उपभोक्ता फोरम में मामला दर्ज करना

उपभोक्ता फोरम जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर मौजूद है। आप 2 कारकों के आधार पर वहां मामला दर्ज कर सकते हैं:

1. आपके द्वारा खोए गए धन की राशि:

  • जिला फोरम : रु. 20 लाख
  • राज्य आयोग : रु. 20 लाख से रु. 1 करोड़
  • राष्ट्रीय आयोग: 1 करोड़ रुपये से अधिक।

2. नुकसान कहां हुआ

  • आप शिकायत उस स्थान पर दर्ज कर सकते हैं, जहां पैसे गवाए थे, या जहां विरोधी पक्ष (अर्थात, बैंक) अपना व्यवसाय करता है।

आपको उपभोक्ता मंचों से तभी संपर्क करना चाहिए जब आपको लगे कि बैंक ने लापरवाही की है, और आपको उचित सेवा नहीं दी है। फोरम वास्तविक अपराधी पर मुकदमा नहीं चलाता है।

आम तौर पर, उपभोक्ता अदालतों के साथ-साथ बैंकिंग लोकपाल के समक्ष मामले एक साथ दायर नहीं किए जा सकते हैं।

ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म के खिलाफ उपभोक्ता शिकायतें

उपभोक्ता ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म और खुदरा विक्रेताओं के माध्यम से खरीदे गए डिजिटल और अन्य उत्पादों से जुड़े अनुचित व्यापार व्‍यवहारों के खिलाफ भी शिकायत कर सकते हैं। सामान या सेवाएं बेचने वाले किसी भी डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक प्लैटफॉर्म का मालिक, संचालक या उसका प्रबंधक एक ई-कॉमर्स इकाई होता है। भारत में एक ई-कॉमर्स इकाई अलग से ई-कॉमर्स नियमों द्वारा शासित होती है।

ये नियम केवल पेशेवर व वाणिज्यिक व्यवसायों पर लागू होते हैं, न कि उन व्यक्तियों पर जो अपनी व्‍यक्तिगतगत क्षमता में अपना काम करते हैं। उदाहरण के लिए, एक उपभोक्ता अमेज़न के खिलाफ शिकायत कर सकता है क्योंकि यह एक ई-कॉमर्स इकाई है जो नियमित रूप से अपनी ई-कॉमर्स वेबसाइट से सामान बेचने के व्‍यापार में लगी हुई है। इसके बावजूद, अगर अमेज़न जैसे प्लैटफॉर्म पर किसी उत्पाद के साथ कोई समस्या है, तो अमेज़न उत्पाद देयता कार्यों के लिए उत्तरदायी होगा, न कि उत्पाद निर्माता।

हालांकि दिलचस्प बात यह है कि ई-कॉमर्स इकाई के लिए उत्पाद देयता भारत से बाहर फैली हुई है। यानी ये प्लैटफॉर्म अपने देश के घरेलू कानूनों के अलावा, उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत समान रूप से उत्तरदायी हैं। उदाहरण के लिए, Liyid जैसी विदेशी ई-कॉमर्स इकाई भारत में अपने उत्पादों की डिलीवरी करती है; दोषपूर्ण / खराब उत्पादों के कारण होने वाले किसी भी नुकसान के मामले में, भारत में और विदेशों में Liyid के खिलाफ उत्पाद देयता की कार्रवाई की जा सकती है।

ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्मों के उत्तरदायित्‍व 

ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म्‍स निम्नलिखित के लिए उत्तरदायी होते हैं-

• उनकी साइटों पर मूल्य हेरफेर,

• प्रदान की गई सेवाओं में लापरवाही और ग्राहकों के साथ भेदभाव।

• भ्रामक विज्ञापन, अनुचित व्यापार व्यवहार और उत्पादों के ग़लत विवरण/जानकारी।

• दोषपूर्ण उत्पाद को वापस लेने या उसका भुगतान करने से इनकार।

• ग्राहक द्वारा प्राप्‍त वस्तुओं या सेवाओं के संबंध में चेतावनियां या निर्देश प्रदान न करना।

• किसी भी प्लैटफॉर्म पर बिक्री के लिए विज्ञापित वस्तुओं या सेवाओं की प्रामाणिकता और छवियों के बारे में ग़लत विवरण, और उल्‍लंघन।

हालांकि, यदि उत्पाद के खतरे सामान्य रूप से ज्ञात हैं तो वे उत्तरदायी नहीं होंगे। उदाहरण के लिए, यदि कोई उपभोक्ता फ्लेमथ्रोअर्स जैसे खतरनाक उत्पाद का दुरुपयोग करता है या उसमें कुछ हेरफेर करता है तो इसके लिए ई-कॉमर्स इकाई को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।

ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म से शिकायत 

ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म को ‘शिकायत निवारण तंत्र’ स्थापित करना चाहिए और भारतीय ग्राहकों के सरोकार पर कार्यवाही करने के लिए एक ‘शिकायत अधिकारी’ नियुक्त करना चाहिए। शिकायत निवारण तंत्र के बारे में विवरण ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म पर प्रदर्शित किया जाना चाहिए। शिकायत अधिकारी को 48 घंटे के भीतर शिकायत स्वीकार करते हुए एक महीने की अवधि के भीतर समस्या का समाधान करना चाहिए।

ग्राहक दायित्व

ग्राहक को किसी तीसरे पक्ष के साथ भुगतान क्रेडेंशियल प्रकट/साझा नहीं करना चाहिए। यदि कोई ग्राहक ऐसा करता है तो उसके लापरवाह कार्यों के कारण ग्राहक की देनदारी बढ़ जाएगी। अनधिकृत इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग लेनदेन के मामले में यह साबित करना बैंक की जिम्मेदारी है कि ग्राहक उत्तरदायी है (जो भी हद तक)। अनधिकृत इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग लेनदेन के मामले में बैंक अपने विवेक पर किसी भी ग्राहक दायित्व को माफ करने का निर्णय ले सकते हैं। ग्राहक की लापरवाही के मामलों में भी वे ऐसा कर सकते हैं।

ग्राहक पर शून्य देयता होगी जब:

• एक अनधिकृत लेनदेन अंशदायी धोखाधड़ी या लापरवाह व्यवहार या बैंक की सेवाओं में कमी के कारण हुआ है। यदि आप बैंक को अनधिकृत लेनदेन की रिपोर्ट नहीं करते हैं, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि शून्य देयता होती है चाहे आप इसकी रिपोर्ट करें या नहीं।

• गड़बड़ी ग्राहक या बैंक के पास नहीं, बल्कि सिस्टम में कहीं और हुई है। इस मामले में, आपको अनधिकृत लेनदेन के बारे में सूचना मिलने के तीन कार्य दिवसों के भीतर बैंक को सूचित करना चाहिए।

अनधिकृत लेनदेन के बारे में बैंक से संचार प्राप्त करने के बाद चार से सात कार्य दिवसों की देरी होने पर ग्राहक की सीमित देयता होगी, ऐसी स्थिति में ग्राहक की प्रति लेनदेन देयता, लेनदेन मूल्य या नीचे तालिका में उल्लेख राशि तक सीमित होगी, जो भी कम हो।

ग्राहक की अधिकतम देयता 

खाते का प्रकार  अधिकतम देयता 
मूल बचत जमा खाता रु. 5,000/
अन्य सभी बचत बैंक खाते, प्रीपेड भुगतान साधन और उपहार कार्ड, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के चालू/नकद क्रेडिट/ओवरड्राफ्ट खाते, (धोखाधड़ी की घटना के 365 दिनों पहले के दौरान में)25 लाख रुपये वार्षिक औसत बैलेंस तक की सीमा वाले व्यक्तियों के चालू खाते/नकद क्रेडिट/ओवरड्राफ्ट खाते, 5 लाख रुपये तक की सीमा वाले क्रेडिट कार्ड रु. 10,000/-
अन्य सभी चालू/नकद क्रेडिट/ओवरड्राफ्ट खाते, 5 लाख रुपये से अधिक की सीमा वाले क्रेडिट कार्ड रु. 25,000/-

शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया

कोई भी शिकायत एकीकृत शिकायत निवारण तंत्र पोर्टल (आईएनजीआरएएम) पर ऑनलाइन दर्ज की जा सकती है, या फिर उपभोक्ता अधिकारों का हनन के संदर्भ में जिला या राज्य आयोग जैसे उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरणों के साथ ऑफ़लाइन दर्ज की जा सकती है। इसके अलावा हेल्पलाइन के साथ-साथ फोन आधारित ऍप भी हैं जिनका उपयोग शिकायत दर्ज करने के लिए किया जा सकता है। इस सबके बावजूद, शिकायत का समाधान न होने पर, आप उपभोक्ता मंचों से संपर्क हेतु किसी वकील की मदद ले सकते हैं।

शिकायत प्रक्रिया: टेलीफोन 

चरण -1: जांचें कि क्या आप कानून के तहत उपभोक्ता हैं

शिकायतकर्ता एक उपभोक्ता या एक उपभोक्ता-संघ होना चाहिए।

चरण-2: हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करें

राष्‍ट्रीय छुट्टियों को छोड़कर, शिकायत दर्ज करने के लिए, उपभोक्ता, राष्‍ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन पर कॉल कर सकते हैं-1800-11-4000 या 14404 पर। या फिर, + 91 8130009809 पर एसएमएस के माध्यम से भी शिकायत दर्ज की जा सकती है।

चरण-3: शिकायत का विवरण दें

शिकायतकर्ता और विक्रेता के नाम, संपर्क विवरण और उनके पतों का पूरा ब्‍योरा, हेल्पलाइन प्राधिकरण / अधिकारी को शिकायत के ब्‍योरे के साथ दिया जाना चाहिए। प्राधिकरण आपकी शिकायत दर्ज करेगा और आपको एक विशिष्‍ट शिकायत आईडी देगा।

चरण -4: अपने आवेदन की प्रगति पर नज़र रखें / ट्रैक करें

आपकी शिकायत फिर संबंधित विक्रेता, कंपनी, नियामक, या प्राधिकरण को कार्रवाई के लिए भेज दी जाती है। प्रत्येक शिकायत के लिए की गयी कार्रवाई को लगातार अपडेट किया जाता है। हेल्पलाइन पर कॉल करके या एकीकृत शिकायत निवारण तंत्र पोर्टल के माध्यम से आपकी शिकायत को आपकी शिकायत आईडी से ट्रैक किया जा सकता है।

चरण-5: शिकायत का समाधान

अगर आपकी शिकायत का समाधान नहीं होता है, तो आप संबंधित उपभोक्ता फोरम से संपर्क करके कानूनी प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं। हेल्पलाइन प्राधिकरण कानूनी प्रक्रिया के बारे में आपके किसी भी संदेह को स्पष्ट करने में मदद कर सकता है।

ई-शिकायत प्रक्रिया: इंटरनेट (आईएनजीआरएएम पोर्टल) 

उपभोक्ता मामलों के विभाग ने उपभोक्ताओं, केंद्र और राज्य सरकार की एजेंसियों, निजी कंपनियों, नियामकों, लोकपाल और कॉल सेंटर आदि जैसे सभी हितधारकों को एक मंच पर लाने के लिए एकीकृत शिकायत निवारण तंत्र (आईएनजीआरएएम-INGRAM) के रूप में जाना जाने वाला एक पोर्टल लॉन्च किया है। पोर्टल उपभोक्ताओं के बीच उनके अधिकारों की रक्षा के लिए जागरूकता पैदा करने और उन्हें उनकी जिम्मेदारियों के बारे में सूचित करने में भी मदद करेगा। इस पोर्टल के माध्यम से उपभोक्ता अपनी शिकायत ऑनलाइन दर्ज करा सकते हैं।

चरण -1: जांचें कि क्या आप कानून के तहत उपभोक्ता हैं

शिकायतकर्ता को कानून के तहत एक उपभोक्ता होना चाहिए, जिसका अर्थ है किसी उत्पाद का उपभोक्ता, एक ऍसोसिएशन उपभोक्ता आदि।

चरण -2: INGRAM पोर्टल पर पंजीकरण करें

शिकायतकर्ता को खुद को एक उपभोक्ता के बतौर INGRAM पोर्टल पर पंजीकृत कराना होगा। शिकायतकर्ता को अपनी शिकायत दर्ज करने के लिए आवश्यक विवरण और दस्तावेज़ भरने होंगे, जैसे कि शिकायतकर्ता और विक्रेता का नाम और पता, विवाद के तथ्य और वह राहत जो शिकायतकर्ता चाहता है। शिकायत दर्ज करने के लिए एक बार पंजीकरण आवश्यक है।

पंजीकरण के लिए वेब पोर्टल http://consumerhelpline.gov.in पर जाएं और लॉग-इन लिंक पर क्लिक करें और फिर आवश्यक विवरण देते हुए साइन-अप करें, अपनी ईमेल के माध्यम से सत्यापित करें। यूज़र आईडी और पासवर्ड बनाया जाता है। इस यूज़र आईडी और पासवर्ड का उपयोग करते हुए, पोर्टल में प्रवेश करें और आवश्यक दस्तावेज़ों को संलग्न करते हुए शिकायत के आवश्यक विवरण भरें (यदि उपलब्ध हों)।

चरण-3: शुल्क का भुगतान करें

शिकायतकर्ता को डिजिटल भुगतान मोड के माध्यम से शिकायत पंजीकरण के लिए शुल्क (यदि लागू हो) का भुगतान करना होगा, या भीम ऍप, उमंग ऍप आदि के माध्‍यम से संबंधित उपभोक्ता आयोगों को माल के मूल्य के अनुसार भुगतान करना होगा।

चरण-4: अपने आवेदन पर नज़र रखें / ट्रैक करें

प्रत्येक शिकायत दर्ज की जाती है और उसकी एक विशिष्‍ट शिकायत आईडी जारी की जाती है। शिकायत को कार्रवाई के लिए संबंधित कंपनी, नियामक, प्राधिकरण को अग्रेषित किया जाता है। प्रत्येक शिकायत के बरक्‍स उनके द्वारा की गयी कार्रवाई को अद्यतन किया जाता है। दर्ज की गयी शिकायतों को INGRAM पोर्टल के माध्यम से ट्रैक किया जा सकता है।

उपभोक्ता न्यायालय/मंच 

INGRAM पोर्टल के माध्यम से, यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाता है कि शिकायत का निवारण संबंधित अधिकारियों के साथ किया जाए, जो कि एक कंपनी, लोकपाल आदि हो सकते हैं। लेकिन, अगर समस्या अभी भी लंबित है, तो उपभोक्ता के पास एक वकील की मदद से उपयुक्त उपभोक्ता अदालत या मंच से संपर्क करने का विकल्प होता है। उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में सुनवाई के लिए केवल 2 साल के भीतर दायर की गयी शिकायतों को ही सुनवाई के लिए स्वीकार किया जाएगा।

एक अनधिकृत लेनदेन को उलटना

ग्राहक से अनधिकृत लेनदेन की सूचना प्राप्त करने के बाद, बैंक लेनदेन को उलट देगा और अधिकृत इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन में शामिल राशि को क्रेडिट कर देगा। यह ग्राहक से अधिसूचना प्राप्त होने की तारीख से 10 कार्य दिवसों के भीतर किया जाना चाहिए। ऐसा करने के लिए बैंकों को बीमा दावों के निपटारे का इंतजार नहीं करना चाहिए। बैंक अनधिकृत लेनदेन की तिथि के अनुसार मूल्य के अनुसार धन जमा करेगा।

शिकायत करने के लिए शुल्क

उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत दायर की गई प्रत्येक शिकायत एक नाम मात्र शुल्क के साथ होनी चाहिए जो किसी राष्ट्रीयकृत बैंक के डिमांड ड्राफ्ट के रूप में या पोस्टल ऑर्डर के माध्यम से या इलेक्ट्रॉनिक रूप में देय है। वस्‍तुओं या सेवाओं के मूल्य के आधार पर शुल्क संरचना नीचे दी गई है –

जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग को देय शुल्क-

वस्‍तु या सेवा का मूल्य शुल्क 
5 लाख रुपये से कम नि:शुल्क
रु.5 लाख-10 लाख रुपये रु.200
रु.10 लाख-रु.20 लाख 400
रु.20 लाख-50 लाख रु. रु.1000
रु.50 लाख-रु.1 करोड़ रु.2000

राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग को देय शुल्क: 

अच्छी या सेवा का मूल्य शुल्क 
रु.1 करोड़-रु.2 करोड़ रु.2500
रु.2 करोड़-रु.4 करोड़ रु.3000
रु.4 करोड़-रु.6 करोड़ 4000
रु.6 करोड़-रु.8 करोड़ रु.5000
रु.8 करोड़-रु.10 करोड़ रु.6000

राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग को देय शुल्क-

माल या सेवा का मूल्य  शुल्क 
10 करोड़ रुपये से ज्‍़यादा रु.7500

ध्यान देने वाली एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इस प्रकार एकत्र की गई फीस राज्य स्तर या राष्ट्रीय स्तर पर, जैसा भी मामला हो, उपभोक्ता कल्याण कोष में जाती है। जहां ऐसी निधि मौजूद नहीं है, उसे राज्य सरकार को निर्देशित किया जाता है। शुल्क का उपयोग उपभोक्ता कल्याण परियोजनाओं को जारी रखने के लिए किया जाता है।

अनधिकृत लेनदेन को सूचित करने के लिए ग्राहक की जिम्मेदारी

ग्राहकों को सूचित किया जाना चाहिए कि वे किसी भी अनधिकृत लेनदेन के बारे में अपने बैंक को जल्द से जल्द या यथाशीघ्र संभव अवसर पर सूचित करें। बैंक को सूचित करने में जितना अधिक समय लगेगा, बैंक/ग्राहक को हानि का जोखिम उतना ही अधिक होगा।

बैंक ग्राहक को इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग लेनदेन और ग्राहक द्वारा प्राप्त एसएमएस/प्रतिक्रिया के बारे में सूचित करते हुए भेजे गए एसएमएस के समय को नोट करेगा। यह ग्राहक की देयता की सीमा का पता लगाने के लिए किया जाता है।

 

उपभोक्ता अधिकारों के उल्‍लंघन के लिए दंड

उपभोक्ता अधिकारों के उल्‍लंघन के लिए किसी व्यक्ति या संस्था को दंडित करने की शक्ति केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण के पास होती है। यह दंड विभिन्न तरीकों से तय किया जाता है जैसे जुर्माना, दोषपूर्ण सामान वापस लेना, ऐसी वस्तुओं/सेवाओं की प्रतिपूर्ति, या अनुचित व्यापार प्रथाओं को बंद करना।

झूठे या भ्रामक विज्ञापनों के लिए दंड

निर्माता, विज्ञापनदाता या समर्थनकर्ता झूठे या भ्रामक विज्ञापनों के लिए उत्तरदायी होते हैं। हालांकि, इन मामलों में पैरोकार का दायित्व तभी बनता है जब उन्होंने इस तरह के विज्ञापन का समर्थन करने से पहले अपना शोध न किया हो। सज़ा इस प्रकार तय होती है-

• पहले अपराध के लिए – जुर्माना जो रु.10 लाख तक और 2 साल तक की जेल हो सकती है।

• हर दोहराये जाने वाले अपराध के लिए-जुर्माना जो रु.50 लाख तक हो सकता है और 5 साल तक की जेल हो सकती है।

• केंद्रीय प्राधिकरण उन्हें 1 साल तक के लिए किसी भी उत्पाद का विज्ञापन करने से भी रोक सकता है। बाद के अपराधों के मामले में, इसे 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है।

• केंद्रीय प्राधिकरण के इन निर्देशों का पालन न किये जाने की सूरत में 6 महीने तक की जेल या 20 लाख.रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।

मिलावटी उत्पादों की बिक्री के लिए दंड 

मिलावटी खाद्य-पदार्थों की बिक्री, आयात, भंडारण या वितरण में शामिल निर्माता या खुदरा विक्रेता की कोई भी व्‍यापार दंडनीय है। ऐसे में निम्नलिखित दंड लागू होते हैं-

• जब उपभोक्ता को कोई हानि न पहुंचे, जैसे किसी तरह का दर्द या मौत, 6 महीने तक की जेल और 1 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।

• जब चोट उपभोक्ता को गंभीर चोट न लगी हो, तो 1 साल तक की जेल और 3 लाख रुपये तक जुर्माने का दंड दिया जा सकता है।

• उपभोक्ता को गंभीर चोट लगने के मामले में 7 साल तक की जेल और 5 लाख रुपये तक के जुर्माने की सज़ा मिल सकती है।

• मिलावट के कारण उपभोक्ता की मृत्यु हो जाने पर तो कम से कम 7 साल की जेल और यहां तक कि आजीवन कारावास, तथा कम से कम 10 लाख रुपये तक के जुर्माना का दंड दिया जा सकता है।

इसके अतिरिक्त, पहला अपराध होने पर उपभोक्ता प्राधिकरण, निर्माता के लाइसेंस को 2 साल तक के लिए निलंबित कर सकता है। अपराध की पुनरावृत्ति पर ऐसे निर्माता के लाइसेंस को पूरी तरह से रद्द भी किया सकता है।

नकली माल की बिक्री के लिए दंड 

नकली सामान वे होते हैं जिन पर झूठा दावा किया जाता है कि वे असली हैं या फिर वे असल, मूल सामान की अनुकृति होते हैं। ये अक्सर निम्न गुणवत्ता वाले होते हैं और मूल सामान के कानूनी मालिकों के ट्रेडमार्क व कॉपीराइट का उल्‍लंघन करते हैं। एक महत्वपूर्ण उदाहरण स्थानीय बाज़ारों में मिलने वाली दवाओं या सस्ते मेकअप उत्पादों का है। इन सामानों की बिक्री, आयात, भंडारण या वितरण में शामिल निर्माता का कोई भी कृत्‍य निम्नानुसार दंडनीय है-

क. यदि उपभोक्ता को गंभीर नुकसान नहीं होता है, तो 1 साल तक की जेल और 3 लाख रुपये तक का जुर्माना लग सकता है।

ख. जब इस तरह के नकली सामान से उपभोक्ता को गंभीर नुकसान होता है, तो निर्माता को 7 साल तक की जेल और 5 लाख रुपये तक के जुर्माने की सज़ा मिल सकती है।

ग. जब खरीदे गये उत्‍पाद से उपभोक्ता की मृत्यु हो जाती है, तो न्यूनतम 7 वर्ष की जेल से लेकर आजीवन कारावास तक और न्यूनतम 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।

अधिकतम ग्राहक दायित्व और बैंक नीति

एक मूल बचत बैंक जमा खाते का एक ग्राहक अधिकतम 5,000 रुपये के लिए उत्तरदायी हो सकता है।

अन्य सभी बचत बैंक खाते, प्रीपेड भुगतान साधन और उपहार कार्ड, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के चालू/नकद क्रेडिट/ओवरड्राफ्ट खाते, (धोखाधड़ी की घटना के 365 दिनों पहले के दौरान मे)25 लाख रुपये वार्षिक औसत बैलेंस तक की सीमा वाले व्यक्तियों के चालू खाते/नकद क्रेडिट/ओवरड्राफ्ट खाते, 5 लाख रुपये तक की सीमा वाले क्रेडिट कार्ड के लिए अधिकतम देय रु. 10,000 है।

अन्य सभी चालू/नकद क्रेडिट/ओवरड्राफ्ट खातों और 5 लाख रुपये से अधिक की सीमा वाले क्रेडिट कार्ड के लिए, वे 25,000 रुपये तक के लिए उत्तरदायी हो सकते हैं। यदि विलंब सात कार्य दिवसों से अधिक के लिए है, तो ग्राहक की देयता बैंक की बोर्ड नीति के अनुसार निर्धारित की जाएगी:

• बैंकों को खाता खोलते समय तैयार की गई ग्राहकों की देयता के संबंध में अपनी नीति का विवरण प्रदान करना चाहिए।

• बैंकों को व्यापक परिचालन के लिए अपनी अनुमोदित नीति को सार्वजनिक डोमेन में भी प्रदर्शित करना चाहिए।

• मौजूदा ग्राहकों को भी बैंक की नीति के बारे में व्यक्तिगत रूप से सूचित किया जाना चाहिए।

 

विवाद निपटान तंत्र के रूप में मध्यस्थता

मध्यस्थता एक आउट-ऑफ-कोर्ट समझौता है जहां पार्टियां कार्यवाही के तरीके को तय कर सकती हैं। यह विवादों के शीघ्र निपटारे में मदद करता है।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 ने प्रावधान पेश किया है कि पार्टियों के बीच समझौते की गुंजाइश होने पर संबंधित आयोग, किसी उपभोक्ता विवाद में मध्यस्थता की सिफारिश कर सकता है। हालांकि, मध्यस्थता की प्रक्रिया को स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए पार्टियों को 5 दिन की समय सीमा दी जाती है; इसके लिए सहमति महत्वपूर्ण है। एक बार जब विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजा जाता है, तो विवाद निवारण के लिए आयोग को भुगतान किया गया शुल्क पार्टियों को वापस कर दिया जाता है।

मध्यस्थता की प्रक्रिया 

मध्यस्थता की कार्यवाही निम्नलिखित तरीके से की जा सकती है-

चरण -1: यह एक ‘उपभोक्ता मध्यस्थता प्रकोष्ठ’ में संचालित किया जाएगा जिसमें विवादों को निपटाने के लिए मध्यस्थों का एक पैनल होगा। यह प्रकोष्ठ मामलों की सूची और कार्यवाही के रिकॉर्ड का रखरखाव करता है।

चरण -2: मामले का फैला करते समय प्रत्येक मध्यस्थ से निष्पक्ष और विवेकपूर्ण कार्य करने की अपेक्षा की जाती है। कार्यवाही शुरू होने से पहले मध्यस्थ को शुल्क का भुगतान भी किया जाता है।

चरण-3: दोनों पक्षों की उपस्थिति में मध्यस्थता की जाएगी और वह गोपनीय रहेगी।

चरण -4: पार्टियों को मध्यस्थ को सभी प्रासंगिक जानकारी और दस्तावेज़ उपलब्ध कराने चाहिए।

चरण 5: यदि सभी पक्षमध्यस्थता की कार्यवाही के बाद, 3 महीने के भीतर, किसी समझौते पर आते हैं, तो पार्टियों के हस्ताक्षर के साथ एक ‘निपटान रिपोर्ट’ आयोग को भेजी जाएगी।

चरण -6: पार्टियों की ‘निपटान रिपोर्ट’ प्राप्‍त होने के 7 दिनों के भीतर संबंधित आयोग को एक आदेश पारित करना आवश्यक है।

चरण -7: यदि मध्यस्थता के माध्यम से कोई समझौता नहीं हुआ है, तो कार्यवाही की एक रिपोर्ट के माध्यम से आयोग को सूचित किया जाता है। आयोग तब संबंधित उपभोक्ता विवाद के मुद्दों को सुनेगा और मामले का फैसला करेगा।

चरण -8: मध्यस्थता प्रक्रिया से गुज़रने के बाद विवाद को अन्य कार्यवाही, जैसे पंचाट या अदालती मुकदमे में नहीं ले जाया जा सकता।

शिकायतें जिनका समाधान मध्यस्थता से नहीं हो सकता 

हालांकि, निम्नलिखित मामलों को मध्यस्थता के लिए निर्दिष्ट नहीं किया जा सकता-

• गंभीर चिकित्सीय लापरवाही या जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु हो जाती है।

• धोखाधड़ी, जालसाज़ी, ज़बरदस्ती।

• किसी भी पक्ष द्वारा अपराध-वर्धन के लिए आवेदन। इसका मतलब यह है कि इन अपराधों को लेकर कार्यवाही, पार्टियों के बीच जुर्माने के भुगतान पर तय की जा सकती है, बशर्ते कि इस तरह के अपराध की पुनरावृत्ति 3 साल की अवधि में न हुई हो।

• फौजदारी अपराध और जनहित के मुद्दे। इनमें उस जनता से जुड़े मुद्दे शामिल हैं जो मामले की पक्षकार नहीं है। उदाहरण के लिए, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर इलेक्ट्रॉनिक बैंक लेनदेन के मामले में गोपनीयता का उल्‍लंघन।