कोई व्यक्ति अपने मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए भारत के सुप्रीम कोर्ट या अपने संबंधित राज्य के हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर कर सकता है।
अगर किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन होता है, तो सुप्रीम कोर्ट के पास ऐसे व्यक्ति को संवैधानिक उपचार प्रदान करने की शक्ति है। सुप्रीम कोर्ट में ‘संवैधानिक उपचार का अधिकार’, अपने आप में ही किसी भी व्यक्ति का एक मौलिक अधिकार होता है। हालांकि, आपातकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट से मिलने वाला यह ‘संवैधानिक उपचार का अधिकार’ निलंबित भी हो सकता है।
राज्य के हाई कोर्टों को भी संवैधानिक उपचार प्रदान करने की शक्ति होती है। मौलिक अधिकारों के अलावा, हाई कोर्ट के पास अन्य कई और उद्देश्यों के लिए भी संवैधानिक उपचार देने की शक्ति होती है, जैसे कि अन्य कानूनी अधिकारों की रक्षा करना। हालांकि, किसी भी हाई कोर्ट में संवैधानिक उपचार प्राप्त करने के अधिकार को मौलिक अधिकार का दर्जा नहीं है। हर एक राज्य में कुछ क्षेत्रीय प्रतिबंध या सीमाएं होती हैं, इसलिए उसी क्षेत्र से संबंधित हाई कोर्ट में संवैधानिक उपचार के लिए रिट याचिका दायर की जा सकती जहां किसी कानून का उल्लंघन होता है।