एसिड अटैक क्या होता है?

ट्रिगर वॉर्निंग: निम्नलिखित विषय में शारीरिक हिंसा पर जानकारी दी गई है, जिससे कुछ पाठकों को असहज महसूस हो सकता है। 

किसी व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने के इरादे या सोच के साथ एसिड को लेकर कुछ भी करने का प्रयास – जैसे किसी व्यक्ति पर एसिड फेंकना या किसी व्यक्ति को एसिड पिलाना – अपराध के अंतर्गत आता है। इसे एसिड अटैक कहते हैं। एसिड अटैक से व्यक्ति को शरीर के किसी भी हिस्से में चोट आ सकती है, जैसे:

• किसी व्यक्ति को स्थायी (परमानेंट) या आंशिक (पार्शियल) क्षति या विकृति

• शरीर के किसी भी हिस्से का जल जाना

• किसी व्यक्ति की अपंगता, विरूपता या किसी भी प्रकार की विकलांगता।

भले ही एसिड अटैक की मुख्य परिभाषा भारतीय दंड संहिता, 1860 में दी गई है, भारत के विधि आयोग ने भी एसिड अटैक को महिलाओं के खिलाफ हिंसा के एक रूप में परिभाषित किया है, जहां अपराधी किसी व्यक्ति या वस्तु पर उसे विकृत करने या मारने के लिए एसिड फेंकता है।

एसिड अटैक कहीं भी हो सकता है। एसिड अटैक की घटनाएं अक्सर घर में, सड़कों पर और यहां तक ​​कि कार्यस्थलों पर भी हुई हैं।

 

उपभोक्ता शिकायतों के प्रकार

उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत प्रत्येक व्यक्ति को निम्नलिखित प्रकार की उपभोक्ता शिकायतें दर्ज करने का अधिकार है-

ई-कॉमर्स शिकायतें 

‘ई-कॉमर्स’ का अर्थ डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक नेटवर्क पर (डिजिटल उत्पादों सहित) सामान या सेवाओं को खरीदना या बेचना है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन, वितरण, विपणन, बिक्री या वितरण शामिल है।

ई-कॉमर्स संस्थाएं, जैसे कि फ्लिपकार्ट और अमेज़ॉन सरीखी ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट्स को लंबे समय से ऐसे सेवा प्रदाताओं के रूप में बरता जाता रहा है, जो लाभ के लिए काम करती हैं। इनके द्वारा जब भी उपभोक्ता अधिकारों का उल्‍लंघन हुआ है, तो उन्हें उत्तरदायी ठहराया गया है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 द्वारा लाये गये प्रमुख सुधारों में से एक यह है कि यह इन ई-कॉमर्स संस्थाओं को नियंत्रित करने के लिए वह नियमावली निर्धारित करता है-

• ई-कॉमर्स संस्थाओं को शिकायत के 48 घंटे के भीतर जवाब देना होगा।

• शिकायत कहीं से भी की जा सकती है, भले ही खरीदारी कहीं से भी की गयी हो।

• अमेज़ॉन, फ्लिपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स संस्थाओं को अब विक्रेताओं के ब्‍योरे प्रदर्शित करना ज़रूरी है, जैसे उनका कानूनी नाम, भौगोलिक पता, संपर्क विवरण, आदि।

• इन संस्थाओं को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से माल की कीमतों में हेरफेर नहीं करना चाहिए, और बिक्री के किसी भी अनुचित या भ्रामक तरीके को नहीं अपनाना चाहिए।

• उन्हें उत्पाद के गुणों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने और नकली समीक्षाएं पोस्ट करने की मनाही है।

• कानून, उपभोक्ताओं की व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा के आदेश देता है।

भ्रामक विज्ञापनों की शिकायतें 

कोई विज्ञापन, टेलीविज़न, रेडियो या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, समाचार पत्रों, बैनर, पोस्टर, हैंडबिल, दीवार-लेखन आदि के माध्यम से एक प्रचार होता है। एक भ्रामक विज्ञापन वस्तुओं और सेवाओं के बारे में असत्य बातें कहता है, जो उपभोक्ता को उन्हें खरीदने के लिए गुमराह कर सकता है। ये विज्ञापन किसी उत्पाद या सेवाओं की उपयोगिता, गुणवत्ता और मात्रा के बारे में झूठे दावे कर सकते हैं, या जानबूझकर उत्पाद के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी (जैसे ज्ञात दुष्प्रभाव) छिपा सकते हैं, आदि। भ्रामक दावे करने पर विज्ञापनदाताओं पर मुकदमा चलाया जा सकता है। ऐसे विज्ञापन, जिनमें उस खास लाभकारी पहला संयोजन वाले पहले टूथपेस्ट होने का दावा शामिल है, जबकि वास्तव में ऐसा लाभकारी संयोजन उसमें नहीं होता है, या ऐसी विज्ञापन योजनाएं जो उपभोक्ताओं को फायदा पहुंचाये बिना कंपनी का अपना लाभ बढ़ाने की कोशिश करती हैं, आदि।

अनुचित व्यापार चलन की शिकायतें 

उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत अनुचित व्यापार प्रथाओं की एक व्यापक परिभाषा है। उसमें माल के मानक, गुणवत्ता और मात्रा के बारे में, और इस्‍तेमालशुदा / पुरानी वस्तुओं को नये माल के रूप में बेचने के भी झूठे बयान शामिल हैं। इसमें वारंटी के झूठे दावे, या वारंटी अवधि का वैज्ञानिक रूप से परीक्षण न किये जाने जैसी चीज़ें भी शामिल हैं। इसके परिणामस्वरूप कई मुकदमे हुए हैं, जिनमें से एक में एक नूडल-निर्माता अपने पैकेटों पर झूठी सीसा सामग्री बता रहा था। एक और मामले में दवाओं के लेबल बदल कर उनकी समाप्ति अवधि को कृत्रिम ढंग से आगे बढ़ा दिया जाता था, लेबल पर बतायी गयी सामग्री से अलग ही अवयवों से बने माल की बिक्री, आदि।

प्रतिबंधात्मक व्यापार आचरण संबंधी शिकायतें 

प्रतिबंधात्मक व्यापार क्रियाकलापों का अर्थ है ऐसा व्यापार व्‍यवहार जो माल की कीमत, या वितरण में हेरफेर करता है, जो बाजार में आपूर्ति के प्रवाह को प्रभावित करता है। इससे उपभोक्ताओं को अनुचित लागत या प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है। आम तौर पर यह कुछेक ऐसे तरीकों से किया जाता है-मूल्य आरोपण, एकाधिकार से सौदेबाज़ी करना, बेचे हुए माल के रीसेल मूल्यों को नियंत्रित करना, कोई सामान या सेवा खरीदने के लिए दूसरे सामान या सेवाओं को खरीदना भी अनिवार्य कर देना। इसका एक प्रत्‍यक्ष उदाहरण है, इलेक्ट्रॉनिक सामानों का डिलीवरी और फिक्सिंग का मनमाना मूल्‍य वसूलना। नतीजतन, उपभोक्ता चाहे-अनचाहे सेवा का भुगतान कर देता है, जिससे उन्हें मजबूरन अनुचित खर्च करना पड़ता है।

खराब माल की शिकायत 

दोषपूर्ण सामान वह सामान है जिसमें गुणवत्ता, मात्रा, शुद्धता या मानक संबंधी ऐसा कोई दोष, अपूर्णता या कमी है, प्रचलित कानून के तहत जिसका पालन करना विक्रेता के लिए आवश्यक है। कुछ उदाहरण मिलावटी या दोषपूर्ण ढंग से तैयार पेय पदार्थ, खराब मशीनरी, बेढंगी कलाकृतियां आदि हैं।

नकली सामान की शिकायत 

नकली सामान वे होते हैं जिन पर झूठा दावा किया जाता है कि वे असली हैं या वे जो असल की नकल होते हैं। ये अक्सर निम्न गुणवत्ता वाले होते हैं और मूल सामान के कानूनी मालिकों के ट्रेडमार्क और कॉपीराइट का उल्‍लंघन करते हैं। एक महत्वपूर्ण उदाहरण स्थानीय बाज़ारों में मिलने वाली दवाओं या सस्ते मेकअप उत्पादों का है। अक्सर, नकली दवाएं किसी अन्य दवा के नाम से बेची जाती हैं, या वे भ्रामक तरीके से किसी अन्य दवा की नकल के बतौर या उसके बदले में बेची जाती हैं।

एमआरपी (अधिकतम खुदरा मूल्य) से ज्‍़यादा पैसे लेना 

किसी उत्पाद के अधिकतम खुदरा मूल्य के बतौर निर्धारित मूल्य से ज्‍़यादा दाम लेते समय, विक्रेता, उपभोक्ता से आम तौर पर यह वसूली धोखे से या झूठ बोल कर करते हैं। यह उपभोक्ता अधिकारों का घोर उल्‍लंघन है।

खाने की शिकायतें 

वर्तमान कानून, खाद्य उत्पादों संबंधी शिकायतों पर भी ध्‍यान देता है। उदाहरण के लिए, ग्राहक फूड सेफ्टी कनेक्ट पोर्टल पर पैकेजित आहार के बारे में अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं जैसे कि उसका मिलावटी होना, उसका समय समाप्‍त होना, FSSAI लाइसेंस का न होना, आदि या स्वच्छता की कमी, उसमें कीड़े मौजूद होने आदि जैसे सेवा संबंधी मुद्दे।

उपभोक्ता शिकायत मंच

उपभोक्ता संरक्षण कानून संबद्ध प्राधिकरणों और शिकायत मंचों को निर्दिष्‍ट करता है कि कोई उपभोक्ता अपने उपभोक्ता-अधिकारों का उल्‍लंघन होने पर उनसे संपर्क कर सकता है। जिले, राज्य, और राष्‍ट्रीय स्तर पर तीन उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग हैं। इन सभी मंचों का कर्तव्य है कि वे एक उपभोक्ता के सरोकार सुनें और सुनिश्चित करें कि हर सरोकार को उचित महत्व दिया जाए। इन आयोगों का अधिकार क्षेत्र इस हिसाब से तय होता है-

1. प्रयुक्‍त वस्तुओं या सेवाओं का मूल्य (कीमत)

2. उपभोक्ता या विक्रेता का निवास स्थान या किसी एक पक्ष का कार्यस्थल या जहां विवाद शुरू हुआ

3. वह स्थान जहां शिकायत दर्ज करने वाला व्यक्ति रहता है

विवाद शुरू होने के बाद 2 साल के भीतर, उपभोक्ता विवाद निवारण आयोगों में सुनवाई के लिहाज़ से शिकायतें दर्ज की जानी चाहिए। शिकायत निवारण / आयोग जिनसे उपभोक्ता अधिकारों के उल्‍लंघन के लिए संपर्क किया जा सकता है और उनके द्वारा न्‍याय-निर्णीत मामले इस प्रकार हैं-

जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (डीसीडीआरसी) 

जिला आयोग एक जिला स्तरीय शिकायत निवारण मंच है जो एक करोड़ रुपये से कम कीमत के सामान संबंधी शिकायतों को देखता है। आयोग 21 दिनों की अवधि के भीतर शिकायत को स्वीकार या अस्वीकार करता है। यदि आयोग निर्दिष्‍ट समय में जवाब नहीं देता है, तो शिकायत स्वीकार कर ली जाएगी और जिला आयोग उसकी जांच करेंगे। शिकायत खारिज करने से पहले, आयोग को शिकायतकर्ता को सुनवाई का मौका देना चाहिए। आयोग के पास प्राप्‍त की गयी वस्तुओं या सेवाओं से जुड़ी किसी भी समस्या या दोष को दूर करने का आदेश देने की शक्ति है, या वह शिकायतकर्ता को राहत के रूप में जुर्माने का भुगतान करने का आदेश दे सकता है। जिला आयोग का आदेश जारी होने के 45 दिनों के भीतर मामले के पक्षकारों के पास जिला आयोग के आदेश के विरुद्ध अपील, राज्य आयोग में दायर करने का विकल्प भी है। आप राष्ट्रीय उपभोक्ता निवारण वेबसाइट पर दिये गये जिला आयोगों का विवरण पा सकते हैं। .

राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एससीडीआरसी) 

राज्य आयोग संबंधित राज्य की राजधानी में स्थित एक राज्य स्तरीय शिकायत निवारण मंच है, जहां 1 करोड़ से 10 करोड़ रुपये के मूल्य के सामान के संबंध में शिकायतें दर्ज की जा सकती हैं। देश में लगभग 35 राज्य आयोग हैं, जहां जिला आयोग की शिकायतों, अपीलों और अनुचित अनुबंधों के मामलों की सुनवाई होती है। राज्य आयोग के निर्णय के खिलाफ अपील राष्ट्रीय आयोग में आदेश जारी होने की तारीख से 30 दिनों के भीतर दायर की जा सकती है। ऐसी अपील दायर होने के बाद, राष्ट्रीय आयोग द्वारा उस पर 90 दिनों के भीतर निर्णय लिया जाना आवश्यक है।

राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) 

राष्ट्रीय आयोग, उपभोक्ता शिकायत निवारण का सर्वोच्च प्राधिकरण है। यह राष्ट्रीय राजधानी, नयी दिल्‍ली में स्थित है। उन वस्तुओं या सेवाओं संबंधी शिकायतें जिनकी कीमत 10 करोड़ रुपये से अधिक है, तथा राज्य आयोग या केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण के आदेशों के खिलाफ अपीलें एनसीडीआरसी में दायर की जा सकती हैं। राष्ट्रीय आयोग के निर्णय के खिलाफ अपील पारित आदेश की तारीख से 30 दिनों की अवधि के भीतर सर्वोच्च न्यायालय में दायर की जा सकती है। आयोग के आदेश उसकी वेबसाइट पर प्रकाशित होते हैं। आयोग के पास अपने आदेश प्रकाशित करने का कानूनी अधिकार है और इन आदेशों को प्रकाशित करने के लिए आयोग के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती है। राष्ट्रीय आयोग पोर्टल अपने मंच के माध्यम से पंजीकरण और इलेक्ट्रॉनिक शिकायत दर्ज करने संबंधी वीडियो निर्देश भी प्रदान करता है।

शिकायतों पर निर्णय लेने का समय 

एक उपभोक्ता शिकायत पर आयोग द्वारा 3 महीने की अवधि के भीतर निर्णय लिया जाना चाहिए। उत्पादों / दोषों के परीक्षण की आवश्यकता होने पर इसे 5 महीने तक बढ़ाया जा सकता है।

आयोगों द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ अपीलें 

यदि निर्दिष्‍ट अवधि में आयोग द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ अपील नहीं की गयी हो तो वे अंतिम होते हैं। इस नियम के अपवाद हैं, क्योंकि आयोग के पास उन मामलों को स्वीकार करने का अधिकार है, जिनके लिए निर्धारित समय में अपील दायर नहीं की गयी हो। इन प्रावधानों के अलावा, मामलों को एक जिला आयोग से दूसरे में और एक राज्य आयोग से दूसरे में क्रमशः राज्य व राष्ट्रीय आयोगों द्वारा स्थानांतरित किया जा सकता है; यदि और जब भी पार्टियां आवेदन करें तो। एक उपभोक्ता जिसने ऊपर उल्लिखित किसी भी फोरम में शिकायत दर्ज करायी है, वह ऑनलाइन केस स्टेटस पोर्टल के माध्यम से अपने मामले को ट्रैक कर सकता है। अपने मामले को ट्रैक करने के लिए आप अपने वकील से अपने केस नंबर का विवरण मांग सकते हैं।

ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म के खिलाफ उपभोक्ता शिकायतें

उपभोक्ता ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म और खुदरा विक्रेताओं के माध्यम से खरीदे गए डिजिटल और अन्य उत्पादों से जुड़े अनुचित व्यापार व्‍यवहारों के खिलाफ भी शिकायत कर सकते हैं। सामान या सेवाएं बेचने वाले किसी भी डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक प्लैटफॉर्म का मालिक, संचालक या उसका प्रबंधक एक ई-कॉमर्स इकाई होता है। भारत में एक ई-कॉमर्स इकाई अलग से ई-कॉमर्स नियमों द्वारा शासित होती है।

ये नियम केवल पेशेवर व वाणिज्यिक व्यवसायों पर लागू होते हैं, न कि उन व्यक्तियों पर जो अपनी व्‍यक्तिगतगत क्षमता में अपना काम करते हैं। उदाहरण के लिए, एक उपभोक्ता अमेज़न के खिलाफ शिकायत कर सकता है क्योंकि यह एक ई-कॉमर्स इकाई है जो नियमित रूप से अपनी ई-कॉमर्स वेबसाइट से सामान बेचने के व्‍यापार में लगी हुई है। इसके बावजूद, अगर अमेज़न जैसे प्लैटफॉर्म पर किसी उत्पाद के साथ कोई समस्या है, तो अमेज़न उत्पाद देयता कार्यों के लिए उत्तरदायी होगा, न कि उत्पाद निर्माता।

हालांकि दिलचस्प बात यह है कि ई-कॉमर्स इकाई के लिए उत्पाद देयता भारत से बाहर फैली हुई है। यानी ये प्लैटफॉर्म अपने देश के घरेलू कानूनों के अलावा, उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत समान रूप से उत्तरदायी हैं। उदाहरण के लिए, Liyid जैसी विदेशी ई-कॉमर्स इकाई भारत में अपने उत्पादों की डिलीवरी करती है; दोषपूर्ण / खराब उत्पादों के कारण होने वाले किसी भी नुकसान के मामले में, भारत में और विदेशों में Liyid के खिलाफ उत्पाद देयता की कार्रवाई की जा सकती है।

ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्मों के उत्तरदायित्‍व 

ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म्‍स निम्नलिखित के लिए उत्तरदायी होते हैं-

• उनकी साइटों पर मूल्य हेरफेर,

• प्रदान की गई सेवाओं में लापरवाही और ग्राहकों के साथ भेदभाव।

• भ्रामक विज्ञापन, अनुचित व्यापार व्यवहार और उत्पादों के ग़लत विवरण/जानकारी।

• दोषपूर्ण उत्पाद को वापस लेने या उसका भुगतान करने से इनकार।

• ग्राहक द्वारा प्राप्‍त वस्तुओं या सेवाओं के संबंध में चेतावनियां या निर्देश प्रदान न करना।

• किसी भी प्लैटफॉर्म पर बिक्री के लिए विज्ञापित वस्तुओं या सेवाओं की प्रामाणिकता और छवियों के बारे में ग़लत विवरण, और उल्‍लंघन।

हालांकि, यदि उत्पाद के खतरे सामान्य रूप से ज्ञात हैं तो वे उत्तरदायी नहीं होंगे। उदाहरण के लिए, यदि कोई उपभोक्ता फ्लेमथ्रोअर्स जैसे खतरनाक उत्पाद का दुरुपयोग करता है या उसमें कुछ हेरफेर करता है तो इसके लिए ई-कॉमर्स इकाई को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।

ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म से शिकायत 

ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म को ‘शिकायत निवारण तंत्र’ स्थापित करना चाहिए और भारतीय ग्राहकों के सरोकार पर कार्यवाही करने के लिए एक ‘शिकायत अधिकारी’ नियुक्त करना चाहिए। शिकायत निवारण तंत्र के बारे में विवरण ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म पर प्रदर्शित किया जाना चाहिए। शिकायत अधिकारी को 48 घंटे के भीतर शिकायत स्वीकार करते हुए एक महीने की अवधि के भीतर समस्या का समाधान करना चाहिए।

शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया

कोई भी शिकायत एकीकृत शिकायत निवारण तंत्र पोर्टल (आईएनजीआरएएम) पर ऑनलाइन दर्ज की जा सकती है, या फिर उपभोक्ता अधिकारों का हनन के संदर्भ में जिला या राज्य आयोग जैसे उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरणों के साथ ऑफ़लाइन दर्ज की जा सकती है। इसके अलावा हेल्पलाइन के साथ-साथ फोन आधारित ऍप भी हैं जिनका उपयोग शिकायत दर्ज करने के लिए किया जा सकता है। इस सबके बावजूद, शिकायत का समाधान न होने पर, आप उपभोक्ता मंचों से संपर्क हेतु किसी वकील की मदद ले सकते हैं।

शिकायत प्रक्रिया: टेलीफोन 

चरण -1: जांचें कि क्या आप कानून के तहत उपभोक्ता हैं

शिकायतकर्ता एक उपभोक्ता या एक उपभोक्ता-संघ होना चाहिए।

चरण-2: हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करें

राष्‍ट्रीय छुट्टियों को छोड़कर, शिकायत दर्ज करने के लिए, उपभोक्ता, राष्‍ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन पर कॉल कर सकते हैं-1800-11-4000 या 14404 पर। या फिर, + 91 8130009809 पर एसएमएस के माध्यम से भी शिकायत दर्ज की जा सकती है।

चरण-3: शिकायत का विवरण दें

शिकायतकर्ता और विक्रेता के नाम, संपर्क विवरण और उनके पतों का पूरा ब्‍योरा, हेल्पलाइन प्राधिकरण / अधिकारी को शिकायत के ब्‍योरे के साथ दिया जाना चाहिए। प्राधिकरण आपकी शिकायत दर्ज करेगा और आपको एक विशिष्‍ट शिकायत आईडी देगा।

चरण -4: अपने आवेदन की प्रगति पर नज़र रखें / ट्रैक करें

आपकी शिकायत फिर संबंधित विक्रेता, कंपनी, नियामक, या प्राधिकरण को कार्रवाई के लिए भेज दी जाती है। प्रत्येक शिकायत के लिए की गयी कार्रवाई को लगातार अपडेट किया जाता है। हेल्पलाइन पर कॉल करके या एकीकृत शिकायत निवारण तंत्र पोर्टल के माध्यम से आपकी शिकायत को आपकी शिकायत आईडी से ट्रैक किया जा सकता है।

चरण-5: शिकायत का समाधान

अगर आपकी शिकायत का समाधान नहीं होता है, तो आप संबंधित उपभोक्ता फोरम से संपर्क करके कानूनी प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं। हेल्पलाइन प्राधिकरण कानूनी प्रक्रिया के बारे में आपके किसी भी संदेह को स्पष्ट करने में मदद कर सकता है।

ई-शिकायत प्रक्रिया: इंटरनेट (आईएनजीआरएएम पोर्टल) 

उपभोक्ता मामलों के विभाग ने उपभोक्ताओं, केंद्र और राज्य सरकार की एजेंसियों, निजी कंपनियों, नियामकों, लोकपाल और कॉल सेंटर आदि जैसे सभी हितधारकों को एक मंच पर लाने के लिए एकीकृत शिकायत निवारण तंत्र (आईएनजीआरएएम-INGRAM) के रूप में जाना जाने वाला एक पोर्टल लॉन्च किया है। पोर्टल उपभोक्ताओं के बीच उनके अधिकारों की रक्षा के लिए जागरूकता पैदा करने और उन्हें उनकी जिम्मेदारियों के बारे में सूचित करने में भी मदद करेगा। इस पोर्टल के माध्यम से उपभोक्ता अपनी शिकायत ऑनलाइन दर्ज करा सकते हैं।

चरण -1: जांचें कि क्या आप कानून के तहत उपभोक्ता हैं

शिकायतकर्ता को कानून के तहत एक उपभोक्ता होना चाहिए, जिसका अर्थ है किसी उत्पाद का उपभोक्ता, एक ऍसोसिएशन उपभोक्ता आदि।

चरण -2: INGRAM पोर्टल पर पंजीकरण करें

शिकायतकर्ता को खुद को एक उपभोक्ता के बतौर INGRAM पोर्टल पर पंजीकृत कराना होगा। शिकायतकर्ता को अपनी शिकायत दर्ज करने के लिए आवश्यक विवरण और दस्तावेज़ भरने होंगे, जैसे कि शिकायतकर्ता और विक्रेता का नाम और पता, विवाद के तथ्य और वह राहत जो शिकायतकर्ता चाहता है। शिकायत दर्ज करने के लिए एक बार पंजीकरण आवश्यक है।

पंजीकरण के लिए वेब पोर्टल http://consumerhelpline.gov.in पर जाएं और लॉग-इन लिंक पर क्लिक करें और फिर आवश्यक विवरण देते हुए साइन-अप करें, अपनी ईमेल के माध्यम से सत्यापित करें। यूज़र आईडी और पासवर्ड बनाया जाता है। इस यूज़र आईडी और पासवर्ड का उपयोग करते हुए, पोर्टल में प्रवेश करें और आवश्यक दस्तावेज़ों को संलग्न करते हुए शिकायत के आवश्यक विवरण भरें (यदि उपलब्ध हों)।

चरण-3: शुल्क का भुगतान करें

शिकायतकर्ता को डिजिटल भुगतान मोड के माध्यम से शिकायत पंजीकरण के लिए शुल्क (यदि लागू हो) का भुगतान करना होगा, या भीम ऍप, उमंग ऍप आदि के माध्‍यम से संबंधित उपभोक्ता आयोगों को माल के मूल्य के अनुसार भुगतान करना होगा।

चरण-4: अपने आवेदन पर नज़र रखें / ट्रैक करें

प्रत्येक शिकायत दर्ज की जाती है और उसकी एक विशिष्‍ट शिकायत आईडी जारी की जाती है। शिकायत को कार्रवाई के लिए संबंधित कंपनी, नियामक, प्राधिकरण को अग्रेषित किया जाता है। प्रत्येक शिकायत के बरक्‍स उनके द्वारा की गयी कार्रवाई को अद्यतन किया जाता है। दर्ज की गयी शिकायतों को INGRAM पोर्टल के माध्यम से ट्रैक किया जा सकता है।

उपभोक्ता न्यायालय/मंच 

INGRAM पोर्टल के माध्यम से, यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाता है कि शिकायत का निवारण संबंधित अधिकारियों के साथ किया जाए, जो कि एक कंपनी, लोकपाल आदि हो सकते हैं। लेकिन, अगर समस्या अभी भी लंबित है, तो उपभोक्ता के पास एक वकील की मदद से उपयुक्त उपभोक्ता अदालत या मंच से संपर्क करने का विकल्प होता है। उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में सुनवाई के लिए केवल 2 साल के भीतर दायर की गयी शिकायतों को ही सुनवाई के लिए स्वीकार किया जाएगा।

शिकायत करने के लिए शुल्क

उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत दायर की गई प्रत्येक शिकायत एक नाम मात्र शुल्क के साथ होनी चाहिए जो किसी राष्ट्रीयकृत बैंक के डिमांड ड्राफ्ट के रूप में या पोस्टल ऑर्डर के माध्यम से या इलेक्ट्रॉनिक रूप में देय है। वस्‍तुओं या सेवाओं के मूल्य के आधार पर शुल्क संरचना नीचे दी गई है –

जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग को देय शुल्क-

वस्‍तु या सेवा का मूल्य शुल्क 
5 लाख रुपये से कम नि:शुल्क
रु.5 लाख-10 लाख रुपये रु.200
रु.10 लाख-रु.20 लाख 400
रु.20 लाख-50 लाख रु. रु.1000
रु.50 लाख-रु.1 करोड़ रु.2000

राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग को देय शुल्क: 

अच्छी या सेवा का मूल्य शुल्क 
रु.1 करोड़-रु.2 करोड़ रु.2500
रु.2 करोड़-रु.4 करोड़ रु.3000
रु.4 करोड़-रु.6 करोड़ 4000
रु.6 करोड़-रु.8 करोड़ रु.5000
रु.8 करोड़-रु.10 करोड़ रु.6000

राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग को देय शुल्क-

माल या सेवा का मूल्य  शुल्क 
10 करोड़ रुपये से ज्‍़यादा रु.7500

ध्यान देने वाली एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इस प्रकार एकत्र की गई फीस राज्य स्तर या राष्ट्रीय स्तर पर, जैसा भी मामला हो, उपभोक्ता कल्याण कोष में जाती है। जहां ऐसी निधि मौजूद नहीं है, उसे राज्य सरकार को निर्देशित किया जाता है। शुल्क का उपयोग उपभोक्ता कल्याण परियोजनाओं को जारी रखने के लिए किया जाता है।

उपभोक्ता अधिकारों के उल्‍लंघन के लिए दंड

उपभोक्ता अधिकारों के उल्‍लंघन के लिए किसी व्यक्ति या संस्था को दंडित करने की शक्ति केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण के पास होती है। यह दंड विभिन्न तरीकों से तय किया जाता है जैसे जुर्माना, दोषपूर्ण सामान वापस लेना, ऐसी वस्तुओं/सेवाओं की प्रतिपूर्ति, या अनुचित व्यापार प्रथाओं को बंद करना।

झूठे या भ्रामक विज्ञापनों के लिए दंड

निर्माता, विज्ञापनदाता या समर्थनकर्ता झूठे या भ्रामक विज्ञापनों के लिए उत्तरदायी होते हैं। हालांकि, इन मामलों में पैरोकार का दायित्व तभी बनता है जब उन्होंने इस तरह के विज्ञापन का समर्थन करने से पहले अपना शोध न किया हो। सज़ा इस प्रकार तय होती है-

• पहले अपराध के लिए – जुर्माना जो रु.10 लाख तक और 2 साल तक की जेल हो सकती है।

• हर दोहराये जाने वाले अपराध के लिए-जुर्माना जो रु.50 लाख तक हो सकता है और 5 साल तक की जेल हो सकती है।

• केंद्रीय प्राधिकरण उन्हें 1 साल तक के लिए किसी भी उत्पाद का विज्ञापन करने से भी रोक सकता है। बाद के अपराधों के मामले में, इसे 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है।

• केंद्रीय प्राधिकरण के इन निर्देशों का पालन न किये जाने की सूरत में 6 महीने तक की जेल या 20 लाख.रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।

मिलावटी उत्पादों की बिक्री के लिए दंड 

मिलावटी खाद्य-पदार्थों की बिक्री, आयात, भंडारण या वितरण में शामिल निर्माता या खुदरा विक्रेता की कोई भी व्‍यापार दंडनीय है। ऐसे में निम्नलिखित दंड लागू होते हैं-

• जब उपभोक्ता को कोई हानि न पहुंचे, जैसे किसी तरह का दर्द या मौत, 6 महीने तक की जेल और 1 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।

• जब चोट उपभोक्ता को गंभीर चोट न लगी हो, तो 1 साल तक की जेल और 3 लाख रुपये तक जुर्माने का दंड दिया जा सकता है।

• उपभोक्ता को गंभीर चोट लगने के मामले में 7 साल तक की जेल और 5 लाख रुपये तक के जुर्माने की सज़ा मिल सकती है।

• मिलावट के कारण उपभोक्ता की मृत्यु हो जाने पर तो कम से कम 7 साल की जेल और यहां तक कि आजीवन कारावास, तथा कम से कम 10 लाख रुपये तक के जुर्माना का दंड दिया जा सकता है।

इसके अतिरिक्त, पहला अपराध होने पर उपभोक्ता प्राधिकरण, निर्माता के लाइसेंस को 2 साल तक के लिए निलंबित कर सकता है। अपराध की पुनरावृत्ति पर ऐसे निर्माता के लाइसेंस को पूरी तरह से रद्द भी किया सकता है।

नकली माल की बिक्री के लिए दंड 

नकली सामान वे होते हैं जिन पर झूठा दावा किया जाता है कि वे असली हैं या फिर वे असल, मूल सामान की अनुकृति होते हैं। ये अक्सर निम्न गुणवत्ता वाले होते हैं और मूल सामान के कानूनी मालिकों के ट्रेडमार्क व कॉपीराइट का उल्‍लंघन करते हैं। एक महत्वपूर्ण उदाहरण स्थानीय बाज़ारों में मिलने वाली दवाओं या सस्ते मेकअप उत्पादों का है। इन सामानों की बिक्री, आयात, भंडारण या वितरण में शामिल निर्माता का कोई भी कृत्‍य निम्नानुसार दंडनीय है-

क. यदि उपभोक्ता को गंभीर नुकसान नहीं होता है, तो 1 साल तक की जेल और 3 लाख रुपये तक का जुर्माना लग सकता है।

ख. जब इस तरह के नकली सामान से उपभोक्ता को गंभीर नुकसान होता है, तो निर्माता को 7 साल तक की जेल और 5 लाख रुपये तक के जुर्माने की सज़ा मिल सकती है।

ग. जब खरीदे गये उत्‍पाद से उपभोक्ता की मृत्यु हो जाती है, तो न्यूनतम 7 वर्ष की जेल से लेकर आजीवन कारावास तक और न्यूनतम 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।

विवाद निपटान तंत्र के रूप में मध्यस्थता

मध्यस्थता एक आउट-ऑफ-कोर्ट समझौता है जहां पार्टियां कार्यवाही के तरीके को तय कर सकती हैं। यह विवादों के शीघ्र निपटारे में मदद करता है।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 ने प्रावधान पेश किया है कि पार्टियों के बीच समझौते की गुंजाइश होने पर संबंधित आयोग, किसी उपभोक्ता विवाद में मध्यस्थता की सिफारिश कर सकता है। हालांकि, मध्यस्थता की प्रक्रिया को स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए पार्टियों को 5 दिन की समय सीमा दी जाती है; इसके लिए सहमति महत्वपूर्ण है। एक बार जब विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजा जाता है, तो विवाद निवारण के लिए आयोग को भुगतान किया गया शुल्क पार्टियों को वापस कर दिया जाता है।

मध्यस्थता की प्रक्रिया 

मध्यस्थता की कार्यवाही निम्नलिखित तरीके से की जा सकती है-

चरण -1: यह एक ‘उपभोक्ता मध्यस्थता प्रकोष्ठ’ में संचालित किया जाएगा जिसमें विवादों को निपटाने के लिए मध्यस्थों का एक पैनल होगा। यह प्रकोष्ठ मामलों की सूची और कार्यवाही के रिकॉर्ड का रखरखाव करता है।

चरण -2: मामले का फैला करते समय प्रत्येक मध्यस्थ से निष्पक्ष और विवेकपूर्ण कार्य करने की अपेक्षा की जाती है। कार्यवाही शुरू होने से पहले मध्यस्थ को शुल्क का भुगतान भी किया जाता है।

चरण-3: दोनों पक्षों की उपस्थिति में मध्यस्थता की जाएगी और वह गोपनीय रहेगी।

चरण -4: पार्टियों को मध्यस्थ को सभी प्रासंगिक जानकारी और दस्तावेज़ उपलब्ध कराने चाहिए।

चरण 5: यदि सभी पक्षमध्यस्थता की कार्यवाही के बाद, 3 महीने के भीतर, किसी समझौते पर आते हैं, तो पार्टियों के हस्ताक्षर के साथ एक ‘निपटान रिपोर्ट’ आयोग को भेजी जाएगी।

चरण -6: पार्टियों की ‘निपटान रिपोर्ट’ प्राप्‍त होने के 7 दिनों के भीतर संबंधित आयोग को एक आदेश पारित करना आवश्यक है।

चरण -7: यदि मध्यस्थता के माध्यम से कोई समझौता नहीं हुआ है, तो कार्यवाही की एक रिपोर्ट के माध्यम से आयोग को सूचित किया जाता है। आयोग तब संबंधित उपभोक्ता विवाद के मुद्दों को सुनेगा और मामले का फैसला करेगा।

चरण -8: मध्यस्थता प्रक्रिया से गुज़रने के बाद विवाद को अन्य कार्यवाही, जैसे पंचाट या अदालती मुकदमे में नहीं ले जाया जा सकता।

शिकायतें जिनका समाधान मध्यस्थता से नहीं हो सकता 

हालांकि, निम्नलिखित मामलों को मध्यस्थता के लिए निर्दिष्ट नहीं किया जा सकता-

• गंभीर चिकित्सीय लापरवाही या जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु हो जाती है।

• धोखाधड़ी, जालसाज़ी, ज़बरदस्ती।

• किसी भी पक्ष द्वारा अपराध-वर्धन के लिए आवेदन। इसका मतलब यह है कि इन अपराधों को लेकर कार्यवाही, पार्टियों के बीच जुर्माने के भुगतान पर तय की जा सकती है, बशर्ते कि इस तरह के अपराध की पुनरावृत्ति 3 साल की अवधि में न हुई हो।

• फौजदारी अपराध और जनहित के मुद्दे। इनमें उस जनता से जुड़े मुद्दे शामिल हैं जो मामले की पक्षकार नहीं है। उदाहरण के लिए, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर इलेक्ट्रॉनिक बैंक लेनदेन के मामले में गोपनीयता का उल्‍लंघन।

उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण

सभी उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरणों के विवरण और कामकाज नीचे दिये गये हैं-

केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण 

केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) का उद्देश्य सामूहिक रूप से उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देना, उनकी रक्षा करना और उन्हें क्रियान्वित करना है। सीसीपीए को यह अधिकार है-

• उपभोक्ता अधिकारों के उल्‍लंघन की जांच करना और प्राप्‍त शिकायतों पर मुकदमा चलाना।

• जोखिमपूर्ण वस्तुओं और सेवाओं को निरस्‍त करने का आदेश

• अनुचित व्यापार प्रथाओं और भ्रामक विज्ञापनों को बंद करने का आदेश

• भ्रामक विज्ञापनों के निर्माताओं, समर्थनकर्ताओं और प्रकाशकों पर दंड लगाना।

इसका मुख्यालय नई दिल्‍ली में है, लेकिन पूरे देश में क्षेत्रीय केंद्र स्थापित करने का भी प्रावधान है। शिकायत मिलने पर या स्‍वयं ही यह उल्लिखित मुद्दों की जांच शुरू कर सकता है।

उपभोक्ता संरक्षण परिषदें 

केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद के काम सलाहकारी प्रकृति के हैं, जो उपभोक्ता अधिकारों के प्रचार और संरक्षण के बारे में सुझाव देते हैं। इसी तरह, राज्य उपभोक्ता संरक्षण परिषद और जिला उपभोक्ता संरक्षण परिषद नामक राज्य-स्तरीय इकाइयों का भी गठन किया जाता है, जो समान सलाहकार कार्य करती हैं।

जागरूकता फैलाने जैसी समान भूमिकाएँ निभाने वाले कुछ अन्य निकाय भी हैं, इनमें शामिल हैं-उपभोक्ता शिक्षा व अनुसंधान केंद्र (गुजरात), भारतीय मानक ब्यूरो, तमिलनाडु में उपभोक्ता संगठन महासंघ, मुंबई ग्राहक पंचायत, आदि।

कौन शिकायत कर सकता है?

किसी उत्पाद या सेवा की शिकायत कानून के तहत कई व्यक्तियों द्वारा दर्ज की जा सकती है, जैसे-

• जो लोग भुगतान के एवज़ में अपने लिए या अपने काम के लिए सामान खरीदते हैं या सेवाओं का उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति काम पर जाने के लिए उबर कैब लेता है, तो वह एक सेवा का उपभोक्ता है। यदि कोई व्यक्ति टैक्सी के रूप में उपयोग करने के लिए कार खरीदता है और अपनी आजीविका कमाने के लिए उसे स्वयं चलाता है, तो वह माल का उपभोक्ता है।

• जो लोग भुगतान के बदले स्व-उपभोग या स्वरोज़गार के लिए ऐसे सामान खरीदने वाले खरीदार की अनुमति से उन वस्तुओं और सेवाओं का उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति साबुन खरीदता है और उस साबुन का उपयोग उसके परिवार के सदस्य करते हैं, तो ये सभी लोग साबुन के उपभोक्ता हैं और साबुन में कोई खराबी होने पर शिकायत दर्ज करा सकते हैं।

• एक व्यक्ति जो वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए सामान खरीदता है, माल की वारंटी अवधि के दौरान शिकायत दर्ज कर सकता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति अपनी कंपनी के लिए कंप्यूटर सिस्टम खरीदता है और सिस्टम की वारंटी अवधि के भीतर सिस्टम में कोई दोष पाता है, तो वह उपभोक्ता होगा।

• एक से अधिक उपभोक्ता जिनकी शिकायतें या मसले एक-समान हैं। उदाहरण के लिए, यदि एक रेस्तरां में कई लोग सेवा मानकों को लेकर शिकायत करना चाहते हैं।

• उपभोक्ताओं का एक पंजीकृत या मान्यता प्राप्‍त स्वैच्छिक संघ भी शिकायत दर्ज कर सकता है।

• ऐसे उपभोक्ता का कानूनी अभिभावक जो ना-बालिग है। कानूनी अभिभावक में माता-पिता या रिश्तेदार या कानूनी रूप से माता-पिता के दायित्वों वाला व्यक्ति आदि शामिल होते हैं।

• उपभोक्ता की मृत्यु हो जाने की स्थिति में उपभोक्ता का कानूनी प्रतिनिधि।

• केंद्र या राज्य सरकार शिकायत दर्ज कर सकती है।

• केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण केंद्र सरकार के निर्देश के तहत उपभोक्ता की शिकायत पर संज्ञान ले सकता है। कानून के तहत, इसे स्वत: संज्ञान (सुओ मोटो) लेने की शक्ति के रूप में जाना जाता है।