अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के मतदान और चुनाव के अधिकार

अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के लोगों के मतदान के अधिकार में हस्तक्षेप करना अपराध है। यदि आप निम्न में से कोई भी कार्य करते हैं, तो आपको 6 महीने से 5 वर्ष के बीच कारावास के साथ-साथ जुर्माने से दंडित किया जाएगा:

• उन्हें एक खास तरीके से वोट करने के लिए मजबूर करना।

• उन्हें चुनाव लड़ने से रोकना।

• उन्हें एक उम्मीदवार को प्रस्तावित करने, या किसी अन्य अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार के नामांकन का समर्थन करने से रोकना।

• उन्हें एक निश्चित तरीके से मतदान करने के लिए दंडित करना।

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति का व्यक्ति जो पंचायत का सदस्य है या नगरपालिका में किसी पद पर है, के कार्य में हस्तक्षेप करना भी अपराध है। ऐसे व्यक्ति को अपना काम करने से रोकने के लिए बल या धमकी का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।

संवैधानिक उपचार का अधिकार क्या है?

भारत का संविधान,1950, भारत के नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार देता है। अगर इन अधिकारों का हनन किया जाता है, तो नागरिकों को उसे लागू कराने का अधिकार होना चाहिए या उल्लंघन की स्थिति में अधिकारों को सुनिश्चित करने का प्रावधान भी होना चाहिए। संविधान कुछ उपचारों का प्रावधान करता है जिसका उपयोग लोग अपने मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिए कर सकते हैं। कोई भी व्यक्ति अपने मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट या संबंधित हाई कोर्ट में एक रिट याचिका दायर कर सकता है। यह रिट याचिका पांच प्रकार के संवैधानिक उपचारों में से किसी एक प्रकार की हो सकती है। संवैधानिक उपचारों के लिए सुप्रीम कोर्ट में आवेदन करने का अधिकार भी एक मौलिक अधिकार ही है।

मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा

शिक्षा का अधिकार भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21A के तहत गारंटीकृत एक मौलिक अधिकार है। शिक्षा के अधिकार की गारंटी देने वाले कानून को निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के रूप में जाना जाता है। 6 से 14 वर्ष की आयु के बीच का प्रत्येक बच्चा, जो पिछड़े वर्ग से आता है, जिसमें विकलांग बच्चे, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के बच्चे आदि शामिल हैं। साथ ही सभी आय समूहों के बच्चों को अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी होने तक, जो कक्षा 1 से कक्षा 8 तक है, उन बच्चों को पास के स्कूल में मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार होगा।

ऐसे बच्चों के माता-पिता को अपने बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने में मदद करने के लिए कोई फ़ीस, शुल्क या खर्च नहीं देना पड़ता है। प्राथमिक शिक्षा के लिए स्कूल में नामांकित प्रत्येक बच्चे को भी स्कूल की छुट्टियों को छोड़कर सभी दिनों में नि:शुल्क पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराया जाएगा।

 

सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदन

आवेदन या तो अंग्रेजी, हिंदी या उस क्षेत्र की आधिकारिक भाषा में हो सकता है। आवेदन लिखित में होना चाहिए। इसे पोस्ट, ई-मेल या ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से, या व्यक्तिगत रूप से जमा किया जा सकता है। केंद्र सरकार के तहत सार्वजनिक प्राधिकरणों के लिए, एक ऑनलाइन फोरम है जहां आरटीआई आवेदन सीधे जमा किया जा सकता है। आप ऑनलाइन पोर्टल से आवेदन भेजने के तरीके पर चरण-दर-चरण दिशानिर्देशों को पढ़ कर उसका उपयोग कर सकते हैं।

अगर कोई इसलिये आवेदन नहीं कर पाता है क्योंकि वह अशिक्षित हैं या लिखने में असमर्थ हैं, तो सार्वजनिक सूचना कार्यालय (पब्लिक इनफौर्मेशन ऑफिस, ‘पीआईओ’) का कर्तव्य है कि वह उस व्यक्ति की मदद करे ताकि वे उसका आवेदन को ले सकें और उसे लिखित रूप में डाल सकें। यदि आवेदन, गलती से किसी गलत प्राधिकारी को भेजा जाता है, तो ‘पीआईओ’ जिसे यह आवेदन मिलता है उसका यह कर्तव्य है कि उस आवेदन को, पांच दिनों के अंदर सही प्राधिकारी को भेज दे।

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति से संबंधित भूमि और संपत्ति

किसी भी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति की स्वामित्व भूमि या उनके नियंत्रण वाली या आवंटित किसी भी भूमि पर कब्जा करना अवैध है। एक अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति व्यक्ति को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर करना, जब तक कि यह कानूनी रूप से नहीं किया जाता है भी अवैध है।

अगर ऐसा:

• पीड़ित की सहमति के बिना, या

• उसे या उससे जुड़े किसी व्यक्ति को धमकी देकर, या

• झूठे रिकॉर्ड बनाकर,

किया जाता है तो संपत्ति का अधिग्रहण अवैध माना जाता है।

इसी तरह किसी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को उनकी संपत्ति से अवैध रूप से वंचित करना, या उस भूमि पर उनके अधिकारों का प्रयोग करने से रोकना भी एक अपराध है।

इसमें शामिल हैं:

• अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को वन अधिकार अधिनियम के तहत किसी भी वन अधिकार तक पहुँचने से रोकना।

• किसी भी जल स्रोत या सिंचाई स्रोत के अधिकारों का उपयोग करने से रोकना।

• फसलों को नष्ट करना या ले जाना।

घरों, धार्मिक स्थलों और/या अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लोगों की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए आग या बम का उपयोग करने के लिए 6 महीने से 7 साल तक की कैद हो सकती है। आप ऐसे अपराधों की रिपोर्ट कर सकते हैं।

संवैधानिक उपचार का अधिकार कितने प्रकार के होते हैं?

कुल पांच प्रकार के संवैधानिक उपचार उपलब्ध हैं। वे इस प्रकार से हैं:

1. हैबियस कॉर्पस/ बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका ‘हैबियस कॉर्पस’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है, किसी भी व्यक्ति को ‘सशरीर कोर्ट में पेश करना’, इसका मतलब कि बंदी को प्रत्यक्ष रूप से कोर्ट में पेश करना। इस संदर्भ में, कोर्ट का आदेश होता है कि, रिट याचिका में जिस किसी व्यक्ति की चर्चा है उसको कोर्ट में पेश किया जाए। यदि किसी व्यक्ति को अवैध रूप से प्रतिबंधित या कैद किया गया है और उसे उसकी मौलिक स्वतंत्रता के अधिकारों से वंचित किया गया है, तो उसके लिए ‘हैबिअस कॉर्पस’ की एक रिट याचिका दायर की जा सकती है ताकि अदालत से उसकी रिहाई को सुनिश्चित करने के लिए कहा जा सके। अदालत किसी भी लोक सेवक (अधिकारी), जिसके पास कोई व्यक्ति अवैध रूप से उसकी हिरासत में है, अदालत उसको हैबिअस कॉर्पस की रिट जारी कर सकता है, और कोर्ट उस व्यक्ति (कैदी) को अदालत में पेश करने के लिए उस अधिकारी को आदेश दे सकता है। इस प्रकार, अदालत किसी भी व्यक्ति के हिरासत की परिस्थितियों की जांच करती है और गैर-कानूनी ढंग से लिए गए हिरासत के विरुद्ध आवश्यक निर्णय दे सकती है। कैदियों के अवैध अमानवीय व्यवहार के मामलों में भी अदालत ‘हैबिअस कॉर्पस’ की रिट जारी कर सकती है। हैबिअस कॉर्पस का आवेदन हिरासत में लिया गया व्यक्ति या तो खुद याचिका दायर कर सकता है या कोई अन्य व्यक्ति, जो कैदी को पहचानता है, उसकी ओर से याचिका दायर कर सकता है।

उदाहरण के लिए, यदि किसी कैदी के साथ जेल में दुर्व्यवहार किया जा रहा है, तो वह इस दुर्व्यवहार के खिलाफ हैबिअस कॉर्पस की याचिका दायर कर सकता है।

2. मेंडमस/ (कोर्ट का आदेश या परमादेश) अदालत किसी भी प्राधिकरण/प्राधिकारी को अपने सार्वजनिक कर्तव्य का क़ानूनी रूप से पालन करने का आदेश देने के लिए ‘मेंडमस’ की एक रिट जारी कर सकता है। इसे कानूनन लागू कराने के लिए, यह बताना आवश्यक है कि सार्वजनिक प्राधिकरण/प्राधिकारी का यह अनिवार्य कानूनी कर्तव्य है, और याचिकाकर्ता का यह कानूनी अधिकार है। हालांकि, भारत के राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल या फिर विधान-मंडल के अधिकारियों (स्पीकर, चेयरमैन, आदि) के खिलाफ लोग ‘मेंडमस’ की रिट याचिका दायर नहीं कर सकते हैं। मेंडमस की याचिका का आवेदन करने से पहले, याचिकाकर्ता को उस प्राधिकरण/प्राधिकारी से संपर्क करके अपने अधिकारों को सुनिश्चित करने की स्पष्ट मांग करनी पड़ती है। संपर्क करने के बावजूद जब प्राधिकरण/प्राधिकारी इससे इनकार करता है, तब मेंडमस याचिका के लिए आवेदन किया जा सकता है।

जैसे, समझने के लिए, यदि, बार-बार शिकायतों के बावजूद, एक नगर निगम किसी क्षेत्र में पानी की आपूर्ति देने की अपने कानूनी कर्तव्यों को करने से मना करता है, तो उस क्षेत्र में रहने वाला कोई भी व्यक्ति उस नगर निगम को अपना काम करने के लिए एक मेंडमस याचिका दायर कर सकता है।

3. सर्टयोरेरी की रिट/याचिका तब लागू होती है जब कोई प्राधिकारी या उच्चतर न्यायालय अपने क़ानूनी सीमा को लांघता है, जिससे किसी नागरिक के अधिकारों का हनन होता है। अदालत किसी भी निचले न्यायिक प्राधिकरण/निचली अदालत ऐसे किसी आदेश को रद्द करने के लिए सर्टयोरेरी रिट जारी कर सकती है जो बिना किसी अधिकार या अपनी कानूनी शक्तियों को लाँघ कर लिया गया निर्णय हो। उदाहरण के लिए, यदि कोई औद्योगिक ट्रिब्यूनल, गैर-औद्योगिक मामलों में ऐसा कोई निर्णय देता है, जो उसके अधिकार क्षेत्र के बाहर है, तो पीड़ित व्यक्ति औद्योगिक ट्रिब्यूनल/न्यायालय के उस निर्णय को रद्द करने के लिए के लिए सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में सर्टयोरेरी की रिट/याचिका दायर कर सकता है।

4. रोक याचिका/स्टे आर्डर/प्रतिबन्ध/निषेधादेश न्यायालय निचली अदालत/ट्रिब्यूनल को किसी ऐसे मामले पर कानूनी कार्यवाही को रोकने का आदेश देने के लिए ‘रोक याचिका’ जारी कर सकता है जो उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर हो। इस याचिका का प्रयोग निचली अदालत को अपने कानूनी अधिकार की सीमा से बाहर जाने से रोकने के लिए किया जाता है और यह सुनिश्चित किया जाता है वह अपनी न्यायिक सीमा को न लांघे। रोक याचिका का प्रयोग उस स्थिति में भी किया जा सकता है जब एक निचली अदालत/न्यायिक प्राधिकारी ने निष्पक्ष न्याय के नियमों का पालन नहीं किया है, अर्थात वह पक्षपात करता है या दोनों पक्षों को नहीं सुनता है।

उदाहरण के लिए, यदि कोई औद्योगिक ट्रिब्यूनल/न्यायालय बिना किसी अधिकार के गैर-औद्योगिक विवाद में निर्णय लेता है, तो ऐसे में एक पीड़ित व्यक्ति उस औद्योगिक ट्रिब्यूनल के लिए गए फैसले पर रोक लगाने के लिए हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में एक ‘रोक याचिका’ दायर कर सकता है।

5. क्यू वारंटो/ अधिकार पृच्छा (एक याचिका है जिसके माध्यम से किसी व्यक्ति से यह पूछा जाता है कि उसने किस अधिकार या शक्ति के तहत निर्णय लिया है।) ‘क्यू वारंटो’ रिट एक ऐसा कानून है जिसके आधार पर अदालत किसी भी ऐसे व्यक्ति से प्रश्न पूछ सकता है कि किन प्रमाणों के आधार पर यह निश्चित किया जाए कि उस पद पर आसीन रहने का उसका वास्तविक अधिकार है। यदि उन्हें उस सार्वजनिक पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है, तो उन्हें कोर्ट के आदेश द्वारा उस पद से हटाया जा सकता है। यह कानून कार्यपालिका द्वारा किसी सार्वजनिक कार्यालय या पद पर किये जाने वाले अवैध नियुक्तियों को नियंत्रित करता है, और नागरिकों को ऐसे लोगों से बचाता है जो अवैध रूप से सार्वजनिक पद पर आसीन होकर नागरिकों को उनके अधिकारों से वंचित रखते हैं। क्यू वारंटो की याचिका करने के लिए, याचिकाकर्ता को अदालत में यह दिखाना होता है कि यह कार्यालय या पद एक सार्वजनिक कार्यालय/पद है और इस पद पर बने रहने के लिए उस व्यक्ति के पास कोई कानूनी अधिकार नहीं है। इससे इस बात की जांच की जाती है कि उस अधिकारी की नियुक्ति कानूनी रूप से सही है या नहीं।

उदाहरण के लिए, यदि किसी को लगता है कि विधान सभा के अध्यक्ष/स्पीकर के पास स्पीकर पद पर बने रहने की योग्यता नहीं है, तो वे इस नियुक्ति के खिलाफ पूछताछ करने तथा क्यू वारंट का आदेश जारी करने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं।

विद्यालय में प्रवेश पाने की प्रक्रिया

6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चे पहली कक्षा (प्रथम कक्षा) से 8वीं (आठवीं कक्षा) तक विद्यालय से फ्री शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं।

आस-पास के स्कूलों में प्रवेश

बच्चे पास के स्कूलों में पढ़ सकते हैं। ये पास के स्कूल पैदल दूरी के भीतर स्थापित स्कूल हैं जिनकी दूरी:

• बच्चे के पड़ोस से 1 किलोमीटर (यदि बच्चा एक से पांचवीं कक्षा में है) और

• 3 किलोमीटर (यदि बच्चा छठी से आठवीं कक्षा में है)।

कानून बच्चों की शिक्षा को केवल पास के स्कूलों तक सीमित नहीं करता है। बच्चे के आस-पड़ोस से दूरी होने के बावजूद मुफ्त में शिक्षा प्राप्त करने के लिए बच्चा किसी भी स्कूल में दाखिला लेने के लिए स्वतंत्र है। लेकिन यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि बच्चा केवल उन स्कूलों से शिक्षा प्राप्त कर सकता है जो स्थापित, स्वामित्व वाले,(जैसे राज्य स्थापित स्कूल जैसे केंद्रीय विद्यालय, हरियाणा में आरोही स्कूल आदि) सरकार या स्थानीय प्राधिकरण द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित या पर्याप्त रूप से वित्त पोषित हैं। इसलिए यदि किसी बच्चे को ऊपर दिए गए स्कूलों के अलावा अन्य स्कूलों में प्रवेश दिया जाता है, तो उसके माता-पिता बच्चे की शिक्षा के लिए खर्च की प्रतिपूर्ति का दावा नहीं कर सकते हैं। इसमें पिछड़े हुए समूहों के लिए 25% आरक्षित प्रवेश के तहत प्रवेश शामिल नहीं है।

शिक्षा के अधिकार के तहत आने वाले स्कूलों के लिए प्रवेश प्रक्रिया अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है। हालांकि कुछ प्रक्रियाएं सामान्य हैं। किसी बच्चे को स्कूल में प्रवेश देने के लिए, राज्यों में निम्नलिखित सामान्य प्रक्रियाएँ हैं:

प्रवेश पत्र भरना

माता-पिता को अपेक्षित राज्य सरकारों द्वारा प्रदान किया गया एक फॉर्म भरना आवश्यक है। ये फॉर्म सरकारी पोर्टल पर उपलब्ध हैं क्योंकि हर राज्य में प्रवेश के लिए एक अलग पोर्टल है। कुछ उदाहरण पंजाब, महाराष्ट्र आदि हैं। आप फॉर्म प्राप्त करने के लिए पास के स्कूलों से भी संपर्क कर सकते हैं। फॉर्म में परिवार के विवरण, पते आदि जैसी बुनियादी जानकारी शामिल है। यह अनियोजित प्रवेश के मामले में पसंदीदा सुविधा उपयुक्त स्कूलों को चुनने का भी प्रबंध करता है। पसंद के रूप में अधिकतम पांच विद्यालय प्रदान किए जा सकते हैं।

पहचान दस्तावेज प्रदान करना

कुछ दस्तावेज जमा करना अनिवार्य है। इन दस्तावेजों में उम्र के प्रमाण के रूप में बच्चे की आईडी (जन्म प्रमाण पत्र, आंगनवाड़ी रिकॉर्ड, आधार कार्ड आदि शामिल हो सकते हैं) और माता-पिता की आईडी शामिल हैं। फॉर्म में परिवार के राशन कार्ड, आय प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र के साथ-साथ बच्चों की विशेष जरूरतों को उजागर करने वाले प्रासंगिक प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेजों का प्रावधान भी शामिल है। ऐसा फॉर्म भरकर आमतौर पर पास के स्कूल में जमा किया जा सकता है। क्योंकि कुछ राज्यों ने पूरी प्रक्रिया को ऑनलाइन कर दिया है, इसलिए आवेदन सरकारी पोर्टल पर किया जा सकता है।

स्कूली फीस और खर्च

बच्चे बिना किसी फीस या खर्च के स्कूलों में प्रवेश पा सकते हैं। भारत में शिक्षा के अधिकार का कानून बच्चे के प्रवेश से पहले किसी भी फीस की मांग पर रोक लगाता है। किसी भी स्कूल को कोई प्रतिव्यक्ति शुल्क लेने की अनुमति नहीं है जो स्कूल शुल्क के अलावा किसी भी प्रकार के दान या भुगतान को संदर्भित करता है।

प्रवेश के लिए कोई स्क्रीनिंग प्रक्रिया नहीं

इसके अलावा, स्कूल प्रवेश से पहले बच्चे या माता-पिता को किसी भी प्रकार की स्क्रीनिंग प्रक्रिया से नहीं गुजार सकते हैं। स्क्रीनिंग प्रक्रिया में स्कूल में प्रवेश के लिए बच्चे या माता-पिता का कोई भी टेस्ट या इंटरव्यू शामिल हो सकता है। स्कूल को सभी बच्चों का चयन करना चाहिए और खाली सीटों को भरने के लिए एक खुली लॉटरी पद्धति अपनानी चाहिए। यह कागज की पर्चियों पर बच्चों के नाम लिखकर और फिर पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए बेतरतीब ढंग से उन्हें एक कंटेनर से बाहर निकालने के रूप में किया जा सकता है। इस प्रावधान के पहले उल्लंघन के लिए स्कूलों पर 25,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है और बाद में किसी भी उल्लंघन के लिए 50,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।

आवेदन शुल्क

आवेदन शुल्क, केंद्र और राज्यों के लिए अलग अलग होता है। केंद्र सरकार के सार्वजनिक प्राधिकरणों के लिए यह 10 रुपये है। राज्य सरकारों के सार्वजनिक प्राधिकरणों के लिए, कृपया प्रत्येक राज्यों पर लागू नियमों को जांच कर लें।

आवेदन शुल्क के अलावे, सूचना सुपुर्द करने का भी एक शुल्क है जो सूचना के पृष्ठों के प्रारूप पर, और उसकी संख्या पर आधारित होता है। केंद्र सरकार के सार्वजनिक प्राधिकरणों पर लागू शुल्क के लिए, कृपया ‘आरटीआई’ नियम, 2012 को देख लें। राज्य के सार्वजनिक प्राधिकरणों पर लागू शुल्क के लिए, कृपया तथाकथित राज्य के नियमों को देख लें।

‘पीआईओ’ आपको सूचना के लिए अधिक शुल्क का भुगतान करने के लिए कह सकता है लेकिन उन्हें, सही गणना के माध्यम से, अधिक शुल्क के भुगतान को उचित ठहराना होगा। बढ़े हुये शुल्क की मांग और उसके भुगतान किये जाने तक की अवधि को, 30 दिनों की अवधि सीमा से अलग माना जायेगा, जिसके अंदर मूल रूप से मांगी हुई सूचना आपको मिल जानी चाहिये।

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लोगों के खिलाफ क्रूर और अपमानजनक अत्याचार

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लोगों के खिलाफ किए गए निम्न में से किसी भी अपराध को कानून ने अत्याचार माना हैछ

• किसी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को शारीरिक या मानसिक रूप से चोट पहुँचाना या उनका बहिष्कार करना।

• किसी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को कोई भी घिनौना पदार्थ जो मनुष्य के खाने के योग्य नहीं है, जैसे गाय का गोबर, मानव मल आदि के साथ जबरदस्ती कुछ खिलाना।

• किसी भी घिनौने पदार्थ (जैसे मृत जानवरों के शरीर, या मल) को किसी ऐसे स्थान के अंदर या गेट पर फेंकना जहां अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लोग रहते हैं, या किसी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति के पड़ोस में फेंकना, लेकिन केवल तभी जब ऐसा उनका अपमान या उन्हें तंग करने के लिए किया जाए।

• अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को चप्पलों की माला पहनाना, या उन्हें नग्न या अर्ध-नग्न करके घुमाना।

• अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को ऐसा कुछ भी करने के लिए मजबूर करना जो किसी व्यक्ति के सम्मान को ठेस पहुंचाता हो, जैसे कि उन्हें कपड़े उतारने, अपना सिर या मूंछम मुंडवाने या अपना चेहरा रंगने के लिए मजबूर करना।

• अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति से बंधुआ मजदूरी करवाना । लेकिन यदि सरकार इस प्रकार की सार्वजनिक सेवा को अनिवार्य कर दे-तो यह अपराध नहीं होगा।

• अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को किसी मानव या पशु के शव को ले जाने या उसेउसको निपटाने के लिए मजबूर करना।

• अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को हाथ से मैला ढोने या मानवीय मल की सफाई करने के लिए मजबूर करना, या किसी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्य को हाथ से मैला ढोने या मानवीय मल की सफाई करने के लिए नियुक्त करना।

• अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को जानबूझकर अपमान करना और जलील करना, यदि यह सार्वजनिक स्थान पर किया जाता है।

• अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की किसी व्यक्ति को उसके जाति के नाम का प्रयोग करते हुए गाली देना अपशब्द कहना यदि यह सार्वजनिक स्थान पर किया जाता है।

• किसी भी वस्तु को नुकसान पहुंचाना, जैसे डॉ. अम्बेडकर की मूर्ति या तस्वीर, जो अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए महत्वपूर्ण है।

• अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों के प्रति घृणा को बढ़ावा देने वाली कोई भी बात कहना या प्रकाशित करना।

• ऐसा कुछ भी कहना या लिखना जो किसी स्वर्गवासी व्यक्ति का अपमान करता हो, जो अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदाय के लिए महत्वपूर्ण हो, जैसे कि उनके नेता के बारे में।

• आमतौर पर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लोगों द्वारा उपयोग किए जाने वाले किसी भी जल स्रोत को खराब दूषित करना।

• अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को ऐसे सार्वजनिक स्थान पर जाने से रोकना जहां उसे जाने का अधिकार है।

• अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को निम्न कार्य करने से रोकना:

  • किसी भी सार्वजनिक क्षेत्र या संसाधन जैसे जल निकायों, नलों, कुओं, श्मशान घाटों आदि का उपयोग करने से रोकना।
  • घोड़े या वाहन की सवारी करना या जुलूस निकालने से रोकना।
  • किसी धार्मिक स्थान में प्रवेश करने या किसी धार्मिक समारोह में भाग लेने से, जो जनता के लिए खुला हो जो सार्वजनिक हो ।
  • स्कूल, अस्पताल या सिनेमा हॉल जैसे सार्वजनिक स्थान में प्रवेश करने से रोकना।
  • कोई व्यवसाय या नौकरी करने से रोकना।

• अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति पर जादू टोना करने का आरोप लगाना और उन्हें शारीरिक या मानसिक रूप से चोट पहुँचाना।

• धमकी देना, या वास्तव में उन्हें सामाजिक या आर्थिक रूप से बहिष्कृत करना। इन सब के लिए जुर्माने के साथ-साथ 6 महीने से 5 साल तक की कैद हो सकती है।

संवैधानिक उपचार के लिए कौन आवेदन कर सकता है?

कोई भी पीड़ित व्यक्ति जिसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया हो, वह हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर कर के संवैधानिक उपचार पा कर सकता है।

हैबिअस कॉर्पस /बंदी प्रत्यक्षीकरण और मेंडमस/परमादेश के लिए, पीड़ित व्यक्ति के अलावा कोई अन्य व्यक्ति भी उस विशेष मुद्दे की मांग करने के लिए याचिका दायर कर सकता है।

यह समझना जरूरी है कि सभी मौलिक अधिकार हर एक व्यक्ति को एक समान प्राप्त नहीं हैं। उदाहरण के लिए, ‘रोजगार में समान अवसर का अधिकार’ और ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार’ केवल देश के नागरिकों तक ही सीमित हैं। वहीं दूसरी तरफ, ‘जीवन जीने का अधिकार’/ प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण और कानून के नजर में ‘समान व्यवहार का अधिकार’ जैसे मौलिक अधिकार सभी लोगों के लिए है, चाहे वो देश के नागरिक हों या गैर-नागरिक। कोई भी व्यक्ति अपने किसी भी मौलिक अधिकार को पाने के लिए संवैधानिक उपचार/गुहार की मांग कर सकता है, और एक रिट याचिका दायर कर सकता है।