Mar 9, 2022

रामायण और महाभारत में कानूनों के आधुनिक संस्करण

Sumeysh Srivastava

हिंदू कैलेंडर के अनुसार दिवाली और उससे पहले के दिन सबसे अधिक उत्सव वाले दिन हैं। ये त्योहार बुराई पर अच्छाई के विजय के प्रतीक हैं। यह वह समय है, जब लोग अपने घरों को सजाते हैं या उनका नवीनीकरण करते हैं, नए कपड़े खरीदते हैं और रिश्तेदारों को तोहफे देते और लेते हैं। यह एक ऐसा समय भी है, जिसमें प्राचीन भारतीय साहित्य से जुड़ी कहानियां, मुख्य रूप से रामायण विभिन्न रूपों में देखी और सुनी जाती है। पूरे देश भर में रामलीला का प्रदर्शन होता है। दिवाली से कई कहानियां और किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं, लेकिन मुख्य रूप से दिवाली को उस दिन के रूप में जाना जाता है, जब भगवान राम, राक्षस-राज रावण के वध के बाद अयोध्या लौटे थे।

इस ब्लॉग में, हम आधुनिक कानूनों और नियमों के नजरिए से प्राचीन भारतीय साहित्य में विभिन्न कहानियों में उल्लिखित कुछ घटनाओं और नियमों को जानेंगे। हमने इसको दो भागों में बांटा है; पहला, जहां इन महाकाव्यों में दिए गए नियमों से आधुनिक समय के कानूनी नियमों का पता लगाया जा सकता है और दूसरा, जिसमें हम देखेंगे कि वर्तमान भारतीय कानून इन कहानियों में वर्णित कुछ स्थितियों में कैसे लागू होते हैं।

प्राचीन भारतीय साहित्य और आधुनिक अंतर्राष्ट्रीय कानून

 

लंका के साथ युद्ध की शुरूआत करने से पहले, राम ने सीता की शांतिपूर्ण वापसी सुनिश्चित करने और युद्ध से बचने हेतु हनुमान को रावण के दरबार में दूत के रूप में भेजा था। रावण ने हनुमान को मारने के लिए इस अवसर का उपयोग करने की योजना बनाई। हालांकि, उनके अपने भाई विभीषण ने उन्हें याद दिलाया कि राजदूत या दूत की हत्या करना राजधर्म, या राजाओं के कर्तव्य के खिलाफ होता है। इस सिद्धांत को राजनयिक संबंधों 1961 पर वियना कन्वेंशन के अनुच्छेद 29 में दिखाया गया है, वियना कन्वेंशन राजनयिक प्रतिरक्षा और विशेषाधिकारों को नियंत्रित करता है। इस अनुच्छेद के तहत एक राजनयिक एजेंट या दूत को गिरफ्तार या हिरासत में नहीं लिया जा सकता। उसे राज्य के मेहमान के रूप में दर्जा दिया जाना चाहिए और यह सुनिश्चित करने के लिए सभी कदम उठाए जाने चाहिए कि उसे किसी भी तरह से नुकसान न पहुंचे। “एक राजनयिक एजेंट को किसी भी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता। उसे गिरफ्तार या नजरबंद नहीं किया जा सकता। राज्य उचित सम्मान के साथ उससे व्यवहार करेगा और उस व्यक्ति की स्वतंत्रता या गरिमा पर किसी भी हमले को रोकने के लिए सभी उचित कदम उठाएगा।

 

 

रावण के खिलाफ युद्ध के दौरान, राम ने लक्ष्मण को सामूहिक विनाश हेतु अस्त्रों का उपयोग करने से मना किया था, जिनसे लंका से सभी निर्दोष जनों की हत्या की जा सकती थी, इसमें निहत्थे लोग भी शामिल थे। इसी प्रकार, महाभारत में, अर्जुन ने कौरवों के खिलाफ युद्ध में पाशुपास्त्र का उपयोग करने से परहेज किया था। इसी तरह के प्रावधान युद्ध के समय जिनेवा कन्वेंशन रिलेटिव ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविलियन पर्सन्स और साथ ही प्रथागत अंतरराष्ट्रीय कानून में पाए जाते हैं। भेद और आनुपातिकता के सिद्धांतों को प्रथागत अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत मान्यता प्राप्त है। इन सिद्धांतों के अनुसार, युद्धरत पार्टियों / राज्यों को किसी भी ऐसे हथियार का उपयोग करने से प्रतिबंधित किया जाता है जो निहत्थे नागरिकों को गंभीर चोट पहुंचा सकते हैं। इसे सिर्फ सैन्य लाभ के लिए उचित नहीं ठहराया जा सकता। जिनेवा कन्वेंशन के अतिरिक्त प्रोटोकॉल 1 के अनुच्छेद 51 (4) के तहत नागरिकों पर अंधाधुंध हमला करना प्रतिबंधित है। अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय के रोम संविधि के अनुच्छेद 8 में भी युद्ध की परिभाषा के तहत इसे शामिल किया गया है।

 

 

ऋग्वेद में कुछ नियमों के अनुसार, “किसी पर पीछे से हमला करना, तीर की नोक पर जहर लगाकर उसे चलाना, और बीमार या बूढ़े, बच्चों और महिलाओं पर हमला करना जघन्य अपराध है”। इसी तरह के प्रावधान युद्ध के समय जिनेवा कन्वेंशन रिलेटिव ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविलियन पर्सन्स, के अतिरिक्त प्रोटोकॉल 1 के अनुच्छेद 35, और कुछ कन्वेंशनल हथियारों पर कन्वेंशन के प्रोटोकॉल II के अनुच्छेद 3 और 6 में मिलते हैं। उदाहरण के लिए, डमडम की गोलियां, जो लगने के बाद फैलती हैं, इस प्रावधान के तहत इन्हें प्रतिबंधित किया है। इस प्रावधान के पीछे का विचार यह है कि किसी भी तरह के सैन्य लाभ के लिए आप किसी को भी हद से ज्यादा चोट नहीं पहुंचा सकते।

 

 

महाभारत में, धर्म-युद्ध का भी उल्लेख है, जो निष्पक्ष और धार्मिक युद्ध हेतु युद्ध के कुछ नियमों को निर्धारित करता है। उदाहरण के लिए युद्ध की समय सीमा तय करना, किसी घायल योद्धा को नहीं मारना, युद्ध बंदियों की रक्षा करना, आदि। इसी तरह के प्रावधान 1899 और 1907 के हेग सम्मेलनों में भी हैं, जो जमीन पर किए जाने वाले युद्ध के नियमों को बताते हैं।

 

 

अग्नि पुराण के पाठों में भी कहा गया है कि वह सैनिक जो हथियार डालकर आत्मसमर्पण कर देता है शत्रु को उसे मारना नहीं चाहिए और दुश्मन के घायल सैनिकों को चिकित्सा सहायता दी जानी चाहिए। प्रथागत अंतरराष्ट्रीय कानून के हिस्से के रूप में विभिन्न सम्मेलनों या कन्वेंशन में ऐसे प्रावधान पाए जा सकते हैं, जो युद्ध के कैदियों को बुनियादी आवश्यकताएं प्रदान करने के बारे में बताते हैं।

 

 

प्राचीन भारतीय साहित्य और आधुनिक भारतीय आपराधिक कानून के अनुप्रयोग

 

रावण के साथ राम के युद्ध का मुख्य कारण रावण द्वारा सीता का अपहरण है। सीता को उनके लिए बनाए गए सुरक्षा घेरे (लक्ष्मण रेखा) से बाहर निकालने के लिए रावण ने छल किया था और उनकी इच्छा के विरुद्ध उन्हें लंका ले गया। आज इस तरह का कृत्य भारतीय दंड संहिता की धारा 362 और 366 में सम्मिलित है। धारा 362 अपहरण से संबंधित है, और इसमें 7 साल तक की जेल की सजा का प्रावधान है। इसके अलावा, धारा 366 एक महिला को शादी हेतु मजबूर करने के लिए उसके अपहरण को अपराध मानती है और इसमें 10 साल तक की सजा दी जा सकती है।

 

 

रामायण में सबसे प्रसिद्ध प्रसंगों में से एक हनुमान द्वारा लंका को जलाना है। किंवदंती के अनुसार, रावण अपने दरबार में हनुमान को उनका ओहदा न देकर उनका अपमान करने की कोशिश करता है। हालांकि, हनुमान अपनी पूंछ बढ़ाते हैं और अपने लिए एक सिंहासन बनाते हैं, जो रावण के सिंहासन से ऊंचा होता है। क्रोधित होकर, रावण हनुमान की पूंछ को आग लगाने का आदेश देता है। हालांकि, यह दांव उलटा पड़ जाता है क्योंकि हनुमान को दर्द नहीं होता और वे अपनी पूंछ में लगी आग से पूरी लंका को जला डालते हैं। आज हनुमान जैसी कार्रवाई सार्वजनिक संपत्ति अधिनियम, 1984 की क्षति की रोकथाम की धारा 4 को दर्शाती है, जो आग या विस्फोटक पदार्थों से सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने से रोकती है और इसके लिए 1 से 10 साल तक जेल की सजा दी जा सकती है। भारतीय दंड संहिता की धारा 436 में भी इसी तरह का प्रावधान है, जिसमें आग का इस्तेमाल किसी को नुकसान पहुंचाने या संपत्तियों को जलाने के लिए नहीं किया जा सकता।

 

 

राम द्वारा दिए गए आदेश की अवज्ञा करने के बाद लक्ष्मण ने सरयू नदी में अपना जीवन समाप्त करने का फैसला किया था। पहले, भारतीय दंड संहिता की धारा 309 के अनुसार, जो भी आत्महत्या का प्रयास करेगा, उसे एक साल की जेल और / या जुर्माना हो सकता था। हालांकि, मेंटल हेल्थकेयर एक्ट की धारा 115 में धारा 309 को अमान्य कर दिया गया है, और कहा गया है कि ऐसा हो सकता है कि धारा 309 की परवाह किए बिना, आत्महत्या करने का प्रयास करने वाले किसी भी व्यक्ति को गंभीर तनाव हो, और इसके तहत उस व्यक्ति को किसी भी तरह से दंडित नहीं किया जाएगा। सरकार का कर्तव्य है कि वह गंभीर तनाव से जूझ रहे उस व्यक्ति को देखभाल, उपचार और पुनर्वास प्रदान करे, जिसने आत्महत्या करने का प्रयास किया है, ताकि उस व्यक्ति द्वारा आत्महत्या के अन्य प्रयासों के जोखिम को कम किया जा सके।

धार्मिक ग्रंथों में इस तरह की अन्य घटनाओं और नियमों को देखा जा सकता है, इसलिए आप कमेंट में अपने सुझाव देने में झिझक महसूस न करें।

क्या आपके पास कोई कानूनी सवाल है जो आप हमारे वकीलों और वालंटियर छात्रों से पूछना चाहते हैं?

Related Guest Blogs

March 09 2022

कृषि विधेयक : भारत के कृषि क्षेत्र में कौन से बदलाव ला रहा है

जून 2020 में, संसद में तीन कृषि विधेयक पेश किए गए-कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक, 2020, कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020। जबकि इन विधेयकों का इरादा कृषि क्षेत्र में सुधार करना है, इसके बावजूद इन पर व्यापक […]
Read More >

March 09 2022

मुंबई आपल्या प्रसिद्ध पथ विक्रेत्यांचे संरक्षण करीत आहे?

मुंबई, स्वप्नांचे शहर, फक्त श्रीमंत आणि श्रीमंत लोकांसाठी शहर नाही तर रस्त्यावर जाणा-या प्रत्येक व्यक्तीची काळजी घेते. शहरातील रस्त्यावर फिरत असताना, एकास रस्त्यावर विक्रेत्या बूथच्या समोर रंगीत  भेट दिली. हे बूथ मोबाईल फोन उपकरणे आणि हस्तकलेच्या वस्तू यासारख्या जास्त मागणी असलेल्या वस्तूंसाठी फळ आणि भाज्या या मूलभूत वस्तूंची विक्री करतात. रस्त्यावर विक्रेत्यांचे मुख्य आकर्षण अर्थातच […]
Read More >