मध्यस्थता एक आउट-ऑफ-कोर्ट समझौता है जहां पार्टियां कार्यवाही के तरीके को तय कर सकती हैं। यह विवादों के शीघ्र निपटारे में मदद करता है।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 ने प्रावधान पेश किया है कि पार्टियों के बीच समझौते की गुंजाइश होने पर संबंधित आयोग, किसी उपभोक्ता विवाद में मध्यस्थता की सिफारिश कर सकता है। हालांकि, मध्यस्थता की प्रक्रिया को स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए पार्टियों को 5 दिन की समय सीमा दी जाती है; इसके लिए सहमति महत्वपूर्ण है। एक बार जब विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजा जाता है, तो विवाद निवारण के लिए आयोग को भुगतान किया गया शुल्क पार्टियों को वापस कर दिया जाता है।
मध्यस्थता की प्रक्रिया
मध्यस्थता की कार्यवाही निम्नलिखित तरीके से की जा सकती है-
चरण -1: यह एक ‘उपभोक्ता मध्यस्थता प्रकोष्ठ’ में संचालित किया जाएगा जिसमें विवादों को निपटाने के लिए मध्यस्थों का एक पैनल होगा। यह प्रकोष्ठ मामलों की सूची और कार्यवाही के रिकॉर्ड का रखरखाव करता है।
चरण -2: मामले का फैला करते समय प्रत्येक मध्यस्थ से निष्पक्ष और विवेकपूर्ण कार्य करने की अपेक्षा की जाती है। कार्यवाही शुरू होने से पहले मध्यस्थ को शुल्क का भुगतान भी किया जाता है।
चरण-3: दोनों पक्षों की उपस्थिति में मध्यस्थता की जाएगी और वह गोपनीय रहेगी।
चरण -4: पार्टियों को मध्यस्थ को सभी प्रासंगिक जानकारी और दस्तावेज़ उपलब्ध कराने चाहिए।
चरण 5: यदि सभी पक्षमध्यस्थता की कार्यवाही के बाद, 3 महीने के भीतर, किसी समझौते पर आते हैं, तो पार्टियों के हस्ताक्षर के साथ एक ‘निपटान रिपोर्ट’ आयोग को भेजी जाएगी।
चरण -6: पार्टियों की ‘निपटान रिपोर्ट’ प्राप्त होने के 7 दिनों के भीतर संबंधित आयोग को एक आदेश पारित करना आवश्यक है।
चरण -7: यदि मध्यस्थता के माध्यम से कोई समझौता नहीं हुआ है, तो कार्यवाही की एक रिपोर्ट के माध्यम से आयोग को सूचित किया जाता है। आयोग तब संबंधित उपभोक्ता विवाद के मुद्दों को सुनेगा और मामले का फैसला करेगा।
चरण -8: मध्यस्थता प्रक्रिया से गुज़रने के बाद विवाद को अन्य कार्यवाही, जैसे पंचाट या अदालती मुकदमे में नहीं ले जाया जा सकता।
शिकायतें जिनका समाधान मध्यस्थता से नहीं हो सकता
हालांकि, निम्नलिखित मामलों को मध्यस्थता के लिए निर्दिष्ट नहीं किया जा सकता-
• गंभीर चिकित्सीय लापरवाही या जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु हो जाती है।
• धोखाधड़ी, जालसाज़ी, ज़बरदस्ती।
• किसी भी पक्ष द्वारा अपराध-वर्धन के लिए आवेदन। इसका मतलब यह है कि इन अपराधों को लेकर कार्यवाही, पार्टियों के बीच जुर्माने के भुगतान पर तय की जा सकती है, बशर्ते कि इस तरह के अपराध की पुनरावृत्ति 3 साल की अवधि में न हुई हो।
• फौजदारी अपराध और जनहित के मुद्दे। इनमें उस जनता से जुड़े मुद्दे शामिल हैं जो मामले की पक्षकार नहीं है। उदाहरण के लिए, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर इलेक्ट्रॉनिक बैंक लेनदेन के मामले में गोपनीयता का उल्लंघन।