एक गिरफ्तारी तब होती है जब किसी व्यक्ति को पुलिस द्वारा शारीरिक रूप से हिरासत में लिया जाता है। किसी भी व्यक्ति को, पुलिस द्वारा उनकी गिरफ्तारी के कारणों को बिना बताये, और किस कानून के अंतर्गत उसकी गिरफ्तारी की जा रही है इसकी सूचना बिना दिये, हिरासत में नहीं लिया जा सकता है।
आम तौर पर, पुलिस को किसी को गिरफ्तार करने के लिए वारंट की आवश्यकता होती है। जिन अपराधों के लिए वारंट की आवश्यकता होती है उन्हें गैर-संज्ञेय अपराध कहा जाता है। एक गैर-संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर, पुलिस को मजिस्ट्रेट से किसी खास व्यक्ति को गिरफ्तार करने की अनुमति लेनी होगी। मजिस्ट्रेट से प्राप्त यह अनुमति, वारंट के रूप में जानी जाती है।
जब आपको गिरफ्तार किया जा रहा है, तो इससे पहले कि आप हिरासत में ले लिये जाएं, आप एक व्यक्ति (दोस्त या परिवार के सदस्य) को चुन सकते हैं जिन्हें, आपकी गिरफ्तारी की खबर पुलिस को देनी होगी। यदि गिरफ्तार व्यक्ति के दोस्त या परिवार किसी और जिले या शहर में रहते हैं, तो पुलिस को उन्हें. आपकी गिरफ्तारी के बारे में सूचित करना ही होगा। उन्हें निम्नलिखित जानकारी देनी होगी:
- गिरफ्तारी का समय
- गिरफ्तारी की जगह
- गिरफ्तार किये व्यक्ति को किस जगह हिरासत में रक्खा गया है
पुलिस, गिरफ्तारी के 8 से 12 घंटे की अवधि के अंदर, जिले की ‘कानूनी सहायता संगठन’ (‘लीगल एड ऑर्गनाइज़ेशन’) और उस क्षेत्र के पुलिस स्टेशन के माध्यम से, उसके रिश्तेदार या दोस्त को सूचित करती है।
जब आपकी गिरफ्तारी हो रही है, उस समय आपके पास कुछ अधिकार हैं, जो हैं:
- आप पुलिस से, उनकी पहचान पूछ सकते हैं क्योंकि उन्हें अपने पदनाम सहित नाम का स्पष्ट टैग पहने रहना चाहिये, जो सही हो, और साफ दिखे।
- आप पुलिस से अपने वकील को फोन करने के लिए कह सकते हैं। अगर आपका अपना वकील नहीं है या आप वकील का खर्चा बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं, तो आप न्यायालय से अपने लिए एक वकील नियुक्त करने के लिए निवेदन कर सकते हैं।
- आप पुलिस को, अपनी गिरफ्तारी का वारंट, पुलिस रिपोर्ट और आपकी गिरफ्तारी से संबंधित अन्य दस्तावेजों को दिखाने के लिए कह सकते हैं, और पुलिस को, यह सब आपको दिखाना ही होगा।
- आपको अपने हस्ताक्षर करने से पहले, पुलिस द्वारा तैयार किये गये गिरफ्तारी के ज्ञापन की सटीकता की जाँच जरूर कर लेनी चाहिए। गिरफ्तारी के ज्ञापन में गिरफ्तारी की तारीख और समय लिखित होना चाहिए, और कम से कम एक गवाह द्वारा प्रमाणित किया रहना चाहिए।
- पुलिस द्वारा आपको यह सूचित किया जाना चाहिए कि इस अपराध के लिए आपको जमानत मिल सकती है।
- आप किसी प्रशिक्षित डॉक्टर द्वारा, अपने शरीर पर प्रमुख और मामूली चोटों को जांच कराने के लिए कह सकते हैं और पुलिस को इसका पालन करना होगा। यदि आप उनकी हिरासत में हैं तो यह जाँच हर 48 घंटों पर की जानी चाहिए। इस शारीरिक जाँच को ‘निरीक्षण ज्ञापन’ (‘इन्सपेक्शन मेमो’) में दर्ज की जानी चाहिए और इस पर पुलिस अधिकारी द्वारा हस्ताक्षर किया जाना चाहिए। जब आप उनकी हिरासत में होते हैं तो पुलिस द्वारा अपराधी पर हिंसा करने से रोकने के लिए, यह किया जाता है।
- आपको हस्ताक्षरित निरीक्षण ज्ञापन की एक प्रति प्राप्त होनी चाहिए।
सूचित करना
गिरफ्तारी के 12 घंटों के भीतर, पुलिस अधिकारी को इसके बारे में पुलिस नियंत्रण कक्ष (पुलिस कंट्रोल रूम) को सूचित करना होगा:
- आपकी गिरफ्तारी के बारे में
- वह जगह जहां आपको हिरासत में रक्खा जा रहा है।
छान-बीन करना
जांच के दौरान पुलिस केस की छान-बीन करेगी और इसकी एक केस डायरी बनाएगी। केस डायरी एक अधिकारी द्वारा रखी गई दैनिक डायरी है जो जांच में होने वाली सभी घटनाओं का विवरण देती है। पुलिस मजिस्ट्रेट को, केस डायरी की प्रविष्टियों (एंट्रीज़) की एक प्रतिलिपि देने की जरूरत होगी।
आरोप पत्र (चार्जशीट )
जांच के आधार पर पुलिस फिर एक आरोप पत्र दायर करेगी। यदि आरोपी व्यक्ति पुलिस हिरासत में है तो, आरोप पत्र 90 दिनों के भीतर ही दायर कर दिया जाना चाहिए।
गिरफ्तारी करते समय, पालन किये जाने वाले आवश्यक सभी नियमों के अलावा, एक महिला को गिरफ्तार करते समय पुलिस को कुछ अन्य महत्वपूर्ण चीजों को ध्यान में रखना होगा। वे हैं:
- सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले एक महिला को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता (जब तक कि असाधारण परिस्थितियाँ हैं नहीं)।
- जब एक महिला को गिरफ्तार किया जा रहा है उस वक्त, एक महिला पुलिस सिपाही को उपस्थित रहना चाहिए।
- असाधारण परिस्थितियों में, जब रात में एक महिला को गिरफ्तार किया जाना है तो, महिला पुलिस अधिकारी को एक लिखित अनुमति, स्थानीय न्यायिक मजिस्ट्रेट से लेनी होगी।
- हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अब, कुछ हद तक इस नियम में ढ़ील दी है। अगर गिरफ्तार करने वाला अधिकारी समुचित रूप से संतुष्ट है और यदि महिला अधिकारी उपलब्ध नहीं है, और महिला अधिकारी की उपलब्धि में देरी, जांच में बाधा डाल सकती है, तो वह स्वयं जाकर महिला को गिरफ्तार कर सकता है। लेकिन गिरफ्तारी से ठीक पहले या, उसके तुरंत बाद उसे अपने ‘गिरफ्तारी ज्ञापन’ में, अपनी कार्यवाइयों के कारणों और परिस्थितियों के बारे में, बताना होगा।
हांला कि कानून के विभिन्न अधिकारियों को गिरफ्तारी करने का अधिकार है, वे आम तौर पर पुलिस द्वारा ही किए जाते हैं। पुलिस द्वारा गिरफ्तारी के बारे में अधिक समझने के लिए कृपया हमारे ‘व्याख्याता’ (‘एक्सप्लेनर’) को पढ़ें।
कानून, पुलिस के अलावा मजिस्ट्रेटों को, लोगों को गिरफ्तार करने और उन्हें हिरासत में लेने का अधिकार देता है अगर किसी व्यक्ति ने अपराध किया हो। दो प्रकार के मजिस्ट्रेट होते हैं, कार्यकारी मजिस्ट्रेट और न्यायिक मजिस्ट्रेट। एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट का उदाहरण है, तहसीलदार। और एक न्यायिक मजिस्ट्रेट का उदाहरण है न्यायाधीश।
कानून, कुछ परिस्थितियों में, सामान्य लोगों को भी गिरफ्तारी करने की अनुमति देता है अगर वे किसी और को एक गंभीर अपराध करते देखते हैं। ऐसे मामलों में, गिरफ्तार करने वाले व्यक्ति, उसको रोक कर रक्खे नहीं रह सकता है, बल्कि उसे बिना किसी अनावश्यक देरी के, निकटतम पुलिस स्टेशन में ले जाकर एक पुलिस अधिकारी को सौंप देना चाहिए।
अगर आपको पता है कि किसी व्यक्ति को, पुलिस या किसी प्राधिकारी ने हवालात में रक्खा है, या गिरफ्तार किया है लेकिन कोई कारण नहीं बता रहा है, तो ऐसे मामलों में, गिरफ्तार व्यक्ति या उसका कोई रिश्तेदार, भारत के किसी भी उच्च न्यायालय में या सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, बंदी प्रत्यक्षीकरण (ह्बीस कॉर्पस) याचिका दायर कर सकता है।
भारत का संविधान हर किसी को न्यायालय से यह निवेदन करने का मौलिक अधिकार देता है कि न्यायालय, गिरफ्तार करने वाले प्राधिकारी को, गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को पेश करने के लिये आदेश करे, और यह भी जाँच करे कि क्या यह गिरफ्तारी वैध है।
इस मौलिक अधिकार का उपयोग तब किया जाता है जब किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है और उसे एक ‘हवालात प्राधिकारी’ (डीटेनिंग ऑथोरिटी) की हिरासत में रक्खे रहता है:
- बिना गिरफ्तारी के कारणों के बारे में सूचित किए; या
- अपनी पसंद के कानूनी व्यवसायिक द्वारा बचाव किये जाने के अधिकार से वंचित कर दिया है।
यह मौलिक अधिकार अत्यंत ही व्यापक है। कब बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर किया जा सकता है इसे अधिक समझने के लिए कृपया किसी कानूनी व्यवसायी से बात करें।
कोई भी व्यक्ति जिसे गिरफ्तार किया गया है और पुलिस की हिरासत में रक्खा गया है, गिरफ्तारी के चौबीस घंटे की अवधि के अंदर उसे निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाना चाहिए। पुलिस द्वारा हर गिरफ्तार व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना इसलिए जरूरी है यह सुनिश्चित हो सके कि व्यक्ति की गिरफ्तारी के पीछे समुचित कानूनी आधार हैं। गिरफ्तारी के ज्ञापन समेत सभी दस्तावेजों की प्रतियों को, संबंधित मजिस्ट्रेट को उनके रिकॉर्ड के लिए भेजी जानी चाहिए। ऐसे मामलों में जब आरोपी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं किया जा रहा है, तो एक बंदी प्रत्यक्षीकरण (ह्बीस कॉर्पस) याचिका दायर की जा सकती है।
ऐसे मामलों में जहां पुलिस किसी वारंट के बिना गिरफ्तारी कर सकती है लेकिन उसकी राय यह है कि इसमें गिरफ्तारी की आवश्यकता नहीं है, तो ऐसे व्यक्ति को पुलिस अपने समक्ष, या किसी निर्दिष्ट स्थान पर पेश होने के लिए अधिसूचना जारी कर सकती हैं। हालांकि, इस तरह की अधिसूचना जारी करने के लिए यह शर्त है कि उसके खिलाफ कोई शिकायत दर्ज हो, या कुछ उचित संदेह मौजूद हो कि उसने ऐसा एक अपराध किया है।
जब किसी व्यक्ति को ऐसी अधिसूचना जारी की जाती है, तो उसे अधिसूचना की शर्तों का पालन करने के लिए कानूनी तौर पर बाध्य है। जब तक व्यक्ति उसका पालन करता रहता है, तब तक पुलिस उसे गिरफ्तार नहीं करेगी (जब तक कि उनका मत यह बने कि उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाना चाहिए, और यह मत लिखित में दर्ज किया गया हो कि अब गिरफ्तारी आवश्यक है)।
यदि पुलिस द्वारा अधिसूचना दिया गया व्यक्ति, अधिसूचना के निर्देशों का पालन नहीं करता है या स्वयं को पहचानने से इनकार करता है, तो पुलिस अधिकारी उसे अधिसूचना में उल्लेखित अपराध के लिए गिरफ्तार कर सकता है, और फिर पुलिस उस व्यक्ति के गिरफ्तारी का आदेश पाने के लिए न्यायालय से संपर्क करेगी।