अगर आपका लाइसेंस किसी सरकारी प्राधिकरण या अधिकारी को प्रस्तुत किया गया है, या जब्त किया गया है, तो आपको एक रसीद या किसी अन्य प्रकार की पावती प्रस्तुत करनी होगी, और एक निर्धारित समय अवधि के भीतर लाइसेंस पेश करना होगा, जो अलग अलग राज्यों में भिन्न हो सकता है, मोटर वाहन अधिनियम, 1988))।
अगर आप वाहन चलाते हैं और आपके पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं है या आपकी आयु कम है, तो आपके वाहन को एक पुलिस अधिकारी।
जुर्माने की लागू राशि राज्यों में भिन्न हो सकती है। नीचे दो राज्यों के लिए अलग-अलग अपराधों की जुर्माना राशि दी गई है।
16 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चे द्वारा घोर अपराध किए जाने पर प्रारंभिक मूल्यांकन किया जाता है। यह एक प्रयास है जो यह जानने के लिए किया जाता है कि बच्चे अपने द्वारा किए गए अपराधों के परिणामों को सरलता से समझ सकते हैं या नहीं। यदि बाल अपराधी अपने द्वारा किए गए अपराध की गम्भीरता को समझने में सक्षम है तो उनके साथ वयस्कों जैसा व्यवहार किया जाएगा। बोर्ड निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक और एक्सपर्ट की सहायता ले सकते हैं। लेकिन जांच तीन महीनों में अवश्य पूरी हो जानी चाहिए।
16 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चे द्वारा घोर अपराध किए जाने पर प्रारंभिक मूल्यांकन किया जाता है। यह एक प्रयास है जो यह जानने के लिए किया जाता है कि बच्चे अपने द्वारा किए गए अपराधों के परिणामों को सरलता से समझ सकते हैं या नहीं। यदि बाल अपराधी अपने द्वारा किए गए अपराध की गम्भीरता को समझने में सक्षम है तो उनके साथ वयस्कों जैसा व्यवहार किया जाएगा। बोर्ड निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक और एक्सपर्ट की सहायता ले सकते हैं। लेकिन जांच तीन महीनों में अवश्य पूरी हो जानी चाहिए।
अदालत की अवमानना कोई भी कार्रवाई या लेखन है, जो किसी अदालत या न्यायाधीश के अधिकार को कम करने या न्याय की प्रक्रिया या अदालत की कानूनी प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने के लिए की गई हो। अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971, अदालत की अवमानना को दो प्रकार- सिविल और क्रिमिनल अवमानना - में परिभाषित करता है। एक अवमानना कार्यवाही दो पक्षों के बीच विवाद नहीं है, बल्कि अदालत और अवमानना के आरोपी व्यक्ति के बीच की कार्यवाही है।
नि:शुल्क कानूनी सहायता का अर्थ, समाज के कुछ वर्गों जैसे भिखारी, दिव्यांग व्यक्ति आदि को जब भी आवश्यकता हो, नि:शुल्क कानूनी सेवाओं का लाभ मिलना चाहिए। इसका मतलब यह नहीं है कि कोई भी जाकर कानूनी सहायता मांग सकता है। आपको इसके लिए आवेदन करने के योग्य होना चाहिए।
कानूनी सहायता प्रदान करने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी व्यक्ति पैसे की कमी के कारण कानूनी सेवाओं और न्याय से वंचित न रहे। आप नि:शुल्क कानूनी सहायता तब प्राप्त कर सकते हैं जब:
• आप अदालत में या किसी अन्य उद्देश्य से अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए वकील को भुगतान या नियुक्त नहीं कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, जब आप अपनी संवेदना की अपील करते हैं, या पहली बार मजिस्ट्रेट के सामने पेश होते हैं, तो आपको कानूनी सहायता मिल सकती है।
• आप किसी समस्या के लिए कानूनी सलाह, कानूनी सेवाएं या कानूनी कदम उठाना चाहते हैं।
• आपको कानूनी दस्तावेज तैयार करने में सहायता चाहिए।
• आपको किसी मामले के लिए न्यायालय शुल्क या कानूनी प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक किसी अन्य शुल्क का भुगतान करने के लिए सहायता चाहिए
• आप मुआवजे के लिए आवेदन करना चाहते हैं या न्यायालय के माध्यम से धन प्राप्त करना चाहते हैं।
आपके पास कानूनी सहायता का संवैधानिक अधिकार है, जिसका अर्थ है कि राज्य संवैधानिक रूप से आपको सभी चरणों में कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए बाध्य है, अर्थात न केवल मुकदमे के चरण में, बल्कि पहली बार मजिस्ट्रेट के सामने पेशी या जमानत आदि के दौरान भी। कानूनी सहायता प्राधिकरण आपको बहाने या कारण बताते हुए इस अधिकार से इनकार नहीं कर सकते हैं, जैसे कि आपने मदद नहीं मांगी थी या अधिकारियों के पास वित्तीय या प्रशासनिक बाधाएं हैं। यदि आप कानूनी सहायता के पात्र हैं, तो आपको इसे प्राप्त करने का पूरा अधिकार है।
आपको जमानत का अधिकार है। जमानती अपराधों के मामले में इस अधिकार का सीधे इस्तेमाल किया जा सकता है। गैर जमानती अपराधों के लिए यह अधिकार न्यायालय के विवेक पर निर्भर है।
जमानत देने का तर्क यह है कि, अगर आरोपी के भागने का कोई बड़ा संदेह/खतरा नहीं है, तो इसका कोई कारण नहीं है कि उसे कैद में रखा जाए। जमानत का मिलना आमतौर पर मुकदमें के शुरुआती चरण में आता है।
न्यायालय किसी व्यक्ति को जमानत देते वक्त उसके लिंग, स्वास्थ्य और आयु को ध्यान में रखता है।यदि आप निम्नलिखित श्रेणी में से हैं, तो न्यायालय आपको अधिक आसानी से जमानत दे सकता है:
- महिलाएं
- सोलह वर्ष से कम उम्र के बच्चे
- बीमार और अशक्त लोग
आप एफआइआर दर्ज कर सकते हैं यदि आप:
- किसी जुर्म के शिकार हैं।
- किसी जुर्म के शिकार व्यक्ति के परिचित या दोस्त हैं।
- आपको किसी ऐसे जुर्म की जानकारी है जो किया जा चुका है या होने वाला है।
जरूरी नहीं है कि एफआइआर दर्ज कराने के लिए आपको अपराध की पूरी जानकारी हो। लेकिन यह जरूरी है कि आप जो कुछ भी जानते हैं, उसकी सूचना पुलिस को दें।
एफआइआर अपने आप में किसी के खिलाफ दर्ज कोई आपराधिक मामला नहीं है। यह सिर्फ किसी अपराधिक जुर्म से संबंधित पुलिस द्वारा प्राप्त की गई सूचना है। एक आपराधिक मामला तब शुरू होता है जब न्यायालय के समक्ष पुलिस द्वारा आरोप-पत्र दाखिल किया जाता है और राज्य द्वारा इसके लिये एक सरकारी वकील की नियुक्ति की जाती है।
एक गिरफ्तारी तब होती है जब किसी व्यक्ति को पुलिस द्वारा शारीरिक रूप से हिरासत में लिया जाता है। किसी भी व्यक्ति को, पुलिस द्वारा उनकी गिरफ्तारी के कारणों को बिना बताये, और किस कानून के अंतर्गत उसकी गिरफ्तारी की जा रही है इसकी सूचना बिना दिये, हिरासत में नहीं लिया जा सकता है।
आम तौर पर, पुलिस को किसी को गिरफ्तार करने के लिए वारंट की आवश्यकता होती है। जिन अपराधों के लिए वारंट की आवश्यकता होती है उन्हें गैर-संज्ञेय अपराध कहा जाता है। एक गैर-संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर, पुलिस को मजिस्ट्रेट से किसी खास व्यक्ति को गिरफ्तार करने की अनुमति लेनी होगी। मजिस्ट्रेट से प्राप्त यह अनुमति, वारंट के रूप में जानी जाती है।