संवैधानिक उपचार का अधिकार कितने प्रकार के होते हैं?

आखिरी अपडेट Oct 9, 2024

कुल पांच प्रकार के संवैधानिक उपचार उपलब्ध हैं। वे इस प्रकार से हैं:

1. हैबियस कॉर्पस/ बंदी प्रत्यक्षीकरण
‘हैबियस कॉर्पस’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है, किसी भी व्यक्ति को ‘सशरीर कोर्ट में पेश करना’, इसका मतलब कि बंदी को प्रत्यक्ष रूप से कोर्ट में पेश करना। इस संदर्भ में, कोर्ट का आदेश होता है कि, रिट याचिका में जिस किसी व्यक्ति की चर्चा है उसको कोर्ट में पेश किया जाए। यदि किसी व्यक्ति को अवैध रूप से प्रतिबंधित या कैद किया गया है और उसे उसकी मौलिक स्वतंत्रता के अधिकारों से वंचित किया गया है, तो उसके लिए ‘हैबिअस कॉर्पस’ की एक रिट याचिका दायर की जा सकती है ताकि अदालत से उसकी रिहाई को सुनिश्चित करने के लिए कहा जा सके। अदालत किसी भी लोक सेवक (अधिकारी), जिसके पास कोई व्यक्ति अवैध रूप से उसकी हिरासत में है, अदालत उसको हैबिअस कॉर्पस की रिट जारी कर सकता है, और कोर्ट उस व्यक्ति (कैदी) को अदालत में पेश करने के लिए उस अधिकारी को आदेश दे सकता है। इस प्रकार, अदालत किसी भी व्यक्ति के हिरासत की परिस्थितियों की जांच करती है और गैर-कानूनी ढंग से लिए गए हिरासत के विरुद्ध आवश्यक निर्णय दे सकती है। कैदियों के अवैध अमानवीय व्यवहार के मामलों में भी अदालत ‘हैबिअस कॉर्पस’ की रिट जारी कर सकती है। हैबिअस कॉर्पस का आवेदन हिरासत में लिया गया व्यक्ति या तो खुद याचिका दायर कर सकता है या कोई अन्य व्यक्ति, जो कैदी को पहचानता है, उसकी ओर से याचिका दायर कर सकता है।
उदाहरण के लिए, यदि किसी कैदी के साथ जेल में दुर्व्यवहार किया जा रहा है, तो वह इस दुर्व्यवहार के खिलाफ हैबिअस कॉर्पस की याचिका दायर कर सकता है।

2. मेंडमस/ (कोर्ट का आदेश या परमादेश)
अदालत किसी भी प्राधिकरण/प्राधिकारी को अपने सार्वजनिक कर्तव्य का क़ानूनी रूप से पालन करने का आदेश देने के लिए ‘मेंडमस’ की एक रिट जारी कर सकता है। इसे कानूनन लागू कराने के लिए, यह बताना आवश्यक है कि सार्वजनिक प्राधिकरण/प्राधिकारी का यह अनिवार्य कानूनी कर्तव्य है, और याचिकाकर्ता का यह कानूनी अधिकार है। हालांकि, भारत के राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल या फिर विधान-मंडल के अधिकारियों (स्पीकर, चेयरमैन, आदि) के खिलाफ लोग ‘मेंडमस’ की रिट याचिका दायर नहीं कर सकते हैं। मेंडमस की याचिका का आवेदन करने से पहले, याचिकाकर्ता को उस प्राधिकरण/प्राधिकारी से संपर्क करके अपने अधिकारों को सुनिश्चित करने की स्पष्ट मांग करनी पड़ती है। संपर्क करने के बावजूद जब प्राधिकरण/प्राधिकारी इससे इनकार करता है, तब मेंडमस याचिका के लिए आवेदन किया जा सकता है।
जैसे, समझने के लिए, यदि, बार-बार शिकायतों के बावजूद, एक नगर निगम किसी क्षेत्र में पानी की आपूर्ति देने की अपने कानूनी कर्तव्यों को करने से मना करता है, तो उस क्षेत्र में रहने वाला कोई भी व्यक्ति उस नगर निगम को अपना काम करने के लिए एक मेंडमस याचिका दायर कर सकता है।

3. सर्टयोरेरी की रिट/याचिका
सर्टयोरेरी की रिट/याचिका तब लागू होती है जब कोई प्राधिकारी या उच्चतर न्यायालय अपने क़ानूनी सीमा को लांघता है, जिससे किसी नागरिक के अधिकारों का हनन होता है। अदालत किसी भी निचले न्यायिक प्राधिकरण/निचली अदालत ऐसे किसी आदेश को रद्द करने के लिए सर्टयोरेरी रिट जारी कर सकती है जो बिना किसी अधिकार या अपनी कानूनी शक्तियों को लाँघ कर लिया गया निर्णय हो।
उदाहरण के लिए, यदि कोई औद्योगिक ट्रिब्यूनल, गैर-औद्योगिक मामलों में ऐसा कोई निर्णय देता है, जो उसके अधिकार क्षेत्र के बाहर है, तो पीड़ित व्यक्ति औद्योगिक ट्रिब्यूनल/न्यायालय के उस निर्णय को रद्द करने के लिए के लिए सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में सर्टयोरेरी की रिट/याचिका दायर कर सकता है।

4. रोक याचिका/स्टे आर्डर/प्रतिबन्ध/निषेधादेश न्यायालय निचली अदालत/ट्रिब्यूनल
न्यायालय निचली अदालत/ट्रिब्यूनल को किसी ऐसे मामले पर कानूनी कार्यवाही को रोकने का आदेश देने के लिए ‘रोक याचिका’ जारी कर सकता है जो उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर हो। इस याचिका का प्रयोग निचली अदालत को अपने कानूनी अधिकार की सीमा से बाहर जाने से रोकने के लिए किया जाता है और यह सुनिश्चित किया जाता है वह अपनी न्यायिक सीमा को न लांघे। रोक याचिका का प्रयोग उस स्थिति में भी किया जा सकता है जब एक निचली अदालत/न्यायिक प्राधिकारी ने निष्पक्ष न्याय के नियमों का पालन नहीं किया है, अर्थात वह पक्षपात करता है या दोनों पक्षों को नहीं सुनता है।
उदाहरण के लिए, यदि कोई औद्योगिक ट्रिब्यूनल/न्यायालय बिना किसी अधिकार के गैर-औद्योगिक विवाद में निर्णय लेता है, तो ऐसे में एक पीड़ित व्यक्ति उस औद्योगिक ट्रिब्यूनल के लिए गए फैसले पर रोक लगाने के लिए हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में एक ‘रोक याचिका’ दायर कर सकता है।

5. क्यू वारंटो/ अधिकार पृच्छा
एक याचिका है जिसके माध्यम से किसी व्यक्ति से यह पूछा जाता है कि उसने किस अधिकार या शक्ति के तहत निर्णय लिया है। ‘क्यू वारंटो’ रिट एक ऐसा कानून है जिसके आधार पर अदालत किसी भी ऐसे व्यक्ति से प्रश्न पूछ सकता है कि किन प्रमाणों के आधार पर यह निश्चित किया जाए कि उस पद पर आसीन रहने का उसका वास्तविक अधिकार है। यदि उन्हें उस सार्वजनिक पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है, तो उन्हें कोर्ट के आदेश द्वारा उस पद से हटाया जा सकता है। यह कानून कार्यपालिका द्वारा किसी सार्वजनिक कार्यालय या पद पर किये जाने वाले अवैध नियुक्तियों को नियंत्रित करता है, और नागरिकों को ऐसे लोगों से बचाता है जो अवैध रूप से सार्वजनिक पद पर आसीन होकर नागरिकों को उनके अधिकारों से वंचित रखते हैं। क्यू वारंटो की याचिका करने के लिए, याचिकाकर्ता को अदालत में यह दिखाना होता है कि यह कार्यालय या पद एक सार्वजनिक कार्यालय/पद है और इस पद पर बने रहने के लिए उस व्यक्ति के पास कोई कानूनी अधिकार नहीं है। इससे इस बात की जांच की जाती है कि उस अधिकारी की नियुक्ति कानूनी रूप से सही है या नहीं।
उदाहरण के लिए, यदि किसी को लगता है कि विधान सभा के अध्यक्ष/स्पीकर के पास स्पीकर पद पर बने रहने की योग्यता नहीं है, तो वे इस नियुक्ति के खिलाफ पूछताछ करने तथा क्यू वारंट का आदेश जारी करने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं।

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