इस्लामिक कानूनों की कई विचारधाराएं हैं। इस्लामी विवाह पर कानून विद्वानों द्वारा कुरान की व्याख्या से आता है। इस प्रकार, अधिकांश इस्लामी निकाह पीढ़ियों से पालन किए जाने वाली व्याख्या से प्राप्त रीति-रिवाजों के आधार पर तय होते हैं। इस्लाम का पालन करने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होने वाले कानून और रीति-रिवाज व्यक्ति के संप्रदाय के आधार पर भिन्न होते हैं। इसके अलावा, संप्रदायों के भीतर रीति-रिवाजों की विभिन्न शाखाएं उभरी हैं। इन शाखाओं में विशिष्ट कानून हैं जिन्हें “स्कूल ऑफ लॉ” के रूप में जाना जाता है।
भारत में, मुस्लिम पर्सनल लॉ के कुछ हिस्सों को 1937 में मुस्लिम स्वीय विधि (शरीयत) अधिनियम, 1937 के साथ-साथ मुस्लिम निकाह विघटन अधिनियम, 1939 के रूप में लिखा गया था। इन दोनों कानूनों से कई मायनों में पारिवारिक कानूनों में सुधार हुआ है। परन्तु, इस्लामी निकाह इस्लामिक धार्मिक नियमों के आधार पर ही तय होते हैं। इस्लाम में दो संप्रदाय हैं- सुन्नी और शिया। प्रत्येक संप्रदाय अपनी एक अलग कानूनी विचारधारा का पालन करता है । इसका मतलब यह है कि संप्रदाय के आधार पर, दूल्हा और दुल्हन के लिए निकाह की प्रक्रिया अलग-अलग होती है।
निकाह, इस्लामिक कानून के तहत एक संविदा (कॉन्ट्रेक्ट) होता है। निम्नलिखित शर्तों को पूरा करके यह संविदा दर्ज किया जा सकता है:
• दूल्हा और दुल्हन दोनों को निकाह के लिए स्पष्ट सहमति देनी होगी।
• निकाह करने वाले जोड़े को मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए और उन्होंने युवावस्था (आमतौर पर 15 वर्ष) प्राप्त कर ली होनी चाहिए।
• एक सरंक्षक, जोकि माता-पिता या भाई-बहन हो सकता है, नाबालिग या किसी ऐसे व्यक्ति की ओर से सहमति दे सकता है , जो स्वस्थ दिमाग का नहीं है।
किसी एक पक्ष द्वारा या उसकी ओर से निकाह का प्रस्ताव दिया जाना चाहिए और दूसरे पक्ष द्वारा यह प्रस्ताव स्वीकार किया जाना चाहिए । दूल्हा और दुल्हन दोनों को एजब ए क़ुबूल (क़ुबूल है) कहना होगा, जिसका अर्थ है “मैं सहमत हूं”।
निकाह की रस्म के दौरान यह उनकी अपनी इच्छा से और स्पष्ट रूप से कहा जाना चाहिए। प्रस्ताव और स्वीकृति की प्रक्रिया एक ही बैठक में की जानी चाहिए, यानी, एक बैठक में दिया गया प्रस्ताव और दूसरी बैठक में की गई स्वीकृति से वैध निकाह का गठन नहीं होगा।
निकाह, कानूनी रूप से इस्लामी निकाह तब माना जायेगा जब वह निम्नलिखित शर्तों को पूरा करेगा:
उम्र
एक जोड़ा तभी निकाह कर सकता है यदि वह दोनों युवावस्था (आमतौर पर 15 वर्ष) प्राप्त कर चुके हों।
मानसिक स्थिति
मानसिक रोग से ग्रस्त व्यक्ति निकाह कर सकता है अगर उसके सरंक्षक ने निकाह के लिए अनुमति दे दी हो। ‘सहमति देना’ या निकाह करने के लिए सहमत होना इस्लामी निकाह का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हालांकि यह माना जाता है कि मानसिक रोग से ग्रस्त व्यक्ति में निकाह करने की क्षमता नहीं है, लेकिन अगर सरंक्षक इसके लिए सहमत हो तो कानून ऐसे निकाह की अनुमति देता है।
नाबालिग
एक लड़का या लड़की जो युवा नहीं है या नाबालिग है वह निकाह के लिए संविदा नहीं कर सकते, लेकिन उनके सरंक्षक यौवन प्राप्त करने के बाद उनके निकाह के लिए संविदा कर सकते हैं।
निकाह को वैध बनाने के लिए कुछ जरूरी कदम हैं जिनका पालन आवश्यक है :
प्रस्ताव और स्वीकृति
वैध निकाह के लिए एक व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से एक प्रस्ताव रखा जाना चाहिए और इसे दूसरे द्वारा स्वीकार किया जाना चाहिए।
सहमति
वैध निकाह के लिए सहमति एक बहुत ही महत्वपूर्ण मापदंड है और यह मापदंड अलग-अलग सम्प्रदायों की कानूनी विचारधाराओं के अनुसार बदल जाता है।
गवाह
गवाह वे लोग हैं जो निकाह में उपस्थित होते हैं और यह बता सकते हैं कि निकाह हुआ था। एक वैध इस्लामी निकाह के लिए यह एक महत्वपूर्ण आवश्यकता हैं।
निषिद्ध संबंध
एक परिवार और विस्तारित परिवार के भीतर कुछ रिश्ते निषिद्ध होते हैं, अर्थात, रीति रिवाजों के हिसाब से जो रिश्ते निषिद्ध हैं उनसे निकाह नहीं किया जा सकता। इस्लामिक कानून में कुछ सख्त निषेध रिश्तें हैं जिनका पालन करना ज़रूरी है।
कानून के तहत कुछ रिश्ते प्रतिबंधित हैं। इसका मतलब है कि कोई भी व्यक्ति कुछ विशेष प्रकार के रिश्तेदारों से निकाह नहीं कर सकता है।
खून के रिश्ते
आप अपनी मां, दादी, नानी, बेटी, पोती, नातिन, बहन, भतीजी, भांजी, पर-भतीजी, पर-भांजी, मौसी, या बुआ से निकाह नहीं कर सकते। आप किसी ऐसे व्यक्ति से भी निकाह नहीं कर सकते जो ऐसे रिश्तेदारों के माध्यम से आपसे जुड़ा हो। जैसे, आप अपनी परपोती से निकाह नहीं कर सकते।
निकाह के माध्यम से रिश्तेदार
दूसरी, तीसरे या चौथे निकाह के मामले में आप अपनी पत्नी की माँ / दादी/ नानी, पत्नी की बेटी / पोती/ नातिन, बेटे की पत्नी से निकाह नहीं कर सकते।
धाय के माध्यम से रिश्तेदार
खून के रिश्तों और निकाह के माध्यम से निषिद्ध सभी संबंध धाय संबंधों पर भी लागू होते हैं। जैसे, एक आदमी अपनी धाय माँ की बेटी से निकाह नहीं कर सकता।
इनकी उपस्थिति में निकाह होना चाहिए:
• दो पुरुष गवाह या
• एक पुरुष और दो महिला गवाह।
ये गवाह मुस्लिम, वयस्क और दिमागी रूप से स्वस्थ होने चाहिए। इस्लामिक कानून के सुन्नी संप्रदाय में विशेष रूप से दो गवाहों को पेश करने की जरूरत होती है जबकि शिया संप्रदाय में निकाह के संबंध में किसी भी मामले में गवाह की उपस्थिति की जरूरत नहीं होती है।
निकाह की वैधता को निकाहनामा के माध्यम से जांचा जा सकता है, जिसे धार्मिक रूप से मान्य इस्लामी निकाह का अभिन्न अंग माना जाता है। काजी निकाहनामा को बना कर रखते हैं । अगर निकाहनामा न हो तो काजी स्वयं निकाह का गवाह बन सकता है।
निकाह फोन या इंटरनेट के द्वारा भी किया जा सकता है। यह उन मामलों में मान्य होगा जहां पक्ष अपने मौजूदा गवाहों और एक वकील के सामने प्रस्ताव और स्वीकृति देते हैं। गवाहों और पक्षों को वकील के रूप में नियुक्त व्यक्ति से परिचित होना चाहिए और उसका नाम, पिता का नाम और आवासीय पता पता होना चाहिए, जिनका उल्लेख प्रस्ताव और स्वीकृति के समय भी किया जायेगा।
नाबालिग या दिमागी रूप से अस्वस्थ व्यक्ति के निकाह के लिए संविदा करने का अधिकार संरक्षकों को निम्नलिखित समूहों के अंतर्गत मिलता है:
• पिता।
• दादाजी, वह जिस भी पीढ़ी के हों।
• पिता की ओर से भाई और अन्य पुरुष संबंधी ।
अगर ये पैतृक संबंध नहीं हैं तो ये अधिकार जाता है:
• मां को।
• मामा या मौसी और अन्य मातृ सम्बन्धिओं को।
शिया कानून के तहत, नाबालिगों के निकाह के लिए एकमात्र सरंक्षक पिता और दादा होते हैं।