ज़मीन को सबसे महत्वपूर्ण संपत्तियों में से एक माना जाता है, इसीलिए ज़मीन से जुड़े विवादों की लिस्ट बहुत लम्बी हैं।
इस लेख में हम कुछ ज़मीन विवादों पर ज्यादा बात करेंगे, जो कुछ इस तरह हैंः
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ज़मीन को सबसे महत्वपूर्ण संपत्तियों में से एक माना जाता है, इसीलिए ज़मीन से जुड़े विवादों की लिस्ट बहुत लम्बी हैं।
इस लेख में हम कुछ ज़मीन विवादों पर ज्यादा बात करेंगे, जो कुछ इस तरह हैंः
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अचल संपत्ति के मामलों में, किसी व्यक्ति की मौत के बाद संपत्ति के मालिकाना हक को सौंपना या संपत्ति के मालिकाना हक में बदलाव को विरासत अधिकार कहते हैं। किसी की मौत के बाद संपत्ति के स्वामित्व को सही से सौंपने का आदर्श तरीका वसीयतनामा (वसीयत) है। विरासत के बारे में और ज्यादा जानने के लिए यहां पढ़ें।
अगर कोई वसीयतनामा नहीं है, तो उस संपत्ति के बंटवारे का फैसला विरासत कानून के तहत होता है। भारत में संपत्ति के उत्तराधिकार के कानून को व्यक्तिगत कानून, प्रथागत कानून और विधायी कानून नियंत्रित करते हैं। विस्तृत रूप से, ये कानून हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 और इस्लामी व्यक्तिगत कानून हैं ।
हिंदू विरासत कानून के तहत, एक व्यक्ति/ मालिक अपनी खुद की जमा संपत्ति के साथ कुछ भी कर सकता है, लेकिन पैतृक संपत्ति के साथ नहीं। पैतृक संपत्ति के हस्तांतरण में प्रतिबंध हैं। ये कानून परिवार के कुछ सदस्यों को पैतृक संपत्तियों पर जन्मसिद्ध अधिकार देता है। हिंदू विरासत कानून के तहत ‘पुत्र’ और ‘पुत्री’ यानी बेटा-बेटी को उनकी मां या पिता की संपत्ति में एक समान हिस्सेदारी का अधिकार है। यहाँ ‘पुत्र’ और ‘पुत्री’ शब्दों में गोद लिए पुत्र और पुत्रियां आते हैं, लेकिन सौतेले बच्चे नहीं।
अगर जीवित लोगों का अचल संपत्ति पर कोई विवाद है और संपत्ति मालिक के पास वसीयतनामा नहीं है, तो वे कोर्ट में मुकदमा दायर कर सकते हैं।
विरासत के मुस्लिम कानून में, व्यक्तिगत कानून इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति किस उप-संप्रदाय यानी सुन्नी या शिया से है। कानूनों को संहिताबद्ध नहीं किया गया है, मतलब उन्हें तय करने वाला कोई अधिनियम नहीं है। हनफी कानून को मानने वाले सुन्नियों के लिए, व्यक्तिगत कानून अंतिम संस्कार के खर्चों, घरेलू नौकरों की बकाया मजदूरी और ऋणों को देने के बाद बची संपत्ति के अधिकतम एक-तिहाई तक विरासत को प्रतिबंधित करता है।
वसीयतनामा (वसीयत) एक लिखित दस्तावेज है, जिसे एक व्यक्ति यह बताने के लिए बनाता है कि उनकी संपत्ति और धन को उनके वंशजों के बीच कैसे बांटा जाएगा। भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 तहत वसीयतनामा को बनाना और उसे लागू करना होता है। यह अधिनियम इस्लाम को छोड़कर सभी धर्मों पर लागू होता है।
आखिरी वसीयतनामा यह तय करता है कि आपकी संपत्ति आपकी इच्छा के हिसाब से आपके लाभार्थियों के बीच सुरक्षित रूप से बंट रही हो। वसीयतनामा, बिना वसीयतनामा मरने और विरासत के अधिकार पर विवाद की संभावना को कम करती है। लिखित वसीयतनामा की मदद से लंबी चलने वाली अदालती लड़ाई से भी बचा जा सकता है। अगर आपके बच्चे नाबालिग हैं, तो आपको वसीयतनामा में एक वसीयत प्रबंधक (जो वसीयत की सभी कार्यवाही करेगा) और एक कानूनी अभिभावक का नाम देना होता है।
ज्यादा जानने के लिए न्याया के वसीयतनामा लेख को पढ़ें।
हिंदू संयुक्त परिवार की संपत्ति को हिंदू वसीयतनामा कानून यानी हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार बंटवारा करने से जुड़े विवादों के रूप में विभाजन (बंटवारा) विवाद को देखा जा सकता है।
संपत्ति विभाजन के विवादों को सुलझाने के दो तरीके हैंः
1. पारिवारिक समझौता
पारिवारिक समझौता परिवार के सदस्यों के बीच आपसी समझ से परिवार की संपत्ति को बांटने और अदालती लड़ाई से बचने के लिए किया गया एक समझौता है। यह विभाजन दस्तावेज के फाॅमेट जैसा ही होता है। पारिवारिक समझौते को पंजीकृत और मुहर लगाना जरूरी नहीं है। हालांकि, परिवार के सभी सदस्यों के हस्ताक्षर बिना किसी धोखाधड़ी, जबरदस्ती या बिना किसी के दबाव के स्वेच्छा से होने चाहिए।
2. विभाजन मुकदमा
संपत्ति के विभाजन के लिए मुकदमा एक अदालती मामला है। ऐसे मामलों में परिवार के सदस्य संपत्ति को बांटने के नियमों और शर्तों पर राजी नहीं होते और आमतौर पर संपत्ति को अपने हिसाब से बांटना चाहते हैं। यहां पहला काम सावधानीपूर्वक मसौदा तैयार करना और परिवार की संपत्ति से जुड़े संपत्ति के अन्य कानूनी उत्तराधिकारियों को कानूनी नोटिस भेजना है।
अगल- बगल में जमीन रखने वाले मालिकों के बीच अगर प्लॉट के माप को लेकर कोई विवाद है। इस स्थिति में, वे सरकारी क्षेत्रमापक (पटवारी) की मदद लेकर संयुक्त सर्वे कराके इसका हल निकाल सकते हैं।
इस तरह के विवाद को सुलझाते समय स्वामित्व दस्तावेजों और राजस्व रिकॉर्ड की जानकारी को देखा जाना चाहिए। आप इन्हें अपनी स्थानीय तहसीलदार के कार्यालय में रिकॉर्ड ऑफ राइट्स (आरओआर) या ऑनलाइन देख सकते हैं, अगर राज्य ने आरओआर को डिजिटाइज़ किया है। एक पक्ष द्वारा दूसरे की ज़मीन पर किए गए किसी भी अतिक्रमण को हटाना होगा। उदाहरण के लिए, इस तरह के अतिक्रमण में एक बाड़ लगाना शामिल है, जो किसी दूसरे की संपत्ति में प्रवेश करता है या एक इमारत को अपनी संपत्ति की सीमाओं से बाहर फैलाता है या पेड़ की डालियों को पड़ोसियों की संपत्ति में फैलाना हो सकता है, जो चोट/नुकसान का कारण हो।
अगर बताए गए उपायों से हल नहीं निकलता है, तो पीड़ित पक्ष कोर्ट जा सकता है।
अगर कोई आपकी संपत्ति पर अतिक्रमण या अतिचार (बिना अधिकार के प्रवेश करना) करता है या कोई निर्माण आपकी संपत्ति की सीमा रेखा से आगे करता है, तो इसे बताए गए तीन तरीके से हल कर सकते हैंः
अतिचार: अगर कोई आपकी संपत्ति में अपराध करने, आपको डराने, अपमान करने या चिढ़ाने के इरादे से या वैध रूप से प्रवेश करके अवैध रूप से वहां रहने लगता है, तो बताई गई सभी स्थितियों में प्रवेश अवैध ही माना जाएगा।
भारतीय दंड संहिता के तहत यह अपराध आपराधिक अतिचार की श्रेणी में आता है।1 इसके खिलाफ आप आपराधिक शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
संपत्ति का सीमांकन: दूसरा विकल्प दीवार या बाड़ बनाकर ज़मीन का सीमांकन करना है। यह ज़मीन की सीमाओं को ठीक रखता है और सीमांकित ज़मीन की सुरक्षा को बनाए रखता है। साथ ही ज़मीन को अतिक्रमण या कब्जा करने वालों से भी बचाता है।
संपत्ति के अतिक्रमण के लिए सिविल मुकदमा: तीसरा विकल्प सिविल कोर्ट में एक आवेदन करना और अतिक्रमण के खिलाफ आदेश मांगना है। आप किसी को भी आपकी ज़मीन पर कब्ज़ा करने से रोकने के लिए कोर्ट से स्थायी निषेधाज्ञा की मांग कर सकते हैं।
‘रास्ते का अधिकार’ किसी दूसरी ज़मीन पर मालिकाना या रहने वाले का अधिकार है, न कि उसका अपना, जो उन्हें अपनी संपत्ति1 का आनंद लेने की अनुमति देता है।
इसमें अपनी ज़मीन का इस्तेमाल करने के लिए किसी दूसरे व्यक्ति की ज़मीन को बिना बाधा इस्तेमाल करने का अधिकार शामिल है। अगर इस अधिकार में कोई बाधा आती है, तो इसे रोकने के लिए निषेधाज्ञा या होने वाले नुकसान के लिए आप मुकदमा कर सकते हैं।
किसी व्यक्ति को ज़मीन पर मालिकाना अधिकार उत्तराधिकार, उत्तरजीविता, विरासत, विभाजन और खरीद द्वारा मिल सकता है। मालिक/ खरीदार के अधिकारों की वैधता या ज़मीन बेचने वाले की पात्रता और ज़मीन को लेने के लिए सरकारी नियमों और विनियमों के उल्लंघन पर विवाद हो सकते हैं। इन विवादों को हल करने के लिए, हर मामले की खास बातों को ध्यान में रखते हुए खास तरह की जानकारी की जरूरत होती है।
इस तरह के मामलों में मुकदमेबाजी करने से पहले एक वकील से राय मशविरा कर लेना चाहिए।
इस बारे में और ज्यादा जानकारी के लिए यहां क्लिक करें।
अचल संपत्ति के विवाद में मुकदमा दायर करने के लिए आपको किस अदालत में जाना हैं, यह आपकी संपत्ति की जगह से तय होगा। अदालत के पास उस विवादित संपत्ति की जगह का अधिकार क्षेत्र होना चाहिए।1 अगर कोई संपत्ति एक से ज्यादा अदालतों की अधिकार क्षेत्र की सीमाओं के बाहर स्थित है, तो मुकदमा इनमें से किसी भी अदालत में दायर किया जा सकता है। मुकदमेबाजी करने से पहले एक वकील से राय मशविरा कर लें।
अदालतों में जाने के अलावा, लोक अदालतों की मदद से भी विवादों को सुलझा सकते हैं। ये कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत मान्यता प्राप्त विवादों को हल करने का एक वैकल्पिक तरीका हैं।
लोक अदालत एक ऐसा मंच है, जहां ज़मीन और संपत्ति जैसे मुकदमे में या पहले के मुकदमेबाजी पर लंबित विवादों/मामलों का शांतिपूर्वक निपटारा/समझौता किया जाता है। लोक अदालत का फैसला आखिरी और बाध्यकारी होता है। इसके फैसले पर आगे अपील का कोई प्रावधान नहीं है। हालांकि, अगर पक्ष फैसले से असंतुष्ट है, तो वे अदालत में मुकदमेबाजी की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं।