अधिवक्ता कौन होता है?

एक अधिवक्ता वह व्यक्ति है, जो किसी न्यायिक अधिकारी के समक्ष किसी व्यक्ति के पक्ष को रखने के लिए बहस करता है। इसमें एक नागरिक (सिविल) मामला भी हो सकता है, जैसे किसी दो व्यक्तियों के बीच कॉन्ट्रेक्ट संबंधी विवाद हो, या कोई आपराधिक मामला, जिसमें अपराध करने वालों को राज्य जेल की सजा आदि के द्वारा दंडित कर सकता है। भारत के अधिकांश कानूनी पेशेवर अदालतों और अन्य न्यायिक निकायों में अपने मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

एक अधिवक्ता होने के लिए आवश्यक योग्यताएं

एक अधिवक्ता वह व्यक्ति है, जो अधिवक्ता अधिनियम के तहत किसी भी नामांकन सूचि (रौल) में नामांकित है।

नामांकन सूचि (रौल), स्टेट बार काउंसिल द्वारा तैयार की गई एक अनुरक्षित सूची है, जिसमें विशिष्ट परिषद के तहत पंजीकृत सभी अधिवक्ताओं के नाम रहते हैं। संबंधित स्टेट बार काउंसिल का कर्तव्य है कि वह नामांकन सूचि (रौल) तैयार करे और उसे बनाए रखे, और अधिवक्ताओं को सूचि में सूचीबद्ध करे। क्वालिफाई करने के लिए, अधिवक्ता के लिये आवेदन करने वाले व्यक्ति में निम्नलिखित योग्यताएं होनी चाहिए:

  • वह भारत का नागरिक हो। हालांकि, विदेशी नागरिक भी यहां वकालत कर सकते हैं यदि वे उन देशों से
  • आते हैं, जहां भारतीय नागरिक कानूनों का अभ्यास होता है।
  • व्यक्ति की उम्र कम से कम 21 साल हो।
  • कानून में डिग्री

आवेदन करने वाले व्यक्ति के पास कानून की डिग्री होनी चाहिए:

  • 12 मार्च 1967 से पहले, भारत के किसी भी विश्वविद्यालय से (इसमें स्वतंत्रता पूर्व भारत यानी 15 अगस्त 1947 से पहले के सभी विश्वविद्यालय शामिल हैं) होनी चाहिये।
  • 12 मार्च 1967 के बाद, भारत के किसी भी विश्वविद्यालय से, जो बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा मान्यता प्राप्त हो, और उसमें कानून में तीन वर्षीय पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता हो।
  • बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा मान्यता प्राप्त भारत के किसी भी विश्वविद्यालय से शैक्षणिक वर्ष 1967-68 या उसके पहले के किसी भी शैक्षणिक वर्ष से कानून (कम से कम दो शैक्षणिक वर्ष) में पढ़ाई की हो।
  • भारत के बाहर किसी भी विश्वविद्यालय से, जिसकी डिग्री को बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा मान्यता प्राप्त है।
  • एक बैरिस्टर के रूप में, जो 31 दिसंबर, 1976 से पहले, बार का सदस्य रहा है।
  • उच्च न्यायालय में एक अधिवक्ता के रूप में नामांकन के लिए, वह बम्बई या कलकत्ता के उच्च न्यायालयों द्वारा निर्दिष्ट परीक्षाओं को पास किया हो।
  • कोई अन्य विदेशी योग्यता जिसे बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा मान्यता प्राप्त हो। मान्यता प्राप्त विदेशी विश्वविद्यालयों की सूची के लिए यहां देखें।

अन्य शर्तें

नामांकन के लिए, एक आवेदक को आवश्यक स्टाम्प शुल्क का भुगतान अपने स्टेट बार काउंसिल को करना होगा। आवेदक को बार काउंसिल ऑफ इंडिया को रु.150 का नामांकन शुल्क, और संबंधित स्टेट बार काउंसिल को भी रु. 600 का नामांकन शुल्क भुगतान करना होगा।

इसके अलावा, एडवोकेट के रूप में अपने नामांकन करने के इच्छुक व्यक्तियों को अपने संबंधित स्टेट बार काउंसिलों द्वारा रक्खी गई किसी भी अन्य शर्तों को भी पूरा करना पड़ेगा। उदाहरण के लिए, दिल्ली बार काउंसिल को एडवोकेटों को यह घोषणा करने की आवश्यकता है कि वे किसी अन्य व्यापार, व्यवसाय या पेशे से नहीं जुड़े हैं। यदि वे किसी चीज़ में शामिल हैं, तो उन्हें नामांकन के समय इसके बारे में पूरी जानकारी देनी होगी।

न्यायालय के प्रति एक एडवोकेट का कर्तव्य

एक एडवोकेट को न्यायालयों में पेशेवर आचरण और शिष्टाचार के कुछ मानकों को बनाए रखना होता है।

न्यायालय में कर्तव्य

न्यायालय में एक एडवोकेट के रूप में उनके कुछ निम्नलिखित कर्तव्य हैं:

  • न्यायालय के समक्ष गरिमापूर्ण तरीके से व्यवहार करना। इसके अलावा, वे जब भी किसी न्यायिक अधिकारी के खिलाफ कोई गंभीर शिकायत करना चाहते हैं और इसका उनके पास उचित कारण है, तो एडवोकेट के पास कुछ अधिकार और कुछ कर्तव्य भी होते हैं, जिनके जरिए वे उचित अधिकारियों को अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। उदाहरण के लिए, एडवोकेटों से संबंधित शिकायतें, बार काउंसिल ऑफ इंडिया, स्टेट बार काउंसिलों और नोटरी / सरकारी काउंसिलों के कानूनी मामलों के विभाग को भेजी जा सकती हैं।
  • न्यायालय के प्रति सम्मान दिखाना।
  • न्यायधीश या किसी अन्य न्यायधीश के सामने लंबित किसी भी मामले के बारे में किसी भी न्यायधीश से निजी तौर पर संवाद नहीं करनी चाहिये। एडवोकेटों को किसी भी मामले के बारे में, किसी भी अवैध या अनुचित साधनों का उपयोग करके न्यायालय के फैसले को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
  • न्यायालय में प्रस्तुत होने योग्य व्यवहार से पेश आना। न्यायालय में रहते हुए, एक एडवोकेट को उचित कपड़े पहनने होते हैं जिसे न्यायालय में पहनने के लिए निर्दिष्ट किया जाता है।
  • न्यायधीश के समक्ष प्रस्तुत नहीं होना / बहस नहीं करना चाहिये, अगर न्यायधीश का संबंध एडवोकेट से किसी भी निम्नलिखित रूपों में से है:
    • पिता / मां
    • दादा
    • बेटा / बेटी
    • पोता
    • चाचा / चाची
    • भाई / बहन
    • भतीजा / भतीजी भगना/भगनी
    • चचेरा/ममेरा/मौसेरा/फूफेरा भाई /बहन
    • पति / पत्नी
    • ससुर / सास
    • दामाद / बहू
    • जीजा/साला / ननद / भाभी
  • न्यायालयों के अलावा सार्वजनिक स्थानों पर एडवोकेट का
  • गाउन / बैंड नहीं पहना चाहिये। एडवोकेट इसे केवल औपचारिक अवसरों पर, और बार काउंसिल ऑफ इंडिया या न्यायालय द्वारा निर्धारित स्थानों पर ही पहन सकते हैं।
  • अपने मुवक्किल के लिए ज़मानत के रूप में खड़ा नहीं हो सकते हैं।

नए मामले लेते समय एक अधिवक्ता के कर्तव्य

एक अधिवक्ता के कुछ कर्तव्यों में शामिल हैं:

  • अगर अधिवक्ता किसी प्रतिष्ठान के कार्यकारी समिति का सदस्य है जो उस प्रतिष्ठान के सामान्य मामलों का प्रबंधन करता है तो वह अधिवक्ता को ऐसे प्रतिष्ठान की तरफ से या उसके खिलाफ उपस्थित नहीं होना चाहिये। उदाहरण के लिए, यदि कोई अधिवक्ता किसी कंपनी का निदेशक है, तो वे वह उस कंपनी के विवाद में उपस्थित नहीं हो सकता है।
  • ऐसे मामले को नहीं लेना चाहिये, जिसमें अधिवक्ता का कोई वित्तीय हित हो।

अन्य अधिवक्ताओं या अन्य मुवक्किलों के प्रति कर्तव्य

एक अधिवक्ता का अपने विरोधी अधिवक्ता और विरोधी मुवक्किल के प्रति भी कर्तव्य होता है। एक अधिवक्ता को विरोधी पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता के साथ सीधे बातचीत नहीं करनी चाहिए। इसके अलावा, अधिवक्ताओं को अपने विपक्ष को किए गए वैध वादों को पूरा करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए, जैसे कि न्यायालय की तारीख पर उपस्थित होना, समय पर याचिकाओं का मसौदा तैयार करना, आदि।

कुछ अन्य कर्तव्य इस प्रकार के हैं:

विरोधी अधिवक्ताओं और विरोधी पक्षों के प्रति कोई अवैध या अनुचित व्यवहार नहीं करना चाहिए। अधिवक्ताओं को अपने मुवक्किलों को भी ऐसा करने से रोकना होगा।

  • उसे अपने मुवक्किल को भी अनुचित मार्ग का अनुसरण करने से रोकना चाहिये। अधिवक्ताओं को अपने मुवक्किल को न्यायालय या विरोधी पक्ष के संबंध में कुछ भी करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए, और उन्हें स्वयं भी ऐसा नहीं करना चाहिए। अधिवक्ता को अपने किसी भी ऐसे मुवक्किल का प्रतिनिधित्व नहीं करना चाहिए, जिसका आचरण अनुचित हो। अधिवक्ताओं को पत्र-व्यवहार और न्यायालय के बहस में गरिमापूर्ण भाषा का उपयोग करना चाहिए। उन्हें न्यायालय में बहस के दौरान किसी अनुचित भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिये।
  • जब कोई अधिवक्ता किसी मुवक्किल के मामले को ले लेता है तो काई अन्य अधिवक्ता उस मामले की पैरवी नहीं कर सकता है। हालांकि, बाद वाला अधिवक्ता पिछले वाले अधिवक्ता की स्वीकृति से ले सकता है।
  • यदि ऐसी स्वीकृति प्राप्त नहीं हो पाती है, तो अधिवक्ता को मुवक्किल के मामले की पैरवी करने के लिए न्यायालय की अनुमति लेनी होगी।

एक अधिवक्ता का अपने मुवक्किलों के प्रति कर्तव्य

ऐसे कई कर्तव्य हैं जो एक अधिवक्ता को अपने मुवक्किल के प्रति निभाने होते हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार के हैं:

मामलों को स्वीकार करना और मामले को छोड़ देना

एक अधिवक्ता

  • जब तक कि असाधारण परिस्थितियां उपस्थित न हों, वह किसी भी मामले को स्वीकार कर सकता है। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अगर कोई मुवक्किल आपकी फीस देने के लिए तैयार है, तो अधिवक्ता उस मुवक्किल का मामला लेने से इंकार नहीं कर सकता है, बशर्ते कि वह बहुत व्यस्त न हो। एक अधिवक्ता की फीस उसके पेशेवर प्रतिष्ठा और मामले की प्रकृति पर आधारित होगी।
  • किसी भी मामले को लेने के बाद उससे पीछे नहीं हटना चाहिये। हालांकि, अधिवक्ता पर्याप्त कारण बताकर और मुवक्किल को उचित नोटिस दे कर ऐसा कर सकता है। यदि अधिवक्ता किसी मामले से वापिस हटता है तो उसे कोई भी अनर्जित फीस वापिस करनी होगी।
  • उस मामले को न वो स्वीकार कर सकता है, न उसकी तरफ से उपस्थित हो सकता है, जिसमें उस अधिवक्ता को एक गवाह के तौर पर उपस्थित होना है।

मुवक्किल के प्रति निष्ठा

एक अधिवक्ता को

  • अपने मुवक्किल को, मामले के विपक्ष से जुड़े अपने संबंध, या किसी अन्य हित के बारे में पूर्ण और स्पष्ट रूप से प्रकट करना चाहिये।
  • सभी उचित और सम्मानजनक उपायों से अपने मुवक्किल के हितों की रक्षा करना है। अधिवक्ताओं को इस सिद्धांत के प्रति निष्ठा रखनी चाहिए और मुवक्किल के अपराध के बारे मे अपनी राय के चलते उसका मामला लेने से नहीं मुकरना चाहिये। मुवक्किल के अपराध के बारे मे अपनी राय के एक तरफ रखकर उन्हें अपने मुवक्किल को बचाना चाहिए।
  • किसी निर्दोष को दंड दिलवाने के लिये काम नहीं करना चाहिये। उदाहरण के लिए, अधिवक्ताओं को ऐसी किसी सामग्री को नहीं छुपानी चाहिए जो किसी आपराधिक मामले में किसी व्यक्ति की बेगुनाही को स्थापित करता हो।
  • केवल मुवक्किल या मुवक्किल के एजेंट के निर्देशानुसार काम करना चाहिये।
  • यदि एक अधिवक्ता ने मुकदमे के किसी भी चरण में एक मुवक्किल को सलाह दी हो, उसके लिये कार्य किया हो, उपस्थित हुआ हो, या बहस किया हो तो वह विरोधी पक्ष की तरफ से न कभी प्रस्तुत हो सकता है, न कभी बहस कर सकता है।

मुवक्किल के हितों की रक्षा करना।

अधिवक्ताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे:

  • कोई फीस मामले के परिणाम के आधार पर निर्धारित न करें। एक अधिवक्ता को उन लाभों को साझा करने के लिए सहमत नहीं होना चाहिए जो लाभ उसके मुवक्किल को उस मामले से प्राप्त होंगे।
  • मुवक्किल के विश्वास का दुरुपयोग न करें, न उससे लाभ उठायें।
  • मुवक्किल द्वारा दिए गए पैसों का स्पष्ट हिसाब रखें।
  • यदि मुवक्किल फीस देने में सक्षम है तो उससे फीस उतने पैसे से कम न लें जिस पर कर लग सकता है।

इनमें से किसी भी कर्तव्य को करने में विफल होने पर एक अधिवक्ता पर व्यावसायिक दुराचार (प्रोफेशनल मिस्कंडक्ट) का अभियोग लगेगा, और एक मुवक्किल अधिवक्ता के विरोध में अपनी शिकायत उपयुक्त फोरम में दर्ज कर सकता है।

एक अधिवक्ता के खिलाफ शिकायत दर्ज करना

एक अधिवक्ता के खिलाफ शिकायत, उस अधिवक्ता द्वारा पेशा संबंधित, या उसके किसी दुराचार यानी अनुचित व्यवहार से संबंधित हो सकता है। ऐसा व्यवहार या कृत्य जो ‘दुराचार’ को दर्शाता हो उन्हें किसी भी बड़ी सूची से भी परिभाषित नहीं किया जा सकता। हमें यह ध्यान देने की ज़रूरत है अधिवक्ता की काम एक कुलीन पेशा है, और समाज में उनके लिए उच्च मानक तय किए गए हैं, जिनकी अपेक्षा एक अधिवक्ता से की जाती है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनका कानून में स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन अतीत में कई अनुशासनात्मक कार्य देखने को मिले हैं, जैसे कि एक अधिवक्ता ने अपने मुवक्किल को चाकू से धमकाने की कोशिश की, इत्यादि।

शिकायत करने के लिए फोरम

एक अधिवक्ता के खिलाफ शिकायत दर्ज करने के लिए स्टेट बार काउंसिल एक उपयुक्त फोरम है। स्टेट बार काउंसिल शिकायत प्राप्त होने पर, या अपने स्वयं के प्रस्ताव पर, उस अधिवक्ता के खिलाफ दुराचार का मामला अपनी अनुशासन समितियों में से किसी एक के पास दर्ज कर सकती है।

इसके अलावा, बार काउंसिल ऑफ इंडिया की अनुशासनात्मक समिति के पास यह अधिकार है कि वह किसी स्टेट बार काउंसिल में किसी लंबित कार्यवाही को वापस लेकर, मामले पर स्वयम् ध्यान दे।

शिकायत प्राप्त होने के एक वर्ष बाद से अधिक होने पर भी यदि मामला स्टेट बार काउंसिल के समक्ष लंबित रहता है, तो यह मामला बार काउंसिल ऑफ इंडिया को स्थानांतरित कर दिया जाता है। यदि कोई व्यक्ति स्टेट बार काउंसिल के निर्णय से संतुष्ट नहीं है तो उन्हें, निर्णय होने के 60 दिनों के भीतर, बार काउंसिल ऑफ इंडिया को अपील करने का अधिकार है। यदि व्यक्ति बार काउंसिल ऑफ इंडिया के फैसले से भी असंतुष्ट है तो वह, उनके निर्णय के 60 दिनों के भीतर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटा सकता है।

शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया

स्टेट बार काउंसिल एक अधिवक्ता के खिलाफ उन्हीं शिकायतों को स्वीकार करते हैं, जो याचिका के रूप में होती हैं, और जो विधिवत हस्ताक्षरित और सत्यापित (वेरिफाइड) होती हैं। यदि आप इसके लिये फॉर्मेट जानना चाहते हैं, तो आप अपने स्टेट बार काउंसिल से संपर्क कर सकते हैं, जिसके पास शिकायत दर्ज करने का एक निर्धारित मानक फॉर्मेट होता है जो फीस भरने पर मिलता है। इसके अतिरिक्त, यह फॉर्मेट अंग्रेजी, हिंदी या संबंधित राज्य की भाषा में भी होता हैं।

किसी व्यक्ति द्वारा शिकायत दर्ज करने के बाद, स्टेट बार काउंसिल की अनुशासन समिति इस मामले की जांच करती है।

एक अधिवक्ता को दंडित करना

जब किसी अधिवक्ता के खिलाफ शिकायत दर्ज हो जाती है, तो स्टेट बार काउंसिल की अनुशासन समिति उस अधिवक्ता को खुद को बचाव करने का अवसर देती है। इसके अलावा, जांच के दौरान राज्य के एडवोकेट जनरल भी मौजूद रहते हैं। जांच के बाद, समिति निम्नलिखित कार्रवाई कर सकती है:

  1. वह अधिवक्ता को फटकार लगा सकती है;
  2. निर्धारित समय के लिए अधिवक्ता को निलंबित कर सकती है;
  3. राज्य की सूचि (रौल) से अधिवक्ता का नाम हटा सकती है;
  4. दर्ज की गई शिकायत को खारिज कर सकती है।