विरासत अधिकार क्या हैं?

आखिरी अपडेट May 6, 2025

अचल संपत्ति के मामलों में, किसी व्यक्ति की मौत के बाद संपत्ति के मालिकाना हक को सौंपना या संपत्ति के मालिकाना हक में बदलाव को विरासत अधिकार कहते हैं। किसी की मौत के बाद संपत्ति के स्वामित्व को सही से सौंपने का आदर्श तरीका वसीयतनामा (वसीयत) है। विरासत के बारे में और ज्यादा जानने के लिए यहां पढ़ें। 

अगर कोई वसीयतनामा नहीं है, तो उस संपत्ति के बंटवारे का फैसला विरासत कानून के तहत होता है। भारत में संपत्ति के उत्तराधिकार के कानून को व्यक्तिगत कानून, प्रथागत कानून और विधायी कानून नियंत्रित करते हैं। विस्तृत रूप से, ये कानून हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 और इस्लामी व्यक्तिगत कानून हैं ।

हिंदू विरासत कानून के तहत, एक व्यक्ति/ मालिक अपनी खुद की जमा संपत्ति के साथ कुछ भी कर सकता है, लेकिन पैतृक संपत्ति के साथ नहीं। पैतृक संपत्ति के हस्तांतरण में प्रतिबंध हैं। ये कानून परिवार के कुछ सदस्यों को पैतृक संपत्तियों पर जन्मसिद्ध अधिकार देता है। हिंदू विरासत कानून के तहत ‘पुत्र’ और ‘पुत्री’ यानी बेटा-बेटी को उनकी मां या पिता की संपत्ति में एक समान हिस्सेदारी का अधिकार है। यहाँ  ‘पुत्र’ और ‘पुत्री’ शब्दों में गोद लिए पुत्र और पुत्रियां आते हैं, लेकिन सौतेले बच्चे नहीं।

अगर जीवित लोगों का अचल संपत्ति पर कोई विवाद है और संपत्ति मालिक के पास वसीयतनामा नहीं है, तो वे कोर्ट में मुकदमा दायर कर सकते हैं।

विरासत के मुस्लिम कानून में, व्यक्तिगत कानून इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति किस उप-संप्रदाय यानी सुन्नी या शिया से है। कानूनों को संहिताबद्ध नहीं किया गया है, मतलब उन्हें तय करने वाला कोई अधिनियम नहीं है। हनफी कानून को मानने वाले सुन्नियों के लिए, व्यक्तिगत कानून अंतिम संस्कार के खर्चों, घरेलू नौकरों की बकाया मजदूरी और ऋणों को देने के बाद बची संपत्ति के अधिकतम एक-तिहाई तक विरासत को प्रतिबंधित करता है।

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वसीयतनामा (वसीयत) एक लिखित दस्तावेज है, जिसे एक व्यक्ति यह बताने के लिए बनाता है कि उनकी संपत्ति और धन को उनके वंशजों के बीच कैसे बांटा जाएगा। भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925  तहत वसीयतनामा को बनाना और उसे लागू  करना होता है। यह अधिनियम इस्लाम को छोड़कर सभी धर्मों पर लागू होता है।

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