यदि कोई पुलिस अधिकारी आपकी शिकायत स्वीकार नहीं करता है तो आप अपनी शिकायत लिखकर पुलिस अधीक्षक को भेज सकते हैं। यदि पुलिस अधीक्षक को लगता है कि आपके मामले में दम है तो वह उस मामले की जांच-पड़ताल शुरू करने के लिए पुलिस कर्मी की नियुक्ति कर सकता/सकती है।
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गिरफ्तारी करने का अधिकार
हांला कि कानून के विभिन्न अधिकारियों को गिरफ्तारी करने का अधिकार है, वे आम तौर पर पुलिस द्वारा ही किए जाते हैं। पुलिस द्वारा गिरफ्तारी के बारे में अधिक समझने के लिए कृपया हमारे ‘व्याख्याता’ (‘एक्सप्लेनर’) को पढ़ें।
कानून, पुलिस के अलावा मजिस्ट्रेटों को, लोगों को गिरफ्तार करने और उन्हें हिरासत में लेने का अधिकार देता है अगर किसी व्यक्ति ने अपराध किया हो। दो प्रकार के मजिस्ट्रेट होते हैं, कार्यकारी मजिस्ट्रेट और न्यायिक मजिस्ट्रेट। एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट का उदाहरण है, तहसीलदार। और एक न्यायिक मजिस्ट्रेट का उदाहरण है न्यायाधीश।
कानून, कुछ परिस्थितियों में, सामान्य लोगों को भी गिरफ्तारी करने की अनुमति देता है अगर वे किसी और को एक गंभीर अपराध करते देखते हैं। ऐसे मामलों में, गिरफ्तार करने वाले व्यक्ति, उसको रोक कर रक्खे नहीं रह सकता है, बल्कि उसे बिना किसी अनावश्यक देरी के, निकटतम पुलिस स्टेशन में ले जाकर एक पुलिस अधिकारी को सौंप देना चाहिए।
वाहन चलाते समय मोबाइल फोन का उपयोग करना
आप किसी भी मोटर वाहन को चलाते समय मोबाइल फोन का उपयोग नहीं कर सकते, क्योंकि यह चालक और जनता के लिए खतरा पैदा कर सकता है। इसे खतरनाक ड्राइविंग भी माना जा सकता है, जिसके लिए आपको दंडित किया जाएगा:
• पहली बार (पहला अपराध): 6 महीने से 1 साल तक की जेल या 1,000 से रु. 5,000 रुपये के बीच जुर्माना, या दोनों1। लागू जुर्माना राशि राज्यों में भिन्न हो सकती है।
• बाद का अपराध: अगर आप पहला अपराध करने के तीन साल के भीतर दोबारा यह अपराध करते हैं, तो आपको 2 साल तक की जेल या 10,000 रुपये का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जाएगा। लागू जुर्माना राशि राज्यों में भिन्न हो सकती है।
नीचे दो राज्यों के लिए जुर्माने की राशि दी गई है:
राज्य | अपराध की आवृत्ति | जुर्माना राशि (भारतीय रुपयों में) |
दिल्ली | पहला अपराध | 1,000 – 5,000
|
बाद का अपराध | 10,000 | |
कर्नाटक | पहला अपराध | दो पहिया वाहन/तीन पहिया वाहन – 1,500
हल्के मोटर वाहन– 3,000 अन्य – 5,000
|
बाद का अपराध | 10,000 |
- धारा 184, मोटर वाहन अधिनियम, 1988 [↩]
जूवेनाइल जस्टिस बोर्ड
जूवेनाइल जस्टिस बोर्ड वह निकाय है जो उन बच्चों के साथ डील करता है, जो किसी अपराध के आरोपी हैं। इन निकायों से अपेक्षा की जाती है, वे निम्नलिखित बातों से उन बच्चों की मदद करें, जिन्होंने अपराध किया है।
• बच्चों को कम से कम डराया-धमकाया जाए और उनके साथ चाइल्ड-फ्रेंडली रीति से व्यवहार किया जाए।
• यह सुनिश्चित करना कि बच्चे को पूरी तरह से सूचित किया गया है ताकि वे कानूनी प्रक्रिया में भाग ले सकें।
• बच्चे के लिए कानूनी सहायता तक पहुंच सुनिश्चित करना।
• यदि बच्चे को समझ में न आने वाली भाषा में कार्यवाही हो रही है तो अनुवादक/दुभाषिया उपलब्ध कराना।
• मामले में बाल कल्याण समिति को शामिल करके अपराध करने वाले बच्चे की देखभाल करना।
कानून के तहत अधिकारी कौन हैं?
भारत का संविधान, 1950 सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों को अवमानना के लिए दंडित करने की शक्ति प्रदान करता है। इसका अर्थ यह है कि यदि किसी व्यक्ति को जिला न्यायालय जैसे किसी अधीनस्थ न्यायालय के खिलाफ अवमानना के लिए ठहराया जाता है, तो राज्य के संबंधित उच्च न्यायालयों को ऐसे व्यक्ति को दंडित करने की शक्ति होगी। यहां, ‘उच्च न्यायालय’ शब्द में एक केंद्र शासित प्रदेश में न्यायिक आयुक्त की अदालत भी शामिल होगी।
अधीनस्थ न्यायालयों को न्यायालयों की अवमानना के लिए दंडित करने की शक्ति नहीं है, और उन्हें अवमानना के लिए दंडित करने के लिए अपने संबंधित उच्च न्यायालयों पर निर्भर रहना पड़ता है।
न्यायाधिकरण और अदालत की अवमानना
कुछ न्यायाधिकरणों के पास अवमानना के लिए दंड देने का अधिकार होता है। हालांकि, किसी को यह देखने के लिए न्यायाधिकरणों की स्थापना करने वाले कानून को देखना होगा कि क्या उस विशेष न्यायाधिकरणों में अवमानना के लिए दंडित करने और न्यायाधिकरण के समक्ष प्रक्रिया जानने का अधिकार है। उदाहरण के लिए, केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के पास अवमानना के लिए दंड देने का स्वतंत्र अधिकार है, और साथ ही औद्योगिक न्यायाधिकरण के पास ऐसे अधिकार हैं।
सहायता और समर्थन
आप यहां शिकायत दर्ज कराने के लिए राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (नालसा) से संपर्क कर सकते हैं। आप शिकायत दर्ज कर सकते हैं और अपने आवेदन को ट्रैक कर सकते हैं।
शिकायत के मामले में, या यदि आपको सहायता और सहयोग की आवश्यकता है, तो आप नीचे दिए गए राज्यवार अधिकारियों (कानूनी सेवा प्राधिकरण) को ईमेल या कॉल कर सकते हैं।
राज्य | हेल्पलाइन नंबर/संपर्क नंबर | ईमेल पता | डाक का पता |
दिल्ली | 1516 | dslsa-phc@nic.in, dlsathebest@rediffmail.com | दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, केंद्रीय कार्यालय, प्री-फैब बिल्डिंग, पटियाला हाउस कोर्ट, नई दिल्ली। |
हरियाणा | 18001802057 | http://www.hslsa.gov.in/helpline | हरियाणा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, इंस्टीट्यूशनल प्लॉट नंबर 09, सेक्टर-14 पंचकूला (किसान भवन के पास) |
केरल | +91 9846 700 100 | kelsakerala@gmail.com | सदस्य सचिव, केरल राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण का कार्यालय, नियमा सहाय भवन, उच्च न्यायालय परिसर एर्नाकुलम, कोच्चि, केरल राज्य |
हिमाचल प्रदेश | +91 94180 33385
15100 (टोल फ्री) न्याय संयोग: 0177-2629862 |
mslegal-hp@nic.in | सदस्य सचिव, हिमाचल प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, प्रखंड संख्या 22, एस.डी.ए. कॉम्प्लेक्स, कसुम्प्टी, शिमला |
महाराष्ट्र | 1800 22 23 24 | mslsa-bhc@nic.in | 105, उच्च न्यायालय (PWD) भवन, किला, मुंबा। |
गुजरात | 18002337966 | msguj.lsa@nic.in | तीसरी मंजिल, गुजरात उच्च न्यायालय डाकघर के पास, गुजरात उच्च न्यायालय परिसर, सोला, अहमदाबाद |
मध्य प्रदेश | 15100 | mplsajab@nic.in | |
असम | 0361-2601843, 2516367 | mailto:assamslsa1@gmail.com | असम राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, गुवाहाटी उच्च न्यायालय के निकट नया ब्लॉक |
ओडिशा | 0671-2307071 | oslsa@nic.in | ओडिशा राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण, का.आ.(S.O.)20, छावनी रोड (गोपाबंधु मार्ग), कटक |
तमिलनाडु | 1516 | tnslsa.lae@gmail.com | तमिलनाडु राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, नॉर्थ फोर्ट रोड, हाई कोर्ट कैंपस, चेन्नई |
कर्नाटक | 1800-425-90900 | Karslsa@gmail.com | कर्नाटक राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण, न्याय देगुला बिल्डिंग, पहली मंजिल, एच. सिद्धैया रोड, बेंगलुरु |
इसके अलावा, यदि आप अपने वकील को अपनी आवश्यकताओं के लिए उपयुक्त नहीं पाते हैं और एक अलग वकील चाहते हैं, तो आप इसके लिए अनुरोध कर सकते हैं। आप इस बारे में यहां से अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
अग्रिम जमानत के लिए शर्तें
अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर रहे व्यक्ति को निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना होगा, या उसका वादा करना होगा:
-आवश्यकता होने पर वह व्यक्ति, पुलिस अधिकारी द्वारा पूछताछ के लिए उपलब्ध रहेगा।
-वह व्यक्ति, प्रयत्यक्ष रुप से या अप्रत्यक्ष रुप से, किसी ऐसे व्यक्ति को जिसे इस मामले के तथ्यों की जानकारी है, उसे अदालत में या किसी पुलिस अधिकारी के समक्ष प्रकट करने से, न रोकेगा, न धमकी देगा या डरायेगा, न कोई वादा करेगा।
-वह व्यक्ति, न्यायालय की पूर्व अनुमति के बिना, भारत नहीं छोड़ेगा।
-शेष शर्तें, नियमित जमानत के शर्तों के समान हैं।
अवैध गिरफ्तारी के खिलाफ मौलिक अधिकार
अगर आपको पता है कि किसी व्यक्ति को, पुलिस या किसी प्राधिकारी ने हवालात में रक्खा है, या गिरफ्तार किया है लेकिन कोई कारण नहीं बता रहा है, तो ऐसे मामलों में, गिरफ्तार व्यक्ति या उसका कोई रिश्तेदार, भारत के किसी भी उच्च न्यायालय में या सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, बंदी प्रत्यक्षीकरण (ह्बीस कॉर्पस) याचिका दायर कर सकता है।
भारत का संविधान हर किसी को न्यायालय से यह निवेदन करने का मौलिक अधिकार देता है कि न्यायालय, गिरफ्तार करने वाले प्राधिकारी को, गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को पेश करने के लिये आदेश करे, और यह भी जाँच करे कि क्या यह गिरफ्तारी वैध है।
इस मौलिक अधिकार का उपयोग तब किया जाता है जब किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है और उसे एक ‘हवालात प्राधिकारी’ (डीटेनिंग ऑथोरिटी) की हिरासत में रक्खे रहता है:
- बिना गिरफ्तारी के कारणों के बारे में सूचित किए; या
- अपनी पसंद के कानूनी व्यवसायिक द्वारा बचाव किये जाने के अधिकार से वंचित कर दिया है।
यह मौलिक अधिकार अत्यंत ही व्यापक है। कब बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर किया जा सकता है इसे अधिक समझने के लिए कृपया किसी कानूनी व्यवसायी से बात करें।
वाहन चलाते समय हेलमेट नहीं पहनना
दोपहिया मोटरसाइकिल चलाने वालों को हेलमेट या सुरक्षात्मक हेडगीयर पहनना होता है1। इसके अलावा, प्रत्येक व्यक्ति, जिसमें 4 वर्ष से अधिक आयु के बच्चे1 शामिल हैं, जो दोपहिया मोटरसाइकिल की सवारी कर रहे हैं, उन्हें भी हेलमेट पहनना होगा। इस हेडगियर में दो विशेषताएं होनी चाहिए1 :
• दुर्घटना के मामले में चोट से सुरक्षा प्रदान करने की विशेषताएं
• पहनने वाले के सिर पर (जैसे, पट्टियों से) सुरक्षित रूप से बांधा जाना चाहिए
केवल सिख लोग जो पगड़ी पहनते हैं और महिलाओं को अनिवार्य रूप से हेलमेट पहनने की आवश्यकता नहीं है।1 हालाँकि, यह अपवाद राज्यों में भिन्न होता है।
अगर आप वाहन चलाते समय हेलमेट नहीं पहनते हैं तो आपको कम से कम एक हजार रुपये का जुर्माना देना होगा और आपको 3 महीने के लिए लाइसेंस रखने से अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा2 लागू जुर्माना राशि राज्यों में भिन्न हो सकती है।
नीचे दो राज्यों के लिए जुर्माने की राशि दी गई है:
राज्य | जुर्माना राशि (भारतीय रुपयों में) |
दिल्ली | 1,000 |
कर्नाटक | 500 |
इस कानून के तहत अपराध और दंड क्या हैं?
जब किसी को अवमानना का दोषी ठहराया जाता है, तो उनके पास अदालत से माफी मांगने और किसी भी अन्य दंड से खुद को बचाने का विकल्प होता है। 8 हालांकि, इस तरह की माफी वास्तविक होनी चाहिए न कि खुद को सजा से बचाने के लिए।
न्यायालय की अवमानना के लिए सजा
दीवानी/ सिविल और फौजदारी/अपराधिक अवमानना की सजा समान है। ऐसी स्थितियों में जहां अदालत माफी से संतुष्ट नहीं है या अगर व्यक्ति माफी मांगने को तैयार नहीं है, तो अदालत अवमानना के लिए अपराधी को सजा दे सकती है। 2,000 रुपये तक का जुर्माना या 6 महीने तक की जेल या दोनों हो सकते हैं। हालाँकि, यह सीमा केवल उच्च न्यायालयों के लिए लागू है, सर्वोच्च न्यायालयों के लिए नहीं। सुप्रीम कोर्ट के लिए, यह सीमा केवल उन दंडों के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में काम करेगी जो दी जा सकती हैं और वे जुर्माने की राशि बढ़ा सकते हैं। इसके अलावा, अदालत के पास अपराधी को दंडित नहीं करने का विकल्प होता है यदि अदालत की राय है कि व्यक्ति ने अदालत को वास्तव में पूर्वाग्रहित नहीं किया है।