भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों पर गाइड

गाइड में किन कानूनों पर बात होगी?

इस गाइड में, भारत के संविधान में शामिल ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 और ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) नियम 2020 के प्रावधानों पर बात होगी।

ऐसे कानून क्यों बनाए गए?

सामाजिक स्वीकृति की कमी के कारण ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को समाज का हिस्सा नहीं माना जाता है। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को आमतौर पर उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है और वहीं उनके लिए जीवित रहने के साधन और कमाई के तरीके कम हैं। माता-पिता को लगता है कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति का होना अपमानजनक है, क्योंकि इससे परिवार को शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को इस तरह की परेशानी शादी के मामले में भी होती है। इस अधिनियम का मकसद, इन मुद्दों के साथ ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से जुड़ी दूसरी सभी परेशानियों को हल करना है।

इस कानून का मकसद क्या है?

ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 (“कानून”) देश में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा और उनके कल्याण के लिए बनाया गया है। यह कानून पूरे भारत में लागू होता है।

ट्रांसजेंडर व्यक्ति कौन होते हैं? 

कानून के अनुसार, ट्रांसजेंडर व्यक्ति वह व्यक्ति होता है, जिसका लिंग जन्म के समय मिले लिंग से मेल नहीं करता है।
नीचे बताए व्यक्तियों को ट्रांसजेंडर व्यक्ति कहते हैं:

  • ट्रांस-पुरुष
  • ट्रांस-महिला
  • इंटर सेक्स (अंतर-लिंग) भिन्नता वाले व्यक्ति
  • क्वीयर व्यक्ति
  • किन्नर, हिजड़ा, अरवानी और जोगता जैसी सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान वाले व्यक्ति

भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्ति की कानूनी स्थिति क्या है?

भारत में, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को कानूनी रूप से ‘तीसरे लिंग’ या ‘अन्य’ के तौर पर मान्यता मिली है। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को भारत में  हर किसी की  तरह ही सारे अधिकार मिलते हैं।  इसके साथ ही, उन्हें भारत के संविधान के तहत अपने मौलिक अधिकारों को इस्तेमाल करने का भी अधिकार है।  2014 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले (नालसा बनाम भारत संघ और अन्य (2014) में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को भारत में ‘तीसरे लिंग’ के रूप पहचान दी।

सभी ट्रांसजेंडर व्यक्ति अनुच्छेद 14 (समानता), अनुच्छेद 15 (भेदभाव से आजादी), अनुच्छेद 16 (सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर), अनुच्छेद 19 (1) (ए) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार) और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन जीने का अधिकार) जैसे मौलिक अधिकारों के हकदार हैं। वहीं 2020 में, संसद ने कानूनी रूप से ‘ट्रांसजेंडर’ को भारत में आधिकारिक लिंग के रूप में पहचान दी है।

ट्रांसजेंडर व्यक्ति की लिंग पहचान

लिंग पहचान क्या होती है?

‘लिंग पहचान’ व्यक्ति के किसी खास लिंग के होने की मानसिक भावना को बताती है। इस बात का चुनाव तब किया जाता है, जब कोई व्यक्ति अपने शरीर, शारीरिक बनावट, बातचीत और तौर-तरीकों आदि से खुद को समझता है। अगर कोई व्यक्ति अपनी पहचान उस लिंग के साथ नहीं करता, जो उसे जन्म के दौरान मिला है, तो वे किसी और लिंग में अपनी पहचान कर सकता है।

लिंग पहचान बदलने के लिए मेडिकल विकल्प क्या हैं?

लिंग पहचान को समझने, स्वीकार करने और व्यक्त करने की प्रक्रिया को ‘ट्रांज़िश्निंग’ कहा जाता है। इसे नीचे बताए मेडिकल विकल्पों के द्वारा करते हैंः

  • हॉर्मोन थेरेपी: इसमें दवाओं का इस्तेमाल से किसी व्यक्ति की यौन पहचान को बढ़ाने या घटाने का काम किया जाता है।
  • जेंडर अफर्मेटिव थेरेपी (जीएटी): यह मनोवैज्ञानिक परामर्श से लेकर सेक्स रिआइनमेंट सर्जरी तक की एक प्रक्रिया है, जिसका मकसद व्यक्ति के बाहरी रूप को बदलना होता है। जीएटी की मदद से व्यक्ति अपनी चुनी हुई लिंग पहचान के साथ ज्यादा जुड़ पाते हैं। उदाहरण के लिए, रीता को जन्म के समय महिला के रूप में पहचाना गया, लेकिन बड़े होने पर वह खुद को पुरुष महसूस करती है। वह स्तन हटाने की सर्जरी के माध्यम से अपने बाहरी रूप को मर्दाना बनाने के लिए जेंडर अफर्मेटिव थेरेपी (जीएटी) करवा सकती है।
  • करेक्टिव सर्जरी / इंटरसेक्स सर्जरी: जब पुरुष और महिला जननांगों के बीच कोई अंतर नहीं होता है, तो यौन पहचान और जननांगों में बदलाव लाने के लिए इन प्रक्रियाओं का इस्तेमाल होता है। उदाहरण के लिए, एक बच्चा जब पुरुष और महिला दोनों जननांगों के साथ पैदा हुआ है और वह खुद की पहचान एक पुरुष के तौर में करता है। इस तरह के मामले में, वह पुरुष लिंग को ज्यादा मजबूत करने के लिए  करेक्टिव सर्जरी / इंटर-सेक्स सर्जरी करवा सकता है।

ध्यान रखें:

 किसी व्यक्ति को अपनी लिंग पहचान बताने के लिए किसी भी शारीरिक बदलाव/मेडिकल प्रक्रिया से गुजरना ज़रूरी नहीं है। कोई व्यक्ति लैंगिक तौर पर खुद कैसा महसूस करता है, इस आधार पर भारत का कानून किसी व्यक्ति को अपनी लिंग पहचान चुनने की आजादी देता है। व्यक्ति की शारीरिक बनावट उसके द्वारा चुनी गई लिंग पहचान को प्रभावित नहीं करती हैं।

क्या कानून व्यक्ति को अपनी ‘लिंग पहचान’ चुनने की अनुमति देता है?

हां! कानून किसी भी व्यक्ति को अपनी ‘लिंग पहचान’ चुनने की अनुमति देता है।

राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ और अन्य (2014) के ऐतिहासिक मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों को “तीसरे लिंग” के तौर में पहचाना। इस फैसले में, केंद्र और राज्य सरकारों को भी ट्रांसजेंडर अधिकारों की सुरक्षा के लिए सामाजिक कल्याण योजनाओं और दूसरे जरूरी प्रावधानों को तैयार और विनियमित करने के लिए कहा गया था।

केस स्टडी: अंजलि गुरु संजना जान बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य (2021) के मामले में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने देखा कि ग्राम पंचायत चुनावों के लिए याचिकाकर्ता ने खुद को एक महिला बताया, जबकि वह एक ट्रांसजेंडर थीं और इसके कारण उनका आवेदन खारिज हो गया। अदालत ने माना कि याचिकाकर्ता को अपने लिंग की खुद पहचान करने का अधिकार है और इसके बाद उनके आवेदन को स्वीकार कर लिया गया।

नोट: केंद्र और राज्य सरकारों को भी तीसरे लिंग के व्यक्तियों को  सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के रूप में मान्यता देने के लिए काम करना होगा। जिसके तहत वे शैक्षणिक संस्थानों और सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण के हकदार हैं। सरकार का यह कर्तव्य है कि वह सभी दस्तावेजों में “तीसरे लिंग” को कानूनी मान्यता दे। ज्यादा जानकारी के लिए, आप LGBTQ+ के लिए पहचान प्रमाण पर न्याया द्वारा लिखे लेखों को पढ़ सकते हैं।

क्या आधिकारिक तौर पर किसी व्यक्ति की लिंग पहचान दर्ज की जा सकती है?

हां! 

ट्रांसजेंडर कानून में, आप आधिकारिक तौर पर एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति के रूप में अपने लिंग को इस तरह रिकॉर्ड कर सकते हैंः

चरण 1: ट्रांसजेंडर व्यक्ति के तौर पर पहचान का प्रमाण पत्र लेने के लिए जिला मजिस्ट्रेट को आवेदन करें। नाबालिग ट्रांसजेंडर के लिए, आवेदन उसके माता-पिता या कानूनी अभिभावक कर सकते हैं। अगर माता-पिता/अभिभावक आवेदन नहीं करते हैं, तो ट्रांसजेंडर व्यक्ति, बालिग (18 साल या उससे ज्यादा उम्र) होने के बाद आवेदन कर सकता है। हर जिले में यह प्रक्रिया अलग-अलग हो सकती है, इसलिए एक बार अपने जिले स्तर पर जांच कर लें।

चरण 2: जिला मजिस्ट्रेट आपके जमा किए गए आवेदन के आधार पर पहचान का प्रमाण पत्र जारी करेंगे।

चरण 3: ट्रांसजेंडर व्यक्ति का लिंग जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय द्वारा बनाए गए आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज किया जाएगा।

चरण 4: अगर ट्रांसजेंडर व्यक्ति पहचान पत्र जारी होने के बाद  अपने लिंग की पुष्टि के लिए किसी भी प्रकार की मेडिकल प्रक्रिया से गुजरते हैं, तो ट्रांसजेंडर व्यक्ति को नए लिंग के बारे में जिला मजिस्ट्रेट को सूचित करना चाहिए। साथ ही आपको चिकित्सा अधीक्षक या मुख्य चिकित्सा अधिकारी के द्वारा जारी किए प्रमाण पत्र भी देने होंगे।

चरण 5: इसके बाद जिलाधिकारी संशोधित(दूसरा बदलाव वाला)  प्रमाण पत्र जारी करेंगे।

आवेदन पत्र और हलफनामे का एक सैम्पल फॉर्म नीचे दिए गए सेक्शन में है।

पहचान पत्र जारी करवाने के लिए कौन से दस्तावेज़ जरूरी हैं?

नीचे बताए दस्तावेजों द्वारा आप अपना पहचान पत्र जारी करवा सकते हैं:

क्रमांक आधिकारिक दस्तावेज का नाम
1. जन्म प्रमाण पत्र
2. जाति/जनजाति प्रमाण पत्र
3. कक्षा 10 या कक्षा 12 का प्रमाण पत्र या एसएसएलसी
4. मतदाता पहचान पत्र
5. आधार कार्ड
6. पैन कार्ड
7. ड्राइविंग लाइसेंस
8. बीपीएल राशन कार्ड
9. पोस्ट ऑफिस पासबुक/बैंक पासबुक (फोटो के साथ)
10. पासपोर्ट
11. किसान पासबुक
12. शादी का प्रमाण पत्र
13. बिजली/पानी/गैस कनेक्शन बिल

 

ध्यान देंः यह दस्तावेजों की एक अस्थायी सूची है। आप इनकी दुबारा पुष्टि कर सकते हैं। साथ ही आप अपने नजदीक के स्थानीय जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय में दूसरे विकल्पों के बारे में भी जानकारी ले सकते हैं। 

आधिकारिक तौर पर ट्रांसजेंडर व्यक्ति के रूप में अपनी लिंग पहचान दर्ज करने के बाद क्या होता है?

आधिकारिक तौर पर लिंग पहचान दर्ज करने के बाद व्यक्ति को ट्रांसजेंडर व्यक्ति के रूप में एक सरकारी पहचान प्रमाण पत्र दिया जाता है। यह प्रमाण पत्र ट्रांसजेंडर व्यक्ति के रूप में उनकी पहचान का प्रमाण है। इसके बाद उस व्यक्ति के लिंग को सभी आधिकारिक दस्तावेजों पर ‘ट्रांसजेंडर’ या ‘थर्ड जेंडर’ के रूप में दर्ज किया जाएगा।

केस स्टडीः केरल में ट्रांसजेंडर समुदाय को राशन के वितरण, दवा और डाॅक्टरी इलाज तक पहुंच बनाने के लिए एक रिट याचिका दायर की गई। इस कबीर सी उर्फ अनीरा कबीर बनाम केरल राज्य (2020) के मामले में कोर्ट ने कहा कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को लिंग पहचान पत्र और राशन कार्ड जारी हो और इन्हें उपलब्ध करने के लिए जरूरी कदम भी उठाए जाएं।

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की रक्षा करने वाले कानून

क्या भारतीय संविधान ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की रक्षा करता है?

हां। संविधान में कुछ ऐसे जरूरी प्रावधान हैं, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों  के हितों की रक्षा करते हैं: जैसे-

  • समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14): कानून की नज़र में सभी व्यक्ति समान हैं और सभी को समान कानूनी अधिकार दिए गए हैं। यहां “व्यक्ति” शब्द बताता है कि कानूनी तौर पर लिंग या लिंग पहचान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं की जा सकती है।
शैक्षणिक संस्थानों या रोजगार की जगहों में ‘ट्रांसजेंडर व्यक्तियों’ के साथ गलत व्यवहार नहीं किया जा सकता है। उन्हें हर व्यक्ति की  तरह समान स्वास्थ्य सेवाओं और सार्वजनिक संपत्ति को इस्तेमाल करने का अधिकार है। वे पूरे देश में कहीं भी आजादी के साथ घूमने का भी अधिकार रखते हैं।
  • लिंग, जाति, धर्म, जन्म स्थान और वंश के आधार पर: भेदभाव का निषेध (अनुच्छेद 15): जाति, धर्म, नस्ल या लिंग के आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जा सकता है। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ भेदभाव या दुर्व्यवहार उनके मूल मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। एमएक्स आलिया एसके बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य (2019) के मामले में, कोर्ट ने माना कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को विश्वविद्यालयों में दाखिला लेने का अधिकार है। सार्वजनिक विश्वविद्यालय के आवेदनों और दाखिले की प्रक्रिया में ट्रांसजेंडर को शामिल करने के लिए खास हाॅस्टल और ऐसी शामिल करने वाली व्यवस्था करनी होगी।  इस कारण से यह फैसला महत्वपूर्ण है, क्योंकि पहले ऐसा नहीं किया जाता था और यह ये तय करने में यह अदालतों की भूमिका को भी बताता है।
  • बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19): यह अधिकार हर भारतीय नागरिक को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है। इसमें सार्वजनिक रूप से अपनी लैंगिक पहचान व्यक्त करने की स्वतंत्रता भी शामिल है।|

  • जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 21): किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से दूर नहीं किया जा सकता है। इस अधिकार के अनुसार, एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति सहित हर व्यक्ति को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार है। भारत का नागरिक होने के नाते ट्रांसजेंडर व्यक्ति को अपने जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करने का पूरा अधिकार है।
नंगई बनाम पुलिस अधीक्षक (2014) के मामले में, मद्रास हाईकोर्ट ने माना कि किसी भी व्यक्ति को उसकी लिंग की चिकित्सा जांच के लिए बाध्य करना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। इस मामले में किसी व्यक्ति के अपने लिंग की खुद पहचान करने के अधिकार को आधार बनाया गया है।

क्या ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए कोई आरक्षण है?

हां, ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020 के तहत, केंद्र और राज्य सरकारें वर्टिकल रिज़र्वेशन के लिए उन्हें ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ में रख सकती हैं।

भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कौन से कानून हैं?

  • ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 और नियम: 2020 में पारित यह अधिनियम ट्रांसजेंडर लोगों को कई अधिकार देता है।

  • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989: अगर कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति समुदाय से है, तो यह कानून उस व्यक्ति को किसी भी तरह के जाति/जनजाति से जुड़े भेदभाव से बचाता है। 
    एमएक्स सुमना प्रमाणिक बनाम भारत संघ (2020) के मामले में, कोर्ट ने न केवल ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए आरक्षण को जरूरी बताया, बल्कि उनके लिए परीक्षाओं में उम्र और फीस में भी छूट दी। जहां कहीं भी आरक्षण के ये प्रावधान किए जाएंगे, वहां सरकार को इसे लागू करना होगा।
  • नालसा निर्णय : राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ और अन्य 2014 मामले के ऐतिहासिक निर्णय में, सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर समुदाय को “तीसरे लिंग” के रूप में पहचान दी। इस मामले ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अपनी लिंग पहचान चुनने और सम्मान के साथ जिंदगी जीने की राह दी। 
    जी. नागलक्ष्मी बनाम पुलिस महानिदेशक के मामले में  (2014), मद्रास हाईकोर्ट ने देखा कि किसी विशेष कानून के ना होने पर,  किसी भी व्यक्ति को अपनी यौन या लिंग पहचान चुनने की आजादी है। इस मामले में, कोर्ट ने याचिकाकर्ता के अपने लिंग को चुनने के अधिकार को बरकरार रखा। 
  • पुट्टुस्वामी बनाम भारत संघ (2017) : इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जीवन, समानता और मौलिक स्वतंत्रता के अधिकार में निहित निजता (प्राइवेसी) एक संवैधानिक अधिकार है। इस निजता के अधिकार में अपनी पसंद से संबंध रखने, यौन झुकाव और लिंग पहचान का अधिकार शामिल है।

  • नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (आईपीसी की धारा 377 का अपराधीकरण): सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा कि भारत में LGBTQ+ लोग भारत के संविधान में संरक्षित स्वतंत्रता सहित सभी संवैधानिक अधिकारों के हकदार हैं।

  • भारतीय दंड संहिता (आईपीसी),1860: ट्रांसजेंडर व्यक्ति द्वारा किए गए किसी भी अपराध को आईपीसी के प्रावधानों के अनुसार दंडित किया जाएगा। श्रीमती एक्स बनाम उत्तराखंड राज्य (2019) के मामले ने नालसा के फैसले की पुष्टि की और कहा कि किसी को लिंग की खुद पहचान का अधिकार ना देना जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को ना देने जैसा है। यह फैसला इसलिये खास था,क्योंकि यह पहला ऐसा केस था, जिसने आपराधिक कानून के विषय में भी व्यक्ति के “मानस” के आधार पर आत्मनिर्णय के अधिकार को आधार माना। 
    बहुत से लोग अपने यौन झुकाव या पहचान के कारण शारीरिक, यौन, मानसिक या भावनात्मक जैसे कई रूपों में हिंसा का सामना करते हैं। इस तरह की हिंसा को पहचानना और जरूरी मदद देना या हिंसा को रोकने के लिए कार्रवाई करना जरूरी है। ट्रांसजेंडर व्यक्ति पर उनके यौन झुकाव या लिंग पहचान के आधार पर होने वाली हिंसा को समझने के लिए आप न्याया के लेख को पढ़ सकते हैं।
  • आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973: एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति गिरफ्तारी, जमानत, समन, जांच आदि के मामलों में समान आपराधिक प्रक्रियात्मक कानून के अधीन होता है। 
    करन त्रिपाठी बनाम एनसीआरबी, डब्ल्यूआरपी (आपराधिक) संख्या 9596 (2020) में, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अब एनसीआरबी का इरादा पीएसआई-2020 से कैदियों के लिंग वर्गीकरण में ट्रांसजेंडर को शामिल करने का है। 

    यहां बता दें कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) एक सालना जेल सांख्यिकी (पीएसआई) रिपोर्ट प्रकाशित करता है जिसमें भारतीय कैदियों से जुड़ी जानकारियों होती हैं।


ट्रांसजेंडर अधिकारों का उल्लंघन होने पर क्या किया जा सकता है?

ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के खिलाफ शिकायतों पर सुनवाई के लिए राष्ट्रीय परिषद बनाया गया है।

इसके अलावा, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों के उल्लंघन भाग III  जैसे मामले को अनुच्छेद 32 या 226 के तहत सर्वोच्च या उच्च न्यायालयों में जाकर सुनवाई कर सकते हैं। इसके अलावा, कई कानूनों के तहत दूसरे अधिकार अनुच्छेद 226 में संरक्षित हैं।

सके अलावा,’तीसरे लिंग’ के अधिकारों का उल्लंघन मानवाधिकारों का भी उल्लंघन है। इस तरह के उल्लंघन की शिकायत पीड़ित,राज्य और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोगों से कर सकते हैं।

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ भेदभाव के खिलाफ शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया क्या है?

सार्वजनिक या निजी क्षेत्र की नौकरी में भेदभाव का सामना करने वाले ट्रांसजेंडर को ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत नियुक्त शिकायत अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं।

राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर परिषद में शिकायत दर्ज करने के लिए, https://transgender.dosje.gov.in/ पोर्टल में एक एकाउंट बनाएं। ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करने के बाद, अपने डैशबोर्ड पर ‘शिकायत’ पर क्लिक करें। अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें-(https://transgender.dosje.gov.in/docs/Manual.pdf)

अगर मैं सीधे कोर्ट जाता हूं, तो मुझे कानूनी मदद कैसे मिल सकती हैं?

कानूनी मदद लेने के लिए, आप अपने नजदीकी जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (District Legal Service Authority) से संपर्क करें।  अगर आपकी सालाना आय हर राज्य में तय सीमा से कम है, तो आप मुफ्त कानूनी सेवाओं का लाभ ले सकते हैं।

ट्रांसजेंडर कानून के तहत प्राधिकरण

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय परिषद (एनसीटीपी) क्या है?

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय परिषद (NCTP) एक वैधानिक निकाय है। NCTP की स्थापना सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा 21 अगस्त, 2020 में की गई। यह ट्रांसजेंडर, इंटरसेक्स व्यक्तियों और कई लिंग पहचान झुकाव और सेक्स विशेषताओं वाले लोगों पर बनने वाले सभी नीतिगत मामलों पर सरकार को सलाह देती है। परिषद में शामिल हैं:

  • केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के प्रभारी मंत्री, अध्यक्ष
  • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के राज्य मंत्री (सह अध्यक्ष)
  • विभिन्न क्षेत्रों के अलग-अलग प्रतिनिधि
राष्ट्रीय परिषद की स्थापना सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा 21 अगस्त, 2020 में की गई। जिसका मुख्यालय दिल्ली में है। परिषद के अध्यक्ष डॉ.वीरेंद्र कुमार हैं।

नेशनल काउंसिल फॉर ट्रांसजेंडर पर्सन्स (NCTP)के क्या काम हैं?

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय परिषद के काम निम्नलिखित हैं:

  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की शिकायतों का निवारण।
  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से जुड़ी केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई नीतियों के प्रभाव पर सलाह देना, निगरानी और मूल्यांकन करना।
  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से जुड़े सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के काम पर निगरानी करना।

एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति के व्यक्तिगत अधिकार

क्या कानून ट्रांसजेंडर व्यक्ति को उनके परिवार में होने वाले दुर्व्यवहार से बचाता है?

ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण )अधिनियम की धारा 18: यह कानून ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सभी तरह के शोषण (शारीरिक, मौखिक, भावनात्मक, यौन, मानसिक और आर्थिक) के खिलाफ सुरक्षा देता है। दोषी को कम से कम छह महीने से लेकर दो साल तक की जेल और साथ में जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
लेकिन ऊपर बताई गई किसी भी शिकायत को दर्ज करने के लिए एक अलग तंत्र नहीं बनाया गया है।

घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005: यह अधिनियम परिवार के किसी भी सदस्य द्वारा किसी भी तरह के दुर्व्यवहार के खिलाफ सभी महिलाओं, जिसमें ट्रांसजेंडर महिलाएं  (बिना पहचान प्रमाण पत्र के) भी शामिल हैं, की रक्षा करता है। घरेलू हिंसा पर न्याया के लेख को पढे़ं।

अगर ट्रांसजेंडर व्यक्ति का परिवार उनकी लिंग पहचान के कारण उन्हें घर से निकालता है, तो वे क्या कर सकते हैं?

ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम के अनुसार, किसी भी परिवार में ट्रांसजेंडर बच्चे के साथ भेदभाव करना या उसको घर से निकालना गैरकानूनी है। सभी ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अधिकार है कि:

  • वे अपने पारिवारिक घर में रह सकते हैं।
  • वे अपने पारिवारिक घर की सभी सुविधाओं का बिना भेदभाव के इस्तेमाल कर सकते हैं।

अगर माता-पिता या परिवार के सदस्य ट्रांसजेंडर व्यक्ति की देखभाल नहीं कर सकते हैं, तो न्यायालय ऐसे व्यक्ति को पुनर्वास केंद्र में रखने का निर्देश दे सकती हैं। (अधिनियम की धारा 12(3) के अनुसार)

क्या कोई, किसी ट्रांसजेंडर को समुदाय से अलग या उसे अपना घर छोड़ने के लिए कह सकता है?

कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता है। ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम के अनुसार, ट्रांसजेंडर व्यक्ति को परिवार से अलग करना या उन्हें अपने घर, गांव या समुदाय से बाहर निकालना अवैध है। अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है, तो उसे 6 महीने से लेकर 2 साल तक की जेल हो सकती है।

ट्रांसजेंडर के रूप में, क्या मेरे पास रहने के लिए कोई कानूनी सुरक्षित स्थान हैं?

हां, हालांकि ट्रांसजेंडर व्यक्ति को अपने घरों में रहने का पूरा अधिकार है, वहीं सरकार ने भी बेघर लोगों की मदद के लिए ‘गरिमा गृह’ बनाए हैं।

‘गरिमा गृह’ में रहने के लिए क्या शर्तें हैं?

गरिमा गृह’ में रहने के लिए निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना ज़रूरी है:

  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के पास राष्ट्रीय पोर्टल से जारी प्रमाण पत्र होना चाहिए और गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हो
  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के पास राष्ट्रीय पोर्टल से जारी प्रमाण पत्र होना चाहिए और गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हो
  • सेक्स वर्क और भीख मांगने जैसे काम ना करते हों
  • बेरोजगार हों और किसी भी उत्पादक व्यावसायिक कामों में ना हों

ट्रांसजेंडर व्यक्ति राष्ट्रीय पोर्टल पर प्रमाणपत्र के लिए आवेदन कैसे करें?

सबसे पहले नेशनल ट्रांसजेंडर पोर्टल (https://transgender.dosje.gov.in/) पर ऑनलाइन अकाउंट बनाएं। अकाउंट बनाने के बाद, डैशबोर्ड पर दिए गए ‘ऑनलाइन आवेदन करें’ टैब पर क्लिक करें। ऑनलाइन फॉर्म में व्यक्तिगत और दूसरी जानकारियां भरें। लिंग घोषित करने वाला एफिडेविट को अपलोड करें। यह पोर्टल एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को बिना किसी फिज़िकल इंटरफेस के पहचान पत्र देने में मदद करता है। ज्यादा जानकारी के लिए इस लिंक को देखें-  (https://transgender.dosje.gov.in/docs/Manual.pdf)

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की शादी और तलाक 

भारत में ट्रांसजेंडर किन कानूनों के तहत शादी कर सकते हैं?

भारत में व्यक्तिगत धार्मिक कानूनों (हिंदू विवाह अधिनियम या भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम) या विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत ट्रांसजेंडर व्यक्ति शादी कर सकते हैं। अरुण कुमार बनाम महानिरीक्षक (2019) के मामले में, मद्रास हाईकोर्ट ने एक पुरुष और एक ट्रांसजेंडर महिला के बीच शादी करवाई थी। दोनों हिंदू थे, और उनकी शादी को कानून ने वैध शादी घोषित किया।

केस स्टडी: चिन्मयजी जेना बनाम ओडिशा राज्य (2020) के मामले में, ओडिशा हाईकोर्ट ने भारत में पहली बार ऐसा फैसला  दिया, जिसमें ट्रांस व्यक्तियों को अपने साथी के साथ लिव-इन में रहने के अधिकार को मान्यता दी गई। इस निर्णय में यह भी कहा गया कि लिव-इन साथी का”लिंग”कुछ भी हो सकता है।

क्या ट्रांसजेंडर व्यक्ति अपने जीवनसाथी से तलाक ले सकते हैं?

अगर वे कानूनी रूप से शादीशुदा हैं, तो जिस कानून के तहत उन्होंने शुरुआत में शादी की थी, उस कानून के तहत ही तलाक फाइल कर सकते हैं। लिव-इन रिलेशनशिप के मामले में कानूनी तौर पर तलाक लेने की कोई जरूरत नहीं होती है।

जीवनसाथी या लिव इन पार्टनर से दुर्व्यवहार/उत्पीड़न का सामना करने वाली ट्रांसजेंडर महिला के लिए क्या कानून हैं?

ट्रांसजेंडर महिला के रूप में पहचाना गया व्यक्ति, जो यौन शोषण जैसे किसी भी दुर्व्यवहार का शिकार हो, घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत सुरक्षा का हकदार है। इस कानून के तहत मिलने वाली सुरक्षा के बारे में ज्यादा जानने के लिए लिव-इन रिश्तों पर न्याया के लेख को पढ़ें।

यौन उत्पीड़न के खिलाफ सुरक्षा

क्या कोई कानून ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को यौन उत्पीड़न से बचाता है?

  • ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम- इस अधिनियम की धारा 18 के तहत, किसी भी व्यक्ति द्वारा किसी भी ट्रांसजेंडर का यौन शोषण करना गैरकानूनी है।
  • भारतीय दंड संहिता (आईपीसी)- ट्रांसजेंडर महिलाएं यौन शोषण से बचने के लिए आईपीसी की सभी धाराओं के तहत सुरक्षा मांग सकती हैं। यह दिल्ली के हाईकोर्ट ने अनामिका बनाम भारत संघ (2020) के मामले में यह कहा था।
  • कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की रोकथाम (POSH)-अगर किसी ट्रांसजेंडर का अपने स्कूल/कॉलेज में यौन उत्पीड़न होता है, तो यह कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न माना जाएगा। ट्रांसजेंडर छात्र इस उत्पीड़न की शिकायत उस स्कूल/विश्वविद्यालय की आंतरिक शिकायत समिति में दर्ज करा सकते हैं। 

क्या POSH अधिनियम कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ ट्रांसजेंडर व्यक्ति के अधिकारों की सुरक्षा करता है?  

POSH अधिनियम, (कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013) के तहत, शिकायतकर्ता की गुमनाम पहचान रखते हुए संगठन को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के उत्पीड़न की शिकायतों को निपटाने के लिए पर्याप्त शिकायत निवारण तंत्र बनाना होगा।

ट्रांसजेंडर व्यक्ति के सार्वजनिक और राजनीतिक अधिकार

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के कल्याण के लिए कार्यस्थलों के क्या जरूरी कर्तव्य हैं?

नियोक्ता (एंपलॉयर), ट्रांसजेंडर व्यक्ति के रोजगार से जुड़े किसी भी मुद्दे पर भेदभाव नहीं कर सकते हैं। सभी प्रतिष्ठानों को ट्रांसजेंडर कानून के प्रावधानों काे मानना होता है। नियोक्ता का कर्तव्य है कि वह ट्रांसजेंडर अधिनियम के उल्लंघन की शिकायतों से निपटने के लिए किसी व्यक्ति को शिकायत अधिकारी नियुक्त करें।

क्या ट्रांसजेंडर व्यक्ति को सार्वजनिक परिवहन को इस्तेमाल करने का अधिकार है?

हां, सभी ट्रांसजेंडर को आम इस्तेमाल के लिए सभी सार्वजनिक परिवहन और जगहों को इस्तेमाल करने का अधिकार है। ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम के तहत किसी भी ट्रांसजेंडर व्यक्ति का सार्वजनिक परिवहन या सार्वजनिक जगह के इस्तेमाल पर प्रतिबंधन लगाना अवैध है।

क्या ट्रांसजेंडर व्यक्ति वोट दे सकते हैं?

हां! दूसरे लिंगों की तरह, एक 18 साल या उसे अधिक उम्र का ट्रांसजेंडर व्यक्ति भारत में मतदान कर सकता है। वहीं मतदाता पंजीकरण फॉर्म में लिंग की श्रेणी में अन्य’का विकल्प भी होता है। ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम के तहत कोई भी ट्रांसजेंडर व्यक्ति सार्वजनिक पद को धारण सकता है,जिसका मतलब है कि भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्ति चुनाव भी लड़ सकते हैं। 

स्रोत

फॉर्म

ट्रांसजेंडर पहचान प्रमाणपत्र के लिए आवेदन

हेल्पलाइन नम्बर

  • iCALLमानसिक स्वास्थ्य और मनोसामाजिक मुद्दों पर परामर्श देती है। 9152987821– सोमवार से शनिवार सुबह 8 बजे से रात 10 बजे – अंग्रेजी, हिंदी, मराठी, गुजराती, असमिया, बंगाली, पंजाबी और मलयालम भाषाओं में।
  • NAZ DOST HELPLINE
    गैर सरकारी संगठन नाज़ फाउंडेशन की फोन और व्हाट्सएप हेल्पलाइन, जो एलजीबीटीक्यू  समुदाय के मानसिक स्वास्थ्य, कानूनी और सेक्स समस्यों से जुड़ी परेशानियों में मदद देती है। +91 8800329176 / +91 (011) 47504630 – सोमवार से  रविवार, सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे – अंग्रेजी, हिंदी भाषाओं में।
  • techsakhi.inटेकसखी, पॉइंट ऑफ व्यू द्वारा चलायी जाने वाली हेल्पलाइन है। यह  महिलाओं और एलजीबीटीव्यू समुदाय को इंटरनेट पर सुरक्षा और ऑनलाइन होने वाले अपराधों से बचाने में मदद करती है – 080 4568 5001– सोमवार से  शुक्रवार,  सुबह 11 बजे से शाम 7 बजे – हिंदी, बांग्ला, मराठी भाषाओं में – 0224833974 तमिल भाषा के लिए।

कानूनी शब्दकोष

  • ट्रांस-मैन: वह ट्रांसजेंडर व्यक्ति, जिसने अपना लिंग महिला से पुरुष में बदला होता है। 
  • ट्रांस-वुमन: वह ट्रांसजेंडर व्यक्ति, जिसने अपना लिंग पुरुष से महिला में बदला होता है। 
  • इंटरसेक्स (मध्यलिंगी) व्यक्ति: ‘इंटरसेक्स (मध्यलिंगी)व्यक्ति उन व्यक्तियों को कहते हैं, जिसमें शारीरिक तौर पर यह अंतर करन पाना मुश्किल होता है कि वह एक महिला है या पुरुष। ऐसा इसलिए, क्योंकि उनके पास दोनों तरह के लिंग होते हैं। इंटरसेक्स (मध्यलिंगी की पहचान शारीरिक, हार्मोनल या गुणसूत्र से जुड़ी होती है। 
  • जेंडर-क्वीर व्यक्ति: गैर-बाइनरी या जेंडरक्यूवर लिंग पहचान के लिए एक शब्द है, जो ऐसे व्यक्तियों की श्रेणी को बताता है, जो न तो पुरुष हैं और न ही महिला होते हैं। ऐसी पहचान जो लिंग बाइनरी से बाहर हैं। ये लोग अपना लिंग तय नहीं कर पाते हैं। 
  • जेंडर एफरमेटिव हार्मोन थेरेपी: जेंडर एफरमेशन हार्मोन थेरेपी में कुछ ऐसी दवाएं दी जाती हैं, जिससे किसी व्यक्ति को उनकी लिंग पहचान से मेल खाने वाली बाहरी (शारीरिक) पहचान को प्राप्त करने में मदद मिलती है। आपको बता दें कि लिंग की पहचान किसी व्यक्ति के बाहरी पहचान से नहीं, बल्कि व्यक्ति खुद को क्या महसूस करता है, इससे तय होती है।

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के मतदान और चुनाव के अधिकार

अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के लोगों के मतदान के अधिकार में हस्तक्षेप करना अपराध है। यदि आप निम्न में से कोई भी कार्य करते हैं, तो आपको 6 महीने से 5 वर्ष के बीच कारावास के साथ-साथ जुर्माने से दंडित किया जाएगा:

• उन्हें एक खास तरीके से वोट करने के लिए मजबूर करना।

• उन्हें चुनाव लड़ने से रोकना।

• उन्हें एक उम्मीदवार को प्रस्तावित करने, या किसी अन्य अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार के नामांकन का समर्थन करने से रोकना।

• उन्हें एक निश्चित तरीके से मतदान करने के लिए दंडित करना।

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति का व्यक्ति जो पंचायत का सदस्य है या नगरपालिका में किसी पद पर है, के कार्य में हस्तक्षेप करना भी अपराध है। ऐसे व्यक्ति को अपना काम करने से रोकने के लिए बल या धमकी का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।

संवैधानिक उपचार का अधिकार क्या है?

भारत का संविधान,1950, भारत के नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार देता है। अगर इन अधिकारों का हनन किया जाता है, तो नागरिकों को उसे लागू कराने का अधिकार होना चाहिए या उल्लंघन की स्थिति में अधिकारों को सुनिश्चित करने का प्रावधान भी होना चाहिए। संविधान कुछ उपचारों का प्रावधान करता है जिसका उपयोग लोग अपने मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिए कर सकते हैं। कोई भी व्यक्ति अपने मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट या संबंधित हाई कोर्ट में एक रिट याचिका दायर कर सकता है। यह रिट याचिका पांच प्रकार के संवैधानिक उपचारों में से किसी एक प्रकार की हो सकती है। संवैधानिक उपचारों के लिए सुप्रीम कोर्ट में आवेदन करने का अधिकार भी एक मौलिक अधिकार ही है।

मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा

शिक्षा का अधिकार भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21A के तहत गारंटीकृत एक मौलिक अधिकार है। शिक्षा के अधिकार की गारंटी देने वाले कानून को निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के रूप में जाना जाता है। 6 से 14 वर्ष की आयु के बीच का प्रत्येक बच्चा, जो पिछड़े वर्ग से आता है, जिसमें विकलांग बच्चे, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के बच्चे आदि शामिल हैं। साथ ही सभी आय समूहों के बच्चों को अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी होने तक, जो कक्षा 1 से कक्षा 8 तक है, उन बच्चों को पास के स्कूल में मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार होगा।

ऐसे बच्चों के माता-पिता को अपने बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने में मदद करने के लिए कोई फ़ीस, शुल्क या खर्च नहीं देना पड़ता है। प्राथमिक शिक्षा के लिए स्कूल में नामांकित प्रत्येक बच्चे को भी स्कूल की छुट्टियों को छोड़कर सभी दिनों में नि:शुल्क पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराया जाएगा।

 

सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदन

आवेदन या तो अंग्रेजी, हिंदी या उस क्षेत्र की आधिकारिक भाषा में हो सकता है। आवेदन लिखित में होना चाहिए। इसे पोस्ट, ई-मेल या ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से, या व्यक्तिगत रूप से जमा किया जा सकता है। केंद्र सरकार के तहत सार्वजनिक प्राधिकरणों के लिए, एक ऑनलाइन फोरम है जहां आरटीआई आवेदन सीधे जमा किया जा सकता है। आप ऑनलाइन पोर्टल से आवेदन भेजने के तरीके पर चरण-दर-चरण दिशानिर्देशों को पढ़ कर उसका उपयोग कर सकते हैं।

अगर कोई इसलिये आवेदन नहीं कर पाता है क्योंकि वह अशिक्षित हैं या लिखने में असमर्थ हैं, तो सार्वजनिक सूचना कार्यालय (पब्लिक इनफौर्मेशन ऑफिस, ‘पीआईओ’) का कर्तव्य है कि वह उस व्यक्ति की मदद करे ताकि वे उसका आवेदन को ले सकें और उसे लिखित रूप में डाल सकें। यदि आवेदन, गलती से किसी गलत प्राधिकारी को भेजा जाता है, तो ‘पीआईओ’ जिसे यह आवेदन मिलता है उसका यह कर्तव्य है कि उस आवेदन को, पांच दिनों के अंदर सही प्राधिकारी को भेज दे।

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति से संबंधित भूमि और संपत्ति

किसी भी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति की स्वामित्व भूमि या उनके नियंत्रण वाली या आवंटित किसी भी भूमि पर कब्जा करना अवैध है। एक अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति व्यक्ति को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर करना, जब तक कि यह कानूनी रूप से नहीं किया जाता है भी अवैध है।

अगर ऐसा:

• पीड़ित की सहमति के बिना, या

• उसे या उससे जुड़े किसी व्यक्ति को धमकी देकर, या

• झूठे रिकॉर्ड बनाकर,

किया जाता है तो संपत्ति का अधिग्रहण अवैध माना जाता है।

इसी तरह किसी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को उनकी संपत्ति से अवैध रूप से वंचित करना, या उस भूमि पर उनके अधिकारों का प्रयोग करने से रोकना भी एक अपराध है।

इसमें शामिल हैं:

• अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को वन अधिकार अधिनियम के तहत किसी भी वन अधिकार तक पहुँचने से रोकना।

• किसी भी जल स्रोत या सिंचाई स्रोत के अधिकारों का उपयोग करने से रोकना।

• फसलों को नष्ट करना या ले जाना।

घरों, धार्मिक स्थलों और/या अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लोगों की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए आग या बम का उपयोग करने के लिए 6 महीने से 7 साल तक की कैद हो सकती है। आप ऐसे अपराधों की रिपोर्ट कर सकते हैं।

संवैधानिक उपचार का अधिकार कितने प्रकार के होते हैं?

कुल पांच प्रकार के संवैधानिक उपचार उपलब्ध हैं। वे इस प्रकार से हैं:

1. हैबियस कॉर्पस/ बंदी प्रत्यक्षीकरण
‘हैबियस कॉर्पस’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है, किसी भी व्यक्ति को ‘सशरीर कोर्ट में पेश करना’, इसका मतलब कि बंदी को प्रत्यक्ष रूप से कोर्ट में पेश करना। इस संदर्भ में, कोर्ट का आदेश होता है कि, रिट याचिका में जिस किसी व्यक्ति की चर्चा है उसको कोर्ट में पेश किया जाए। यदि किसी व्यक्ति को अवैध रूप से प्रतिबंधित या कैद किया गया है और उसे उसकी मौलिक स्वतंत्रता के अधिकारों से वंचित किया गया है, तो उसके लिए ‘हैबिअस कॉर्पस’ की एक रिट याचिका दायर की जा सकती है ताकि अदालत से उसकी रिहाई को सुनिश्चित करने के लिए कहा जा सके। अदालत किसी भी लोक सेवक (अधिकारी), जिसके पास कोई व्यक्ति अवैध रूप से उसकी हिरासत में है, अदालत उसको हैबिअस कॉर्पस की रिट जारी कर सकता है, और कोर्ट उस व्यक्ति (कैदी) को अदालत में पेश करने के लिए उस अधिकारी को आदेश दे सकता है। इस प्रकार, अदालत किसी भी व्यक्ति के हिरासत की परिस्थितियों की जांच करती है और गैर-कानूनी ढंग से लिए गए हिरासत के विरुद्ध आवश्यक निर्णय दे सकती है। कैदियों के अवैध अमानवीय व्यवहार के मामलों में भी अदालत ‘हैबिअस कॉर्पस’ की रिट जारी कर सकती है। हैबिअस कॉर्पस का आवेदन हिरासत में लिया गया व्यक्ति या तो खुद याचिका दायर कर सकता है या कोई अन्य व्यक्ति, जो कैदी को पहचानता है, उसकी ओर से याचिका दायर कर सकता है।
उदाहरण के लिए, यदि किसी कैदी के साथ जेल में दुर्व्यवहार किया जा रहा है, तो वह इस दुर्व्यवहार के खिलाफ हैबिअस कॉर्पस की याचिका दायर कर सकता है।

2. मेंडमस/ (कोर्ट का आदेश या परमादेश)
अदालत किसी भी प्राधिकरण/प्राधिकारी को अपने सार्वजनिक कर्तव्य का क़ानूनी रूप से पालन करने का आदेश देने के लिए ‘मेंडमस’ की एक रिट जारी कर सकता है। इसे कानूनन लागू कराने के लिए, यह बताना आवश्यक है कि सार्वजनिक प्राधिकरण/प्राधिकारी का यह अनिवार्य कानूनी कर्तव्य है, और याचिकाकर्ता का यह कानूनी अधिकार है। हालांकि, भारत के राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल या फिर विधान-मंडल के अधिकारियों (स्पीकर, चेयरमैन, आदि) के खिलाफ लोग ‘मेंडमस’ की रिट याचिका दायर नहीं कर सकते हैं। मेंडमस की याचिका का आवेदन करने से पहले, याचिकाकर्ता को उस प्राधिकरण/प्राधिकारी से संपर्क करके अपने अधिकारों को सुनिश्चित करने की स्पष्ट मांग करनी पड़ती है। संपर्क करने के बावजूद जब प्राधिकरण/प्राधिकारी इससे इनकार करता है, तब मेंडमस याचिका के लिए आवेदन किया जा सकता है।
जैसे, समझने के लिए, यदि, बार-बार शिकायतों के बावजूद, एक नगर निगम किसी क्षेत्र में पानी की आपूर्ति देने की अपने कानूनी कर्तव्यों को करने से मना करता है, तो उस क्षेत्र में रहने वाला कोई भी व्यक्ति उस नगर निगम को अपना काम करने के लिए एक मेंडमस याचिका दायर कर सकता है।

3. सर्टयोरेरी की रिट/याचिका
सर्टयोरेरी की रिट/याचिका तब लागू होती है जब कोई प्राधिकारी या उच्चतर न्यायालय अपने क़ानूनी सीमा को लांघता है, जिससे किसी नागरिक के अधिकारों का हनन होता है। अदालत किसी भी निचले न्यायिक प्राधिकरण/निचली अदालत ऐसे किसी आदेश को रद्द करने के लिए सर्टयोरेरी रिट जारी कर सकती है जो बिना किसी अधिकार या अपनी कानूनी शक्तियों को लाँघ कर लिया गया निर्णय हो।
उदाहरण के लिए, यदि कोई औद्योगिक ट्रिब्यूनल, गैर-औद्योगिक मामलों में ऐसा कोई निर्णय देता है, जो उसके अधिकार क्षेत्र के बाहर है, तो पीड़ित व्यक्ति औद्योगिक ट्रिब्यूनल/न्यायालय के उस निर्णय को रद्द करने के लिए के लिए सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में सर्टयोरेरी की रिट/याचिका दायर कर सकता है।

4. रोक याचिका/स्टे आर्डर/प्रतिबन्ध/निषेधादेश न्यायालय निचली अदालत/ट्रिब्यूनल
न्यायालय निचली अदालत/ट्रिब्यूनल को किसी ऐसे मामले पर कानूनी कार्यवाही को रोकने का आदेश देने के लिए ‘रोक याचिका’ जारी कर सकता है जो उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर हो। इस याचिका का प्रयोग निचली अदालत को अपने कानूनी अधिकार की सीमा से बाहर जाने से रोकने के लिए किया जाता है और यह सुनिश्चित किया जाता है वह अपनी न्यायिक सीमा को न लांघे। रोक याचिका का प्रयोग उस स्थिति में भी किया जा सकता है जब एक निचली अदालत/न्यायिक प्राधिकारी ने निष्पक्ष न्याय के नियमों का पालन नहीं किया है, अर्थात वह पक्षपात करता है या दोनों पक्षों को नहीं सुनता है।
उदाहरण के लिए, यदि कोई औद्योगिक ट्रिब्यूनल/न्यायालय बिना किसी अधिकार के गैर-औद्योगिक विवाद में निर्णय लेता है, तो ऐसे में एक पीड़ित व्यक्ति उस औद्योगिक ट्रिब्यूनल के लिए गए फैसले पर रोक लगाने के लिए हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में एक ‘रोक याचिका’ दायर कर सकता है।

5. क्यू वारंटो/ अधिकार पृच्छा
एक याचिका है जिसके माध्यम से किसी व्यक्ति से यह पूछा जाता है कि उसने किस अधिकार या शक्ति के तहत निर्णय लिया है। ‘क्यू वारंटो’ रिट एक ऐसा कानून है जिसके आधार पर अदालत किसी भी ऐसे व्यक्ति से प्रश्न पूछ सकता है कि किन प्रमाणों के आधार पर यह निश्चित किया जाए कि उस पद पर आसीन रहने का उसका वास्तविक अधिकार है। यदि उन्हें उस सार्वजनिक पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है, तो उन्हें कोर्ट के आदेश द्वारा उस पद से हटाया जा सकता है। यह कानून कार्यपालिका द्वारा किसी सार्वजनिक कार्यालय या पद पर किये जाने वाले अवैध नियुक्तियों को नियंत्रित करता है, और नागरिकों को ऐसे लोगों से बचाता है जो अवैध रूप से सार्वजनिक पद पर आसीन होकर नागरिकों को उनके अधिकारों से वंचित रखते हैं। क्यू वारंटो की याचिका करने के लिए, याचिकाकर्ता को अदालत में यह दिखाना होता है कि यह कार्यालय या पद एक सार्वजनिक कार्यालय/पद है और इस पद पर बने रहने के लिए उस व्यक्ति के पास कोई कानूनी अधिकार नहीं है। इससे इस बात की जांच की जाती है कि उस अधिकारी की नियुक्ति कानूनी रूप से सही है या नहीं।
उदाहरण के लिए, यदि किसी को लगता है कि विधान सभा के अध्यक्ष/स्पीकर के पास स्पीकर पद पर बने रहने की योग्यता नहीं है, तो वे इस नियुक्ति के खिलाफ पूछताछ करने तथा क्यू वारंट का आदेश जारी करने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं।

विद्यालय में प्रवेश पाने की प्रक्रिया

6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चे पहली कक्षा (प्रथम कक्षा) से 8वीं (आठवीं कक्षा) तक विद्यालय से फ्री शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं।

आस-पास के स्कूलों में प्रवेश

बच्चे पास के स्कूलों में पढ़ सकते हैं। ये पास के स्कूल पैदल दूरी के भीतर स्थापित स्कूल हैं जिनकी दूरी:

• बच्चे के पड़ोस से 1 किलोमीटर (यदि बच्चा एक से पांचवीं कक्षा में है) और

• 3 किलोमीटर (यदि बच्चा छठी से आठवीं कक्षा में है)।

कानून बच्चों की शिक्षा को केवल पास के स्कूलों तक सीमित नहीं करता है। बच्चे के आस-पड़ोस से दूरी होने के बावजूद मुफ्त में शिक्षा प्राप्त करने के लिए बच्चा किसी भी स्कूल में दाखिला लेने के लिए स्वतंत्र है। लेकिन यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि बच्चा केवल उन स्कूलों से शिक्षा प्राप्त कर सकता है जो स्थापित, स्वामित्व वाले,(जैसे राज्य स्थापित स्कूल जैसे केंद्रीय विद्यालय, हरियाणा में आरोही स्कूल आदि) सरकार या स्थानीय प्राधिकरण द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित या पर्याप्त रूप से वित्त पोषित हैं। इसलिए यदि किसी बच्चे को ऊपर दिए गए स्कूलों के अलावा अन्य स्कूलों में प्रवेश दिया जाता है, तो उसके माता-पिता बच्चे की शिक्षा के लिए खर्च की प्रतिपूर्ति का दावा नहीं कर सकते हैं। इसमें पिछड़े हुए समूहों के लिए 25% आरक्षित प्रवेश के तहत प्रवेश शामिल नहीं है।

शिक्षा के अधिकार के तहत आने वाले स्कूलों के लिए प्रवेश प्रक्रिया अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है। हालांकि कुछ प्रक्रियाएं सामान्य हैं। किसी बच्चे को स्कूल में प्रवेश देने के लिए, राज्यों में निम्नलिखित सामान्य प्रक्रियाएँ हैं:

प्रवेश पत्र भरना

माता-पिता को अपेक्षित राज्य सरकारों द्वारा प्रदान किया गया एक फॉर्म भरना आवश्यक है। ये फॉर्म सरकारी पोर्टल पर उपलब्ध हैं क्योंकि हर राज्य में प्रवेश के लिए एक अलग पोर्टल है। कुछ उदाहरण पंजाब, महाराष्ट्र आदि हैं। आप फॉर्म प्राप्त करने के लिए पास के स्कूलों से भी संपर्क कर सकते हैं। फॉर्म में परिवार के विवरण, पते आदि जैसी बुनियादी जानकारी शामिल है। यह अनियोजित प्रवेश के मामले में पसंदीदा सुविधा उपयुक्त स्कूलों को चुनने का भी प्रबंध करता है। पसंद के रूप में अधिकतम पांच विद्यालय प्रदान किए जा सकते हैं।

पहचान दस्तावेज प्रदान करना

कुछ दस्तावेज जमा करना अनिवार्य है। इन दस्तावेजों में उम्र के प्रमाण के रूप में बच्चे की आईडी (जन्म प्रमाण पत्र, आंगनवाड़ी रिकॉर्ड, आधार कार्ड आदि शामिल हो सकते हैं) और माता-पिता की आईडी शामिल हैं। फॉर्म में परिवार के राशन कार्ड, आय प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र के साथ-साथ बच्चों की विशेष जरूरतों को उजागर करने वाले प्रासंगिक प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेजों का प्रावधान भी शामिल है। ऐसा फॉर्म भरकर आमतौर पर पास के स्कूल में जमा किया जा सकता है। क्योंकि कुछ राज्यों ने पूरी प्रक्रिया को ऑनलाइन कर दिया है, इसलिए आवेदन सरकारी पोर्टल पर किया जा सकता है।

स्कूली फीस और खर्च

बच्चे बिना किसी फीस या खर्च के स्कूलों में प्रवेश पा सकते हैं। भारत में शिक्षा के अधिकार का कानून बच्चे के प्रवेश से पहले किसी भी फीस की मांग पर रोक लगाता है। किसी भी स्कूल को कोई प्रतिव्यक्ति शुल्क लेने की अनुमति नहीं है जो स्कूल शुल्क के अलावा किसी भी प्रकार के दान या भुगतान को संदर्भित करता है।

प्रवेश के लिए कोई स्क्रीनिंग प्रक्रिया नहीं

इसके अलावा, स्कूल प्रवेश से पहले बच्चे या माता-पिता को किसी भी प्रकार की स्क्रीनिंग प्रक्रिया से नहीं गुजार सकते हैं। स्क्रीनिंग प्रक्रिया में स्कूल में प्रवेश के लिए बच्चे या माता-पिता का कोई भी टेस्ट या इंटरव्यू शामिल हो सकता है। स्कूल को सभी बच्चों का चयन करना चाहिए और खाली सीटों को भरने के लिए एक खुली लॉटरी पद्धति अपनानी चाहिए। यह कागज की पर्चियों पर बच्चों के नाम लिखकर और फिर पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए बेतरतीब ढंग से उन्हें एक कंटेनर से बाहर निकालने के रूप में किया जा सकता है। इस प्रावधान के पहले उल्लंघन के लिए स्कूलों पर 25,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है और बाद में किसी भी उल्लंघन के लिए 50,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।

आवेदन शुल्क

आवेदन शुल्क, केंद्र और राज्यों के लिए अलग अलग होता है। केंद्र सरकार के सार्वजनिक प्राधिकरणों के लिए यह 10 रुपये है। राज्य सरकारों के सार्वजनिक प्राधिकरणों के लिए, कृपया प्रत्येक राज्यों पर लागू नियमों को जांच कर लें।

आवेदन शुल्क के अलावे, सूचना सुपुर्द करने का भी एक शुल्क है जो सूचना के पृष्ठों के प्रारूप पर, और उसकी संख्या पर आधारित होता है। केंद्र सरकार के सार्वजनिक प्राधिकरणों पर लागू शुल्क के लिए, कृपया ‘आरटीआई’ नियम, 2012 को देख लें। राज्य के सार्वजनिक प्राधिकरणों पर लागू शुल्क के लिए, कृपया तथाकथित राज्य के नियमों को देख लें।

‘पीआईओ’ आपको सूचना के लिए अधिक शुल्क का भुगतान करने के लिए कह सकता है लेकिन उन्हें, सही गणना के माध्यम से, अधिक शुल्क के भुगतान को उचित ठहराना होगा। बढ़े हुये शुल्क की मांग और उसके भुगतान किये जाने तक की अवधि को, 30 दिनों की अवधि सीमा से अलग माना जायेगा, जिसके अंदर मूल रूप से मांगी हुई सूचना आपको मिल जानी चाहिये।

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लोगों के खिलाफ क्रूर और अपमानजनक अत्याचार

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लोगों के खिलाफ किए गए निम्न में से किसी भी अपराध को कानून ने अत्याचार माना हैछ

• किसी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को शारीरिक या मानसिक रूप से चोट पहुँचाना या उनका बहिष्कार करना।

• किसी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को कोई भी घिनौना पदार्थ जो मनुष्य के खाने के योग्य नहीं है, जैसे गाय का गोबर, मानव मल आदि के साथ जबरदस्ती कुछ खिलाना।

• किसी भी घिनौने पदार्थ (जैसे मृत जानवरों के शरीर, या मल) को किसी ऐसे स्थान के अंदर या गेट पर फेंकना जहां अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लोग रहते हैं, या किसी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति के पड़ोस में फेंकना, लेकिन केवल तभी जब ऐसा उनका अपमान या उन्हें तंग करने के लिए किया जाए।

• अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को चप्पलों की माला पहनाना, या उन्हें नग्न या अर्ध-नग्न करके घुमाना।

• अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को ऐसा कुछ भी करने के लिए मजबूर करना जो किसी व्यक्ति के सम्मान को ठेस पहुंचाता हो, जैसे कि उन्हें कपड़े उतारने, अपना सिर या मूंछम मुंडवाने या अपना चेहरा रंगने के लिए मजबूर करना।

• अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति से बंधुआ मजदूरी करवाना । लेकिन यदि सरकार इस प्रकार की सार्वजनिक सेवा को अनिवार्य कर दे-तो यह अपराध नहीं होगा।

• अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को किसी मानव या पशु के शव को ले जाने या उसेउसको निपटाने के लिए मजबूर करना।

• अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को हाथ से मैला ढोने या मानवीय मल की सफाई करने के लिए मजबूर करना, या किसी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्य को हाथ से मैला ढोने या मानवीय मल की सफाई करने के लिए नियुक्त करना।

• अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को जानबूझकर अपमान करना और जलील करना, यदि यह सार्वजनिक स्थान पर किया जाता है।

• अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की किसी व्यक्ति को उसके जाति के नाम का प्रयोग करते हुए गाली देना अपशब्द कहना यदि यह सार्वजनिक स्थान पर किया जाता है।

• किसी भी वस्तु को नुकसान पहुंचाना, जैसे डॉ. अम्बेडकर की मूर्ति या तस्वीर, जो अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए महत्वपूर्ण है।

• अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों के प्रति घृणा को बढ़ावा देने वाली कोई भी बात कहना या प्रकाशित करना।

• ऐसा कुछ भी कहना या लिखना जो किसी स्वर्गवासी व्यक्ति का अपमान करता हो, जो अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदाय के लिए महत्वपूर्ण हो, जैसे कि उनके नेता के बारे में।

• आमतौर पर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लोगों द्वारा उपयोग किए जाने वाले किसी भी जल स्रोत को खराब दूषित करना।

• अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को ऐसे सार्वजनिक स्थान पर जाने से रोकना जहां उसे जाने का अधिकार है।

• अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को निम्न कार्य करने से रोकना:

  • किसी भी सार्वजनिक क्षेत्र या संसाधन जैसे जल निकायों, नलों, कुओं, श्मशान घाटों आदि का उपयोग करने से रोकना।
  • घोड़े या वाहन की सवारी करना या जुलूस निकालने से रोकना।
  • किसी धार्मिक स्थान में प्रवेश करने या किसी धार्मिक समारोह में भाग लेने से, जो जनता के लिए खुला हो जो सार्वजनिक हो ।
  • स्कूल, अस्पताल या सिनेमा हॉल जैसे सार्वजनिक स्थान में प्रवेश करने से रोकना।
  • कोई व्यवसाय या नौकरी करने से रोकना।

• अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति पर जादू टोना करने का आरोप लगाना और उन्हें शारीरिक या मानसिक रूप से चोट पहुँचाना।

• धमकी देना, या वास्तव में उन्हें सामाजिक या आर्थिक रूप से बहिष्कृत करना। इन सब के लिए जुर्माने के साथ-साथ 6 महीने से 5 साल तक की कैद हो सकती है।