पति की कैद के कारण इस्लाम में तलाक

इस्लामिक कानून के तहत पति के जेल में रहने पर तलाक का प्रावधान है। अगर आपके पति को किसी अपराध का दोषी ठहराया गया है और 7 साल या उससे अधिक समय के लिए जेल भेजा गया है, तो आप तलाक के लिए कोर्ट में फाइल कर सकती हैं।

तलाक की ऐसी डिक्री तभी दी जा सकती है जब पति की सजा अंतिम हो गई हो।

एक विवाहित बालिका के लिए सुरक्षा

कानून उन लड़कियों को कुछ सुरक्षा प्रदान करता है जिनकी शादी 18 साल से कम उम्र में हो गयी थी और वह अपनी शादी रद्द करने के लिए याचिका दायर कर चुकी हैं।

भरण-पोषण का संदाय

जिला न्यायालय पति को, या अवयस्कों के मामलों में, माता-पिता को या संरक्षकों को निर्देश दे सकता है की वह लड़की को उसके भरण-पोषण के लिए कुछ पैसे दें।

न्यायालय लड़की को उसके भरण-पोषण के लिए दी जाने वाली रकम को निर्धारित करते समय उस लड़की की जीवन-शैली और भरण-पोषण देने वाले व्यक्ति की आय को ध्यान में रखेगा । यह भरण-पोषण की रकम लड़की को तब तक मिलेगी जब तक कि उसका पुनर्विवाह नहीं हो जाता।

निवास की व्यवस्था 

न्यायालय लड़की के पुनर्विवाह होने तक उसके निवास के लिए उपयुक्त व्यवस्था करने का आदेश भी दे सकता है।

क्या ईसाई विवाह की प्रक्रिया पूरे भारत में समान है?

भारतीय ईसाई विवाह कानून, जो ईसाई विवाह के कानून को नियंत्रित करता है, त्रावणकोर- कोचीन और मणिपुर राज्यों को छोड़कर, पूरे भारत में लागू है।

• मणिपुर में, ईसाई विवाह प्रथागत नियमों और व्यक्तिगत कानूनों के माध्यम से होते हैं।

त्रावणकोर- कोचीन वर्तमान में भारतीय राज्यों केरल और तमिलनाडु का हिस्सा हैं। केरल के कोचीन क्षेत्र में, ईसाई विवाह 1920 के कोचीन ईसाई नागरिक विवाह अधिनियम के अनुसार होते हैं। पूर्व राज्य का त्रावणकोर हिस्सा केरल और तमिलनाडु के दक्षिणी भागों में फैला हुआ है। जबकि तमिलनाडु ने पूरे राज्य में कानून के प्रभावकारिता का विस्तार किया है, जिसमें त्रावणकोर का हिस्सा भी शामिल है, जो अब तमिलनाडु का हिस्सा है। केरल ने ऐसा नहीं किया है। इसलिए, केरल के दक्षिणी हिस्सों में, जो पहले त्रावणकोर राज्य था, ईसाई विवाह चर्च के आंतरिक कानूनों के अनुसार होते हैं, जो विभिन्न संप्रदायों में अलग-अलग होंगे।

हिंदू तलाक अगर आपके जीवनसाथी ने आपको छोड़ दिया है

अगर आपके जीवनसाथी ने आपको छोड़ दिया है तो आप तलाक के लिए अर्जी दाखिल कर सकते हैं। इसे परित्याग के रूप में जाना जाता है।

परित्याग का तत्काल प्रभाव

परित्याग तब हो सकता है जब आपके पति या पत्नी ने आपकी सहमति के बिना आपके साथ रहने के लिए और कभी वापस नहीं आने के इरादे से आपको तत्काल प्रभाव से छोड़ दिया हो।

यह केवल न्यायालयों द्वारा मामला दर मामला के आधार पर समझा जाएगा। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यदि आपके पति या पत्नी अस्थायी रूप से या क्षण भर की गर्मा-गर्मी में आपको छोड़ने का इरादा किए बिना आपको छोड़ कर चला गया हो, तो यह परित्याग की श्रेणी में नहीं कहा जाएगा।

उदाहरण के लिए, यदि आपका अपने पति के साथ झगड़ा हुआ था और वह गुस्से में घर छोड़ कर बाहर चला जाता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसने आपको छोड़ दिया है।

परित्याग के कारण बनाना

हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि आपने ऐसी परिस्थिति नहीं बनाई है कि किसी भी उपयुक्त व्यक्ति को इसे सहन करना इतना मुश्किल हो जाए कि वह आपको छोड़ कर चला जाए। यदि आपने ऐसी परिस्थिति पैदा कर दी हों, तो अदालतें आपके मामले को परित्याग के लिए नहीं मान सकती हैं।

परित्याग के अन्य तरीके 

आपको छोड़ने के एकल कार्य के अलावा, परित्याग एक निश्चित अवधि के दौरान अपने आचरण के माध्यम से या बार-बार व्यवहार पैटर्न के माध्यम से हो सकता है।

यदि आपका जीवनसाथी धीरे-धीरे आपसे और आपके सामाजिक दायरे से दूर हो गया है (उदाहरण के लिए : आपके और आपके परिवार के साथ सभी तरह की बातचीत बंद कर दी है, हालांकि वह आपके साथ रह सकता है) और किसी भी जीवनसाथी की तरह व्यवहार करना बंद कर दिया है (उदाहरण के लिए: एक परिवार के लिए आर्थिक रूप से योगदान करने से मना करना और घर के लिए किसी अन्य तरीके से योगदान करना) इसे परित्याग के रूप में समझा जा सकता है। ऐसे में जीवनसाथी को आपको शारीरिक रूप से छोड़ने की जरूरत नहीं है। प्रत्येक मामले में परिस्थितियों के आधार पर, जब इस तरह के व्यवहार की शुरूआत होती हो तो न्यायालय परित्याग के ऊपर विचार कर सकता है।

तलाक देने पर निर्णय लेने के लिए न्यायालय प्रत्येक विशिष्ट मामले को समझने के लिए सभी तथ्यों, परिस्थितियों को देखेगा।

परित्याग के लिए समय अवधि 

तलाक के कारण के रूप में परित्याग का दावा करने के लिए:

• आपके जीवनसाथी ने दो साल से आपको छोड़ दिया हो या परित्याग दिया हो

• यह दो साल की अवधि निरंतर होनी चाहिए।

उदाहरण के लिए, करण ने जनवरी 2016 में अपनी पत्नी विज्जी को छोड़ दिया, लेकिन अपना मन बदल लिया और जुलाई, 2017 में अपनी पत्नी के साथ रहने के लिए वापस आ गया। विज्जी इस कारण से तलाक के लिए अदालत नहीं जा सकती क्योंकि दो साल की अवधि निरंतर नहीं थी।

 

भारतीय नागरिकों द्वारा किसी दूसरे देश के बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया (गैर-धार्मिक कानून)

एक भारतीय नागरिक के रूप में किसी दूसरे देश के बच्चे को गोद लेने के लिए नीचे दिए गए चरणों का पालन करें।

चरण 1: किसी दूसरे देश के बच्चे को गोद लेने के लिए, उस देश के कानून के अनुसार, उनके द्वारा आवश्यक औपचारिकताएं पूरी की जाएंगी।

चरण 2: संबंधित देश के प्राधिकारी, उस देश के कानूनों के आधार पर, केवल आवश्यक दस्तावेज और निम्नलिखित रिपोर्टें प्राप्त करने पर ही गोद लेने के लिए स्वीकृति या आदेश देगा। (कृपया प्राधिकरण से अधिक जानकारी के लिए पूछें) और वह रिपोर्ट्स निम्नलिखित हैं:

• गृह अध्ययन रिपोर्ट

• बाल अध्ययन रिपोर्ट

• बच्चे की चिकित्सा जांच रिपोर्ट

चरण 3: भारतीय नागरिकों द्वारा गोद लिए गए विदेशी बच्चे और विदेशी पासपोर्ट रखने वाले को भारत आने के लिए भारतीय वीजा की आवश्यकता होगी। इस वीजा को प्राप्त करने के लिए आप अपने संबंधित देश में भारतीय दूतावास में आवेदन कर सकते हैं।

चरण 4: गोद लिए गए बच्चे के लिए अप्रवासन मंजूरी उस देश की केंद्र सरकार के विदेश मंत्रालय और भारतीय राजनयिक मिशन के माध्यम से, गृह मंत्रालय से प्राप्त की जाएगी।

न्यायधिकरण से भरण-पोषण के लिए दावा करना

आप, ‘भरण-पोषण न्यायधिकरण’ (मेंटीनेन्स ट्रिब्यूनल) में ‘माता पिता और वरिष्ठ नागरिक के भरण-पोषण एवं देखभाल’ अधिनियम, 2007 के तहत अर्जी दे सकते हैं। आप अपनी अर्जी उस क्षेत्र के भरण-पोषण न्यायधिकरण में दे सकते है जहाँः

  • आप वर्तमान समय में रह रहें हैं, या
  • पहले रह चुके हैं, या
  • जहां आपकी संतान या रिश्तेदार रहते हैं।

जब आप एक बार ‘माता पिता और वरिष्ठ नागरिक के भरण-पोषण एवं देखभाल’ अधिनियम, 2007 के तहत न्यायधिकरण में अर्जी देते हैं तब आप आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 के तहत (जो भी आपको अधिकार देता है) भरण-पोषण के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं। कृपया याद रखें कि इस संहिता के तहत, मासिक भरण-पोषण की राशि पर कोई उच्चतम सीमा नहीं है जिसकी आप मांग कर सकते हैं। हालांकि यह प्रक्रिया लंबी हो सकती है।

प्रक्रिया

आपके द्वारा अर्जी दिये जाने के बाद (राज्य के आधार पर प्रारूपों में बदलाव होगा) न्यायालय पहले आपके संतानों को सूचित करेगा और उन्हें बतायेगा कि आपने ऐसी अर्जी दायर की है। तब न्यायालय इस मामले को, किसी ‘सुलह समझौता अधिकारी’ को भेज सकता है जो दोनो पक्षों को एक मैत्रीपूर्ण समझौते के लिए सहमत कराने का प्रयास करेगी। अगर न्यायालय इस मामले को वहाँ नहीं भेजती है तो वह दोनों पक्षों (माता-पिता, संताने या रिश्तेदार) की बात सुनेगी।

न्यायालय यह पता लगाने के लिए जांच कराएगी कि आपको अपने भरण-पोषण के लिये कितना दिया जाना चाहिये। हालांकि यह जांच पूरी तरह से कानूनी कार्यवाही नहीं है। कानूनन इन न्यायालयों में वकीलों द्वारा प्रतिनिधित्व की अनुमति नहीं है लेकिन हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि वकीलों के इनके इस अधिकार को सीमित नहीं किया जा सकता। यह न्यायालय स्वभाव से थोड़ा अनौपचारिक है लेकिन इनके पास सिविल कोर्ट की शक्तियां हैं और ये गवाहों की हाजिरी का आदेश दे सकती है, शपथ पर गवाही ले सकती है, इत्यादि।

अगर न्यायालय को पता चलता है कि संताने या रिश्तेदार, माता-पिता की देखभाल करने में लापरवाही कर रहे हैं तो वे उन्हें मासिक भरण-पोषण का भुगतान करने का निर्देश देते हुए आदेश पारित कर सकते हैं। न्यायालय यह भी आदेश दे सकती है कि आवेदन की तारीख से, भरण-पोषण की राशि पर ब्याज (5% से 8% के बीच) अदा किया जाए। अगर आपके संतान या माता-पिता कोर्ट के आदेश के बाद भी भरण-पोषण का भुगतान नहीं कर रहे हैं तो आप इसी तरह की किसी न्यायालय में (‘भरण-पोषण न्यायधिकरण’) जा सकते हैं और उस आदेश को लागू कराने की मदद मांग सकते हैं।

वैध निकाह किसे कहते है?

निकाह की वैधता को निकाहनामा के माध्यम से जांचा जा सकता है, जिसे धार्मिक रूप से मान्य इस्लामी निकाह का अभिन्न अंग माना जाता है। काजी निकाहनामा को बना कर रखते हैं । अगर निकाहनामा न हो तो काजी स्वयं निकाह का गवाह बन सकता है।

निकाह फोन या इंटरनेट के द्वारा भी किया जा सकता है। यह उन मामलों में मान्य होगा जहां पक्ष अपने मौजूदा गवाहों और एक वकील के सामने प्रस्ताव और स्वीकृति देते हैं। गवाहों और पक्षों को वकील के रूप में नियुक्त व्यक्ति से परिचित होना चाहिए और उसका नाम, पिता का नाम और आवासीय पता पता होना चाहिए, जिनका उल्लेख प्रस्ताव और स्वीकृति के समय भी किया जायेगा।

अमान्य/निरस्त हिंदू विवाह

हिंदू विवाह अधिनियम, धारा 11 के तहत कुछ परिस्थितियां बताई गई हैं जब विवाह निरस्त हो जाता है। विवाह जब निरस्त हो जाता है, तो इसका मतलब यह होता है कि इसे बिल्कुल शुरू से ही स्वतः अमान्य विवाह मान लिया गया है और इसे रद्द करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसकी परिस्थितियां निम्नलिखित हैं:

  • दोनों पक्षों में से एक का जीवन साथी विवाह के समय जीवित हो।
  • यदि पक्ष निषिद्ध संबंध की सीमाओं के भीतर हैं, सिर्फ तब, जब कुछ रिवाज इसकी अनुमति दें। उदाहरण- कुछ बिरादरियों में, उनकी रीतियों की विशेषता के कारण निषिद्ध रिश्तों की सीमा के भीतर विवाहों की अनुमति दी जाती है।
  • पक्ष एक दूसरे के सपिंदा हैं, सिर्फ उन मामलों के जहां कुछ रीतियां इसकी अनुमति देती हैं।

इस्लामिक कानून के तहत तलाक अगर पति वैवाहिक दायित्वों को पूरा नहीं करता है

इस्लामिक कानून के तहत, अगर आपका पति वैवाहिक दायित्वों का पालन नहीं करता है तो आप तलाक दे सकती हैं। यदि आपका पति बिना किसी कारण के अपने वैवाहिक दायित्वों को 3 साल से अधिक समय तक नहीं निभाने का फैसला करता है तो आप तलाक के लिए फाइल करने के लिए कोर्ट जा सकती हैं।

वैवाहिक दायित्वों में शामिल हैं:

• संभोग

• एक ही घर में एक साथ रहना

 

बाल विवाह की सूचना देना

सहित बाल विवाह की शिकायत कोई भी कर सकता है। बालक/बालिका खुद अपने बाल विवाह की शिकायत दर्ज कर सकते हैं। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि बाल विवाह सम्पन्न हुआ है या नहीं। विवाह के पहले या बाद कभी भी शिकायत दर्ज करी जा सकती है। शिकायत निम्नलिखित में से किसी भी प्राधिकारी को करी जा सकती हैः

1098 पर कॉल करें

1098 एक टोल-फ्री नंबर है और यह पूरे भारत में काम करता है। इसका संचालन चाइल्ड इंडिया फाउंडेशन द्वारा किया जाता है। यह संस्था बाल अधिकारों और बच्चों के संरक्षण के लिए काम करता करती है। स्वयं बच्चे इस नंबर पर शिकायत कर सकते हैं और इस नंबर पर अपनी सूचना दे सकते हैं। आपको स्कूल में पढ़ने वाले और काम करने वाले बच्चों को इस हेल्पलाइन के बारे में जागरूक करना चाहिए ताकि बाल श्रम को रोका जा सके।

पुलिस 

आप इन मामलों की सूचना 100 न. पर भी कर सकते हैंः

• अगर कोई बाल विवाह संपन्न हो रा हो या

• अगर कोई बाल विवाह संपन्न हो होने जा रहा हो ।

वैकल्पिक रूप से, आप किसी पुलिस स्टेशन में भी जा सकते हैं जहां आप प्रथम इत्तिला रिपोर्ट दर्ज कर सकते हैं और बाल विवाह मामले की शिकायत कर सकते हैं।

बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी 

आप स्थानीय बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं और उन्हें बाल विवाह की सूचना दे सकते हैं। वह तुरंत ही बाल विवाह के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों के विरुद्ध आवश्यक कदम उठाएंगे ।

बाल कल्याण समिति

बाल विवाह के मामले की सुनवाई के लिए आप किशोर न्याय अधिनियम के तहत बनाई गई स्थानीय बाल कल्याण समिति के पास भी जा सकते हैं। उदाहरण के लिए आप दिल्ली में जिला-आधारित समितियों के पास जा सकते हैं।

न्यायालय में शिकायत दर्ज करें 

आप सीधे प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट या महानगर मजिस्ट्रेट के पास भी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। न्यायालय पुलिस या बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी को आवश्यक कार्रवाई करने का आदेश देगा।