सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदन

आवेदन या तो अंग्रेजी, हिंदी या उस क्षेत्र की आधिकारिक भाषा में हो सकता है। आवेदन लिखित में होना चाहिए। इसे पोस्ट, ई-मेल या ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से, या व्यक्तिगत रूप से जमा किया जा सकता है। केंद्र सरकार के तहत सार्वजनिक प्राधिकरणों के लिए, एक ऑनलाइन फोरम है जहां आरटीआई आवेदन सीधे जमा किया जा सकता है। आप ऑनलाइन पोर्टल से आवेदन भेजने के तरीके पर चरण-दर-चरण दिशानिर्देशों को पढ़ कर उसका उपयोग कर सकते हैं।

अगर कोई इसलिये आवेदन नहीं कर पाता है क्योंकि वह अशिक्षित हैं या लिखने में असमर्थ हैं, तो सार्वजनिक सूचना कार्यालय (पब्लिक इनफौर्मेशन ऑफिस, ‘पीआईओ’) का कर्तव्य है कि वह उस व्यक्ति की मदद करे ताकि वे उसका आवेदन को ले सकें और उसे लिखित रूप में डाल सकें। यदि आवेदन, गलती से किसी गलत प्राधिकारी को भेजा जाता है, तो ‘पीआईओ’ जिसे यह आवेदन मिलता है उसका यह कर्तव्य है कि उस आवेदन को, पांच दिनों के अंदर सही प्राधिकारी को भेज दे।

आवेदन शुल्क

आवेदन शुल्क, केंद्र और राज्यों के लिए अलग अलग होता है। केंद्र सरकार के सार्वजनिक प्राधिकरणों के लिए यह 10 रुपये है। राज्य सरकारों के सार्वजनिक प्राधिकरणों के लिए, कृपया प्रत्येक राज्यों पर लागू नियमों को जांच कर लें।

आवेदन शुल्क के अलावे, सूचना सुपुर्द करने का भी एक शुल्क है जो सूचना के पृष्ठों के प्रारूप पर, और उसकी संख्या पर आधारित होता है। केंद्र सरकार के सार्वजनिक प्राधिकरणों पर लागू शुल्क के लिए, कृपया ‘आरटीआई’ नियम, 2012 को देख लें। राज्य के सार्वजनिक प्राधिकरणों पर लागू शुल्क के लिए, कृपया तथाकथित राज्य के नियमों को देख लें।

‘पीआईओ’ आपको सूचना के लिए अधिक शुल्क का भुगतान करने के लिए कह सकता है लेकिन उन्हें, सही गणना के माध्यम से, अधिक शुल्क के भुगतान को उचित ठहराना होगा। बढ़े हुये शुल्क की मांग और उसके भुगतान किये जाने तक की अवधि को, 30 दिनों की अवधि सीमा से अलग माना जायेगा, जिसके अंदर मूल रूप से मांगी हुई सूचना आपको मिल जानी चाहिये।

आवेदन की प्रोसेसिंग

अगर किसी आवेदित सूचना के चलते, किसी व्यक्ति के जीवन पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं और इसकी तत्काल आवश्यकता है, तो ‘पीआईओ’ को आवेदित सूचना 48 घंटे के अंदर ही दे देनी चाहिए।

इस कानून के तहत, ‘पीआईओ’ कुछ आवेदनों का उत्तर देने से इंकार कर सकता है। इस अधिनियम से कौन सी सूचना को छूट दी गई है, यह जानने के लिए कृपया अधिनियम की धारा 8 और 9 को पढ़ें।

अगर आवेदित सूचना 30/35 दिनों के भीतर नहीं दी जाती है, तो आपको यह मान लेना होगा कि ‘पीआईओ’ / ‘एपीआईओ’ ने आपकी आवेदित सूचना को देने से इनकार कर दिया है। इसके लिये, ‘पीआईओ’ सूचना के लिए आवेदन शुल्क के अलावा कुछ भी चार्ज नहीं कर सकते हैं।

ठुकाराये गये आवेदन

जब ‘पीआईओ’ आपके सूचना के आवेदन को ठुकरा देता है, तो उन्हें आपको यह बताना होगा कि:

-आवेदन को क्यों ठुकरा दिया गया है।
-आपके आवेदन ठुकराये जाने के विरोध में आप किसको अपील कर सकते हैं।
-कितने समय के अंदर आपको इसके लिये अपील कर देना है।

यदि ‘पीआईओ’ ने आवेदित सूचना का जवाब नहीं दिया है या आपको अवैध तरीके से सूचना देने से इनकार कर दिया है, तो आप ‘पीआईओ’ रैंक से उपर के अधिकारी को अपील कर सकते हैं, या केंद्रीय या राज्य सूचना आयोग (सेन्ट्रल या राज्य इन्फौर्मेशन कमीशन) को शिकायत दर्ज कर सकते हैं।

सूचना को रोके रखने के लिये या गलत सूचना देने के लिए जुर्माना लगाया जा सकता है

केंद्रीय या राज्य सूचना आयोग एक पीआईओ पर जिसने सूचना को रोके रक्खा था या गलत सूचना दी थी, उस पर 250 रूपये का दैनिक जुर्माना लगा सकता है। सूचना दिये जाने के दिन तक, इस जुर्माने का भुगतान करना होगा। जुर्माने की अधिकतम राशि फिर भी 25,000 रुपये से ज्यादा नहीं हो सकती है।

एक ‘पीआईओ’ को, जुर्माने का फैसला करने के पहले, अपने मामला को पेश करने का मौका दिया जाना चाहिए, फिर भी यह सिद्ध करने की जिम्मेदारी उनके ऊपर है कि उन्होंने कानूनी तरीके से काम किया है। एक ‘पीआईओ’ के खिलाफ, उनके सेवा नियमों के अनुसार अनुशासनात्मक कार्रवाई भी की जा सकती है।

आवेदन के निर्णय पर अपील करना

यदि आपको पीआईओ से 30 दिनों के भीतर कोई निर्णय नहीं मिलता है, तो आप ‘पीआईओ’ से ऊँचे अधिकारी के समक्ष, पीआईओ के निर्णय के खिलाफ अपील कर सकते हैं। आपको अपने अपील को 30 दिनों के अंदर दर्ज करना होगा। अगर अधिकारी को लगता है कि देर होने का कारण सही है तो इस समय की अवधि को बढ़ा दिया जा सकता है।

आम तौर पर, एक सार्वजनिक प्राधिकरण अपने वेबसाइट पर या कार्यालय में यह बताएगा कि उनका अपीलीय प्राधिकारी (अप्पेलेट ऑथोरिटी) कौन है। यह एक ऐसा अधिकारी होगा जो ‘पीआईओ’ से ऊ़ँचे रैंक का होगा। कोई तीसरी पार्टी भी ‘पीआईओ’ के आदेश के खिलाफ 30 दिनों के भीतर अपील दायर कर सकती है।

यदि आप पहले अपील के निर्णय से संतुष्ट नहीं हैं, तो आप दूसरी अपील 90 दिनों के अंदर सुझाए गए प्रारूप में, केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग को कर सकते हैं।

सूचना देने से इनकार करना उचित था, यह सिद्ध करने की पूरी ज़िम्मेदारी ‘पीआईओ’ पर है जिन्होंने इस सूचना को देने से इंकार कर दिया है। सूचना आयोग को 30 दिनों में अपील पर निर्णय ले लेनी चाहिए। इसे पैंतालिस दिन तक बढ़ाया जा सकता है पर इस अवधि के बढ़ाये जाने का कारण भी दर्ज करना होगा।

अपील पर निर्णय लेने के लिए, सूचना आयोग उस सार्वजनिक प्राधिकरण से मांग कर सकता है कि वे:

-सूचना को एक विशेष तरीके से दें -एक ‘पीआईओ’ को नियुक्त करें -प्रासांगिक सूचना को प्रकाशित करें -अपने दस्तावेजों को सही ढंग से रक्खें -अपने अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम को आयोजित करें -एक वार्षिक रिपोर्ट दिया करें -किसी भी शिकायतकर्ता को मुआवजा दें

यह उन पर जुर्माना लगा सकता है और कुछ विशिष्ट आवेदनों को ठुकरा सकता है।

कौन सी सूचनाओं को छूट दी गई हैं

यदि आपका आवेदन निम्नलिखित प्रकार की सूचना के लिए अनुरोध करता है, तो सार्वजनिक प्राधिकरण कानूनी रूप से आपको ऐसी सूचना देने से इंकार कर सकता है:

-ऐसी सूचना जो किसी अन्य देश के साथ सरकार की सुरक्षा और आर्थिक हितों को प्रभावित करती है I -ऐसी सूचना जो कि किसी भी अदालत या ट्रिब्यूनल द्वारा, प्रकाशित होने से प्रतिबंधित है I -ऐसी सूचना जिसके परिणामस्वरूप विधानमंडल के विशेषाधिकार का उल्लंघन होगा I -ऐसी सूचना जो वाणिज्यिक हितों को नुकसान पहुंचाएगी I -ऐसी सूचना जो विश्वास के आधार पर बने रिश्ते के कारण उत्पन्न हुई है -ऐसी सूचना जो एक विदेशी सरकार द्दारा एक रहस्य (सीक्रेट) के रूप में दी गई है I -ऐसी सूचना जो किसी मुखबिर (व्हिस्लब्लॉअर) की पहचान का खुलासा कर सकता है या उसकी जिन्दगी खतरे मे डाल सकता है I -ऐसी सूचना जो आपराधिक मामलों में पुलिस जांच या गिरफ्तारी में कठिनाई पैदा कर सकता है I कैबिनेट मंत्रियों के रिकॉर्ड्स (निर्णय होने के बाद ही, उसके तर्कों और सामग्रियों को सार्वजनिक किया जा सकता है) I -व्यक्तिगत सूचनाएँ (यदि ऐसी मांग की जाती है तो, संसद या राज्य विधानमंडल को ऐसी सूचनाओं का खुलासा करना होगा) I

अगर सूचना कॉपीराइट का उल्लंघन करती है, तो ‘पीआईओ’ सूचना के अनुरोध को ठुकरा सकता है। इसके अलावा, अगर अनुरोध की गई कोई भी सूचना जो 20 साल से अधिक पुरानी है तो यह छूट उस पर लागू नहीं होती है। ऐसे मामलों में, आवेदक को यह दे दिया जाना चाहिए। हालांकि, 20 वर्ष से अधिक पुरानी होने के बाबजूद, अन्य देशों के साथ सुरक्षा और आर्थिक हितों से संबंधित सूचनाएँ, संसदीय विशेषाधिकार के उल्लंघन और कैबिनेट कार्यवाही से संबंधित सूचनाओं को इनकार किया जा सकता है।

आवेदन के संबंध में शिकायत करना

यदि आपको, ‘पीआईओ’ ने आपके आरटीआई आवेदन को जिस तरीके से हैन्डल किया है, उसके बारे में शिकायत करनी है, तो आप इस अधिनियम के तहत स्थापित उच्च अधिकारीगण-केंद्रीय सूचना आयोग (सेन्ट्रल इन्फौर्मेशन कमीशन), या राज्य सूचना आयोग (स्टेट ईनफौर्मेशन कमीशन) से संपर्क कर सकते हैं। इस अधिनियम के तहत यह उनका कर्तव्य है वो आपकी शिकायत के बारे में पूछताछ करें। आप शिकायत निम्नलिखित परिस्थितियों में कर सकते हैं:

-जब सार्वजनिक प्राधिकरण ने ‘पीआईओ’ को ही नियुक्त नहीं किया है; -जब ‘पीआईओ’ ने सूचना देने से इनकार कर दिया है; -जब ‘पीआईओ’ ने आपको प्रस्तावित अविधि के अंदर सूचना नहीं दी है; -जब ‘पीआईओ’ ने आपको सूचना देने के लिए बहुत अधिक शुल्क मांगे हैं; तथा -जब ‘पीआईओ’ ने आपको अपर्याप्त या गलत सूचना दी है।

अगर आयोग आश्वस्त होता है कि शिकायत का आधार उचित हैं, तो वह इस मामले में जांच शुरू करेगा। जांच करने के मामले में, उसके अधिकार सिविल कोर्ट के समान होंगे। इसका मतलब है कि यह लोगों से आने और गवाही देने, या प्रासंगिक दस्तावेज सबूत के रूप में जमा करने, इन दस्तावेजों का निरीक्षण करने, और किसी भी सार्वजनिक रिकॉर्ड को लाने के लिए कह सकता है।

वे संगठन जिन्हें इस अधिनियम के बाहर रक्खा गया है

सरकारी अधिसूचनाओं में उल्लिखित राज्य सरकारों के सुरक्षा और खुफिया संगठनों के अलावे, दूसरी अनुसूची (सेकेण्ड सेड्यूल) में उन संगठनों की सूची है, जिन्हें भी सूचना न देने की छूट दी गई है। लेकिन इन संगठनों में भ्रष्टाचार या मानवाधिकार उल्लंघन से संबंधित सूचनाओं को उनसे मांगा जा सकता है और उन्हें इसे देना होगा बशर्ते कि इस पर केंद्रीय सूचना आयोग की सहमति हो। इसे 45 दिनों के अंदर उपलब्ध करा दिया जाना चाहिये।