भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों पर गाइड

गाइड में किन कानूनों पर बात होगी?

इस गाइड में, भारत के संविधान में शामिल ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 और ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) नियम 2020 के प्रावधानों पर बात होगी।

ऐसे कानून क्यों बनाए गए?

सामाजिक स्वीकृति की कमी के कारण ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को समाज का हिस्सा नहीं माना जाता है। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को आमतौर पर उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है और वहीं उनके लिए जीवित रहने के साधन और कमाई के तरीके कम हैं। माता-पिता को लगता है कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति का होना अपमानजनक है, क्योंकि इससे परिवार को शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को इस तरह की परेशानी शादी के मामले में भी होती है। इस अधिनियम का मकसद, इन मुद्दों के साथ ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से जुड़ी दूसरी सभी परेशानियों को हल करना है।

इस कानून का मकसद क्या है?

ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 (“कानून”) देश में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा और उनके कल्याण के लिए बनाया गया है। यह कानून पूरे भारत में लागू होता है।

ट्रांसजेंडर व्यक्ति कौन होते हैं? 

कानून के अनुसार, ट्रांसजेंडर व्यक्ति वह व्यक्ति होता है, जिसका लिंग जन्म के समय मिले लिंग से मेल नहीं करता है।
नीचे बताए व्यक्तियों को ट्रांसजेंडर व्यक्ति कहते हैं:

  • ट्रांस-पुरुष
  • ट्रांस-महिला
  • इंटर सेक्स (अंतर-लिंग) भिन्नता वाले व्यक्ति
  • क्वीयर व्यक्ति
  • किन्नर, हिजड़ा, अरवानी और जोगता जैसी सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान वाले व्यक्ति

भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्ति की कानूनी स्थिति क्या है?

भारत में, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को कानूनी रूप से ‘तीसरे लिंग’ या ‘अन्य’ के तौर पर मान्यता मिली है। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को भारत में  हर किसी की  तरह ही सारे अधिकार मिलते हैं।  इसके साथ ही, उन्हें भारत के संविधान के तहत अपने मौलिक अधिकारों को इस्तेमाल करने का भी अधिकार है।  2014 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले (नालसा बनाम भारत संघ और अन्य (2014) में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को भारत में ‘तीसरे लिंग’ के रूप पहचान दी।

सभी ट्रांसजेंडर व्यक्ति अनुच्छेद 14 (समानता), अनुच्छेद 15 (भेदभाव से आजादी), अनुच्छेद 16 (सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर), अनुच्छेद 19 (1) (ए) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार) और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन जीने का अधिकार) जैसे मौलिक अधिकारों के हकदार हैं। वहीं 2020 में, संसद ने कानूनी रूप से ‘ट्रांसजेंडर’ को भारत में आधिकारिक लिंग के रूप में पहचान दी है।

ट्रांसजेंडर व्यक्ति की लिंग पहचान

लिंग पहचान क्या होती है?

‘लिंग पहचान’ व्यक्ति के किसी खास लिंग के होने की मानसिक भावना को बताती है। इस बात का चुनाव तब किया जाता है, जब कोई व्यक्ति अपने शरीर, शारीरिक बनावट, बातचीत और तौर-तरीकों आदि से खुद को समझता है। अगर कोई व्यक्ति अपनी पहचान उस लिंग के साथ नहीं करता, जो उसे जन्म के दौरान मिला है, तो वे किसी और लिंग में अपनी पहचान कर सकता है।

लिंग पहचान बदलने के लिए मेडिकल विकल्प क्या हैं?

लिंग पहचान को समझने, स्वीकार करने और व्यक्त करने की प्रक्रिया को ‘ट्रांज़िश्निंग’ कहा जाता है। इसे नीचे बताए मेडिकल विकल्पों के द्वारा करते हैंः

  • हॉर्मोन थेरेपी: इसमें दवाओं का इस्तेमाल से किसी व्यक्ति की यौन पहचान को बढ़ाने या घटाने का काम किया जाता है।
  • जेंडर अफर्मेटिव थेरेपी (जीएटी): यह मनोवैज्ञानिक परामर्श से लेकर सेक्स रिआइनमेंट सर्जरी तक की एक प्रक्रिया है, जिसका मकसद व्यक्ति के बाहरी रूप को बदलना होता है। जीएटी की मदद से व्यक्ति अपनी चुनी हुई लिंग पहचान के साथ ज्यादा जुड़ पाते हैं। उदाहरण के लिए, रीता को जन्म के समय महिला के रूप में पहचाना गया, लेकिन बड़े होने पर वह खुद को पुरुष महसूस करती है। वह स्तन हटाने की सर्जरी के माध्यम से अपने बाहरी रूप को मर्दाना बनाने के लिए जेंडर अफर्मेटिव थेरेपी (जीएटी) करवा सकती है।
  • करेक्टिव सर्जरी / इंटरसेक्स सर्जरी: जब पुरुष और महिला जननांगों के बीच कोई अंतर नहीं होता है, तो यौन पहचान और जननांगों में बदलाव लाने के लिए इन प्रक्रियाओं का इस्तेमाल होता है। उदाहरण के लिए, एक बच्चा जब पुरुष और महिला दोनों जननांगों के साथ पैदा हुआ है और वह खुद की पहचान एक पुरुष के तौर में करता है। इस तरह के मामले में, वह पुरुष लिंग को ज्यादा मजबूत करने के लिए  करेक्टिव सर्जरी / इंटर-सेक्स सर्जरी करवा सकता है।

ध्यान रखें:

 किसी व्यक्ति को अपनी लिंग पहचान बताने के लिए किसी भी शारीरिक बदलाव/मेडिकल प्रक्रिया से गुजरना ज़रूरी नहीं है। कोई व्यक्ति लैंगिक तौर पर खुद कैसा महसूस करता है, इस आधार पर भारत का कानून किसी व्यक्ति को अपनी लिंग पहचान चुनने की आजादी देता है। व्यक्ति की शारीरिक बनावट उसके द्वारा चुनी गई लिंग पहचान को प्रभावित नहीं करती हैं।

क्या कानून व्यक्ति को अपनी ‘लिंग पहचान’ चुनने की अनुमति देता है?

हां! कानून किसी भी व्यक्ति को अपनी ‘लिंग पहचान’ चुनने की अनुमति देता है।

राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ और अन्य (2014) के ऐतिहासिक मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों को “तीसरे लिंग” के तौर में पहचाना। इस फैसले में, केंद्र और राज्य सरकारों को भी ट्रांसजेंडर अधिकारों की सुरक्षा के लिए सामाजिक कल्याण योजनाओं और दूसरे जरूरी प्रावधानों को तैयार और विनियमित करने के लिए कहा गया था।

केस स्टडी: अंजलि गुरु संजना जान बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य (2021) के मामले में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने देखा कि ग्राम पंचायत चुनावों के लिए याचिकाकर्ता ने खुद को एक महिला बताया, जबकि वह एक ट्रांसजेंडर थीं और इसके कारण उनका आवेदन खारिज हो गया। अदालत ने माना कि याचिकाकर्ता को अपने लिंग की खुद पहचान करने का अधिकार है और इसके बाद उनके आवेदन को स्वीकार कर लिया गया।

नोट: केंद्र और राज्य सरकारों को भी तीसरे लिंग के व्यक्तियों को  सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के रूप में मान्यता देने के लिए काम करना होगा। जिसके तहत वे शैक्षणिक संस्थानों और सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण के हकदार हैं। सरकार का यह कर्तव्य है कि वह सभी दस्तावेजों में “तीसरे लिंग” को कानूनी मान्यता दे। ज्यादा जानकारी के लिए, आप LGBTQ+ के लिए पहचान प्रमाण पर न्याया द्वारा लिखे लेखों को पढ़ सकते हैं।

क्या आधिकारिक तौर पर किसी व्यक्ति की लिंग पहचान दर्ज की जा सकती है?

हां! 

ट्रांसजेंडर कानून में, आप आधिकारिक तौर पर एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति के रूप में अपने लिंग को इस तरह रिकॉर्ड कर सकते हैंः

चरण 1: ट्रांसजेंडर व्यक्ति के तौर पर पहचान का प्रमाण पत्र लेने के लिए जिला मजिस्ट्रेट को आवेदन करें। नाबालिग ट्रांसजेंडर के लिए, आवेदन उसके माता-पिता या कानूनी अभिभावक कर सकते हैं। अगर माता-पिता/अभिभावक आवेदन नहीं करते हैं, तो ट्रांसजेंडर व्यक्ति, बालिग (18 साल या उससे ज्यादा उम्र) होने के बाद आवेदन कर सकता है। हर जिले में यह प्रक्रिया अलग-अलग हो सकती है, इसलिए एक बार अपने जिले स्तर पर जांच कर लें।

चरण 2: जिला मजिस्ट्रेट आपके जमा किए गए आवेदन के आधार पर पहचान का प्रमाण पत्र जारी करेंगे।

चरण 3: ट्रांसजेंडर व्यक्ति का लिंग जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय द्वारा बनाए गए आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज किया जाएगा।

चरण 4: अगर ट्रांसजेंडर व्यक्ति पहचान पत्र जारी होने के बाद  अपने लिंग की पुष्टि के लिए किसी भी प्रकार की मेडिकल प्रक्रिया से गुजरते हैं, तो ट्रांसजेंडर व्यक्ति को नए लिंग के बारे में जिला मजिस्ट्रेट को सूचित करना चाहिए। साथ ही आपको चिकित्सा अधीक्षक या मुख्य चिकित्सा अधिकारी के द्वारा जारी किए प्रमाण पत्र भी देने होंगे।

चरण 5: इसके बाद जिलाधिकारी संशोधित(दूसरा बदलाव वाला)  प्रमाण पत्र जारी करेंगे।

आवेदन पत्र और हलफनामे का एक सैम्पल फॉर्म नीचे दिए गए सेक्शन में है।

पहचान पत्र जारी करवाने के लिए कौन से दस्तावेज़ जरूरी हैं?

नीचे बताए दस्तावेजों द्वारा आप अपना पहचान पत्र जारी करवा सकते हैं:

क्रमांक आधिकारिक दस्तावेज का नाम
1. जन्म प्रमाण पत्र
2. जाति/जनजाति प्रमाण पत्र
3. कक्षा 10 या कक्षा 12 का प्रमाण पत्र या एसएसएलसी
4. मतदाता पहचान पत्र
5. आधार कार्ड
6. पैन कार्ड
7. ड्राइविंग लाइसेंस
8. बीपीएल राशन कार्ड
9. पोस्ट ऑफिस पासबुक/बैंक पासबुक (फोटो के साथ)
10. पासपोर्ट
11. किसान पासबुक
12. शादी का प्रमाण पत्र
13. बिजली/पानी/गैस कनेक्शन बिल

 

ध्यान देंः यह दस्तावेजों की एक अस्थायी सूची है। आप इनकी दुबारा पुष्टि कर सकते हैं। साथ ही आप अपने नजदीक के स्थानीय जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय में दूसरे विकल्पों के बारे में भी जानकारी ले सकते हैं। 

आधिकारिक तौर पर ट्रांसजेंडर व्यक्ति के रूप में अपनी लिंग पहचान दर्ज करने के बाद क्या होता है?

आधिकारिक तौर पर लिंग पहचान दर्ज करने के बाद व्यक्ति को ट्रांसजेंडर व्यक्ति के रूप में एक सरकारी पहचान प्रमाण पत्र दिया जाता है। यह प्रमाण पत्र ट्रांसजेंडर व्यक्ति के रूप में उनकी पहचान का प्रमाण है। इसके बाद उस व्यक्ति के लिंग को सभी आधिकारिक दस्तावेजों पर ‘ट्रांसजेंडर’ या ‘थर्ड जेंडर’ के रूप में दर्ज किया जाएगा।

केस स्टडीः केरल में ट्रांसजेंडर समुदाय को राशन के वितरण, दवा और डाॅक्टरी इलाज तक पहुंच बनाने के लिए एक रिट याचिका दायर की गई। इस कबीर सी उर्फ अनीरा कबीर बनाम केरल राज्य (2020) के मामले में कोर्ट ने कहा कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को लिंग पहचान पत्र और राशन कार्ड जारी हो और इन्हें उपलब्ध करने के लिए जरूरी कदम भी उठाए जाएं।

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की रक्षा करने वाले कानून

क्या भारतीय संविधान ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की रक्षा करता है?

हां। संविधान में कुछ ऐसे जरूरी प्रावधान हैं, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों  के हितों की रक्षा करते हैं: जैसे-

  • समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14): कानून की नज़र में सभी व्यक्ति समान हैं और सभी को समान कानूनी अधिकार दिए गए हैं। यहां “व्यक्ति” शब्द बताता है कि कानूनी तौर पर लिंग या लिंग पहचान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं की जा सकती है।
शैक्षणिक संस्थानों या रोजगार की जगहों में ‘ट्रांसजेंडर व्यक्तियों’ के साथ गलत व्यवहार नहीं किया जा सकता है। उन्हें हर व्यक्ति की  तरह समान स्वास्थ्य सेवाओं और सार्वजनिक संपत्ति को इस्तेमाल करने का अधिकार है। वे पूरे देश में कहीं भी आजादी के साथ घूमने का भी अधिकार रखते हैं।
  • लिंग, जाति, धर्म, जन्म स्थान और वंश के आधार पर: भेदभाव का निषेध (अनुच्छेद 15): जाति, धर्म, नस्ल या लिंग के आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जा सकता है। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ भेदभाव या दुर्व्यवहार उनके मूल मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। एमएक्स आलिया एसके बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य (2019) के मामले में, कोर्ट ने माना कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को विश्वविद्यालयों में दाखिला लेने का अधिकार है। सार्वजनिक विश्वविद्यालय के आवेदनों और दाखिले की प्रक्रिया में ट्रांसजेंडर को शामिल करने के लिए खास हाॅस्टल और ऐसी शामिल करने वाली व्यवस्था करनी होगी।  इस कारण से यह फैसला महत्वपूर्ण है, क्योंकि पहले ऐसा नहीं किया जाता था और यह ये तय करने में यह अदालतों की भूमिका को भी बताता है।
  • बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19): यह अधिकार हर भारतीय नागरिक को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है। इसमें सार्वजनिक रूप से अपनी लैंगिक पहचान व्यक्त करने की स्वतंत्रता भी शामिल है।|

  • जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 21): किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से दूर नहीं किया जा सकता है। इस अधिकार के अनुसार, एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति सहित हर व्यक्ति को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार है। भारत का नागरिक होने के नाते ट्रांसजेंडर व्यक्ति को अपने जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करने का पूरा अधिकार है।
नंगई बनाम पुलिस अधीक्षक (2014) के मामले में, मद्रास हाईकोर्ट ने माना कि किसी भी व्यक्ति को उसकी लिंग की चिकित्सा जांच के लिए बाध्य करना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। इस मामले में किसी व्यक्ति के अपने लिंग की खुद पहचान करने के अधिकार को आधार बनाया गया है।

क्या ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए कोई आरक्षण है?

हां, ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020 के तहत, केंद्र और राज्य सरकारें वर्टिकल रिज़र्वेशन के लिए उन्हें ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ में रख सकती हैं।

भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कौन से कानून हैं?

  • ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 और नियम: 2020 में पारित यह अधिनियम ट्रांसजेंडर लोगों को कई अधिकार देता है।

  • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989: अगर कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति समुदाय से है, तो यह कानून उस व्यक्ति को किसी भी तरह के जाति/जनजाति से जुड़े भेदभाव से बचाता है। 
    एमएक्स सुमना प्रमाणिक बनाम भारत संघ (2020) के मामले में, कोर्ट ने न केवल ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए आरक्षण को जरूरी बताया, बल्कि उनके लिए परीक्षाओं में उम्र और फीस में भी छूट दी। जहां कहीं भी आरक्षण के ये प्रावधान किए जाएंगे, वहां सरकार को इसे लागू करना होगा।
  • नालसा निर्णय : राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ और अन्य 2014 मामले के ऐतिहासिक निर्णय में, सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर समुदाय को “तीसरे लिंग” के रूप में पहचान दी। इस मामले ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अपनी लिंग पहचान चुनने और सम्मान के साथ जिंदगी जीने की राह दी। 
    जी. नागलक्ष्मी बनाम पुलिस महानिदेशक के मामले में  (2014), मद्रास हाईकोर्ट ने देखा कि किसी विशेष कानून के ना होने पर,  किसी भी व्यक्ति को अपनी यौन या लिंग पहचान चुनने की आजादी है। इस मामले में, कोर्ट ने याचिकाकर्ता के अपने लिंग को चुनने के अधिकार को बरकरार रखा। 
  • पुट्टुस्वामी बनाम भारत संघ (2017) : इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जीवन, समानता और मौलिक स्वतंत्रता के अधिकार में निहित निजता (प्राइवेसी) एक संवैधानिक अधिकार है। इस निजता के अधिकार में अपनी पसंद से संबंध रखने, यौन झुकाव और लिंग पहचान का अधिकार शामिल है।

  • नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (आईपीसी की धारा 377 का अपराधीकरण): सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा कि भारत में LGBTQ+ लोग भारत के संविधान में संरक्षित स्वतंत्रता सहित सभी संवैधानिक अधिकारों के हकदार हैं।

  • भारतीय दंड संहिता (आईपीसी),1860: ट्रांसजेंडर व्यक्ति द्वारा किए गए किसी भी अपराध को आईपीसी के प्रावधानों के अनुसार दंडित किया जाएगा। श्रीमती एक्स बनाम उत्तराखंड राज्य (2019) के मामले ने नालसा के फैसले की पुष्टि की और कहा कि किसी को लिंग की खुद पहचान का अधिकार ना देना जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को ना देने जैसा है। यह फैसला इसलिये खास था,क्योंकि यह पहला ऐसा केस था, जिसने आपराधिक कानून के विषय में भी व्यक्ति के “मानस” के आधार पर आत्मनिर्णय के अधिकार को आधार माना। 
    बहुत से लोग अपने यौन झुकाव या पहचान के कारण शारीरिक, यौन, मानसिक या भावनात्मक जैसे कई रूपों में हिंसा का सामना करते हैं। इस तरह की हिंसा को पहचानना और जरूरी मदद देना या हिंसा को रोकने के लिए कार्रवाई करना जरूरी है। ट्रांसजेंडर व्यक्ति पर उनके यौन झुकाव या लिंग पहचान के आधार पर होने वाली हिंसा को समझने के लिए आप न्याया के लेख को पढ़ सकते हैं।
  • आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973: एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति गिरफ्तारी, जमानत, समन, जांच आदि के मामलों में समान आपराधिक प्रक्रियात्मक कानून के अधीन होता है। 
    करन त्रिपाठी बनाम एनसीआरबी, डब्ल्यूआरपी (आपराधिक) संख्या 9596 (2020) में, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अब एनसीआरबी का इरादा पीएसआई-2020 से कैदियों के लिंग वर्गीकरण में ट्रांसजेंडर को शामिल करने का है। 

    यहां बता दें कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) एक सालना जेल सांख्यिकी (पीएसआई) रिपोर्ट प्रकाशित करता है जिसमें भारतीय कैदियों से जुड़ी जानकारियों होती हैं।


ट्रांसजेंडर अधिकारों का उल्लंघन होने पर क्या किया जा सकता है?

ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के खिलाफ शिकायतों पर सुनवाई के लिए राष्ट्रीय परिषद बनाया गया है।

इसके अलावा, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों के उल्लंघन भाग III  जैसे मामले को अनुच्छेद 32 या 226 के तहत सर्वोच्च या उच्च न्यायालयों में जाकर सुनवाई कर सकते हैं। इसके अलावा, कई कानूनों के तहत दूसरे अधिकार अनुच्छेद 226 में संरक्षित हैं।

सके अलावा,’तीसरे लिंग’ के अधिकारों का उल्लंघन मानवाधिकारों का भी उल्लंघन है। इस तरह के उल्लंघन की शिकायत पीड़ित,राज्य और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोगों से कर सकते हैं।

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ भेदभाव के खिलाफ शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया क्या है?

सार्वजनिक या निजी क्षेत्र की नौकरी में भेदभाव का सामना करने वाले ट्रांसजेंडर को ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत नियुक्त शिकायत अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं।

राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर परिषद में शिकायत दर्ज करने के लिए, https://transgender.dosje.gov.in/ पोर्टल में एक एकाउंट बनाएं। ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करने के बाद, अपने डैशबोर्ड पर ‘शिकायत’ पर क्लिक करें। अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें-(https://transgender.dosje.gov.in/docs/Manual.pdf)

अगर मैं सीधे कोर्ट जाता हूं, तो मुझे कानूनी मदद कैसे मिल सकती हैं?

कानूनी मदद लेने के लिए, आप अपने नजदीकी जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (District Legal Service Authority) से संपर्क करें।  अगर आपकी सालाना आय हर राज्य में तय सीमा से कम है, तो आप मुफ्त कानूनी सेवाओं का लाभ ले सकते हैं।

ट्रांसजेंडर कानून के तहत प्राधिकरण

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय परिषद (एनसीटीपी) क्या है?

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय परिषद (NCTP) एक वैधानिक निकाय है। NCTP की स्थापना सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा 21 अगस्त, 2020 में की गई। यह ट्रांसजेंडर, इंटरसेक्स व्यक्तियों और कई लिंग पहचान झुकाव और सेक्स विशेषताओं वाले लोगों पर बनने वाले सभी नीतिगत मामलों पर सरकार को सलाह देती है। परिषद में शामिल हैं:

  • केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के प्रभारी मंत्री, अध्यक्ष
  • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के राज्य मंत्री (सह अध्यक्ष)
  • विभिन्न क्षेत्रों के अलग-अलग प्रतिनिधि
राष्ट्रीय परिषद की स्थापना सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा 21 अगस्त, 2020 में की गई। जिसका मुख्यालय दिल्ली में है। परिषद के अध्यक्ष डॉ.वीरेंद्र कुमार हैं।

नेशनल काउंसिल फॉर ट्रांसजेंडर पर्सन्स (NCTP)के क्या काम हैं?

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय परिषद के काम निम्नलिखित हैं:

  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की शिकायतों का निवारण।
  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से जुड़ी केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई नीतियों के प्रभाव पर सलाह देना, निगरानी और मूल्यांकन करना।
  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से जुड़े सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के काम पर निगरानी करना।

एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति के व्यक्तिगत अधिकार

क्या कानून ट्रांसजेंडर व्यक्ति को उनके परिवार में होने वाले दुर्व्यवहार से बचाता है?

ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण )अधिनियम की धारा 18: यह कानून ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सभी तरह के शोषण (शारीरिक, मौखिक, भावनात्मक, यौन, मानसिक और आर्थिक) के खिलाफ सुरक्षा देता है। दोषी को कम से कम छह महीने से लेकर दो साल तक की जेल और साथ में जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
लेकिन ऊपर बताई गई किसी भी शिकायत को दर्ज करने के लिए एक अलग तंत्र नहीं बनाया गया है।

घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005: यह अधिनियम परिवार के किसी भी सदस्य द्वारा किसी भी तरह के दुर्व्यवहार के खिलाफ सभी महिलाओं, जिसमें ट्रांसजेंडर महिलाएं  (बिना पहचान प्रमाण पत्र के) भी शामिल हैं, की रक्षा करता है। घरेलू हिंसा पर न्याया के लेख को पढे़ं।

अगर ट्रांसजेंडर व्यक्ति का परिवार उनकी लिंग पहचान के कारण उन्हें घर से निकालता है, तो वे क्या कर सकते हैं?

ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम के अनुसार, किसी भी परिवार में ट्रांसजेंडर बच्चे के साथ भेदभाव करना या उसको घर से निकालना गैरकानूनी है। सभी ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अधिकार है कि:

  • वे अपने पारिवारिक घर में रह सकते हैं।
  • वे अपने पारिवारिक घर की सभी सुविधाओं का बिना भेदभाव के इस्तेमाल कर सकते हैं।

अगर माता-पिता या परिवार के सदस्य ट्रांसजेंडर व्यक्ति की देखभाल नहीं कर सकते हैं, तो न्यायालय ऐसे व्यक्ति को पुनर्वास केंद्र में रखने का निर्देश दे सकती हैं। (अधिनियम की धारा 12(3) के अनुसार)

क्या कोई, किसी ट्रांसजेंडर को समुदाय से अलग या उसे अपना घर छोड़ने के लिए कह सकता है?

कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता है। ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम के अनुसार, ट्रांसजेंडर व्यक्ति को परिवार से अलग करना या उन्हें अपने घर, गांव या समुदाय से बाहर निकालना अवैध है। अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है, तो उसे 6 महीने से लेकर 2 साल तक की जेल हो सकती है।

ट्रांसजेंडर के रूप में, क्या मेरे पास रहने के लिए कोई कानूनी सुरक्षित स्थान हैं?

हां, हालांकि ट्रांसजेंडर व्यक्ति को अपने घरों में रहने का पूरा अधिकार है, वहीं सरकार ने भी बेघर लोगों की मदद के लिए ‘गरिमा गृह’ बनाए हैं।

‘गरिमा गृह’ में रहने के लिए क्या शर्तें हैं?

गरिमा गृह’ में रहने के लिए निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना ज़रूरी है:

  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के पास राष्ट्रीय पोर्टल से जारी प्रमाण पत्र होना चाहिए और गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हो
  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के पास राष्ट्रीय पोर्टल से जारी प्रमाण पत्र होना चाहिए और गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हो
  • सेक्स वर्क और भीख मांगने जैसे काम ना करते हों
  • बेरोजगार हों और किसी भी उत्पादक व्यावसायिक कामों में ना हों

ट्रांसजेंडर व्यक्ति राष्ट्रीय पोर्टल पर प्रमाणपत्र के लिए आवेदन कैसे करें?

सबसे पहले नेशनल ट्रांसजेंडर पोर्टल (https://transgender.dosje.gov.in/) पर ऑनलाइन अकाउंट बनाएं। अकाउंट बनाने के बाद, डैशबोर्ड पर दिए गए ‘ऑनलाइन आवेदन करें’ टैब पर क्लिक करें। ऑनलाइन फॉर्म में व्यक्तिगत और दूसरी जानकारियां भरें। लिंग घोषित करने वाला एफिडेविट को अपलोड करें। यह पोर्टल एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को बिना किसी फिज़िकल इंटरफेस के पहचान पत्र देने में मदद करता है। ज्यादा जानकारी के लिए इस लिंक को देखें-  (https://transgender.dosje.gov.in/docs/Manual.pdf)

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की शादी और तलाक 

भारत में ट्रांसजेंडर किन कानूनों के तहत शादी कर सकते हैं?

भारत में व्यक्तिगत धार्मिक कानूनों (हिंदू विवाह अधिनियम या भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम) या विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत ट्रांसजेंडर व्यक्ति शादी कर सकते हैं। अरुण कुमार बनाम महानिरीक्षक (2019) के मामले में, मद्रास हाईकोर्ट ने एक पुरुष और एक ट्रांसजेंडर महिला के बीच शादी करवाई थी। दोनों हिंदू थे, और उनकी शादी को कानून ने वैध शादी घोषित किया।

केस स्टडी: चिन्मयजी जेना बनाम ओडिशा राज्य (2020) के मामले में, ओडिशा हाईकोर्ट ने भारत में पहली बार ऐसा फैसला  दिया, जिसमें ट्रांस व्यक्तियों को अपने साथी के साथ लिव-इन में रहने के अधिकार को मान्यता दी गई। इस निर्णय में यह भी कहा गया कि लिव-इन साथी का”लिंग”कुछ भी हो सकता है।

क्या ट्रांसजेंडर व्यक्ति अपने जीवनसाथी से तलाक ले सकते हैं?

अगर वे कानूनी रूप से शादीशुदा हैं, तो जिस कानून के तहत उन्होंने शुरुआत में शादी की थी, उस कानून के तहत ही तलाक फाइल कर सकते हैं। लिव-इन रिलेशनशिप के मामले में कानूनी तौर पर तलाक लेने की कोई जरूरत नहीं होती है।

जीवनसाथी या लिव इन पार्टनर से दुर्व्यवहार/उत्पीड़न का सामना करने वाली ट्रांसजेंडर महिला के लिए क्या कानून हैं?

ट्रांसजेंडर महिला के रूप में पहचाना गया व्यक्ति, जो यौन शोषण जैसे किसी भी दुर्व्यवहार का शिकार हो, घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत सुरक्षा का हकदार है। इस कानून के तहत मिलने वाली सुरक्षा के बारे में ज्यादा जानने के लिए लिव-इन रिश्तों पर न्याया के लेख को पढ़ें।

यौन उत्पीड़न के खिलाफ सुरक्षा

क्या कोई कानून ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को यौन उत्पीड़न से बचाता है?

  • ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम- इस अधिनियम की धारा 18 के तहत, किसी भी व्यक्ति द्वारा किसी भी ट्रांसजेंडर का यौन शोषण करना गैरकानूनी है।
  • भारतीय दंड संहिता (आईपीसी)- ट्रांसजेंडर महिलाएं यौन शोषण से बचने के लिए आईपीसी की सभी धाराओं के तहत सुरक्षा मांग सकती हैं। यह दिल्ली के हाईकोर्ट ने अनामिका बनाम भारत संघ (2020) के मामले में यह कहा था।
  • कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की रोकथाम (POSH)-अगर किसी ट्रांसजेंडर का अपने स्कूल/कॉलेज में यौन उत्पीड़न होता है, तो यह कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न माना जाएगा। ट्रांसजेंडर छात्र इस उत्पीड़न की शिकायत उस स्कूल/विश्वविद्यालय की आंतरिक शिकायत समिति में दर्ज करा सकते हैं। 

क्या POSH अधिनियम कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ ट्रांसजेंडर व्यक्ति के अधिकारों की सुरक्षा करता है?  

POSH अधिनियम, (कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013) के तहत, शिकायतकर्ता की गुमनाम पहचान रखते हुए संगठन को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के उत्पीड़न की शिकायतों को निपटाने के लिए पर्याप्त शिकायत निवारण तंत्र बनाना होगा।

ट्रांसजेंडर व्यक्ति के सार्वजनिक और राजनीतिक अधिकार

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के कल्याण के लिए कार्यस्थलों के क्या जरूरी कर्तव्य हैं?

नियोक्ता (एंपलॉयर), ट्रांसजेंडर व्यक्ति के रोजगार से जुड़े किसी भी मुद्दे पर भेदभाव नहीं कर सकते हैं। सभी प्रतिष्ठानों को ट्रांसजेंडर कानून के प्रावधानों काे मानना होता है। नियोक्ता का कर्तव्य है कि वह ट्रांसजेंडर अधिनियम के उल्लंघन की शिकायतों से निपटने के लिए किसी व्यक्ति को शिकायत अधिकारी नियुक्त करें।

क्या ट्रांसजेंडर व्यक्ति को सार्वजनिक परिवहन को इस्तेमाल करने का अधिकार है?

हां, सभी ट्रांसजेंडर को आम इस्तेमाल के लिए सभी सार्वजनिक परिवहन और जगहों को इस्तेमाल करने का अधिकार है। ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम के तहत किसी भी ट्रांसजेंडर व्यक्ति का सार्वजनिक परिवहन या सार्वजनिक जगह के इस्तेमाल पर प्रतिबंधन लगाना अवैध है।

क्या ट्रांसजेंडर व्यक्ति वोट दे सकते हैं?

हां! दूसरे लिंगों की तरह, एक 18 साल या उसे अधिक उम्र का ट्रांसजेंडर व्यक्ति भारत में मतदान कर सकता है। वहीं मतदाता पंजीकरण फॉर्म में लिंग की श्रेणी में अन्य’का विकल्प भी होता है। ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम के तहत कोई भी ट्रांसजेंडर व्यक्ति सार्वजनिक पद को धारण सकता है,जिसका मतलब है कि भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्ति चुनाव भी लड़ सकते हैं। 

स्रोत

फॉर्म

ट्रांसजेंडर पहचान प्रमाणपत्र के लिए आवेदन

हेल्पलाइन नम्बर

  • iCALLमानसिक स्वास्थ्य और मनोसामाजिक मुद्दों पर परामर्श देती है। 9152987821– सोमवार से शनिवार सुबह 8 बजे से रात 10 बजे – अंग्रेजी, हिंदी, मराठी, गुजराती, असमिया, बंगाली, पंजाबी और मलयालम भाषाओं में।
  • NAZ DOST HELPLINE
    गैर सरकारी संगठन नाज़ फाउंडेशन की फोन और व्हाट्सएप हेल्पलाइन, जो एलजीबीटीक्यू  समुदाय के मानसिक स्वास्थ्य, कानूनी और सेक्स समस्यों से जुड़ी परेशानियों में मदद देती है। +91 8800329176 / +91 (011) 47504630 – सोमवार से  रविवार, सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे – अंग्रेजी, हिंदी भाषाओं में।
  • techsakhi.inटेकसखी, पॉइंट ऑफ व्यू द्वारा चलायी जाने वाली हेल्पलाइन है। यह  महिलाओं और एलजीबीटीव्यू समुदाय को इंटरनेट पर सुरक्षा और ऑनलाइन होने वाले अपराधों से बचाने में मदद करती है – 080 4568 5001– सोमवार से  शुक्रवार,  सुबह 11 बजे से शाम 7 बजे – हिंदी, बांग्ला, मराठी भाषाओं में – 0224833974 तमिल भाषा के लिए।

कानूनी शब्दकोष

  • ट्रांस-मैन: वह ट्रांसजेंडर व्यक्ति, जिसने अपना लिंग महिला से पुरुष में बदला होता है। 
  • ट्रांस-वुमन: वह ट्रांसजेंडर व्यक्ति, जिसने अपना लिंग पुरुष से महिला में बदला होता है। 
  • इंटरसेक्स (मध्यलिंगी) व्यक्ति: ‘इंटरसेक्स (मध्यलिंगी)व्यक्ति उन व्यक्तियों को कहते हैं, जिसमें शारीरिक तौर पर यह अंतर करन पाना मुश्किल होता है कि वह एक महिला है या पुरुष। ऐसा इसलिए, क्योंकि उनके पास दोनों तरह के लिंग होते हैं। इंटरसेक्स (मध्यलिंगी की पहचान शारीरिक, हार्मोनल या गुणसूत्र से जुड़ी होती है। 
  • जेंडर-क्वीर व्यक्ति: गैर-बाइनरी या जेंडरक्यूवर लिंग पहचान के लिए एक शब्द है, जो ऐसे व्यक्तियों की श्रेणी को बताता है, जो न तो पुरुष हैं और न ही महिला होते हैं। ऐसी पहचान जो लिंग बाइनरी से बाहर हैं। ये लोग अपना लिंग तय नहीं कर पाते हैं। 
  • जेंडर एफरमेटिव हार्मोन थेरेपी: जेंडर एफरमेशन हार्मोन थेरेपी में कुछ ऐसी दवाएं दी जाती हैं, जिससे किसी व्यक्ति को उनकी लिंग पहचान से मेल खाने वाली बाहरी (शारीरिक) पहचान को प्राप्त करने में मदद मिलती है। आपको बता दें कि लिंग की पहचान किसी व्यक्ति के बाहरी पहचान से नहीं, बल्कि व्यक्ति खुद को क्या महसूस करता है, इससे तय होती है।

मतदान पर न्याया की गाइड

यह गाइड आपकी कैसे सहायता कर सकती है?

यह वोटिंग गाइड सरल भाषा और समझने में आसान चित्रों का उपयोग करके भारत में मतदान के बारे में आपको जो कुछ जानने की ज़रूरत है उसे समझाती है। यह गाइड आपको अपना मतदाता पहचान पत्र प्राप्त करने, अपना वोट डालने, विभिन्न प्रकार के चुनावों को समझने, नोटा उम्मीदवारों के लिए वोट देने के अपने अधिकार का प्रयोग करने, एनआरआई कैसे मतदान कर सकते हैं, और चुनाव के दौरान शिकायत करने के तरीके के बारे में बताती है।

गाइड की पीडीएफ डाउनलोड करने और इसे अन्य नागरिकों के साथ साझा करने के लिए ऊपर दिए गए लिंक पर क्लिक करें। कानूनी चैम्पियन बनें!

सर्वाइवर्स के लिए मेडिको-लीगल गाइड

यह गाइड आपकी कैसे मदद कर सकती है?

न्याया की मेडिको-लीगल एक्जामिनेशन पर तैयार, यह गाइड यौन उत्पीड़न के सर्वाइवर (यानी पीड़ित महिला ) को इस जांच प्रकिया को समझाने में मदद करती है। यह  गाइड सर्वाइवर को कुछ ऐसी चीजों की भी जानकारी देती है, जिन्हें इस वक्त ध्यान में रखना जरूरी होता है। 

यह गाइड फोरेंसिक मेडिकल जांचों की प्रक्रिया को समझने में मदद करती है, जिसमें सर्वाइवर्स के डीएनए के साथ दूसरे सबूतों को इकट्ठा करना होता है। वहीं यह सर्वाइवर को मिलने वाली मेडिकल इलाज की जानकारी के बारे में बताती है। यह सर्वाइवर्स के अधिकारों की जानकारी देती है और कई तरह की भ्रांतियों को दूर करती है। 

यौन उत्पीड़न के मामलों में, स्वास्थ्य कार्यकर्ता दो तरह की भूमिका निभाते हैं– पहला, मेडिकल इलाज व मनोवैज्ञानिक मदद देना और दूसरा, सबूत इकट्ठे करना और सबूतों का अच्छी तरह से दस्तावेज़ीकरण करना। 2014 में, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने यौन हिंसा के सर्वाइवर्स के लिए मेडिको-लीगल केयर के लिए दिशानिर्देश और प्रोटोकॉल तैयार किए हैं।

इस गाइड में किन कानूनों पर चर्चा की जा रही है?

यह गाइड 2014 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा मेडिको-लीगल दिशानिर्देशों के कानूनी पहलुओं पर चर्चा करती है। यह दिशानिर्देश आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 2013, भारतीय दंड संहिता, 1860, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO), 2012, और दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 में उल्लिखित विभिन्न आवश्यकताओं पर आधारित हैं।

पहला चरण:

मेडिकल मदद और जांच

सर्वाइवर के बयान की पुष्टि  के लिए मेडिकल जांच बहुत जरूरी होती है, इसलिए जितनी जल्दी हो सके एक पंजीकृत डाॅक्टर से सर्वाइवर की जांच करवा लेनी चाहिए। 

अगर हो सके तो मेडिकल जांच से पहले नीचे बताए कामों को ना करें- 

  • दांत साफ करना
  • नहाना 
  • पेशाब  या शौच करना
  •  कपडे़ बदलना
  • बालों में कंघी करना
  • मुंह धोना 
  • जननांग अंगों (प्राइवेट पार्ट)की सफाई करना

ऊपर बताए गए कामों को नहीं करने से सबूतों को इकट्ठा  करने में आसानी होती है। 

जांच के दौरान कोई भी व्यक्ति सर्वाइवर के साथ जा सकता है। 

मेडिकल जांच के समय सर्वाइवर का कोई भी रिश्तेदार या दोस्त सर्वाइवर के साथ रह सकता है। अगर, सर्वाइवर को मदद चाहिए, तो  एक पेशेवर की मदद भी दी जा सकती है।

मेडिकल जांच

मेडिकल जांच की जरूरत क्यों होती है ?

मेडिकल जांच दो खास ज़रूरतों के लिए की जाती है। 

  1. मेडिकल इलाज या मदद देना– मेडिकल इलाज के समय गर्भावस्था या एसटीआई (यौन संचारित संक्रमणों) की जांच से लेकर यौन स्वास्थ्य की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर मदद देना है।
  2. फोरेंसिक जांच – डाॅक्टर, पुलिस को जांच में मदद करने के लिए डीएनए स्वैब लेंगे, चोटों की जांच करते हुए उनकी फोटो सबूतों के रूप में लेंगे। अगर सर्वाइवर को किसी प्रकार के हथियार से  मारा या जहर खिलाया गया है, तो डाॅक्टर सर्वाइवर की मानसिक स्थिति को देखते हुए जांच करेंगे।

मेडिकल जांच में 2-4 घंटे का समय लग सकता है।

सर्वाइवर को किन परिस्थितियों में मेडिकल जांच से गुजरना पड़ता है?

इन तीन परिस्थितियों के होने पर कोई भी सर्वाइवर मेडिकल जांच करा सकती हैं  

  1. जब सर्वाइवर को हमले या घटना के कारण अस्पताल/क्लिनिक में इलाज के लिए जाना पड़े। 
  2. जब पुलिस में शिकायत के बाद पुलिस मेडिकल जांच को कहे।
  3. कोर्ट के निर्देश या कोर्ट के आदेश देने पर

क्या मेडिकल जांच के लिए एफआईआर जरूरी है?

मेडिकल जांच के लिए एफआईआर जरूरी नहीं है। सवाईवर के पास पुलिस में शिकायत दर्ज करने या पुलिस शिकायत दर्ज ना करने के दोनों विकल्प होते हैं। वह अपनी इच्छा से इन दोनों में से एक को चुन सकते हैं। लेकिन सवाईवर को जितनी जल्दी हो सके मेडिकल जांच कराने की सलाह दी जाती है। डाॅक्टर को, सवाईवर को हमले के खिलाफ शिकायत दर्ज करने के उसके अधिकार की जानकारी देनी होती है। अगर सवाईवर रिपोर्ट दर्ज नहीं करना चाहता है, तो डाॅक्टर को सवाईवर की मनाही  को लिखित में ले लेना चाहिए।  हालांकि, डाॅक्टर पुलिस को घटना की रिपोर्ट करने के लिए बाध्य हैं।

मेडिकल जांच कौन कर सकता है?

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर यानी डाॅक्टर इस जांच को कर सकते हैं। मेडिकल जांच के हर चरण यानी स्टेज के लिए सवाईवर की सहमति डाॅक्टर को लेनी होगी। अगर सवाईवर  किसी चरण को करने की सहमति नहीं देता है, तो डाॅक्टर को जांच का वो चरण छोड़ देना है। 

सलाह दी जाती है कि महिला डाॅक्टर ही महिला सवाईवर की मेडिकल जांच करें। अगर महिला डाॅक्टर नहीं है, तो सवाईवर की सहमति से ही पुरुष डाॅक्टर इस जांच को कर सकते हैं। वहीं सवाईवर पुरुष डाॅक्टर से जांच कराने का विकल्प चुन सकते हैं।

क्या मेडिकल जांच मुफ़्त है?

डाॅक्टर को सर्वाइवर के कहने या यौन उत्पीड़न होने पर निजी और सरकारी अस्पतालों में मुफ्त में प्राथमिक और जरूरी इलाज देना होगा।

याद रखें…
सर्वाइवर परीक्षा के दौरान किसी भी समय किसी विशिष्ट चरण को रोकने, रोकने या छोड़ने का विकल्प चुन सकता है।

मेडिकल जांच

प्रक्रिया

मेडिकल जांच की प्रक्रिया क्या है?

  1. मेडिकल जांच की शुरूआत किसी भी  ऐसी चोट के इलाज से होती है, जिसे एकदम से डाॅक्टरी देखभाल की जरूरत होती है। 
  2. फिर, डाॅक्टर सर्वाइवर की मेडिकल हिस्ट्री (सेहत की रिपोर्ट) लिखता है। 
  3. सर्वाइवर के साथ जो कुछ हुआ उसके बारे में सबूत इकट्ठा करता हैं। इन सबूतों में सर्वाइवर के शरीर में लगी चोटों को पहचाना और उसके कपड़ों को रखना हैं, क्योंकि कपड़े भी रेप केस में सबूत के तौर में काम आते हैं। 
  4. इसके बाद, डाॅक्टर सर्वाइवर की सिर से पैर तक की जांच कर सकता है, जिसमें मुंह, योनि और गुदा (प्राइवेट अंगों) की आंतरिक जांच होती है। 
  5. सर्वाइवर के खून, पेशाब, शरीर और बालों के सैम्पल सबूत के तौर पर इकट्ठा किए जाते हैं। 
  6. डाॅक्टर चोटों के बारे में रिपोर्ट तैयार करते समय सबूत के लिए सवाईवर के शरीर की चोटों की फोटो भी ले सकता है। 
  7. अगर जरूरी हो तो सर्वाइवर को एसटीआई (यौन संक्रमणों) रोकने का इलाज या इमरजेंसी गर्भनिराधक भी दिया जाता है। 
  8. अगर सवाईवर को नशा दिया गया होता है, तो ऐसे मामलों में डाॅक्टर drug-facilitated kit का इस्तेमाल करता है, जिसमें खून और पेशाब की जांच के लिए सैम्पल लेते हैं।
  9. गर्भावस्था की जांच के साथ-साथ सर्वाइवर की एसटीआई (यौन संचारित संक्रमण), एचआईवी, हेपेटाइटिस बी जैसी  जांच भी होंगी।

मेडिकल हिस्ट्री के लिए क्या इकट्ठा किया जाता है?

हमले के बाद, डाॅक्टर सवाईवर की कुछ गतिविधियों के बारे में जानकारी इकट्ठा करते हैं, जैसे-

  1. कपड़े बदलना, कपड़ों को धोना
  2. नहाना
  3. गुप्तांगों को धोना, मासिक धर्म (पीरियड्स), पेशाब करना, शौच करना
  4. मुँह धोना, पानी पीना, खाना
  5. टीकाकरण, हाल की यौन गतिविधि

ये जानकारी सवाईवर से इकट्ठा किए गए सबूतों के लिए बहुत जरूरी होती है। जबकि यौन भागीदारों (सेक्सुअल पार्टनर्स)की संख्या या पिछले यौन अनुभवों की जानकारी तब लेना जरूरी होता है, जब  हमला यौन उत्पीड़न से जुड़ा हो।

क्या टू-फिंगर टेस्ट कानूनी है?

टू-फिंगर टेस्ट, जिसे पीवी (Per Vaginal) जांच या ‘वर्जिनिटी  टेस्ट’ के नामों  से जाना जाता है।  इस जांच में डाॅक्टर (महिला या पुरूष डाॅक्टर) महिला रेप सर्वाइवर की योनि में दो उंगलियां डालकर हाइमन के होने या ना होने की जांच करता है,  साथ ही योनि के ढीलेपन को भी देखता है। 

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी मेडिको लीगल दिशानिर्देशों के अनुसार भारत में मेडिकल प्रैक्टिशनर टू-फिंगर टेस्ट नहीं कर सकते हैं।

ये जांच सर्वाइवर की चोटों और संक्रमण के लिए होने वाली योनि की आंतरिक जांच से अलग है, और सर्वाइवर को  दिए जाने वाले मेडिकल इलाज का एक हिस्सा है।

फोरेंसिक सबूत

फोरेंसिक सबूत कैसे इकट्ठा किए जाते हैं?

  1. डीएनए जांच के लिए वीर्य, ​​लार, बाल और नाखूनों के छिलकों को लिया जाता है। ये चीजे संदिग्ध (जिस पर अपराधी होने का शंक हो) की पहचान और उसे अपराध से जोड़ने में मदद कर सकती हैं।
  2. अंदरूनी और बाहरी चोटों की भी जांच होती है। चोटें सर्वाइवर पर हमला करने वाले अपराधी द्वारा बल के इस्तेमाल या हिंसा के बारे में बताती हैं।
  3. खून और पेशाब से पता चल सकता है कि क्या सर्वाइवर ने शराब या नशीली चीजों को लिया था और अपनी सहमति देने की हालत में नहीं था। 
  4. वहीं कपड़ों के रेशे, पत्ते और मिट्टी जैसी बाहरी चीजें अपराधी को ढूंढने में मदद कर सकती हैं। इस तरह के सबूतों को ज्यादा से ज्यादा इकट्ठा किया जाता हैं, ताकि ऐसे मामलों में अपराधी को पकड़ने या सजा दिलाने में मदद हो सके। 

इकट्ठा किए गए सबूतों को एक साफ सूखे सैनिटाइज्ड पैकेट में जमा किया जाता है। इस पैकेट को एक स्टिकर के साथ सील कर दिया जाता है ताकि सबूतों को खराब या उनके साथ कोई छेड़छाड ना हो सके।

अगर सर्वाइवर ने सबूत मिटा दिए तो क्या होगा?

भले ही सर्वाइवर ने खुद को साफ कर लिया हो या नहा लिया हो, तब भी मेडिकल जांच हो सकती है। कोशिश करें कि नहाने, बालों में कंघी करने, दांतों को ब्रश करने, मुंह धोने, पेशाब या शौच करने, कपड़े बदलने और जननांग (प्राइवेट अंगों) या हमला किए किसी भी अंग को साफ ना करें। साफ-सफाई ना करने से सबूत इकट्ठा करने में मदद मिल सकती है। 72 घंटे (3 दिन) के बाद सबूत मिलने की संभावना कम हो जाती है। समय ठीक से पता ना होने के मामले में सबूत 96 घंटे तक इकट्ठा किए जाते हैं।

उन मामलों में क्या होता है, जहां कोई फोरेंसिक सबूत नहीं मिलते हैं?

डाॅक्टर की जांच सर्वाइवर की सहमति या अहमति का पता नहीं लगा सकती है। इसकी गवाही केवल सर्वाइवर ही दे सकती हैं। ऐसे मामलों में देखा जाए तो सहमति बहुत जरूरी है, क्योंकि सहमति से ही रेप होने या नहीं होने का पता चलता है। अगर सबूत कम हैं या नहीं मिलते हैं, तो इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं है कि अपराध नहीं हुआ है। पुलिस को अपनी जांच जारी रखनी होगी।

क्या वीर्य (सीमेन) ही फोरेंसिक सबूत का एकमात्र रूप है?

हालांकि वीर्य ढूंढना भी किसी जांच का प्राथमिक फोकस है, पर एडवांस डीएनए प्रौद्योगिकी में दूसरे आनुवंशिक सबूत भी इकट्ठा और इस्तेमाल किए जाते हैं

सर्वाइवर के शरीर के उन हिस्सों पर स्वाब (सेम्पल लेना का एक तरीका) लेना जिन्हें अपराधी ने छुआ, चूमा या काटा हो।  अगर सर्वाइवर के नाखूनों के नीचे अपराधी का कोई डीएनए है, तो नाखूनों की करतन सबूत के लिए लेते हैं।  वहीं सिर और जघन के बालों (प्राइवेट अंगों के बाल)को सबूत की तरह इकट्ठा किया जाता है, क्योंकि ये अपराधी को पहचानने और दोषी ठहराने में मदद करते हैं।

कानूनी प्रक्रिया

स्वास्थ्य सेवा पर

सर्वाइवर की देखभाल करने वाले स्वास्थ्यकर्मी (डाॅक्टर,नर्स और मेडिकल स्टाफ) के क्या कर्तव्य हैं?

जब कोई सर्वाइवर इलाज या दूसरी तरह की मदद के लिए अस्पतालों/क्लिनिकों में आता है, तो स्वास्थ्य कर्मियों (डॉक्टर, नर्स और मेडिकल स्टाफ) के कुछ कर्तव्य यानी काम हैं, जो नीचे बताए जा रहे  हैं:

  1. सर्वाइवर को होने वाली मेडिकल जांचों और जांचों के हर चरण को आसान भाषा में समझाना। 
  2. बच्चों, विकलांग, एलजीबीटीआई, यौनकर्मियों या अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले सर्वाइवर के साथ कुछ खास बातों को ध्यान में रखें। 
  3. सर्वाइवर की गोपनीयता को बनाते हुए, उन्हें भरोसा दें कि वे डाॅक्टर को अपनी पूरी मेडिकल हिस्ट्री बताए। मेडिकल जांच के हर स्तर पर, सर्वाइवर को कोई भी जानकारी या मेडिकल हिस्ट्री नहीं छिपानी चाहिए। 
  4. सर्वाइवर को समझाएं कि जननांग जांच असहज महसूस कराने वाली हो सकती है, लेकिन ये कानूनी जरूरतों के लिए बहुत जरूरी है।
  5. सर्वाइवर को एक्स -रे जैसी दूसरी जरूरी जांच के बारे में भी बताएं, जिसके लिए उन्हें दूसरे मेडिकल विभागों में जाने की जरूरत हो सकती है।

अस्पतालों के कर्तव्य (काम) क्या हैं?

यौन हिंसा के मामलों को देखने के लिए हर अस्पताल में एक मानक संचालन प्रक्रिया (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर SOP) होनी चाहिए:

  1. महिला डॉक्टर के ना होने पर जांच से इनकार या देरी नहीं होनी चाहिए। अगर कोई पुरुष डॉक्टर जांच कर रहा है, तो यह जांच एक नर्स या महिला के सामने होनी चाहिए। नाबालिगों/विकलांग व्यक्तियों के लिए उसके माता-पिता/अभिभावक/कोई दूसरा व्यक्ति जिसके साथ सर्वाइवर सहज हो, वे जांच के दौरान वहां हो सकते हैं। 
  2. ट्रांसजेंडर/इंटरसेक्स व्यक्ति के मामले में, सर्वाइवर के पास यह विकल्प होता है कि वह महिला डॉक्टर से जांच कराना चाहता है या महिला नर्स के सामने में पुरुष डॉक्टर से जांच कराना चाहता है।
  3. सर्वाइवर के साथ बातचीत के समय पुलिस जांच वाले कमरे में नहीं रह सकती है। लेकिन इस समय सर्वाइवर किसी रिश्तेदार को वहां रखना चाहें, तो वह ऐसा कर सकती हैं ।   
  4. जांच करने और सबूतों को इकट्ठा करने में कोई देरी नहीं होनी चाहिए।
  5. इलाज और जरूरी मेडिकल जांच करना सर्वाइवर की जांच करने वाले डॉक्टर की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। सर्वाइवर को इलाज देने के लिए अस्पताल में भर्ती करना, सबूत इकट्ठा करना या पुलिस में रिपोर्ट करना जरूरी नहीं है।
  6. यौन हिंसा के सर्वाइवर की मेडिकल हिस्ट्री और मेडिकल जांच पूरी गोपनीयता के साथ अस्पताल के एक निजी कमरे में ही हो।
  7. जांच पूरी होने के बाद सर्वाइवर को कपड़ों को धोने, पेशाब आदि करने से नहीं रोका जा सकता है। अगर सर्वाइवर के कपड़े सबूत के लिए जमा कर लिए हैं, तो अस्पताल सर्वाइवर को मुफ्त में दूसरे कपड़े पहने को देगा।
  8. सर्वाइवर को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं हैं, जब तक कि उसे अस्पताल में रहकर इलाज और स्वास्थ्य देखरेख की जरूरत न हो।

याद रखें…

यौन हिंसा का सामना कर रहे सर्वाइवर को सभी तरह की सेवाएं मुफ्त मिलनी चाहिए। 

सर्वाइवर सभी दस्तावेज़ों (जिसमें मेडिको-लीगल जांच और इलाज से जुड़ी सभी रिपोर्ट भी शामिल हैं) की काॅपी मुफ्त पा सकती हैं ।

जब कोई सर्वाइवर पुलिस के पास जाए बिना अस्पताल से रिपोर्ट करता है, तो उसके लिए कुछ दिशानिर्देश इस प्रकार हैं।

नीचे कुछ दिशानिर्देश दिए गए हैं, जिन्हें डाॅक्टर और मेडिकल स्टाफ को भी ऐसी स्थितियों में ध्यान रखना चाहिए:

  1. अगर  सर्वाइवर (पीड़ित) पुलिस के बिना अस्पताल आया है, तो अस्पताल सर्वाइवर या उसके माता-पिता या अभिभावक (सर्वाइवर नाबालिक होने पर ) की सहमति से इलाज और मेडिकल जांच करने के लिए बाध्य है।
  2. चाहे पुलिस आई हो या नहीं, अस्पताल को बिना देर किए मरीज का इलाज करना है। मेडिकल सबूतों को भी तुरंत इकट्ठा करना चाहिए। 
  3. अगर  कोई व्यक्ति बिना एफआईआर के अपनी मर्जी से आया है, तो हो सकता है कि वह शिकायत दर्ज कराना चाहता हो या नहीं। लेकिन फिर भी उसे मेडिकल जांच और इलाज की जरूरत है। ऐसे मामलों में भी डॉक्टर कानून के अनुसार पुलिस को सूचित करने के लिए बाध्य है।
  4. ना अदालत और ना ही पुलिस सर्वाइवर को मेडिकल जांच कराने के लिए मजबूर कर सकती है। केवल उन स्थितियों में जहां जान को खतरा हो,डॉक्टर आईपीसी की धारा 92 के अनुसार बिना सहमति के जरूरी इलाज शुरू कर सकते हैं।
  5. अगर सर्वाइवर पुलिस केस नहीं करना चाहता है, तो एक मेडिको-लीगल केस (एमएलसी) दर्ज किया जाता है। पुलिस या मेडिकल स्टाफ द्वारा सर्वाइवर को एफआईआर दर्ज नहीं करने के उसके अधिकार की जानकारी दी जानी चाहिए। सर्वाइवर के एफआईआर दर्ज ना करने की जानकारी को बताया गया था, इस बात को भी लिखित रिकाॅड में रख लेना चाहिए। 
  6. पुलिस को मेडिको-लीगल केस दर्ज करना चाहिए । साथ ही सर्वाइवर को उसका केस नंबर और उस पुलिस स्टेशन की जानकारी देनी चाहिए जहां शिकायत दर्ज की जा सकती है। यह मेडिको-लीगल केस नंबर तब जरूरी  होता है, जब सर्वाइवर पुलिस की मदद चाहता हो  या वह बाद में शिकायत दर्ज कराना चाहता हो।
  7. तीन परिस्थितियों में, जांच और सबूत इकट्ठा करने के लिए सूचित सहमति/अस्वीकृति लेना जरूरी है। इन तीन परिस्थितियां में सहमति ली जानी चाहिए:
  • जांच
  • क्लिनिकल और फोरेंसिक जांच के लिए नमूना इकट्ठा करते समय
  • इलाज  और पुलिस सूचना 

इसके लिए एक सहमति फाॅर्म भरना चाहिए। सहमति फाॅर्म में सर्वाइवर, एक गवाह और जांच करने वाले डॉक्टर के हस्ताक्षर होने चाहिए।

सर्वाइवर्स के अधिकार और उनकी देखभाल करने वालों के कर्तव्य

सर्वाइवर पर किए गए यौन अपराधों की जांच और सुनवाई के दौरान सर्वाइवर के अधिकार और उनकी  देखभाल करने वालों के कर्तव्य नीचे दिए गए हैं:

  1. सर्वाइवर्स की निजता का अधिकारकोई भी व्यक्ति रेप सर्वाइवर्स के नाम का खुलासा नहीं कर सकता है। अगर कोई नाम का खुलासा करता है, तो उसे एक निश्चित अवधि के लिए सजा हो सकती है, जिसे दो साल तक बढ़ाया जा सकता है और साथ ही उसे जुर्माना भी देना पड़ सकता है। इसके अलावा, बलात्कार के सभी सर्वाइवर्स के लिए इन-कैमरा ट्रायल होना चाहिए। उदाहरण के लिए, मीडिया सर्वाइवर्स का नाम नहीं बता सकती है।
  2. मेडिकल  संस्थानों से मुफ्त मेडिकल इलाज/ड्यूटी का अधिकार – इस कानून के तहत सार्वजनिक या निजी मेडिकल  संस्थानों को यौन हमले के सर्वाइवर्स को मुफ्त मेडिकल इलाज देना होता है। साथ ही ऐसी घटना के बारे में पुलिस को बताना भी होता है। अगर मेडिकल संस्थान ऊपर बताए दिए दोनों प्रावधान का पालन नहीं करता है, तो उसे सजा हो सकती है।
  3. महिला डाॅक्टर द्वारा जांच का अधिकार – केवल एक पंजीकृत महिला डाॅक्टर ही महिला सर्वाइवर की जांच कर सकती है। पंजीकृत पुरुष डाॅक्टर इस जांच को तब ही कर सकते हैं, जब तक कि कोई महिला डाॅक्टर उपलब्ध न हो और महिला सर्वाइवर किसी पुरुष पंजीकृत डाॅक्टर को जांच के लिए सहमति न दे दे।
  4. दोषी की विस्तृत जांच का अधिकार – कानूनी तौर पर, दोषी  को किसी भी पंजीकृत डाॅक्टर  की विस्तृत मेडिकल परीक्षण करने का आदेश दिया जा सकता है। यह जांच अन्य भौतिक सबूत इकट्ठा करने के लिए की जाती है, जो सर्वाइवर की कहानी को पक्का कर सके।
  5. जल्दी सुनवाई का अधिकार – जिस दिन पुलिस अधिकारी ने पुलिस स्टेशन के प्रभारी को सूचना दी थी,जांच उस तारीख से शुरू और  दो महीने के अन्दर खत्म होनी चाहिए।  इस मकसद के लिए विशेष फास्ट ट्रैक कोर्ट  भी बनाए गए है।
  6. एक लोक सेवक (पब्लिक सर्वेंट) का कर्तव्य – यह कानून एक लोक सेवक को ऐसे अपराधों की जानकारी को दर्ज ना करने को दंडनीय अपराध मानता है। जानकारी दर्ज ना करने के दोषी के लिए कठोर कारावास और जुर्माना दोनों की सजा है।
  7. न्यायालय का सहमति को नहीं मानने का कर्तव्य – बलात्कार के किसी भी मुकदमे के दौरान अदालत मान लेती है कि सर्वाइवर ने इस हिंसा पर सहमति नहीं दी है।

स्रोत

दिशा-निर्देश

हेल्पलाइन

महिला हेल्पलाइन – 1091

ये हेल्पलाइन निजी और सार्वजनिक जगहों पर होने वाली हिंसा से प्रभावित महिलाओं को 24/7 तत्काल और आपातकालीन मदद देती है। हेल्पलाइन शिकायत दर्ज करने और सर्वाइवर को मेडिकल जांच आदि करवाने में भी मदद कर सकती है। 

पुलिस – 100

पुलिस आपात स्थिति में मदद के लिए आएगी।

ध्यान रखने योग्य बातेें-

  1. पूरी मेडिकल रिपोर्ट की काॅपी को बिना कोई पैसा दिए लें।  
  2. FIR की कॉपी मुफ़्त में ले लें। 
  3. जब आप मेडिकल जांच के लिए जाएं, तो साथ में क जोड़ी कपड़े बदलने के लिए भी ले जाएं। 
  4. अगर हो सके तो जांच से पहले नीचे बताए कामोें को ना करें-
    – ब्रश, नहाना, पेशाब और शौच करना
    – कपड़े बदलना, बालों में कंघी करना, मुंह धोना या जननांग क्षेत्र की सफाई करना
  5. जांच के लिए एफआईआर दर्ज करना जरूरी नहीं है।
  6. फॉरेंसिक सबूतों को सुरक्षित रखने के लिए ये जांच मुफ़्त में और जल्दी कराई जाती है।
  7. अगर सर्वाइवर चाहे तो जांच के किसी भी चरण को छोड़ सकती हैं । साथ ही जांच प्रक्रिया के सभी चरण यानी स्टेज सर्वाइवर की सहमति से होने चाहिए।
  8. मेडिकल जांच  के दौरान, सर्वाइवर भावनात्मक साथ के लिए किसी दोस्त या रिश्तेदार को अपने साथ रख सकता है।
  9. एक महिला डॉक्टर को जांच करनी चाहिए जब तक सर्वाइवर पुरुष डाॅक्टर से जांच की सहमति ना दे दें।
  10. गर्भावस्था और यौन संचारित बीमारियों पर मेडिकल जांच करने के लिए कहें।

सैम्पल फॉर्म

जांच करने वाले मेडिकल स्टाफ या डाॅक्टर द्वारा भरा जाने वाला फाॅर्म।http://www.mati.gov.in/docs/GG%20cell%20materials/womens%20rights/Guidelines%20and%20Protocols_MOHFW%20(1).pdf

कानूनी शब्दकोष

फोरेंसिक सबूत – फोरेंसिक सबूत बैलिस्टिक, खून की जांच और डीएनए जांच जैसे वैज्ञानिक तरीकों से मिलने वाले सबूत हैं। फोरेंसिक सबूत का इस्तेमाल अदालती फैसले में किया जाता है। फोरेंसिक सबूत अक्सर संदिग्धों (जिन पर शंक हो) के दोषी या निर्दोष बताने में मदद करते हैं। 

जननांग जांच – डॉक्टर द्वारा जननांग (प्राइवेट अंग) की दृश्य और मैन्युअल जांच को जननांग जांच कहते हैं। इसमें योनि (वेजाइना) की दीवार और गर्भाशय ग्रीवा पर डीएनए की जांच के लिए एक स्पेकुलम का इस्तेमाल किया जाता है। डॉक्टर एक “द्विमैनुअल” जांच भी करता है। द्विमैनुअल से मतलब है कि डॉक्टर आंतरिक प्रजनन अंगों की जांच करने के लिए अपने हाथों का इस्तेमाल करेगा। द्वि-मैनुअल जांच के लिए डॉक्टर के हाथों पर दस्ताने होते हैं, और उन पर चिकनाई वाली जेली भी लगी हो सकती है, जिससे उन्हें ठंड महसूस हो सकती है।

डीएनए – डीएनए सभी मनुष्यों और दूसरे जीवों में वंशानुगत सामग्री को कहते हैं। किसी व्यक्ति के शरीर की लगभग हर कोशिका का डीएनए एक जैसा होता है। डीएनए का इस्तेमाल करके दोषी की पहचान की जा सकती है और अपराध में उनकी भागीदारी को समझा जा सकता है। 

एसटीआई- एसटीआई यौन संपर्क के माध्यम से फैलने वाला एक संक्रमण है, जो बैक्टीरिया, वायरस या परजीवियों के कारण होता है। ये संक्रमण आमतौर पर योनि संभोग से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। जो गुदा मैथुन (एनल सेक्स), मुख मैथुन (ओरल सेक्स) या त्वचा से त्वचा के संपर्क फैलता है। वायरस के कारण होने वाले एसटीआई में हेपेटाइटिस बी, हर्पीस, एचआईवी और ह्यूमन पेपिलोमा वायरस (एचपीवी) जैसी बीमारियां  आती हैं। 

मेडिको – लीगल केस- मेडिको लीगल केस को चोट या बीमारी आदि के मामले के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। साथ ही  चोट या बीमारी के कारण का पता लगाने के लिए कानून-प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा जांच की जरूरत होती है।

एफआईआर –एफआईआर को प्रथम सूचना रिपोर्ट कहते हैं।  यह  किसी अपराध के होने पर पीड़ित या उसकी तरफ से दूसरा व्यक्ति पुलिस में दर्ज कराई गई शिकायत है। यह एक लिखित दस्तावेज है, जिसे पुलिस द्वारा किसी अपराध के होने की सूचना मिलने पर तैयार किया जाता है।

सहमति – सहमति तब होती है, जब एक व्यक्ति अपनी इच्छा से दूसरे व्यक्ति की बात या इच्छाओं से सहमत होता है।

टू-फिंगर टेस्ट इसमें डॉक्टर सर्वाइवर (महिला सर्वाइवर) की योनि (वेजाइना) में एक उंगली डालकर योनि के ढीलेपन और हाल ही में किए गए सेक्स  की जांच करती हैयह टेस्ट अवैध है