कोई भी पीड़ित व्यक्ति जिसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया हो, वह हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर कर के संवैधानिक उपचार पा कर सकता है।
हैबिअस कॉर्पस/ बंदी प्रत्यक्षीकरण और मेंडमस/ परमादेश के लिए, पीड़ित व्यक्ति के अलावा कोई अन्य व्यक्ति भी उस विशेष मुद्दे की मांग करने के लिए याचिका दायर कर सकता है। यह समझना जरूरी है कि सभी मौलिक अधिकार हर एक व्यक्ति को एक समान प्राप्त नहीं हैं।
उदाहरण के लिए, ‘रोजगार में समान अवसर का अधिकार’ और ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार’ केवल देश के नागरिकों तक ही सीमित हैं। वहीं दूसरी तरफ, ‘जीवन जीने का अधिकार’/ प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण और कानून के नजर में ‘समान व्यवहार का अधिकार’ जैसे मौलिक अधिकार सभी लोगों के लिए है, चाहे वो देश के नागरिक हों या गैर-नागरिक। कोई भी व्यक्ति अपने किसी भी मौलिक अधिकार को पाने के लिए संवैधानिक उपचार/गुहार की मांग कर सकता है, और एक रिट याचिका दायर कर सकता है।