विश्वविद्यालयों की जिम्मेदारियां

विश्वविद्यालय परिसर में किसी भी उम्र की कोई भी महिला (छात्रा, शिक्षण और गैर शिक्षण कर्मचारी) यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज करा सकती है। कार्यस्थलों के अलावा विश्वविद्यालयों को भी यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए भी काम करना होगा।

कॉलेजों में निम्नलिखित चीजों को सुनिश्चित करना होगा:

  • उनके यौन उत्पीड़न नियमों को, भारतीय कानून के यौन उत्पीड़न नियमों को अनुकूल बनायें
  • यौन उत्पीड़न के शिकायतों को गंभीरता से लें, दोषी को कठोरता से दंडित करें और यह सुनिश्चित करें कि वे कानूनन जरूरी कार्यवाहियों का सामना करें।
  • कर्मचारी और छात्राओं में यह जानकारी सुनिश्चित करें, कि यौन उत्पीड़न का शिकार होने की स्थिति में, उन्हें क्या करना है और किसको शिकायत करनी है।
  • सुनिश्चित करें कि परिसर अच्छी तरह से प्रकाशित है, सुरक्षित और भय-रहित है
  • एक आंतरिक शिकायत समिति की स्थापना, प्रशिक्षण और रखरखाव करना
  • मामलों के विवरण के साथ, वार्षिक वस्तु स्थिति (स्टेटस) रिपोर्ट तैयार करना और अर्धवार्षिक समीक्षा करना कि यौन उत्पीड़न की नीतियां किस हद तक ठीक काम कर रही हैं।

जिन कार्यस्थलों पर आंतरिक शिकायत समिति नहीं है

अगर आप असंगठित क्षेत्र या किसी छोटे प्रतिष्ठान में कार्य करते हैं, जिनकी अपनी आंतरिक शिकायत समिति नहीं है तो आप जिला अधिकारी द्वारा स्थापित की गई स्थानीय शिकायत समिति से संपर्क कर सकते हैं।

निम्नलिखित लोग स्थानीय शिकायत समिति में अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं:

  • 10 से कम कर्मचारियों वाली संस्था में काम करने वाली महिलाएं
  • घरेलू कामकाजी महिलायें
  • जब शिकायत स्वयं नियोक्ता के खिलाफ हो

मुआवज़ा

पीड़िता को मुआवजे के तौर पर मिलने वाली राशि, निम्नलिखित चीजों पर आधारित है:

  • पीड़िता को जिन मानसिक आघात और यातनाओं को भुगतना पड़ा उसके आधार पर
  • यौन उत्पीड़न की वजह से खोेए हुए नौकरियों के अवसर के आधार पर
  • मेडिकल इलाज (शारीरिक या मनोविकृति संबंधित) जिसे पीड़िता की आवश्यकता है, उसके आधार पर
  • पीड़िता की आय और उसकी सामान्य आर्थिक स्थिति के आधार पर

समिति यह तय कर सकती है कि मुआवजे का पैसा किस्तों में अदा किया जाए या सभी एक बार में दिया जाय।