सरकारी विज्ञापन का काम आमतौर पर जनता को उनके अधिकारों, कर्तव्यों और उनके हक़ के बारे में जानकारी देना है। इसके अलावा ये सरकारी नीतियों, कार्यक्रमों, सेवाओं और अवसरों के बारे में बताते हैं। लेकिन आचार संहिता के मकसद को पूरा करने के लिए, सरकारी विज्ञापन निष्पक्ष और राजनीतिक रूप से निष्पक्ष होने चाहिए। सरकारी विज्ञापनों के द्वारा किसी भी तरह से सत्ताधारी पार्टी (जिस पार्टी की सरकार है) के राजनीतिक हित को फायदा नहीं मिलना चाहिए।
उदाहरण के लिए,
- सरकार की बनाई मिड-डे मील योजना का विज्ञापन करते समय, सत्ताधारी पार्टी इन विज्ञापनों का इस्तेमाल अपनी पार्टी के नेताओं और उम्मीदवारों के गुणगान के लिए नहीं कर सकती हैं। इन विज्ञापनों में पार्टी के नेताओं के नाम और उनका फोटो लगाना आचार-संहिता (एमसीसी) का उल्लंघन है।
- कानून के तहत, राशन कार्ड धारकों को एलपीजी गैस पर सब्सिडी दी जाती है। सत्ताधारी दल इसे अपनी पहल बताकर प्रचार नहीं कर सकते हैं। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत सरकार को अनिवार्य रूप से लोगों को चावल 3 रुपये प्रति किलो की दर से और गेहूं 2 रुपये प्रति किलो की दर से देना होता है। इस योजन पर सत्ताधारी पार्टी यह दावा नहीं कर सकती कि यह उनकी योजना है और न ही इसका किसी भी तरह का विज्ञापन कर सकती हैं।
चुनाव के दौरान, सत्ताधारी दल को नीचे बताई गई बातों को करना मना हैः
- सताधारी पार्टी अपने चुनाव प्रचार में सरकारी विज्ञापनों के लिए आरक्षित सरकारी पैसे का इस्तेमाल नहीं कर सकती है।
- सरकारी विज्ञापनों के माध्यम से सत्ताधारी पार्टी की सकारात्मक छवि या दूसरी राजनीतिक पार्टी की नकारात्मक छवि को नहीं दिखाया जा सकता है।
सरकारी विज्ञापन
सरकारी विज्ञापनों में नीचे बताई गई बातों को करना मना हैः
- सरकारी विज्ञापनों में सत्ताधारी पार्टी का नाम लेकर प्रचार करना
- सरकारी विज्ञापनों में विपक्षी दलों का नाम लेकर उनके विचारों या कामों की आलोचना करना
- सरकारी विज्ञापनों में अपनी पार्टी का राजनीतिक प्रतीक, चिन्ह या झंडा शामिल करना
- सरकारी विज्ञापनों की मदद से अपनी पार्टी या अपने उम्मीदवार के लिए आम जनता का समर्थन जुटाना
- सरकारी विज्ञापनों की मदद से अपनी पार्टी या नेताओं की वेबसाइटों के लिंक का प्रचार करना