कौन एफआइआर दर्ज कर सकता है

आप एफआइआर दर्ज कर सकते हैं यदि आप:

  • किसी जुर्म के शिकार हैं।
  • किसी जुर्म के शिकार व्यक्ति के परिचित या दोस्त हैं।
  • आपको किसी ऐसे जुर्म की जानकारी है जो किया जा चुका है या होने वाला है।

जरूरी नहीं है कि एफआइआर दर्ज कराने के लिए आपको अपराध की पूरी जानकारी हो। लेकिन यह जरूरी है कि आप जो कुछ भी जानते हैं, उसकी सूचना पुलिस को दें।

एफआइआर अपने आप में किसी के खिलाफ दर्ज कोई आपराधिक मामला नहीं है। यह सिर्फ किसी अपराधिक जुर्म से संबंधित पुलिस द्वारा प्राप्त की गई सूचना है। एक आपराधिक मामला तब शुरू होता है जब न्यायालय के समक्ष पुलिस द्वारा आरोप-पत्र दाखिल किया जाता है और राज्य द्वारा इसके लिये एक सरकारी वकील की नियुक्ति की जाती है।

एफआइआर कैसे दर्ज करें

यदि कोई अपराध हुआ हो तो:

  • आप नजदीकी पुलिस थाने में जाएं: पुलिस थाना उस इलाके में होना जरूरी नहीं है जिस इलाके में अपराध हुआ हो। नजदीकी पुलिस थाने का पता लगाने के लिए कृपया ‘इंडियन पुलिस एट योर कॉल’ एप्प को डाउनलोड करें।

एंड्रायड फोन उपयोग करने वालों के लिए: https://play.google.com/store/apps/details?id=in.nic.bih.thanalocator&hl=en

एप्पल फोन उपयोग करने वालों के लिए: https://itunes.apple.com/in/app/indian-police-at-your-call/id1177887402?mt=8

जब आप एफआइआर दर्ज कराने पुलिस थाने जाते हैं, तो निम्नलिखित होता है:

  • आपको किसी ड्यूटी ऑफिसर के पास भेजा जाएगा। आप अधिकारी को या तो मौखिक रूप से बता सकते हैं कि क्या हुआ, या खुद विवरण लिख कर दे सकते हैं। अगर आप पुलिस को मौखिक रूप से बताएंगे, तो उन्हें उसे लिखना ही होगा।
  • ड्यूटी ऑफिसर इसके बाद जेनरल डायरी या डेली डायरी में एक प्रविष्टि (एंट्री) करेंगे।
  • अगर आपके पास लिखित शिकायत है, तो कृपया दो प्रतियां लेकर ड्यूटी ऑफिसर को दे दीजिए। दोनों पर मुहर लगेगी और एक आपको लौटा दिया जाएगा। स्टांप पर डेली डायरी नंबर या ‘डीडी’ नंबर रहता है जो इसका प्रमाण है कि उन्हें आपकी शिकायत प्राप्त हो गई है।
  • जब एक बार पुलिस ने इसे पढ़ लिया है, और यदि इसके सारे विवरण सही हैं तो आप एफआईआर पर हस्ताक्षर कर सकते हैं। आपको मुफ्त में एफआइआर की एक कॉपी पाने का अधिकार है। आप एफआइआर नंबर, एफआईआर की तारीख और पुलिस थाने का नाम नोट कर लें। वैसी स्थिति में जब आपकी कॉपी गुम हो जाय तो आप इन विवरणों का इस्तेमाल कर ऑनलाइन से, एफआइआर को निशुल्क देख सकते हैं।

एफआइआर के दर्ज होने के बाद, उसकी विषय-वस्तु में बदलाव नहीं किया जा सकता है। हालांकि बाद में आप किसी भी समय पर अतिरिक्त जानकारी पुलिस को दे सकते हैं।

कुछ राज्यों एवं शहरों में एफआइआर और शिकायतों को ऑनलाइन दर्ज की जा सकती हैं।

उदाहरण के लिए, दिल्ली में गुमशुदा व्यक्तियों या बच्चों, अज्ञात बच्चों या व्यक्तियों या शवों, वरिष्ठ नागरिक पंजीकरण, चोरी या लावारिस वाहन खोज या गुम हुए मोबाइल फोन के मामलों के लिए, ऑनलाइन शिकायत दर्ज की जा सकती है।

एफ़आईआर कहां दर्ज की जा सकती है

किसी भी पुलिस थाने में एफआइआर दर्ज की जा सकती है। यह हो सकता है कि अपराध उस पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में नहीं हुआ हो, पर इससे चलते शिकायत दर्ज कराने में कोई अड़चन नहीं है। पुलिस के लिए यह अनिवार्य है वह उपलब्ध कराई गई जानकारी को दर्ज करे, और फिर उसे उस थाने में स्थानांतरित करना जिसके क्षेत्र में/अधिकार क्षेत्र में अपराध हुआ है। उदाहरण के लिए, यदि कोई अपराध का मामला उत्तरी दिल्ली में हुआ हो तो उसकी सूचना दक्षिणी दिल्ली के किसी भी थाने में दर्ज कराई जा सकती है।

इस संकल्पना को सामान्य तौर पर “जीरो एफआइआर” के रूप में जाना जाता है और इसे सन् 2013 में शुरू किया गया था। जीरो एफआइआर शुरू होने से पहले बड़े पैमाने पर देरी हुआ करती थी क्योंकि जिस इलाके में अपराध हुआ होता था, वहां की ही पुलिस स्टेशन सूचना को दर्ज कर सकती थी।

महिला से संबंधित अपराधों के लिए एफ़आईआर दर्ज करना

यदि आप निम्नलिखित में से किसी अपराध के बारे में जानकारी देना चाहते हैं तो ऐसी जानकारी किसी महिला पुलिस अधिकारी या किसी अन्य महिला अधिकारी को ही दर्ज करानी होती है:

ऊपर बताए गए 3 से 12 तक के अपराधों के लिए अगर किसी मानसिक या शारीरिक विकलांगता (अस्थाई या स्थायी दोनों) से पीड़ित किसी महिला पर ऐसा अपराध किया गया है या ऐसे अपराध का आरोप लगाया गया है तो ऐसी जानकारी किसी पुलिस अधिकारी को उनके आवास या किसी ऐसे स्थान पर दर्ज की जाएगी जो रिपोर्टिंग करने वाले व्यक्ति के लिए सुविधाजनक हो। परिस्थितियों के आधार पर, वे रिपोर्ट करने के लिये किसी दुभाषिए या विशेष शिक्षाविद् की सहायता का भी अनुरोध कर सकते हैं।

आरोप पत्र

एक बार जब आपने अपराध की सूचना एफआइआर दर्ज करके दे दी, तो इसके बाद प्रभारी अधिकारी को यह रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को भेजनी होगी, जो बिना किसी अनावश्यक देरी के मामले पर ध्यान देंगे और जांच को आगे बढ़ाएंगे। यह अनिवार्य कदम है जिसका पालन पुलिस को करना होगा, क्योंकि इसके चलते मजिस्ट्रेट को जांच अपने नियंत्रण में लेने की अनुमति मिलती है और यदि आवश्यक हो तो वे इसपर पुलिस को उचित दिशा-निर्देश देते हैं।

पुलिस मामले के तथ्यों और स्थितियों की जांच करेगी, और यदि आवश्यक पड़ी तो अपराध करने वाले व्यक्ति की पहचान करके उसे गिरफ्तार करने की कोशिश करेगी।

यदि पुलिस अधिकारी को लगता है कि मामला गंभीर प्रकृति का नहीं है तो वह जांच करने के लिए एक अधीनस्थ अधिकारी को निर्धारित कर सकता है। साथ ही यदि उन्हें ऐसा लगता है कि आगे जांच के लिए पर्याप्त आधार नहीं हैं तो वे कुछ भी नहीं करेंगे।

जब पुलिस जांच की कार्रवाई पूरी कर लेती है और उसे आपराधिक मामला को आगे बढ़ाने के लिये पर्याप्त सबूत मिल जाते हैं तो वे आरोप पत्र दाखिल करते हैं। यदि जांच के बाद उन्हें उस अपराध को साबित करने का कुछ नहीं मिलता है तो वे मजिस्ट्रेट के समक्ष ‘समापन (क्लोज़र) रिपोर्ट’ दाखिल कर, मामले को बंद करने का सुझाव देंगे।

आरोप पत्र का दाखिल होने के साथ ही किसी आपराधिक मुकदमें की शुरूआत होती है। पुलिस के पास आरोप पत्र या समापन रिपोर्ट दाखिल करने के लिये कोई समय सीमा नहीं होती है। यहां तक कि मजिस्ट्रेट भी किसी विशेष अवधि के अंदर आरोप पत्र दाखिल करने के लिए पुलिस को बाध्य नहीं कर सकता है। लेकिन यदि कोई अभियुक्त जेल में है तो उसके पास आरोप पत्र दाखिल करने के लिए या तो 60 दिन (जहां अपराध की सजा 10 साल से कम हो), या 90 दिन (जहां अपराध की सजा 10 साल से अधिक हो) का समय है।

यदि कोई पुलिस अधिकारी आपका एफआईआर दर्ज करने से इन्कार करता है तो इसकी शिकायत कहां करें

यदि कोई पुलिस अधिकारी आपकी शिकायत स्वीकार नहीं करता है तो आप अपनी शिकायत लिखकर पुलिस अधीक्षक को भेज सकते हैं। यदि पुलिस अधीक्षक को लगता है कि आपके मामले में दम है तो वह उस मामले की जांच-पड़ताल शुरू करने के लिए पुलिस कर्मी की नियुक्ति कर सकता/सकती है।