ट्रिगर वॉर्निंग: नीचे दी गई जानकारी शारीरिक हिंसा, यौन हिंसा, दुर्व्यवहार, गाली-गलौज के बारे में है, जो कुछ लोगों को परेशान या बेचैन कर सकती है।

सर्वाइवर्स के लिए मेडिको-लीगल गाइड

Download this Guide

यह गाइड आपकी कैसे मदद कर सकती है?

न्याया की मेडिको-लीगल एक्जामिनेशन पर तैयार, यह गाइड यौन उत्पीड़न के सर्वाइवर (यानी पीड़ित महिला ) को इस जांच प्रकिया को समझाने में मदद करती है। यह  गाइड सर्वाइवर को कुछ ऐसी चीजों की भी जानकारी देती है, जिन्हें इस वक्त ध्यान में रखना जरूरी होता है। 

यह गाइड फोरेंसिक मेडिकल जांचों की प्रक्रिया को समझने में मदद करती है, जिसमें सर्वाइवर्स के डीएनए के साथ दूसरे सबूतों को इकट्ठा करना होता है। वहीं यह सर्वाइवर को मिलने वाली मेडिकल इलाज की जानकारी के बारे में बताती है। यह सर्वाइवर्स के अधिकारों की जानकारी देती है और कई तरह की भ्रांतियों को दूर करती है। 

यौन उत्पीड़न के मामलों में, स्वास्थ्य कार्यकर्ता दो तरह की भूमिका निभाते हैं– पहला, मेडिकल इलाज व मनोवैज्ञानिक मदद देना और दूसरा, सबूत इकट्ठे करना और सबूतों का अच्छी तरह से दस्तावेज़ीकरण करना। 2014 में, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने यौन हिंसा के सर्वाइवर्स के लिए मेडिको-लीगल केयर के लिए दिशानिर्देश और प्रोटोकॉल तैयार किए हैं।

इस गाइड में किन कानूनों पर चर्चा की जा रही है?

यह गाइड 2014 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा मेडिको-लीगल दिशानिर्देशों के कानूनी पहलुओं पर चर्चा करती है। यह दिशानिर्देश आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 2013, भारतीय दंड संहिता, 1860, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO), 2012, और दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 में उल्लिखित विभिन्न आवश्यकताओं पर आधारित हैं।

पहला चरण:

मेडिकल मदद और जांच

सर्वाइवर के बयान की पुष्टि  के लिए मेडिकल जांच बहुत जरूरी होती है, इसलिए जितनी जल्दी हो सके एक पंजीकृत डाॅक्टर से सर्वाइवर की जांच करवा लेनी चाहिए। 

अगर हो सके तो मेडिकल जांच से पहले नीचे बताए कामों को ना करें- 

  • दांत साफ करना
  • नहाना 
  • पेशाब  या शौच करना
  •  कपडे़ बदलना
  • बालों में कंघी करना
  • मुंह धोना 
  • जननांग अंगों (प्राइवेट पार्ट)की सफाई करना

ऊपर बताए गए कामों को नहीं करने से सबूतों को इकट्ठा  करने में आसानी होती है। 

जांच के दौरान कोई भी व्यक्ति सर्वाइवर के साथ जा सकता है। 

मेडिकल जांच के समय सर्वाइवर का कोई भी रिश्तेदार या दोस्त सर्वाइवर के साथ रह सकता है। अगर, सर्वाइवर को मदद चाहिए, तो  एक पेशेवर की मदद भी दी जा सकती है।

मेडिकल जांच

मेडिकल जांच की जरूरत क्यों होती है ?

मेडिकल जांच दो खास ज़रूरतों के लिए की जाती है। 

  1. मेडिकल इलाज या मदद देना– मेडिकल इलाज के समय गर्भावस्था या एसटीआई (यौन संचारित संक्रमणों) की जांच से लेकर यौन स्वास्थ्य की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर मदद देना है।
  2. फोरेंसिक जांच – डाॅक्टर, पुलिस को जांच में मदद करने के लिए डीएनए स्वैब लेंगे, चोटों की जांच करते हुए उनकी फोटो सबूतों के रूप में लेंगे। अगर सर्वाइवर को किसी प्रकार के हथियार से  मारा या जहर खिलाया गया है, तो डाॅक्टर सर्वाइवर की मानसिक स्थिति को देखते हुए जांच करेंगे।

मेडिकल जांच में 2-4 घंटे का समय लग सकता है।

सर्वाइवर को किन परिस्थितियों में मेडिकल जांच से गुजरना पड़ता है?

इन तीन परिस्थितियों के होने पर कोई भी सर्वाइवर मेडिकल जांच करा सकती हैं  

  1. जब सर्वाइवर को हमले या घटना के कारण अस्पताल/क्लिनिक में इलाज के लिए जाना पड़े। 
  2. जब पुलिस में शिकायत के बाद पुलिस मेडिकल जांच को कहे।
  3. कोर्ट के निर्देश या कोर्ट के आदेश देने पर

क्या मेडिकल जांच के लिए एफआईआर जरूरी है?

मेडिकल जांच के लिए एफआईआर जरूरी नहीं है। सवाईवर के पास पुलिस में शिकायत दर्ज करने या पुलिस शिकायत दर्ज ना करने के दोनों विकल्प होते हैं। वह अपनी इच्छा से इन दोनों में से एक को चुन सकते हैं। लेकिन सवाईवर को जितनी जल्दी हो सके मेडिकल जांच कराने की सलाह दी जाती है। डाॅक्टर को, सवाईवर को हमले के खिलाफ शिकायत दर्ज करने के उसके अधिकार की जानकारी देनी होती है। अगर सवाईवर रिपोर्ट दर्ज नहीं करना चाहता है, तो डाॅक्टर को सवाईवर की मनाही  को लिखित में ले लेना चाहिए।  हालांकि, डाॅक्टर पुलिस को घटना की रिपोर्ट करने के लिए बाध्य हैं।

मेडिकल जांच कौन कर सकता है?

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर यानी डाॅक्टर इस जांच को कर सकते हैं। मेडिकल जांच के हर चरण यानी स्टेज के लिए सवाईवर की सहमति डाॅक्टर को लेनी होगी। अगर सवाईवर  किसी चरण को करने की सहमति नहीं देता है, तो डाॅक्टर को जांच का वो चरण छोड़ देना है। 

सलाह दी जाती है कि महिला डाॅक्टर ही महिला सवाईवर की मेडिकल जांच करें। अगर महिला डाॅक्टर नहीं है, तो सवाईवर की सहमति से ही पुरुष डाॅक्टर इस जांच को कर सकते हैं। वहीं सवाईवर पुरुष डाॅक्टर से जांच कराने का विकल्प चुन सकते हैं।

क्या मेडिकल जांच मुफ़्त है?

डाॅक्टर को सर्वाइवर के कहने या यौन उत्पीड़न होने पर निजी और सरकारी अस्पतालों में मुफ्त में प्राथमिक और जरूरी इलाज देना होगा।

याद रखें…
सर्वाइवर परीक्षा के दौरान किसी भी समय किसी विशिष्ट चरण को रोकने, रोकने या छोड़ने का विकल्प चुन सकता है।

मेडिकल जांच

प्रक्रिया

मेडिकल जांच की प्रक्रिया क्या है?

  1. मेडिकल जांच की शुरूआत किसी भी  ऐसी चोट के इलाज से होती है, जिसे एकदम से डाॅक्टरी देखभाल की जरूरत होती है। 
  2. फिर, डाॅक्टर सर्वाइवर की मेडिकल हिस्ट्री (सेहत की रिपोर्ट) लिखता है। 
  3. सर्वाइवर के साथ जो कुछ हुआ उसके बारे में सबूत इकट्ठा करता हैं। इन सबूतों में सर्वाइवर के शरीर में लगी चोटों को पहचाना और उसके कपड़ों को रखना हैं, क्योंकि कपड़े भी रेप केस में सबूत के तौर में काम आते हैं। 
  4. इसके बाद, डाॅक्टर सर्वाइवर की सिर से पैर तक की जांच कर सकता है, जिसमें मुंह, योनि और गुदा (प्राइवेट अंगों) की आंतरिक जांच होती है। 
  5. सर्वाइवर के खून, पेशाब, शरीर और बालों के सैम्पल सबूत के तौर पर इकट्ठा किए जाते हैं। 
  6. डाॅक्टर चोटों के बारे में रिपोर्ट तैयार करते समय सबूत के लिए सवाईवर के शरीर की चोटों की फोटो भी ले सकता है। 
  7. अगर जरूरी हो तो सर्वाइवर को एसटीआई (यौन संक्रमणों) रोकने का इलाज या इमरजेंसी गर्भनिराधक भी दिया जाता है। 
  8. अगर सवाईवर को नशा दिया गया होता है, तो ऐसे मामलों में डाॅक्टर drug-facilitated kit का इस्तेमाल करता है, जिसमें खून और पेशाब की जांच के लिए सैम्पल लेते हैं।
  9. गर्भावस्था की जांच के साथ-साथ सर्वाइवर की एसटीआई (यौन संचारित संक्रमण), एचआईवी, हेपेटाइटिस बी जैसी  जांच भी होंगी।

मेडिकल हिस्ट्री के लिए क्या इकट्ठा किया जाता है?

हमले के बाद, डाॅक्टर सवाईवर की कुछ गतिविधियों के बारे में जानकारी इकट्ठा करते हैं, जैसे-

  1. कपड़े बदलना, कपड़ों को धोना
  2. नहाना
  3. गुप्तांगों को धोना, मासिक धर्म (पीरियड्स), पेशाब करना, शौच करना
  4. मुँह धोना, पानी पीना, खाना
  5. टीकाकरण, हाल की यौन गतिविधि

ये जानकारी सवाईवर से इकट्ठा किए गए सबूतों के लिए बहुत जरूरी होती है। जबकि यौन भागीदारों (सेक्सुअल पार्टनर्स)की संख्या या पिछले यौन अनुभवों की जानकारी तब लेना जरूरी होता है, जब  हमला यौन उत्पीड़न से जुड़ा हो।

क्या टू-फिंगर टेस्ट कानूनी है?

टू-फिंगर टेस्ट, जिसे पीवी (Per Vaginal) जांच या ‘वर्जिनिटी  टेस्ट’ के नामों  से जाना जाता है।  इस जांच में डाॅक्टर (महिला या पुरूष डाॅक्टर) महिला रेप सर्वाइवर की योनि में दो उंगलियां डालकर हाइमन के होने या ना होने की जांच करता है,  साथ ही योनि के ढीलेपन को भी देखता है। 

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी मेडिको लीगल दिशानिर्देशों के अनुसार भारत में मेडिकल प्रैक्टिशनर टू-फिंगर टेस्ट नहीं कर सकते हैं।

ये जांच सर्वाइवर की चोटों और संक्रमण के लिए होने वाली योनि की आंतरिक जांच से अलग है, और सर्वाइवर को  दिए जाने वाले मेडिकल इलाज का एक हिस्सा है।

फोरेंसिक सबूत

फोरेंसिक सबूत कैसे इकट्ठा किए जाते हैं?

  1. डीएनए जांच के लिए वीर्य, ​​लार, बाल और नाखूनों के छिलकों को लिया जाता है। ये चीजे संदिग्ध (जिस पर अपराधी होने का शंक हो) की पहचान और उसे अपराध से जोड़ने में मदद कर सकती हैं।
  2. अंदरूनी और बाहरी चोटों की भी जांच होती है। चोटें सर्वाइवर पर हमला करने वाले अपराधी द्वारा बल के इस्तेमाल या हिंसा के बारे में बताती हैं।
  3. खून और पेशाब से पता चल सकता है कि क्या सर्वाइवर ने शराब या नशीली चीजों को लिया था और अपनी सहमति देने की हालत में नहीं था। 
  4. वहीं कपड़ों के रेशे, पत्ते और मिट्टी जैसी बाहरी चीजें अपराधी को ढूंढने में मदद कर सकती हैं। इस तरह के सबूतों को ज्यादा से ज्यादा इकट्ठा किया जाता हैं, ताकि ऐसे मामलों में अपराधी को पकड़ने या सजा दिलाने में मदद हो सके। 

इकट्ठा किए गए सबूतों को एक साफ सूखे सैनिटाइज्ड पैकेट में जमा किया जाता है। इस पैकेट को एक स्टिकर के साथ सील कर दिया जाता है ताकि सबूतों को खराब या उनके साथ कोई छेड़छाड ना हो सके।

अगर सर्वाइवर ने सबूत मिटा दिए तो क्या होगा?

भले ही सर्वाइवर ने खुद को साफ कर लिया हो या नहा लिया हो, तब भी मेडिकल जांच हो सकती है। कोशिश करें कि नहाने, बालों में कंघी करने, दांतों को ब्रश करने, मुंह धोने, पेशाब या शौच करने, कपड़े बदलने और जननांग (प्राइवेट अंगों) या हमला किए किसी भी अंग को साफ ना करें। साफ-सफाई ना करने से सबूत इकट्ठा करने में मदद मिल सकती है। 72 घंटे (3 दिन) के बाद सबूत मिलने की संभावना कम हो जाती है। समय ठीक से पता ना होने के मामले में सबूत 96 घंटे तक इकट्ठा किए जाते हैं।

उन मामलों में क्या होता है, जहां कोई फोरेंसिक सबूत नहीं मिलते हैं?

डाॅक्टर की जांच सर्वाइवर की सहमति या अहमति का पता नहीं लगा सकती है। इसकी गवाही केवल सर्वाइवर ही दे सकती हैं। ऐसे मामलों में देखा जाए तो सहमति बहुत जरूरी है, क्योंकि सहमति से ही रेप होने या नहीं होने का पता चलता है। अगर सबूत कम हैं या नहीं मिलते हैं, तो इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं है कि अपराध नहीं हुआ है। पुलिस को अपनी जांच जारी रखनी होगी।

क्या वीर्य (सीमेन) ही फोरेंसिक सबूत का एकमात्र रूप है?

हालांकि वीर्य ढूंढना भी किसी जांच का प्राथमिक फोकस है, पर एडवांस डीएनए प्रौद्योगिकी में दूसरे आनुवंशिक सबूत भी इकट्ठा और इस्तेमाल किए जाते हैं

सर्वाइवर के शरीर के उन हिस्सों पर स्वाब (सेम्पल लेना का एक तरीका) लेना जिन्हें अपराधी ने छुआ, चूमा या काटा हो।  अगर सर्वाइवर के नाखूनों के नीचे अपराधी का कोई डीएनए है, तो नाखूनों की करतन सबूत के लिए लेते हैं।  वहीं सिर और जघन के बालों (प्राइवेट अंगों के बाल)को सबूत की तरह इकट्ठा किया जाता है, क्योंकि ये अपराधी को पहचानने और दोषी ठहराने में मदद करते हैं।

कानूनी प्रक्रिया

स्वास्थ्य सेवा पर

सर्वाइवर की देखभाल करने वाले स्वास्थ्यकर्मी (डाॅक्टर,नर्स और मेडिकल स्टाफ) के क्या कर्तव्य हैं?

जब कोई सर्वाइवर इलाज या दूसरी तरह की मदद के लिए अस्पतालों/क्लिनिकों में आता है, तो स्वास्थ्य कर्मियों (डॉक्टर, नर्स और मेडिकल स्टाफ) के कुछ कर्तव्य यानी काम हैं, जो नीचे बताए जा रहे  हैं:

  1. सर्वाइवर को होने वाली मेडिकल जांचों और जांचों के हर चरण को आसान भाषा में समझाना। 
  2. बच्चों, विकलांग, एलजीबीटीआई, यौनकर्मियों या अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले सर्वाइवर के साथ कुछ खास बातों को ध्यान में रखें। 
  3. सर्वाइवर की गोपनीयता को बनाते हुए, उन्हें भरोसा दें कि वे डाॅक्टर को अपनी पूरी मेडिकल हिस्ट्री बताए। मेडिकल जांच के हर स्तर पर, सर्वाइवर को कोई भी जानकारी या मेडिकल हिस्ट्री नहीं छिपानी चाहिए। 
  4. सर्वाइवर को समझाएं कि जननांग जांच असहज महसूस कराने वाली हो सकती है, लेकिन ये कानूनी जरूरतों के लिए बहुत जरूरी है।
  5. सर्वाइवर को एक्स -रे जैसी दूसरी जरूरी जांच के बारे में भी बताएं, जिसके लिए उन्हें दूसरे मेडिकल विभागों में जाने की जरूरत हो सकती है।

अस्पतालों के कर्तव्य (काम) क्या हैं?

यौन हिंसा के मामलों को देखने के लिए हर अस्पताल में एक मानक संचालन प्रक्रिया (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर SOP) होनी चाहिए:

  1. महिला डॉक्टर के ना होने पर जांच से इनकार या देरी नहीं होनी चाहिए। अगर कोई पुरुष डॉक्टर जांच कर रहा है, तो यह जांच एक नर्स या महिला के सामने होनी चाहिए। नाबालिगों/विकलांग व्यक्तियों के लिए उसके माता-पिता/अभिभावक/कोई दूसरा व्यक्ति जिसके साथ सर्वाइवर सहज हो, वे जांच के दौरान वहां हो सकते हैं। 
  2. ट्रांसजेंडर/इंटरसेक्स व्यक्ति के मामले में, सर्वाइवर के पास यह विकल्प होता है कि वह महिला डॉक्टर से जांच कराना चाहता है या महिला नर्स के सामने में पुरुष डॉक्टर से जांच कराना चाहता है।
  3. सर्वाइवर के साथ बातचीत के समय पुलिस जांच वाले कमरे में नहीं रह सकती है। लेकिन इस समय सर्वाइवर किसी रिश्तेदार को वहां रखना चाहें, तो वह ऐसा कर सकती हैं ।   
  4. जांच करने और सबूतों को इकट्ठा करने में कोई देरी नहीं होनी चाहिए।
  5. इलाज और जरूरी मेडिकल जांच करना सर्वाइवर की जांच करने वाले डॉक्टर की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। सर्वाइवर को इलाज देने के लिए अस्पताल में भर्ती करना, सबूत इकट्ठा करना या पुलिस में रिपोर्ट करना जरूरी नहीं है।
  6. यौन हिंसा के सर्वाइवर की मेडिकल हिस्ट्री और मेडिकल जांच पूरी गोपनीयता के साथ अस्पताल के एक निजी कमरे में ही हो।
  7. जांच पूरी होने के बाद सर्वाइवर को कपड़ों को धोने, पेशाब आदि करने से नहीं रोका जा सकता है। अगर सर्वाइवर के कपड़े सबूत के लिए जमा कर लिए हैं, तो अस्पताल सर्वाइवर को मुफ्त में दूसरे कपड़े पहने को देगा।
  8. सर्वाइवर को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं हैं, जब तक कि उसे अस्पताल में रहकर इलाज और स्वास्थ्य देखरेख की जरूरत न हो।

याद रखें…

यौन हिंसा का सामना कर रहे सर्वाइवर को सभी तरह की सेवाएं मुफ्त मिलनी चाहिए। 

सर्वाइवर सभी दस्तावेज़ों (जिसमें मेडिको-लीगल जांच और इलाज से जुड़ी सभी रिपोर्ट भी शामिल हैं) की काॅपी मुफ्त पा सकती हैं ।

जब कोई सर्वाइवर पुलिस के पास जाए बिना अस्पताल से रिपोर्ट करता है, तो उसके लिए कुछ दिशानिर्देश इस प्रकार हैं।

नीचे कुछ दिशानिर्देश दिए गए हैं, जिन्हें डाॅक्टर और मेडिकल स्टाफ को भी ऐसी स्थितियों में ध्यान रखना चाहिए:

  1. अगर  सर्वाइवर (पीड़ित) पुलिस के बिना अस्पताल आया है, तो अस्पताल सर्वाइवर या उसके माता-पिता या अभिभावक (सर्वाइवर नाबालिक होने पर ) की सहमति से इलाज और मेडिकल जांच करने के लिए बाध्य है।
  2. चाहे पुलिस आई हो या नहीं, अस्पताल को बिना देर किए मरीज का इलाज करना है। मेडिकल सबूतों को भी तुरंत इकट्ठा करना चाहिए। 
  3. अगर  कोई व्यक्ति बिना एफआईआर के अपनी मर्जी से आया है, तो हो सकता है कि वह शिकायत दर्ज कराना चाहता हो या नहीं। लेकिन फिर भी उसे मेडिकल जांच और इलाज की जरूरत है। ऐसे मामलों में भी डॉक्टर कानून के अनुसार पुलिस को सूचित करने के लिए बाध्य है।
  4. ना अदालत और ना ही पुलिस सर्वाइवर को मेडिकल जांच कराने के लिए मजबूर कर सकती है। केवल उन स्थितियों में जहां जान को खतरा हो,डॉक्टर आईपीसी की धारा 92 के अनुसार बिना सहमति के जरूरी इलाज शुरू कर सकते हैं।
  5. अगर सर्वाइवर पुलिस केस नहीं करना चाहता है, तो एक मेडिको-लीगल केस (एमएलसी) दर्ज किया जाता है। पुलिस या मेडिकल स्टाफ द्वारा सर्वाइवर को एफआईआर दर्ज नहीं करने के उसके अधिकार की जानकारी दी जानी चाहिए। सर्वाइवर के एफआईआर दर्ज ना करने की जानकारी को बताया गया था, इस बात को भी लिखित रिकाॅड में रख लेना चाहिए। 
  6. पुलिस को मेडिको-लीगल केस दर्ज करना चाहिए । साथ ही सर्वाइवर को उसका केस नंबर और उस पुलिस स्टेशन की जानकारी देनी चाहिए जहां शिकायत दर्ज की जा सकती है। यह मेडिको-लीगल केस नंबर तब जरूरी  होता है, जब सर्वाइवर पुलिस की मदद चाहता हो  या वह बाद में शिकायत दर्ज कराना चाहता हो।
  7. तीन परिस्थितियों में, जांच और सबूत इकट्ठा करने के लिए सूचित सहमति/अस्वीकृति लेना जरूरी है। इन तीन परिस्थितियां में सहमति ली जानी चाहिए:
  • जांच
  • क्लिनिकल और फोरेंसिक जांच के लिए नमूना इकट्ठा करते समय
  • इलाज  और पुलिस सूचना 

इसके लिए एक सहमति फाॅर्म भरना चाहिए। सहमति फाॅर्म में सर्वाइवर, एक गवाह और जांच करने वाले डॉक्टर के हस्ताक्षर होने चाहिए।

सर्वाइवर्स के अधिकार और उनकी देखभाल करने वालों के कर्तव्य

सर्वाइवर पर किए गए यौन अपराधों की जांच और सुनवाई के दौरान सर्वाइवर के अधिकार और उनकी  देखभाल करने वालों के कर्तव्य नीचे दिए गए हैं:

  1. सर्वाइवर्स की निजता का अधिकारकोई भी व्यक्ति रेप सर्वाइवर्स के नाम का खुलासा नहीं कर सकता है। अगर कोई नाम का खुलासा करता है, तो उसे एक निश्चित अवधि के लिए सजा हो सकती है, जिसे दो साल तक बढ़ाया जा सकता है और साथ ही उसे जुर्माना भी देना पड़ सकता है। इसके अलावा, बलात्कार के सभी सर्वाइवर्स के लिए इन-कैमरा ट्रायल होना चाहिए। उदाहरण के लिए, मीडिया सर्वाइवर्स का नाम नहीं बता सकती है।
  2. मेडिकल  संस्थानों से मुफ्त मेडिकल इलाज/ड्यूटी का अधिकार – इस कानून के तहत सार्वजनिक या निजी मेडिकल  संस्थानों को यौन हमले के सर्वाइवर्स को मुफ्त मेडिकल इलाज देना होता है। साथ ही ऐसी घटना के बारे में पुलिस को बताना भी होता है। अगर मेडिकल संस्थान ऊपर बताए दिए दोनों प्रावधान का पालन नहीं करता है, तो उसे सजा हो सकती है।
  3. महिला डाॅक्टर द्वारा जांच का अधिकार – केवल एक पंजीकृत महिला डाॅक्टर ही महिला सर्वाइवर की जांच कर सकती है। पंजीकृत पुरुष डाॅक्टर इस जांच को तब ही कर सकते हैं, जब तक कि कोई महिला डाॅक्टर उपलब्ध न हो और महिला सर्वाइवर किसी पुरुष पंजीकृत डाॅक्टर को जांच के लिए सहमति न दे दे।
  4. दोषी की विस्तृत जांच का अधिकार – कानूनी तौर पर, दोषी  को किसी भी पंजीकृत डाॅक्टर  की विस्तृत मेडिकल परीक्षण करने का आदेश दिया जा सकता है। यह जांच अन्य भौतिक सबूत इकट्ठा करने के लिए की जाती है, जो सर्वाइवर की कहानी को पक्का कर सके।
  5. जल्दी सुनवाई का अधिकार – जिस दिन पुलिस अधिकारी ने पुलिस स्टेशन के प्रभारी को सूचना दी थी,जांच उस तारीख से शुरू और  दो महीने के अन्दर खत्म होनी चाहिए।  इस मकसद के लिए विशेष फास्ट ट्रैक कोर्ट  भी बनाए गए है।
  6. एक लोक सेवक (पब्लिक सर्वेंट) का कर्तव्य – यह कानून एक लोक सेवक को ऐसे अपराधों की जानकारी को दर्ज ना करने को दंडनीय अपराध मानता है। जानकारी दर्ज ना करने के दोषी के लिए कठोर कारावास और जुर्माना दोनों की सजा है।
  7. न्यायालय का सहमति को नहीं मानने का कर्तव्य – बलात्कार के किसी भी मुकदमे के दौरान अदालत मान लेती है कि सर्वाइवर ने इस हिंसा पर सहमति नहीं दी है।

स्रोत

दिशा-निर्देश

हेल्पलाइन

महिला हेल्पलाइन – 1091

ये हेल्पलाइन निजी और सार्वजनिक जगहों पर होने वाली हिंसा से प्रभावित महिलाओं को 24/7 तत्काल और आपातकालीन मदद देती है। हेल्पलाइन शिकायत दर्ज करने और सर्वाइवर को मेडिकल जांच आदि करवाने में भी मदद कर सकती है। 

पुलिस – 100

पुलिस आपात स्थिति में मदद के लिए आएगी।

ध्यान रखने योग्य बातेें-

  1. पूरी मेडिकल रिपोर्ट की काॅपी को बिना कोई पैसा दिए लें।  
  2. FIR की कॉपी मुफ़्त में ले लें। 
  3. जब आप मेडिकल जांच के लिए जाएं, तो साथ में क जोड़ी कपड़े बदलने के लिए भी ले जाएं। 
  4. अगर हो सके तो जांच से पहले नीचे बताए कामोें को ना करें-
    – ब्रश, नहाना, पेशाब और शौच करना
    – कपड़े बदलना, बालों में कंघी करना, मुंह धोना या जननांग क्षेत्र की सफाई करना
  5. जांच के लिए एफआईआर दर्ज करना जरूरी नहीं है।
  6. फॉरेंसिक सबूतों को सुरक्षित रखने के लिए ये जांच मुफ़्त में और जल्दी कराई जाती है।
  7. अगर सर्वाइवर चाहे तो जांच के किसी भी चरण को छोड़ सकती हैं । साथ ही जांच प्रक्रिया के सभी चरण यानी स्टेज सर्वाइवर की सहमति से होने चाहिए।
  8. मेडिकल जांच  के दौरान, सर्वाइवर भावनात्मक साथ के लिए किसी दोस्त या रिश्तेदार को अपने साथ रख सकता है।
  9. एक महिला डॉक्टर को जांच करनी चाहिए जब तक सर्वाइवर पुरुष डाॅक्टर से जांच की सहमति ना दे दें।
  10. गर्भावस्था और यौन संचारित बीमारियों पर मेडिकल जांच करने के लिए कहें।

सैम्पल फॉर्म

जांच करने वाले मेडिकल स्टाफ या डाॅक्टर द्वारा भरा जाने वाला फाॅर्म।http://www.mati.gov.in/docs/GG%20cell%20materials/womens%20rights/Guidelines%20and%20Protocols_MOHFW%20(1).pdf

कानूनी शब्दकोष

फोरेंसिक सबूत – फोरेंसिक सबूत बैलिस्टिक, खून की जांच और डीएनए जांच जैसे वैज्ञानिक तरीकों से मिलने वाले सबूत हैं। फोरेंसिक सबूत का इस्तेमाल अदालती फैसले में किया जाता है। फोरेंसिक सबूत अक्सर संदिग्धों (जिन पर शंक हो) के दोषी या निर्दोष बताने में मदद करते हैं। 

जननांग जांच – डॉक्टर द्वारा जननांग (प्राइवेट अंग) की दृश्य और मैन्युअल जांच को जननांग जांच कहते हैं। इसमें योनि (वेजाइना) की दीवार और गर्भाशय ग्रीवा पर डीएनए की जांच के लिए एक स्पेकुलम का इस्तेमाल किया जाता है। डॉक्टर एक “द्विमैनुअल” जांच भी करता है। द्विमैनुअल से मतलब है कि डॉक्टर आंतरिक प्रजनन अंगों की जांच करने के लिए अपने हाथों का इस्तेमाल करेगा। द्वि-मैनुअल जांच के लिए डॉक्टर के हाथों पर दस्ताने होते हैं, और उन पर चिकनाई वाली जेली भी लगी हो सकती है, जिससे उन्हें ठंड महसूस हो सकती है।

डीएनए – डीएनए सभी मनुष्यों और दूसरे जीवों में वंशानुगत सामग्री को कहते हैं। किसी व्यक्ति के शरीर की लगभग हर कोशिका का डीएनए एक जैसा होता है। डीएनए का इस्तेमाल करके दोषी की पहचान की जा सकती है और अपराध में उनकी भागीदारी को समझा जा सकता है। 

एसटीआई- एसटीआई यौन संपर्क के माध्यम से फैलने वाला एक संक्रमण है, जो बैक्टीरिया, वायरस या परजीवियों के कारण होता है। ये संक्रमण आमतौर पर योनि संभोग से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। जो गुदा मैथुन (एनल सेक्स), मुख मैथुन (ओरल सेक्स) या त्वचा से त्वचा के संपर्क फैलता है। वायरस के कारण होने वाले एसटीआई में हेपेटाइटिस बी, हर्पीस, एचआईवी और ह्यूमन पेपिलोमा वायरस (एचपीवी) जैसी बीमारियां  आती हैं। 

मेडिको – लीगल केस- मेडिको लीगल केस को चोट या बीमारी आदि के मामले के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। साथ ही  चोट या बीमारी के कारण का पता लगाने के लिए कानून-प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा जांच की जरूरत होती है।

एफआईआर –एफआईआर को प्रथम सूचना रिपोर्ट कहते हैं।  यह  किसी अपराध के होने पर पीड़ित या उसकी तरफ से दूसरा व्यक्ति पुलिस में दर्ज कराई गई शिकायत है। यह एक लिखित दस्तावेज है, जिसे पुलिस द्वारा किसी अपराध के होने की सूचना मिलने पर तैयार किया जाता है।

सहमति – सहमति तब होती है, जब एक व्यक्ति अपनी इच्छा से दूसरे व्यक्ति की बात या इच्छाओं से सहमत होता है।

टू-फिंगर टेस्ट इसमें डॉक्टर सर्वाइवर (महिला सर्वाइवर) की योनि (वेजाइना) में एक उंगली डालकर योनि के ढीलेपन और हाल ही में किए गए सेक्स  की जांच करती हैयह टेस्ट अवैध है

क्या आपके पास कोई कानूनी सवाल है जो आप हमारे वकीलों और वालंटियर छात्रों से पूछना चाहते हैं?

Related Resources

ऑनलाइन बैंक धोखाधड़ी को रोकने के लिए बैंकों की जिम्मेदारी

बैंकों को अपने ग्राहकों को इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग लेनदेन के लिए अनिवार्य रूप से एसएमएस अलर्ट के लिए पंजीकरण करने के लिए कहना चाहिए।

शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया

इस सबके बावजूद, शिकायत का समाधान न होने पर, आप उपभोक्ता मंचों से संपर्क हेतु किसी वकील की मदद ले सकते हैं।

उपभोक्ता शिकायत मंच

उपभोक्ता संरक्षण कानून संबद्ध प्राधिकरणों को निर्दिष्‍ट करता है कि कोई उपभोक्ता-अधिकारों का उल्‍लंघन होने पर उनसे संपर्क कर सकता है।

उपभोक्ता शिकायतों के प्रकार

उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत प्रत्येक व्यक्ति को निम्नलिखित प्रकार की उपभोक्ता शिकायतें दर्ज करने का अधिकार है |

ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म के खिलाफ उपभोक्ता शिकायतें

खुदरा विक्रेताओं के माध्यम से खरीदे गए डिजिटल और अन्य उत्पादों से जुड़े अनुचित व्यापार व्‍यवहारों के खिलाफ भी शिकायत कर सकते हैं।

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लोगों के खिलाफ क्रूर और अपमानजनक अत्याचार

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लोगों के खिलाफ किए गए निम्न में से किसी भी अपराध को कानून ने अत्याचार माना हैछ
citizen rights icon