हिंदू विवाह और मानसिक रोग

कानून कहता है कि मानसिक रोग वाले व्यक्ति में आमतौर पर वैध कानूनी विवाह करने की क्षमता नहीं होती है। जो व्यक्ति शादी करने की योजना बना रहा है, उसे वैध सहमति देने के लिए सक्षम होना चाहिए। यदि आप निम्नलिखित कारणों से सहमति देने में अक्षम हैं:

  • दिमाग की अस्वस्थता या;
  • मानसिक विकार के कारण जो आपको ‘विवाह और बच्चे पैदा करने के लिए अयोग्य’ बनाता है या;
  • यदि आपको ‘पागलपन का दौरा लगातार पड़ता है’, तो आपका विवाह वैध नहीं होगा।
कानून का प्रावधान चाहे सभी प्रकार के मानसिक रोगों को सम्मिलित ना कर सकता हो, लेकिन ऐसे भी कोई दिशानिर्देश नहीं हैं कि किस प्रकार के रोग या रोग का स्तर आपको विवाह के लिए अनुपयुक्त बनाती हैं।

हिंदू विवाह कानून के अंतर्गत निषेध रिश्ते

यदि जीवन साथी निषेध रिश्ते की सीमाओं में आते हैं, तब उनका विवाह वैध विवाह नहीं होगा। निषेध शादियों के प्रकार निम्नलिखित हैं:

  • यदि एक जीवन साथी दूसरे का वंशागत पूर्वपुरुष है। वंशागत पूर्वपुरुष में पिता, माता, दादा और दादी के साथ-साथ परदादा और परदादी आदि भी शामिल हैं।
  • यदि एक जीवन साथी किसी वंशागत पूर्वपुरुष की पत्नी या पति है या किसी का वंशज है। वंशागत वंशज में ना केवल बच्चे और पोते पोतियां शामिल होंगे, बल्कि पड़पोते पड़पोतियां और उनके बच्चे भी शामिल होंगे।
  • यदि दो जीवन साथी भाई और बहन, चाचा और भतीजी, चाची और भतीजा, या पहले कज़िन हैं।
  • यदि एक जीवन साथी है
  • पूर्व जीवन साथी या आपके भाई बहन की विधवा (विधुर) या
  • पूर्व जीवन साथी या आपके पिता के या माता के भाई बहन की विधवा (विधुर) या
  • पूर्व जीवन साथी या आपके दादा के या दादी के भाई-बहन की विधवा (विधुर)।

अमान्य/निरस्त हिंदू विवाह

हिंदू विवाह अधिनियम, धारा 11 के तहत कुछ परिस्थितियां बताई गई हैं जब विवाह निरस्त हो जाता है। विवाह जब निरस्त हो जाता है, तो इसका मतलब यह होता है कि इसे बिल्कुल शुरू से ही स्वतः अमान्य विवाह मान लिया गया है और इसे रद्द करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसकी परिस्थितियां निम्नलिखित हैं:

  • दोनों पक्षों में से एक का जीवन साथी विवाह के समय जीवित हो।
  • यदि पक्ष निषिद्ध संबंध की सीमाओं के भीतर हैं, सिर्फ तब, जब कुछ रिवाज इसकी अनुमति दें। उदाहरण- कुछ बिरादरियों में, उनकी रीतियों की विशेषता के कारण निषिद्ध रिश्तों की सीमा के भीतर विवाहों की अनुमति दी जाती है।
  • पक्ष एक दूसरे के सपिंदा हैं, सिर्फ उन मामलों के जहां कुछ रीतियां इसकी अनुमति देती हैं।

हिंदू विवाह कानून के अंतर्गत शून्यकरणीय विवाह

हिंदू विवाह अधिनियम के तहत, कुछ परिस्थितियां विवाह को शून्यकरणीय बनाती हैं।

यह परिस्थितियां निम्नलिखित हैं:

  • जीवन साथियों में से एक नपुंसक है।
  • यदि विवाह की शर्तें पूरी नहीं की गई हैं। 1978 से पहले, अभिभावक को विवाह करने जा रहे बच्चे की तरफ से सहमति लेनी पड़ती थी। इस प्रथा पर 1978 के बाद अमल नहीं किया गया, इसकी वजह है बाल विवाह रोकथाम (संशोधन) अधिनियम, 1978 का लागू होना।
  • विवाह के समय, महिला अपने पति के बजाय किसी और व्यक्ति से गर्भवती थी।
  • ऐसे मामलों में जहां सहमति धोखे से या जबरदस्ती ली गई थी।

सपिंदा और हिंदू विवाह

सपिंदा रिश्तेदारी या तो पैतृक हो सकती है या फिर मातृक। आप हिंदू विवाह के लिए योग्य नहीं हैं यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह करते हैं जो

  1. आपकी माता के परिवार की तरफ से आपसे पिछली तीन पीढ़ियों के अंदर आते हों या आपके पूर्वज समान हों
  2. आपके पिता के परिवार की तरफ से आपसे पिछली पाँच पीढ़ियों के अंदर आते हों या आपके पूर्वज समान हों

हालांकि, किसी ऐसे व्यक्ति से शादी करना जो आपकी सपिंदा रिश्तेदारी में हो उसकी सजा सामान्य जेल है जो एक महीने तक बढ़ाई जा सकती है, जुर्माना जिसे एक हजार रुपये तक बढ़ाया जा सकता है, या दोनों ही, लेकिन ऐसा विवाह अनुमत हो सकता है यदि यह दिखाया गया हो कि आपके समाज/जाति/कबीले में एक स्थापित प्रथा या प्रचलन है जो सपिंदा के बीच विवाह की अनुमति देता है।