कॉन्ट्रेक्ट पर लगाया गया है।

कोई भी व्यक्ति जिसे मानव अपशिष्ट को साफ करने के लिए नियुक्त किया गया है और वह यह काम उचित सुरक्षात्मक गियर और उपकरण की मदद से करता है, तो उसे मैनुअल स्कैवेंजर नहीं माना जाएगा।

सफाई कर्मचारी 

लोगों का एक अन्य समूह जिन्हें ‘सफाई कर्मचारी’ (“स्वच्छता कार्यकर्ता”) कहा जाता है, उन्हें भी कभी-कभी हाथ से मैला ढोने वाला या मैनुअल स्कैवेंजर माना जाता है-हालांकि, वे आमतौर पर नगरपालिकाओं, सरकारी या निजी संगठनों में सफाई कर्मचारी या सफाई कर्मचारी के रूप में काम करने वाले लोग होते हैं।

कानून किस पर लागू होता है?

यह संहिता सरकारी कार्यालयों सहित किसी भी उद्योग, व्यापार, व्यवसाय, निर्माण या व्यवसाय करने वाले प्रतिष्ठानों में सभी कर्मचारियों और नियोक्ताओं पर लागू होती है। हालांकि, वेतन और बोनस के भुगतान के प्रावधान सरकारी प्रतिष्ठानों पर तब तक लागू नहीं होते जब तक कि संबंधित सरकार उन्हें एक अधिसूचना के माध्यम से लागू करती है।

कर्मचारी

कर्मचारी वह है जिसको एक संस्थान भाड़े या इनाम के लिए काम पर रखता है और काम करने के लिए मजदूरी कासंदाय करता है (इसमें सरकारी कर्मचारी शामिल हैं)। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि रोजगार की शर्तें स्पष्ट रूप से बताई गई हैं (जैसे कि किसी संविदा में) या गर्भित हैं। कार्य का स्वरूप निम्न हो सकता है :

• प्रशिक्षित

• अर्द्ध कुशल या अप्रशिक्षित

• मैनुअल(नियमावली)

• परिचालन-संबंधी

• पर्यवेक्षी

• प्रबंधकीय

• प्रशासनिक

• तकनीकी

• लिपिक

निम्नलिखित लोगों को कर्मचारी नहीं माना जाता है:

• भारतीय सशस्त्र बलों के सदस्य

• शिक्षु अधिनियम, 1961 के तहत नियोजित शिक्षु

• रिटेनरशिप के आधार पर काम पर रखे गए लोग

नियोक्ता 

नियोक्ता वह होता है जो अपने संस्थान में कम से कम एक कर्मचारी को नियुक्त करता है। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि वे उस व्यक्ति को प्रत्यक्ष या किसी और के माध्यम से नियोजित करते हैं, या किसी अन्य व्यक्ति की ओर से किसी को नियुक्त करते हैं।

स्थापना/कार्य का प्रकार  नियोक्ता
राज्य या केंद्र सरकार विभाग विभाग के प्रमुख द्वारा निर्दिष्ट प्राधिकारी। यदि निर्दिष्ट नहीं है, तो यह विभाग के संबंधित मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं
फ़ैक्टरी (कारखाना) कारखाने का मालिक या प्रबंधक
कोई अन्य प्रतिष्ठान संस्थान पर मौलिक नियंत्रण रखने वाला व्यक्ति या प्राधिकारी, जैसे प्रबंधक या प्रबंध निदेशक
ठेका मजदूर ठेकेदार

मृत नियोक्ता का कानूनी प्रतिनिधि भी नियोक्ता होता है।

शिकायत दर्ज करना

लिखित में

  • शिकायत का प्रारूप (ड्राफ्ट) तैयार करना
  • शिकायत की छह प्रतियां बनाएं
  • शिकायत के साथ, उन सहायक दस्तावेजों को जो शिकायत के समर्थन में हों, उसे भी जमा करें
  • उन गवाहों के नाम और पते जरूर दर्ज़ कराएं जो आपके शिकायत का समर्थन कर रहे हैं।
  • यौन उत्पीड़न के तीन महीने के अन्दर आप अपनी शिकायत ‘आंतरिक शिकायत समिति’* को सौंपें।अगर आप अपनी शिकायत को खुद नहीं लिख पा रहे हैं तो समिति आपकी मदद कर सकती है। आवश्यकता अनुसार आपकी ओर से किसी और द्वारा भी शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। यदि आप औपचारिक तौर से शिकायत दर्ज नहीं कराना चाहते हैं तो समिति दूसरे व्यक्ति के साथ स्थिति को सुलझाने की कोशिश करा सकते हैं। इस प्रकार समस्या का निवारण हो सकता है, इसे कानून के भाषा में ‘सुलह’ (कनसिलिएशन /conciliation) कहा जाता है।

ऑनलाइन शिकायत

आप ‘शी-बॉक्स’ SHe-Box. के जरिए ‘महिला एवं बाल विकास मंत्रालय’ की वेबसाइट पर भी शिकायत दर्ज कर सकते हैं।

अधिवक्ता कौन होता है?

एक अधिवक्ता वह व्यक्ति है, जो किसी न्यायिक अधिकारी के समक्ष किसी व्यक्ति के पक्ष को रखने के लिए बहस करता है। इसमें एक नागरिक (सिविल) मामला भी हो सकता है, जैसे किसी दो व्यक्तियों के बीच कॉन्ट्रेक्ट संबंधी विवाद हो, या कोई आपराधिक मामला, जिसमें अपराध करने वालों को राज्य जेल की सजा आदि के द्वारा दंडित कर सकता है। भारत के अधिकांश कानूनी पेशेवर अदालतों और अन्य न्यायिक निकायों में अपने मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

एक अधिवक्ता होने के लिए आवश्यक योग्यताएं

एक अधिवक्ता वह व्यक्ति है, जो अधिवक्ता अधिनियम के तहत किसी भी नामांकन सूचि (रौल) में नामांकित है।

नामांकन सूचि (रौल), स्टेट बार काउंसिल द्वारा तैयार की गई एक अनुरक्षित सूची है, जिसमें विशिष्ट परिषद के तहत पंजीकृत सभी अधिवक्ताओं के नाम रहते हैं। संबंधित स्टेट बार काउंसिल का कर्तव्य है कि वह नामांकन सूचि (रौल) तैयार करे और उसे बनाए रखे, और अधिवक्ताओं को सूचि में सूचीबद्ध करे। क्वालिफाई करने के लिए, अधिवक्ता के लिये आवेदन करने वाले व्यक्ति में निम्नलिखित योग्यताएं होनी चाहिए:

  • वह भारत का नागरिक हो। हालांकि, विदेशी नागरिक भी यहां वकालत कर सकते हैं यदि वे उन देशों से
  • आते हैं, जहां भारतीय नागरिक कानूनों का अभ्यास होता है।
  • व्यक्ति की उम्र कम से कम 21 साल हो।
  • कानून में डिग्री

आवेदन करने वाले व्यक्ति के पास कानून की डिग्री होनी चाहिए:

  • 12 मार्च 1967 से पहले, भारत के किसी भी विश्वविद्यालय से (इसमें स्वतंत्रता पूर्व भारत यानी 15 अगस्त 1947 से पहले के सभी विश्वविद्यालय शामिल हैं) होनी चाहिये।
  • 12 मार्च 1967 के बाद, भारत के किसी भी विश्वविद्यालय से, जो बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा मान्यता प्राप्त हो, और उसमें कानून में तीन वर्षीय पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता हो।
  • बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा मान्यता प्राप्त भारत के किसी भी विश्वविद्यालय से शैक्षणिक वर्ष 1967-68 या उसके पहले के किसी भी शैक्षणिक वर्ष से कानून (कम से कम दो शैक्षणिक वर्ष) में पढ़ाई की हो।
  • भारत के बाहर किसी भी विश्वविद्यालय से, जिसकी डिग्री को बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा मान्यता प्राप्त है।
  • एक बैरिस्टर के रूप में, जो 31 दिसंबर, 1976 से पहले, बार का सदस्य रहा है।
  • उच्च न्यायालय में एक अधिवक्ता के रूप में नामांकन के लिए, वह बम्बई या कलकत्ता के उच्च न्यायालयों द्वारा निर्दिष्ट परीक्षाओं को पास किया हो।
  • कोई अन्य विदेशी योग्यता जिसे बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा मान्यता प्राप्त हो। मान्यता प्राप्त विदेशी विश्वविद्यालयों की सूची के लिए यहां देखें।

अन्य शर्तें

नामांकन के लिए, एक आवेदक को आवश्यक स्टाम्प शुल्क का भुगतान अपने स्टेट बार काउंसिल को करना होगा। आवेदक को बार काउंसिल ऑफ इंडिया को रु.150 का नामांकन शुल्क, और संबंधित स्टेट बार काउंसिल को भी रु. 600 का नामांकन शुल्क भुगतान करना होगा।

इसके अलावा, एडवोकेट के रूप में अपने नामांकन करने के इच्छुक व्यक्तियों को अपने संबंधित स्टेट बार काउंसिलों द्वारा रक्खी गई किसी भी अन्य शर्तों को भी पूरा करना पड़ेगा। उदाहरण के लिए, दिल्ली बार काउंसिल को एडवोकेटों को यह घोषणा करने की आवश्यकता है कि वे किसी अन्य व्यापार, व्यवसाय या पेशे से नहीं जुड़े हैं। यदि वे किसी चीज़ में शामिल हैं, तो उन्हें नामांकन के समय इसके बारे में पूरी जानकारी देनी होगी।

नौकरियों के लिए आवेदन करते समय रिसर्च करें

आपके रोजगार अनुबंध की शर्तों में वे तथ्य, अधिकार, कर्तव्य, और जिम्मेदारियां शामिल होंगी जो आपसे और आपके नियोक्ता से संबंधित हैं। ये शर्तें आपकी क्षमता, आपकी आशाओं, आपके नियोक्ता की आशाओं, तथा उद्योग के मानकों पर आधारित हैं। इन शर्तों का वर्णन कानून की भारी शब्दावली के साथ किया गया है, जैसे “गैर-प्रतिस्पर्धा”, “विवाद समाधान” इत्यादि।

आपके लिए यह महत्वपूर्ण है कि आप अपने नियोक्ता से जो उम्मीदें कर सकते हैं उसके बारे में कुछ रिसर्च करें, यदि आपके नियोक्ता की आशाएं अनुकूल हैं, और यदि आपका अनुबंध उद्योग के मानकों के अनुसार है।

उद्योग का मूल्यांकन करें

आप जब नौकरी के लिए आवेदन कर रहे हों या नौकरी की पेशकश को स्वीकार कर रहे हों, तो तनख्वाह, वेतन मान, और कार्य व्यवहार के लिए उद्योग के मानकों को जानना महत्वपूर्ण है। बाज़ार के रुझानों को समझने और बेहतरीन कार्यप्रणाली का ज्ञान होने से आपके पास उन चीजों को प्राप्त करने का ज्यादा मौका होता है, जिसे अपने नियोक्ता से पाने के लिए आप पूरी तरह योग्य हैं।

संगठन का मूल्यांकन करें

साथ ही, भावी संगठन की कार्यप्रणालियों, काम के वातावरण, कर्मचारियों के साथ व्यवहार, वेतनमान इत्यादि की जांच कर लेना भी उपयुक्त होगा। इस प्रकार की रिसर्च करने से आपको अपने अनुबंध के बारे में बेहतर ढंग से तोल-मोल करने में मदद मिलेगी। आप इस प्रकार की विस्तृत जानकारी नेटवर्किंग ग्रुप, उस कार्यस्थल के पूर्व कर्मचारियों, वहां काम करने वाले आपके कॉलेज के सहपाठियों, सहपाठियों के साथियों आदि से पा सकते हैं।

अपना मूल्यांकन करें

अपने कौशल और क्षमता का आंकलन करें, क्योंकि इससे आपको अपने अनुबंध की शर्तों पर बेहतर ढंग से बातचीत करने में मदद मिलेगी। आपके काम करने का अनुभव, शैक्षिक योग्ताएं, प्रासंगिक डिग्रियां/पाठ्यक्रम/सर्टिफिकेट प्रोग्राम इत्यादि सभी चीज़ें उस पद को प्राप्त करने की उपयोगिता के साथ ही आपके वेतन में वृद्धि करेंगी जिसे आप मांग सकते हैं।

14-18 के बीच किशोरों-किशोरियों को रोजगार देना

किशोरों-किशोरियों को उन स्थानों पर काम करने की अनुमति है जो जोखिम-रहित कार्य करते हैं। ये प्रतिष्ठान जो जोखिम-रहित कार्य करते हैं, उन्हें सरकार द्वारा अधिसूचित किया जाता है। वे निम्नलिखित में भी काम कर सकते हैं:

  1. पारिवारिक व्यवसाय में। उदाहरण के लिए, अपने परिवार के आभूषण व्यवसाय में काम करना।
  2. बाल कलाकार के रूप में काम करना। उदाहरण के लिए, बॉलीवुड फिल्मों में या किसी विज्ञापन में अभिनय करना।

14 से 18 वर्ष की आयु के किशोरों-किशोरियों को निम्नलिखित में काम करने की अनुमति नहीं है:

  1. खान या वह स्थान जहां ज्वलनशील पदार्थ या विस्फोटक उपयोग होते हैं। उदाहरण के लिए, वह कारखाना जहां पटाखे बनते हैं।
  2. एक अन्य कानून फैक्ट्री अधिनियम, 1948 के तहत कुछ उद्योग हैं, जहां खतरनाक प्रक्रिया अपनायी जाती हैं, इनमें कोयला, बिजली उत्पादन, कागज, उर्वरक, लोहा और इस्पात उद्योग, अभ्रक, आदि शामिल हैं।

क्या अस्वच्छ शौचालय का निर्माण गैरकानूनी है?

हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 के तहत किसी भी व्यक्ति, नगरपालिका, पंचायत या एजेंसी के लिए अस्वच्छ शौचालय का निर्माण करना गैरकानूनी और अपराध है, जिसमें कचरे के ठीक से विघटित होने से पहले किसी व्यक्ति द्वारा मानव अपशिष्ट को हाथों से हटाने की आवश्यकता होती है।

स्थानीय अधिकारियों को अपने क्षेत्र में अस्वच्छ शौचालयों का सर्वेक्षण करना चाहिए और सभी चिन्हित शौचालयों की सूची प्रकाशित करनी चाहिए। स्थानीय अधिकारी इन सामुदायिक स्वच्छता शौचालयों के संनिर्माण और रखरखाव के लिए उत्तरदायी हैं और उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे कार्य कर रहे हैं और स्वच्छ हैं।

किसी अस्वच्छ शौचालय का निर्माण करने या किसी को शामिल करने या नियोजित करने के प्रथम उल्लंघन पर एक वर्ष तक की जेल और साथ ही 50,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। पश्च्यातवर्त उल्लंघन फिर से ऐसा करने पर दो साल तक की जेल और 1,00,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।

मजदूरी क्या हैं?

वेतन किसी व्यक्ति को उनके काम या रोजगार के लिए दिये वेतन, भत्ते आदि सभी मौद्रिक भुगतानों को संदर्भित करता है जो एक नियोक्ता देता है, जिसमें शामिल हैं:

• मूल वेतन

• महंगाई भत्ता

• प्रतिधारण भत्ता (यदि कोई हो)

कुछ मौद्रिक भुगतान हैं जो मजदूरी में शामिल नहीं हैं:

• कोई भी कानूनी रूप से आवश्यक बोनस जो रोजगार समझौते के तहत शामिल नहीं है। उदाहरण के लिए, वेतन के अलावा कर्मचारियों को वार्षिक बोनस देने की आवश्यकता नियोक्ता की होती है।

• आवास, बिजली, पानी, चिकित्सा सुविधा आदि जैसी सुविधाएं जिन्हें सरकार ने मजदूरी से बाहर रखा है

• पेंशन या भविष्य निधि में भुगतान किए गए नियोक्ता के योगदान, और परिणामी ब्याज

• वाहन भत्ता या यात्रा रियायत

• मकान किराया भत्ता

• सम्योपरी भत्ता

• कमीशन

• रोजगार की प्रकृति के आधार पर विशेष खर्चों का भुगतान। उदाहरण के लिए, यदि एक कांच के काम करने वाले को अपना काम करने के लिए एक विशिष्ट उपकरण की आवश्यकता होती है, तो यह नियोक्ता द्वारा भुगतान किया गया एक विशेष खर्च हो सकता है।

• ग्रटूइटी(उपदान), छंटनी मुआवजा, या अन्य सेवानिवृत्ति लाभ।

• न्यायालय के आदेश द्वारा पक्षों के बीच किए गए कानूनी पुरस्कार या समझौते का भुगतान

न्यायालय के प्रति एक एडवोकेट का कर्तव्य

एक एडवोकेट को न्यायालयों में पेशेवर आचरण और शिष्टाचार के कुछ मानकों को बनाए रखना होता है।

न्यायालय में कर्तव्य

न्यायालय में एक एडवोकेट के रूप में उनके कुछ निम्नलिखित कर्तव्य हैं:

  • न्यायालय के समक्ष गरिमापूर्ण तरीके से व्यवहार करना। इसके अलावा, वे जब भी किसी न्यायिक अधिकारी के खिलाफ कोई गंभीर शिकायत करना चाहते हैं और इसका उनके पास उचित कारण है, तो एडवोकेट के पास कुछ अधिकार और कुछ कर्तव्य भी होते हैं, जिनके जरिए वे उचित अधिकारियों को अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। उदाहरण के लिए, एडवोकेटों से संबंधित शिकायतें, बार काउंसिल ऑफ इंडिया, स्टेट बार काउंसिलों और नोटरी / सरकारी काउंसिलों के कानूनी मामलों के विभाग को भेजी जा सकती हैं।
  • न्यायालय के प्रति सम्मान दिखाना।
  • न्यायधीश या किसी अन्य न्यायधीश के सामने लंबित किसी भी मामले के बारे में किसी भी न्यायधीश से निजी तौर पर संवाद नहीं करनी चाहिये। एडवोकेटों को किसी भी मामले के बारे में, किसी भी अवैध या अनुचित साधनों का उपयोग करके न्यायालय के फैसले को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
  • न्यायालय में प्रस्तुत होने योग्य व्यवहार से पेश आना। न्यायालय में रहते हुए, एक एडवोकेट को उचित कपड़े पहनने होते हैं जिसे न्यायालय में पहनने के लिए निर्दिष्ट किया जाता है।
  • न्यायधीश के समक्ष प्रस्तुत नहीं होना / बहस नहीं करना चाहिये, अगर न्यायधीश का संबंध एडवोकेट से किसी भी निम्नलिखित रूपों में से है:
    • पिता / मां
    • दादा
    • बेटा / बेटी
    • पोता
    • चाचा / चाची
    • भाई / बहन
    • भतीजा / भतीजी भगना/भगनी
    • चचेरा/ममेरा/मौसेरा/फूफेरा भाई /बहन
    • पति / पत्नी
    • ससुर / सास
    • दामाद / बहू
    • जीजा/साला / ननद / भाभी
  • न्यायालयों के अलावा सार्वजनिक स्थानों पर एडवोकेट का
  • गाउन / बैंड नहीं पहना चाहिये। एडवोकेट इसे केवल औपचारिक अवसरों पर, और बार काउंसिल ऑफ इंडिया या न्यायालय द्वारा निर्धारित स्थानों पर ही पहन सकते हैं।
  • अपने मुवक्किल के लिए ज़मानत के रूप में खड़ा नहीं हो सकते हैं।

नए मामले लेते समय एक अधिवक्ता के कर्तव्य

एक अधिवक्ता के कुछ कर्तव्यों में शामिल हैं:

  • अगर अधिवक्ता किसी प्रतिष्ठान के कार्यकारी समिति का सदस्य है जो उस प्रतिष्ठान के सामान्य मामलों का प्रबंधन करता है तो वह अधिवक्ता को ऐसे प्रतिष्ठान की तरफ से या उसके खिलाफ उपस्थित नहीं होना चाहिये। उदाहरण के लिए, यदि कोई अधिवक्ता किसी कंपनी का निदेशक है, तो वे वह उस कंपनी के विवाद में उपस्थित नहीं हो सकता है।
  • ऐसे मामले को नहीं लेना चाहिये, जिसमें अधिवक्ता का कोई वित्तीय हित हो।

अन्य अधिवक्ताओं या अन्य मुवक्किलों के प्रति कर्तव्य

एक अधिवक्ता का अपने विरोधी अधिवक्ता और विरोधी मुवक्किल के प्रति भी कर्तव्य होता है। एक अधिवक्ता को विरोधी पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता के साथ सीधे बातचीत नहीं करनी चाहिए। इसके अलावा, अधिवक्ताओं को अपने विपक्ष को किए गए वैध वादों को पूरा करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए, जैसे कि न्यायालय की तारीख पर उपस्थित होना, समय पर याचिकाओं का मसौदा तैयार करना, आदि।

कुछ अन्य कर्तव्य इस प्रकार के हैं:

विरोधी अधिवक्ताओं और विरोधी पक्षों के प्रति कोई अवैध या अनुचित व्यवहार नहीं करना चाहिए। अधिवक्ताओं को अपने मुवक्किलों को भी ऐसा करने से रोकना होगा।

  • उसे अपने मुवक्किल को भी अनुचित मार्ग का अनुसरण करने से रोकना चाहिये। अधिवक्ताओं को अपने मुवक्किल को न्यायालय या विरोधी पक्ष के संबंध में कुछ भी करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए, और उन्हें स्वयं भी ऐसा नहीं करना चाहिए। अधिवक्ता को अपने किसी भी ऐसे मुवक्किल का प्रतिनिधित्व नहीं करना चाहिए, जिसका आचरण अनुचित हो। अधिवक्ताओं को पत्र-व्यवहार और न्यायालय के बहस में गरिमापूर्ण भाषा का उपयोग करना चाहिए। उन्हें न्यायालय में बहस के दौरान किसी अनुचित भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिये।
  • जब कोई अधिवक्ता किसी मुवक्किल के मामले को ले लेता है तो काई अन्य अधिवक्ता उस मामले की पैरवी नहीं कर सकता है। हालांकि, बाद वाला अधिवक्ता पिछले वाले अधिवक्ता की स्वीकृति से ले सकता है।
  • यदि ऐसी स्वीकृति प्राप्त नहीं हो पाती है, तो अधिवक्ता को मुवक्किल के मामले की पैरवी करने के लिए न्यायालय की अनुमति लेनी होगी।