बाल विवाह उन पक्षों के बीच विवाह माना जाता है जहां:
• शादी करने वाले दोनों लोग अवयस्क हों, या
• उनमें से कोई भी एक बच्चा हो या अवयस्क हो।
एक महिला के लिए शादी की उम्र 18 साल है।
एक पुरुष के लिए शादी की उम्र 21 साल है।
मुस्लम स्वीय विधि के तहत शादी की उम्र यौवन (15 साल की उम्र) है। इसलिए, यदि आपकी आयु क्रमशः 18 वर्ष/21 वर्ष से कम है और आपकी शादी हो जाती है, तो आपकी शादी अवैध नहीं है। परंतु अगर, आप चाहें तो बाल विवाह कानून के तहत अपनी शादी को शून्यकरणीय कर सकते हैं।
कोई भी दो व्यक्ति, जहां एक या दोनों प्रतिभागी ईसाई हैं, ईसाई कानून के तहत विवाह कर सकते हैं। कानून की नजर में, कोई भी व्यक्ति जो वास्तव में ईसाई धर्म में विश्वास करता है, वह ईसाई होगा। उन्होंने इस आस्था में बपतिस्मा लिया है या नहीं, यह एक ईसाई के रूप में उनकी स्थिति को निर्धारित नहीं करेगा। बल्कि, कानून धर्म में व्यक्ति के आस्था की प्रामाणिकता को देखता है, यह निर्धारित करने के लिए कि वह ईसाई है या नहीं।
विवाह के लिए न्यूनतम आयु
जबकि कानून विवाह करने के लिए न्यूनतम आयु नियत नहीं करता है, कानून नाबालिगों के विवाह के लिए एक विशेष प्रक्रिया प्रदान करता है। ईसाई विवाह के प्रयोजनों के लिए, एक नाबालिग 21 वर्ष से कम आयु का कोई भी व्यक्ति है, और जो विधवा/विधुर नहीं है। हालांकि, बाल विवाह निषेध अधिनियम एक बच्चे (18 वर्ष से कम) से जुड़े हर विवाह को अवैध बनाता है, लेकिन यदि बच्चा विकल्प देता है तो उसे अमान्य योग्य समझता है। ऐसी स्थितियों में जहां नाबालिग की उम्र 18 से 21 वर्ष के बीच है, उन्हें कानून के तहत विवाह करने के लिए अपने पिता, अभिभावक या माता की सहमति की आवश्यकता होती है। नाबालिग की विवाह की विशेष प्रक्रियाओं के बारे में अधिक जानने के लिए, हमारे ईसाई कानून के तहत नाबालिगों के विवाह पर लिखित लेख को पढ़ें।
ईसाई कानून के तहत निषिद्ध विवाह
कुछ व्यक्तिगत कानून किसी व्यक्ति को एक निश्चित व्यक्ति से विवाह करने से पूरी तरह से प्रतिबंधित कर सकते हैं, जैसे कि भाई-बहनों के बीच विवाह। ईसाई विवाह कानून ऐसे निषिद्ध विवाहों की अनुमति नहीं देता है और इस तरह के विवाह को इस कानून के तहत अमान्य माना जाता है। हालांकि, किसी व्यक्ति के पास अभी भी विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह करने का विकल्प होता है, और व्यक्तिगत कानूनों की बाधा ऐसी विवाह के लिए लागू नहीं होती है। विशेष या अंतर-धार्मिक विवाहों के बारे में अधिक जानने के लिए, अंतर-धार्मिक विवाह पर हमारे लेख को पढ़ें।
इस्लामिक कानूनों की कई विचारधाराएं हैं। इस्लामी विवाह पर कानून विद्वानों द्वारा कुरान की व्याख्या से आता है। इस प्रकार, अधिकांश इस्लामी निकाह पीढ़ियों से पालन किए जाने वाली व्याख्या से प्राप्त रीति-रिवाजों के आधार पर तय होते हैं। इस्लाम का पालन करने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होने वाले कानून और रीति-रिवाज व्यक्ति के संप्रदाय के आधार पर भिन्न होते हैं। इसके अलावा, संप्रदायों के भीतर रीति-रिवाजों की विभिन्न शाखाएं उभरी हैं। इन शाखाओं में विशिष्ट कानून हैं जिन्हें “स्कूल ऑफ लॉ” के रूप में जाना जाता है।
भारत में, मुस्लिम पर्सनल लॉ के कुछ हिस्सों को 1937 में मुस्लिम स्वीय विधि (शरीयत) अधिनियम, 1937 के साथ-साथ मुस्लिम निकाह विघटन अधिनियम, 1939 के रूप में लिखा गया था। इन दोनों कानूनों से कई मायनों में पारिवारिक कानूनों में सुधार हुआ है। परन्तु, इस्लामी निकाह इस्लामिक धार्मिक नियमों के आधार पर ही तय होते हैं। इस्लाम में दो संप्रदाय हैं- सुन्नी और शिया। प्रत्येक संप्रदाय अपनी एक अलग कानूनी विचारधारा का पालन करता है । इसका मतलब यह है कि संप्रदाय के आधार पर, दूल्हा और दुल्हन के लिए निकाह की प्रक्रिया अलग-अलग होती है।
किसी शादी को हिंदू विवाह के रूप में कानूनी मान्यता देने के लिए, निम्नलिखित शर्तें जरूर पूरी की जानी चाहिएः
- कानून की नजर में दंपति को हिंदू होना चाहिए।
- विवाह करते समय पति की आयु 21 वर्ष और पत्नी की आयु 18 वर्ष से अधिक होनी चाहिए।
- पति और पत्नी दोनों स्वस्थ चित्त हों।
- एक दूसरे से विवाह करते समय ना तो पति विवाहित हो सकता है ना ही पत्नी।
- पति और पत्नी निषिद्ध संबंध में ना हों।
- पति और पत्नी एक दूसरे के सपिंदा ना हों।
यदि इनमें से कोई भी शर्त पूरी नहीं की जाती है, तो कानून आपके विवाह को वैध नहीं मान सकता, और कुछ मामलों में, आपको सजा भी हो सकती है।
भारत में बाल विवाह सदियों पुरानी प्रथा है। इस सामाजिक बुराई को खतम करने के लिए, कानून लोगों को बाल विवाह करने से रोकता है और बाल विवाह कराने वालों के लिए दंड का प्रावधान करता है।
हालांकि, अगर किसी बच्चे की शादी हो चुकी है, तो कानून उसे तुरंत अवैध नहीं करता। इस तरह से विवाहित बच्चे के पास विवाह को इसे जारी रखने या रद्द करने का विकल्प होता है।
कुछ व्यक्तिगत कानूनों ( ऐसे कानून जो विभिन धर्मों के अंतर्गत विवाह, तलाक आदि जैसे पहलुओं को नियंत्रित करते हैं) के अनुसार, भारत में बच्चे कोयौवन प्राप्त करने के बाद विवाह की अनुमति दी जा सकती है। लड़कियों के मामले में यौवन 18 वर्ष की उम्र से पहले और लड़को के मामले में यौवन 21 वर्ष की उम्र से पहले भी आ सकता है। कई मामलों में न्यायालयों ने यह माना है कि जहाँ व्यक्तिगत कानूनों के तहत यौवन प्राप्ति पर शादी आयोजित हो गयी हो ऐसी शादी अवैध नहीं होगी। हालांकि बाल विवाह कानून के तहत ऐसी किसी भी शादी को शून्यकरणीय करने का विकल्प विवाहित बच्चे के पास होगा।
परन्तु कुछ परिस्थितियों में, कुछ बाल विवाहों को पूरी तरह से अवैध माना जाता है।
निम्नलिखित व्यक्ति कानून के तहत ईसाई विवाह कर सकते हैं:
1. कोई भी व्यक्ति जिसने अपने चर्च से पादरी/फादर बनने के लिए दीक्षा प्राप्त किया हो।
2. चर्च ऑफ स्कॉटलैंड का कोई भी पादरी।
3. किसी भी धार्मिक पादरी को भारतीय ईसाई विवाह कानून के तहत विवाह संपन्न कराने का लाइसेंस दिया गया है।
4. भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम के तहत नियुक्त विवाह रजिस्ट्रार। विवाह, विवाह रजिस्ट्रार द्वारा या उनकी उपस्थिति में संपन्न हो सकता है।
5. भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम के तहत लाइसेंस प्राप्त किया हुआ व्यक्ति द्वारा विवाह का प्रमाण पत्र प्रदान किया जा सकता है।
चर्च ऑफ स्कॉटलैंड के पादरी, पादरी या किसी फादर द्वारा किया गया कोई भी विवाह चर्च के उस विशेष संप्रदाय के नियमों, संस्कारों, समारोहों और रीति-रिवाजों के अनुसार किया जाएगा। हालांकि, विवाह की प्रक्रिया भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम के अनुसार होगी, यदि वह विवाह धार्मिक पादरी, विवाह रजिस्ट्रार या इस कानून के तहत प्रमाण पत्र देने के लिए लाइसेंस प्राप्त किसी व्यक्ति द्वारा संचालित किया जाता है। विवाह कराने वाले व्यक्ति के आधार पर प्रक्रियाएं भी भिन्न होती हैं। प्रक्रियाओं के बारे में और अधिक पढ़ने के लिए, “ईसाई कानून के तहत विवाह के लिए विभिन्न प्रक्रियाएं क्या हैं” पर हमारे लेख को देखें।
निकाह, इस्लामिक कानून के तहत एक संविदा (कॉन्ट्रेक्ट) होता है। निम्नलिखित शर्तों को पूरा करके यह संविदा दर्ज किया जा सकता है:
• दूल्हा और दुल्हन दोनों को निकाह के लिए स्पष्ट सहमति देनी होगी।
• निकाह करने वाले जोड़े को मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए और उन्होंने युवावस्था (आमतौर पर 15 वर्ष) प्राप्त कर ली होनी चाहिए।
• एक सरंक्षक, जोकि माता-पिता या भाई-बहन हो सकता है, नाबालिग या किसी ऐसे व्यक्ति की ओर से सहमति दे सकता है , जो स्वस्थ दिमाग का नहीं है।
यदि आप यह देखना चाहते हैं कि क्या आपने अपने ऊपर लागू होने वाले अधिनियम की बुनियादी शर्त को पूरा कर लिया है, तो आपको निम्नलिखित व्यक्तियों के समूह में से एक होना पड़ेगाः
- कोई भी व्यक्ति जो धर्म से हिंदू हो और वीरशैव, लिंगायत में भी शामिल हो सकता है या ब्रह्म, प्रार्थना, या आर्य समाज का अनुयायी हो सकता है।
- कोई भी व्यक्ति जो धर्म से बौद्ध, जैन या सिख हो।
- कोई अन्य व्यक्ति जिस पर यह अधिनियम लागू होता हो और जो धर्म से मुस्लिम, ईसाई, पारसी, या यहूदी न हो। हालांकि यदि आप यह साबित कर सकते हों कि कोई हिंदू कानून या उस कानून के हिस्से के तौर पर कोई रीति या प्रथा उस समाज/कबीला/जाति को संचालित करती है, तो आप हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत शादी कर सकते हैं।
बाल विवाह कराना भी एक अपराध है:
• विवाह कराना: कोई भी व्यक्ति जो बाल विवाह कराता है या कराने में मदद करता है, वह अपराधी माना जायेगा।
• विवाह कराने वाले माता-पिता/ सरंक्षक: यदि कोई माता-पिता, या कोई सरंक्षक या कोई भी ऐसा व्यक्ति जिस पर किसी भी बच्चे की ज़िम्मेदारी है किसी भी तौर पर बाल विवाह को बढ़ावा देता है या उसका हिस्सा बनता है तो उसके इस कृत्य को अपराध माना जाएगा। किसी भी बाल विवाह में सम्मिलित होना या उसमें भाग लेने को भी एक अपराध माना जायेगा।
जो कोई भी इन अपराधों को करने का दोषी पाया जायेगा उसे दो साल के कठोर कारावास और एक लाख रुपये के जुर्माने की सज़्ज़ा दी जाएगी।
इस कानून के तहत सभी अपराध संज्ञेय और अजमानतीय हैं, जिसका अर्थ है कि पुलिस आपको बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है और पुलिस से जमानत प्राप्त करना आपका हक नहीं होगा।
अनियमित विवाह वे विवाह होते हैं जिनमें कुछ शर्तों का पालन नहीं किया जाता है। आमतौर पर ऐसी शादियों को शुरू से ही अमान्य माना जाता है, हालांकि कानून कहता है कि अनियमितता की स्थिति में विवाह को अमान्य नहीं किया जाएगा, बल्कि इसे सुधारा जाएगा। नीचे कुछ कारण दिए गए हैं जिनके कारण विवाह अनियमित हो सकता है। इनमें से कुछ त्रुटियां निम्नलिखित हो सकती हैं:
• किसी भी विवरण में विवाहित व्यक्तियों के निवास स्थान के संबंध में
• किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा दी गई सहमति के किसी भी रूप में, जिसकी ऐसे विवाह के लिए सहमति कानून द्वारा आवश्यक है।
• विवाह का नोटिस में।
• प्रमाण-पत्र में।
• जिस समय और स्थान पर विवाह संपन्न हुआ था।
• विवाह के पंजीकरण में।