मृत्यु के बाद भी भरण-पोषण का उत्तरदायित्व

माता-पिता के भरण-पोषण का कर्तव्य किसी व्यक्ति के लिये, स्वयम् के मृत्यु के बाद भी रहती है। एक आवेदन पर न्यायालय यह आदेश दे सकता है कि किसी व्यक्ति के धन और संपत्ति का एक हिस्सा वृद्ध और निर्बल माता-पिता को दे दिया जाए। ऐसे मामलों में भरण-पोषण की राशि, उस मृत व्यक्ति पर लागू होने वाले उत्तराधिकार के नियमों के अनुसार आंकी जाएगी। आपको जो राशि देय होगी वह न्यायालय कई कारकों पर विचारने के बाद तय करेगी जैसे:

  • कर्ज चुकाने के बाद, मृत सहायक की सभी संपत्तियों का पूरा मूल्य, जिसमें उसकी संपत्ति से मिलने वाली आय सम्मिलित हो,
  • उसकी वसीयत (यदि कोई हो) के प्रावधान
  • आपके रिश्ते की निकटता और प्रकृति
  • आपकी जरुरतें और आवश्कताएं (यथोचित गणना), या
  • उस पर, भरण-पोषण के लिए आश्रित लोगों की संख्या।

संतान द्वारा माता-पिता की देखभाल

भारतीय कानून के अनुसार, परिस्थितियों के आधार पर, सभी व्यक्तियों को अपने माता-पिता के भरण-पोषण और आश्रय की जिम्मेदारी लेना आवश्यक है, चाहे वो उनके जैविक माता-पिता हों, सौतेले हों, या दत्तक हों। ‘माता पिता और वरिष्ठ नागरिक के भरण-पोषण एवं देखभाल’ अधिनियम, 2007 एक विशेष कानून है जिसके तहत एक वरिष्ठ नागरिक (60 वर्ष से ऊपर) अपने वयस्क संतानों या कानूनी उत्तराधिकारी से भरण-पोषण के लिए न्यायधिकरण (ट्रिब्यूनल) में आवेदन कर सकते हैं। इन दोनों कानूनों के तहत आप भरण-पोषण के लिए आवेदन कर सकते हैं, यदि आप खुद अपनी देखभाल करने में असमर्थ हैं।

वरिष्ठ नागरिकों को परित्याग करने और उपेक्षा करने की सजा

यदि आप किसी वरिष्ठ नागरिक को किसी स्थान पर छोड़ देते हैं परित्याग करने के विचार से, और उनकी देखभाल नहीं करते हैं तो आपको इसके लिये तीन महीने तक का जेल और/या तो 5000 रुपये तक जुर्माने की सजा दी जा सकती है। पुलिस, किसी न्यायालय की अनुमति के बिना, गिरफ्तारी कर सकती है। फिर भी यह जमानती अपराध है। और यदि आप जमानती बॉण्ड अदा करते है तो आपको रिहा कर दिया जाएगा।

 

भरण-पोषण की कुल राशि / निर्वाह व्यय

भरण-पोषण के तौर पर दी जाने वाली कोई मानक राशि नहीं है। यह मामले के आधार पर तय किया जाता है। आपको ‘निर्वाह व्यय’ के लिये मिलने वाली राशि, न्यायालय कई तरह के कारकों में लेते हुए तय करेगी जैसेः

  • समर्थक / सहायक एवं आश्रितों की सामाजिक स्थिति एवं जीवन स्तर।
  • आपकी जरूरतें और आवश्यकताएं (यथोचित गणना)।
  • अगर आप अपने सहायक से अलग रह रहे हैं
  • सहायक की सभी संपत्तियों की आय, धन और मूल्य।
  • आपकी सभी संपत्तियों की आय, धन और मूल्य।
  • ऐसे व्यक्तियों की संख्या जिन्हें भरण-पोषण की रकम (निर्वाह व्यय) मिलनी है।

न्यायाधीश भरण-पोषण भत्ता देने की काल-अवधि तय करेगा, लेकिन ज्यादातर मामलों में आमतौर पर यह काल-अवधि, व्यक्ति की पूरी जिंदगी के लिए होती है।

हिंदू कानून के तहत भरण-पोषण का उत्तरदायित्व

जैविक/दत्तक माता-पिता जो हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख हैं और वृद्ध हैं, तो वे ‘हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण’ अधिनियम, 1956 के तहत अपने वयस्क संतानों से भरण-पोषण की मांग सकते हैं, यदि वे अपनी आय या संपत्ति से खुद का देखभाल करने में असमर्थ हैं। उनके बेटे या बेटी, यदि अब इस दुनियाँ में नहीं हैं, फिर भी माता-पिता अपने भरण-पोषण का दावा, अपने मृतक संतान के धन और संपत्तियों से कर सकते हैं।

‘आपराधिक प्रक्रिया संहिता’ (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसेड्यूर) के तहत भरण-पोषण

‘आपराधिक प्रक्रिया संहिता’ की धारा 125 के तहत यदि पर्याप्त संसाधनों वाला कोई व्यक्ति अपने माता-पिता को, जो अपने भरण-पोषण के लिये स्वयं को असमर्थ पाते हैं, उनकी देखभाल करने से मना करता है या अनदेखा करता है तो प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति को भरण-पोषण के लिए उन्हें मासिक भत्ता देने के लिए आदेश दे सकता है।

अस्थायी भरण-पोषण भुगतान

अपने संतानों या रिश्तदारों को, मासिक आधार पर अस्थायी भरण-पोषण का भुगतान करने का आदेश देने के लिए, आप न्यायालय में अर्जी दे सकते हैं। न्यायालय को इस बात का फैसला करना है कि आपके आवेदन के बारे में आपके संतानों या रिश्तोदारों को सूचित करने के 90 दिनों के भीतर, क्या आपको अस्थायी भरण-पोषण का भुगतान मिल सकता है। विशेष परिस्थितियों में वे इसके लिये कुछ और समय (यानी 30 दिन) दे सकते हैं। यह उच्चतम भरण-पोषण राशि नहीं है जो आप पाने की उम्मीद कर सकते हैं। न्यायालय फैसला कर सकती है कि आपको कोई भी भरण-पोषण भत्ता नहीं मिले, या फिर अपने अंतिम आदेश में आपके भरण-पोषण की राशि को बढ़ाने या घटाने का फैसला कर सकती है।

न्यायधिकरण से भरण-पोषण के लिए दावा करना

आप, ‘भरण-पोषण न्यायधिकरण’ (मेंटीनेन्स ट्रिब्यूनल) में ‘माता पिता और वरिष्ठ नागरिक के भरण-पोषण एवं देखभाल’ अधिनियम, 2007 के तहत अर्जी दे सकते हैं। आप अपनी अर्जी उस क्षेत्र के भरण-पोषण न्यायधिकरण में दे सकते है जहाँः

  • आप वर्तमान समय में रह रहें हैं, या
  • पहले रह चुके हैं, या
  • जहां आपकी संतान या रिश्तेदार रहते हैं।

जब आप एक बार ‘माता पिता और वरिष्ठ नागरिक के भरण-पोषण एवं देखभाल’ अधिनियम, 2007 के तहत न्यायधिकरण में अर्जी देते हैं तब आप आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 के तहत (जो भी आपको अधिकार देता है) भरण-पोषण के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं। कृपया याद रखें कि इस संहिता के तहत, मासिक भरण-पोषण की राशि पर कोई उच्चतम सीमा नहीं है जिसकी आप मांग कर सकते हैं। हालांकि यह प्रक्रिया लंबी हो सकती है।

प्रक्रिया

आपके द्वारा अर्जी दिये जाने के बाद (राज्य के आधार पर प्रारूपों में बदलाव होगा) न्यायालय पहले आपके संतानों को सूचित करेगा और उन्हें बतायेगा कि आपने ऐसी अर्जी दायर की है। तब न्यायालय इस मामले को, किसी ‘सुलह समझौता अधिकारी’ को भेज सकता है जो दोनो पक्षों को एक मैत्रीपूर्ण समझौते के लिए सहमत कराने का प्रयास करेगी। अगर न्यायालय इस मामले को वहाँ नहीं भेजती है तो वह दोनों पक्षों (माता-पिता, संताने या रिश्तेदार) की बात सुनेगी।

न्यायालय यह पता लगाने के लिए जांच कराएगी कि आपको अपने भरण-पोषण के लिये कितना दिया जाना चाहिये। हालांकि यह जांच पूरी तरह से कानूनी कार्यवाही नहीं है। कानूनन इन न्यायालयों में वकीलों द्वारा प्रतिनिधित्व की अनुमति नहीं है लेकिन हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि वकीलों के इनके इस अधिकार को सीमित नहीं किया जा सकता। यह न्यायालय स्वभाव से थोड़ा अनौपचारिक है लेकिन इनके पास सिविल कोर्ट की शक्तियां हैं और ये गवाहों की हाजिरी का आदेश दे सकती है, शपथ पर गवाही ले सकती है, इत्यादि।

अगर न्यायालय को पता चलता है कि संताने या रिश्तेदार, माता-पिता की देखभाल करने में लापरवाही कर रहे हैं तो वे उन्हें मासिक भरण-पोषण का भुगतान करने का निर्देश देते हुए आदेश पारित कर सकते हैं। न्यायालय यह भी आदेश दे सकती है कि आवेदन की तारीख से, भरण-पोषण की राशि पर ब्याज (5% से 8% के बीच) अदा किया जाए। अगर आपके संतान या माता-पिता कोर्ट के आदेश के बाद भी भरण-पोषण का भुगतान नहीं कर रहे हैं तो आप इसी तरह की किसी न्यायालय में (‘भरण-पोषण न्यायधिकरण’) जा सकते हैं और उस आदेश को लागू कराने की मदद मांग सकते हैं।