लिखित में
- शिकायत का प्रारूप (ड्राफ्ट) तैयार करना
- शिकायत की छह प्रतियां बनाएं
- शिकायत के साथ, उन सहायक दस्तावेजों को जो शिकायत के समर्थन में हों, उसे भी जमा करें
- उन गवाहों के नाम और पते जरूर दर्ज़ कराएं जो आपके शिकायत का समर्थन कर रहे हैं।
- यौन उत्पीड़न के तीन महीने के अन्दर आप अपनी शिकायत ‘आंतरिक शिकायत समिति’* को सौंपें।अगर आप अपनी शिकायत को खुद नहीं लिख पा रहे हैं तो समिति आपकी मदद कर सकती है। आवश्यकता अनुसार आपकी ओर से किसी और द्वारा भी शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। यदि आप औपचारिक तौर से शिकायत दर्ज नहीं कराना चाहते हैं तो समिति दूसरे व्यक्ति के साथ स्थिति को सुलझाने की कोशिश करा सकते हैं। इस प्रकार समस्या का निवारण हो सकता है, इसे कानून के भाषा में ‘सुलह’ (कनसिलिएशन /conciliation) कहा जाता है।
ऑनलाइन शिकायत
आप ‘शी-बॉक्स’ SHe-Box. के जरिए ‘महिला एवं बाल विकास मंत्रालय’ की वेबसाइट पर भी शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
वो कार्य-व्यवहार जिन्हें कानून के अनुसार यौन उत्पीड़न माना जाता है, निम्नलिखित हैं:
- स्पर्श करना या कोई अन्य तरीके का शारीरिक संपर्क, जो दूसरे व्यक्ति को अच्छा नहीं लगता हो
- सेक्स या अन्य किसी तरह की यौन क्रिया के लिए अनुरोध करना या तकाजा करना
- यौन संबंधित बातें करना या इशारे करना
- अश्लील साहित्य / चित्र (पोर्नोग्राफी) किसी रूप में दिखाना-उदाहरण के लिये वीडियो, पत्रिकाएँ या किताबें।
- कोई अन्य क्रियाएं भी हो सकती हैं जो यौन से संबंधित हों। वे ऐसी बातें हो सकती हैं जिन्हें कहा जा सकता है, ऐसी चीजें हो सकती हैं जो लिखी जा सकती हैं, या शरीर को स्पर्श करने की क्रिया।
जिन कार्यवाइयों को यौन उत्पीड़न के तौर पर देखा जाता है, उसे समझने में यह सरकारी हैंडबुक आपकी मदद कर सकती है कि।
अगर कोई कहता है कि आपने उनको यौन उत्पीड़ित किया है तो आप उसे गंभीरता से ले। यदि आपका नियोक्ता (इंप्लॉयर) आपके खिलाफ किसी यौन उत्पीड़न की सुनवाई कर रहा है, और आप लगातार तीन बार ग़ैरहाज़िर रहते हैं, तो फैसला सुनाये जाने के बाद ही आपको अपना पक्ष रखने का अवसर मिलेगा। सिर्फ महिलाएँ ही अपने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से संरक्षित है, लेकिन यौन उत्पीड़न करने वाला व्यक्ति महिला या पुरूष, कोई भी हो सकता है।
आरोपी के अधिकार
- वारंट के बिना आपको गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
- आपका यह अधिकार है कि शिकायत दर्ज होने के 7 दिन के अंदर शिकायत की एक प्रतिलिपि आपको मिल जाये।
- आपको आरोप का जवाब देने का अधिकार है। आरोप लगाने वाले व्यक्ति से दस्तावेज मिलने के 10 कार्यदिवस के अंदर आप अपने दस्तावेजों और गवाहों की सूची सौंप सकते हैं।
- आपको वकील नियुक्त करने का अधिकार है, लेकिन वह तब ही उपयोगी है जब आप ‘शिकायत समिति’ से बात करते हैं।
- आपको समिति द्वारा दिए गए निर्णय के खिलाफ अपील करने का अधिकार है।
अगर ‘आंतरिक शिकायत समिति’ (इंटरनल कमप्लेन कमिटी) जाँच के दौरान यह तय करती है कि आपके खिलाफ यौन उत्पीड़न का दावा सच नहीं है तो आपको दंड नहीं दिया जाएगा। लेकिन, अगर वे इस दावे सही मानते हैं तो समिति आपके नियोक्ता (इंप्लॉयर) या जिला अधिकारी को, दंड के कुछ ऐसे विकल्प दे सकती है जिससे आपको दंडित किया जाय।
अगर आप यौन उत्पीड़न की शिकार हैं तो आप आपने काम के वातावरण को सुरक्षित/अनुकुल बनाने के लिए ‘शिकायत समिति’ को लिखकर निम्नलिखित उपायों की यह मांग कर सकते हैं:
- उस व्यक्ति को, जिस पर उत्पीड़न का आरोप लगाया गया है, आपके काम पर टिप्पणी (रिपोर्टिंग) करने से रोका जाय, और/ या किसी और को यह काम करने के लिये चुना जाय।
- यदि यौन उत्पीड़न की घटना एक अकादमिक वातावरण (शिक्षण संस्थान) में हुई तो आरोपित व्तक्ति को पर्यवेक्षण (सुपरवाइज़िंग) कार्य से हटा दिया जाय।
कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के सभी मामलों के लिए कानून एक ही तरह की सजा नहीं होती है। इसके बजाय, जांच करने वाली समिति यह सिफारिश करेगी कि पीड़िता के नियोक्ता के पास यदि अपने कार्यस्थल का ‘सेवा नियमावली’ है, तो वे उसके मुताबिक काम करे। अगर आपके पास ‘कर्मचारी हैंडबुक’ है तो उसे देखे कि आपका नियोक्ता यौन उत्पीड़क को कैसे दंडित करता है। यदि कार्यस्थल का ‘सेवा नियमावली’ नहीं हैं तो समिति सिफारिश करेगी कि जिला अधिकारी कार्रवाई करे। सजा के रूप में एक अभियुक्त को:
- लिखित माफीनामा देना होगा -बढ़ोतरी / पदोन्नति / वेतन वृद्धि से इंकार कर दिया जायेगा
- सामुदायिक सेवा करनी होगी
- चेतावनी दी जाय या निंदा की जाय
- काम से निलम्बित कर दिया जाय -काउंसेलिंग करवानी होगी
कार्यस्थल पर ‘सेवा नियमावली’ हो या नहीं, समिति यह भी सिफारिश कर सकती है कि नियोक्ता अभियुक्त के वेतन/मजदूरी से एक निश्चित राशि काट ले ताकि प्रताड़ित होने वाली महिला को मुआवजा अदा किया जा सके। यदि नियोक्ता अभियुक्त के वेतन से पैसा नहीं ले सकता क्योंकि वे काम नहीं कर रहे हैं या काम छोड़ चुके हैं तो समिति अभियुक्त को सीधे पीड़िता को मुआवजा देने का आदेश दे सकती है। अगर अभियुक्त ने मुआवजे का भुगतान नहीं किया तो समिति जिला अधिकारी से कह सकती है कि वह अभियुक्त से मुआवजे की राशि वसूल करे।
पीड़िता के नाते आपको यह अधिकार है कि आप अपने शिकायत और उसके बाद होने वाली कार्यवाही को व्यक्तिगत (निजी) रक्खें। कानून यह गारंटी देता है कि निम्नलिखित जानकारियाँ निजी हैं:
- आपकी पहचान और पता
- जिस व्यक्ति पर आप आरोप लगाते हैं उसकी पहचान और पता, साथ ही गवाहों के पहचान और पता।
- समिति द्वारा किए जा रहे सुलह /’कंसिलिएशन’ (‘शब्दावली’ में देखें कि इसका क्या मतलब है) या जांच के बारे में जानकारी।
- आंतरिक समिति या स्थानीय समिति की सिफारिशें
- नियोक्ता या जिला अधिकारी द्वारा की गई कारवाई
उपरोक्त सभी सूचनाओं को सार्वजनिक, प्रेस या मीडिया में किसी भी तरह से प्रकाशित, संप्रेषित या प्रसारित नहीं किया जा सकता है
कानून के तहत किसी नियोक्ता को महिलाओं के लिए सुरक्षित कार्य माहौल बनाने के लिए कुछ कदम उठाने होते हैं।
कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से सुरक्षित महसूस करना चाहिए; अपने सहकर्मियों से, साथ साथ अन्य लोगों से भी जो सिर्फ कार्यस्थल का दौरा करते हैं। अतः यह नियोक्ताओं के लिए जरूरी है कि वे कम्पनी के यौन उत्पीड़न नीति को इस तरह प्रदर्शित करें कि सबको यह स्पष्ट दिखे। उन्हें यह आदेश भी दर्शाना होगा कि ‘आंतरिक शिकायत समिति’ को गठित किया गया है, जिसे कर्मचारियों के साथ-साथ कार्यस्थल पर आने वाले आगंतुक भी देख सकेंगे।
नियोक्ताओं के लिये अनिवार्य है कि वेः
- एक विस्तृत यौन उत्पीड़न नीति बनायें और उसे प्रस्तुत करें
- कर्मचारियों को यौन उत्पीड़न के मुद्दे से अवगत करायें
- कार्यस्थल पर समितियों का गठन करें जिससे कि यौन उत्पीड़न की शिकार महिला कर्मचारी समिति के पास अपनी शिकायत दर्ज कर सकें।
- सुनिश्चित करें कि समिति के सदस्य समुचित संख्या में हों, और अच्छी तरह से प्रशिक्षित हों।
- प्रति वर्ष एक सालाना रिपोर्ट तैयार करें और उसे राज्य सरकार को भेज दें।
जिला अधिकारी भी एक नोडल अफसर को नियुक्त करेंगे, जो स्थानीय स्तर पर शिकायत ले सकता है।
10 से अधिक कर्मचारियों वाले कार्यस्थलों पर एक ऐसी समिति गठित करना आवशयक है जो विशेष रूप से यौन उत्पीड़न के मामलों को संभालती है। इसे ‘आंतरिक शिकायत समिति’ के नाम से जाना जाता है। इस समिति में ये लोग शामिल होने चाहिए:
- वरिष्ठ स्तर की कार्यरत महिला हो, जो समिति की सभापति होगी
- यदि मामला छात्रों से संबंधित है, तो तीन छात्र सदस्य
- गैर सरकारी संगठन या ऐसी संस्था का एक सदस्य जो महिलाओं की विषयों के प्रति प्रतिबद्ध हो, या फिर ऐसा व्यक्ति जो यौन उत्पीड़न के मामलों से अच्छी तरह परिचित हो। इस सदस्य को उनकी सदस्यता/सेवा के लिए भुगतान किया जायेगा।
- इसके कम से कम आधे सदस्य महिलाएं होंगी
- वरिष्ठ प्रशासनिक पदों पर आसीन लोग, जैसे कुलपति, रजिस्ट्रार, डीन, या विभागाध्यक्ष इसके सदस्य नहीं हो सकते हैं।
- सदस्यों के लिए तीन साल का कार्यकाल होगा। उच्च शिक्षण संस्थान ऐसी व्यवस्था लागू कर सकते हैं जहां हर साल, एक तिहाई सदस्य बदलते रहते हैं।
यदि सभापति अपनी शक्तियों का उल्लंघन करते हुए कार्यवाई करता है तो उन्हें हटा दिया जाएगा और नया नामांकन किया जायेगा।
आंतरिक शिकायत समिति को, शिकायत लेने और उचित समय के अंदर जाँच करने के लिए, अधिनियमों का पालन करना होगा। कंपनी या संस्था को, आंतरिक शिकायत समिति को जाँच पूरी करने के लिए जो चीजें जरूरते हों, उसे उपलब्ध करानी होगी।
झूठी शिकायत यदि किसी खास मकसद से की गई है, या समिति को फर्जी दस्तावेजों दी गई तो कानून इसे बहुत गंभीरता से लेता है। यदि कोई पीड़िता या उससे संबंधित कोई अन्य व्यक्ति, इनमें से कोई भी कार्य करता है तो उसे कार्यस्थल के सेवा नियमों के आधार पर दंडित किया जा सकता है। अगर कोई सेवा नियमावली नहीं हैं तो उनके खिलाफ की जाने वाली कारवाई समिति द्वारा तय की जा सकती है। सजा के तौर पर अभियुक्त को:
- लिखित माफीनामा देना होगा
- अभियुक्त को चेतावनी दी जायेगी या निंदा की जायेगी
- अभियुक्त की पदोन्नति रुक सकती है
- अभियुक्त की वेतन वृद्धि रुक सकती है
- अभियुक्त को काम से निलम्बित किया जा सकता है
- अभियुक्त को मनोविश्लेषक के पास काउंसलिंग सेशन के लिए भेजना पड़ सकता है
- अभियुक्त को सामुदायिक सेवा करनी पड़ सकती है
यदि कोई पीड़िता समिति को पर्याप्त सबूत देने में असमर्थ है, इसका यह मतलब नहीं है कि उसकी शिकायत झूठी है। समिति को यह पता लगाना होगा कि क्या उसने किसी खास उद्देश्य से झूठी शिकायत की है।
उदाहरण के तौर पर, अगर ईशा रोहित के खिलाफ शिकायत करती हैं लेकिन उसमें न कोई गवाह है, ना ही कोई दस्तावेज, या ना ही कुछ ऐसा दिखता है जिससे लगता है कि उसका यौन उत्पीड़न किया गया है, तो भी उसकी शिकायत को झूठा नहीं माना जायेगा। लेकिन अगर ईशा ने, किसी दोस्त को ईमेल लिखकर यह बताया है कि उत्पीड़न के बारे उसने झूठ बोला है तो उसकी शिकायत को दुर्भावनापूर्ण या झूठा माना जायेगा।
विश्वविद्यालय परिसर में किसी भी उम्र की कोई भी महिला (छात्रा, शिक्षण और गैर शिक्षण कर्मचारी) यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज करा सकती है। कार्यस्थलों के अलावा विश्वविद्यालयों को भी यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए भी काम करना होगा।
कॉलेजों में निम्नलिखित चीजों को सुनिश्चित करना होगा:
- उनके यौन उत्पीड़न नियमों को, भारतीय कानून के यौन उत्पीड़न नियमों को अनुकूल बनायें
- यौन उत्पीड़न के शिकायतों को गंभीरता से लें, दोषी को कठोरता से दंडित करें और यह सुनिश्चित करें कि वे कानूनन जरूरी कार्यवाहियों का सामना करें।
- कर्मचारी और छात्राओं में यह जानकारी सुनिश्चित करें, कि यौन उत्पीड़न का शिकार होने की स्थिति में, उन्हें क्या करना है और किसको शिकायत करनी है।
- सुनिश्चित करें कि परिसर अच्छी तरह से प्रकाशित है, सुरक्षित और भय-रहित है
- एक आंतरिक शिकायत समिति की स्थापना, प्रशिक्षण और रखरखाव करना
- मामलों के विवरण के साथ, वार्षिक वस्तु स्थिति (स्टेटस) रिपोर्ट तैयार करना और अर्धवार्षिक समीक्षा करना कि यौन उत्पीड़न की नीतियां किस हद तक ठीक काम कर रही हैं।