Sep 21, 2022

यौन अपराध: क्या बॉलीवुड इसे रोमांटिक तरीके से दिखाता है?

अदिति श्रीवास्तव

बॉलीवुड द्वारा निर्मित अब तक की सबसे प्रतिष्ठित फिल्मों में से एक है ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’। इसे मुंबई के एक थिएटर में लगभग 23 वर्षों से चलाया जा रहा है। पीढ़ी दर पीढ़ी लोग इस रोमांटिक कहानी को देखते हुए बड़े हुए हैं और चूंकि इस कहानी का नायक शाहरुख खान हैं, इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि लोग इस फिल्म से इतने  प्रभावित हैं।

प्यार भरे डायलॉग और धूमधाम वाले गानों के अलावा आखिर दर्शकों को इस फिल्म से वास्तव में क्या मिलता है?
हम दो अजनबियों को देखते हैं, जो सिर्फ अपने परिवार से थोड़ा समय दूर चाहते हैं, वह  एक-दूसरे से टकराते हैं और संयोग से, एक-दूसरे के साथ ट्रेन के डिब्बे में ‘लॉक’ हो जाते हैं। इस मोड़ पर राज, सिमरन के साथ जबरदस्ती फ्लर्ट करना शुरू कर देता है। राज की इस कोशिश से सिमरन बेचैन महसूस करती है। अनचाही छूने की कोशिश, उसके सामान के साथ छेड़छाड़, उसके पर्सनल स्पेस में घुसना, राज ऐसी  हरकतें अपनाता है, सिमरन से बात करने के लिए।। सिमरन खुद को शांत रखते हुए उसे पीछे हटने के लिए कहती है, लेकिन वह ऐसा नहीं करता और अश्लील इशारों से उसे परेशान करता रहता है। यहां तक की राज सिमरन के ब्रा को  उसके चेहरे पर फेंक कर- उसे लुभाने की कोशिश करने का प्रयास करता है। आइए इस सीन को समझने की कोशिश करते हैं और देखते हैं कि कानून  एक पुरुष के एक महिला को इस तरह से प्रभावित करने के प्रयास के बारे में क्या कहता है।

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354 विभिन्न धाराओं को निर्धारित करती है जिसके अंतर्गत किसी महिला के साथ जबरदस्ती करने के प्रयास में उसके साथ किए गए हमले या अपराध पर चर्चा की जाती है। धारा 354A यौन उत्पीड़न, किसी महिला को गलत तरह से छूने और अश्लील टिप्पणी करने  से संबंध रखता है।  इसी तरह फ़िल्म में राज का सिमरन के ओरजबरदस्ती बढ़ना और अश्लील इशारे  करने पर काफी जोर डाला गया है। वह इस बात का फायदा उठाने में पीछे नहीं हटता, कि वे दोनों एक डिब्बे में फंस गए थे और सिमरन के पास कहीं भागने का अवसर नहीं था। इस धारा के तहत अनिवार्य सजा में भारी जुर्माने के साथ 3 साल का कठोर कारावास शामिल है।

आगे बढ़ते हुए, वे दोनो ” इत्तेफ़ाक” से पार्टी में मिलते हैं, और बाद में एक दुकान में भी मिलते हैं जहां राज के कारण सिमरन की ट्रेन छूट जाती है। मान लेते हैं की राज शायद सिमरन का पीछा नही कर रहा था (धारा 354D, आईपीसी के तहत एक और अपराध)। अब परिस्थिति यह हो जाती है की। उन्हें एक छोटे से फार्महाउस बेडरूम में एक रात अकेले बिताने पड़ती है।

जब सिमरन उस कमरे में सुबह उठती है तो उसे अपने कपड़े बिखरे हुए मिलते हैं। वह बहुत परेशान हो जाती है कि कहीं उसने नशे की हालत में राज के साथ संभोग न कर लिया हो। हालांकि यह एक ‘मजाक’ था, जैसा कि राज सिमरन पर चिल्लाकर स्पष्ट करता है।एक महिला की शील भंग करने के बारे में ‘मजाक’ सामान्यीकृत

क्यों है? किसी महिला के साथ ऐसे में यौन संबंध, जब वह सहमति देने में असमर्थ है या ऐसी सहमति के परिणामों को समझने में असमर्थ है क्योंकि नशे में है,को बलात्कार माना जाता है। ऐसा आईपीसी की धारा 375 में निर्धारित किया गया है, जिसके लिए सजा में कम से कम 10 साल का कठोर कारावास और आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है। लेकिन आनंदमय रोमांस के सामने बलात्कार के कुछ चुटकुले कौन सी बड़ी बात है, है ना?

राज की सभी शर्मनाक करतूतों के वजह से, जिनके लिए उसे निश्चित रूप से सलाखों के पीछे होना चाहिए, सिमरन को उससे प्यार हो जाता है। बॉलीवुड द्वारा स्थापित एक निराशाजनक परिस्थिति जहां बेशर्म छेड़खानी, लगातार एक महिला को असहज करना एक पुरुष को अपनी इच्छानुसार कोई भी महिला प्राप्त करने की अनुमति देता है। क्या इस फिल्म की कहानी हमारे समाज पर कोई प्रभाव डालती है? इस प्रश्न का उत्तर हर बार तब मिलता है जब कोई महिला पुरुषों से भरे डिब्बे में चढ़ने में असहज महसूस करती है या हर बार जब उसे सड़क पर अनुचित तरीके से छुआ जाता है या हर बार जब उसे बुरी नज़र से घूरा जाता है, और उसे अपनी सुरक्षा के प्रति भय महसूस होता है।

बॉलीवुड द्वारा एक सफल, रोमांटिक कहानी बनाने के लिए यौन अपराधों को रोमांटिकबताना व्यापक रूप से लोकप्रिय रहा है और अब भी जारी है। जनता ऐसी प्रस्तुति को चाहती है, और निर्माता उसे पेश करता रहता है। इस तरह की फिल्में इस विचार को कायम रखती हैं कि महिलाओं को सिर्फ ऐसे अनचाहे ध्यान को स्वीकार करना होगा क्योंकि तभी वे अपना ‘सच्चा प्यार’ पा सकेंगी। सड़क पर एक महिला के लिए अनुचित सेक्शुअल अटेंशन का ऐसा प्रदर्शन न केवल बहुत हानिकारक है, बल्कि यह कुप्रथाओं के पनपने के लिए एक विशेष साधन बन जाता है। औरतों को ऑब्जेक्टिफाई करना, जिन्हे अपने आस पास हो रहे घटनाओं के बारे में बोलने का हक़ नहीं है, वे केवल वासनापूर्ण नज़रों के योग्य वस्तु समान हैं। कानून चाहे जो भी कहे, इस तरह की फिल्मों के माध्यम से मौजूदा पितृसत्तात्मक व्याख्या को और बढ़ावा देता है जो समाज के विकास के लिए हानिकारक है।

लेकिन ऐसी फिल्में बनाने के बारे में कानून क्या कहता है? कुछ भी तो नहीं।

स्त्री अशिष्ट रुपण प्रतिषेध अधिनियम 1986 मौजूद है जो किसी भी प्रकार के प्रकाशन में महिलाओं के अश्लील या अश्लील प्रतिनिधित्व के बारे में विस्तार से बताता है लेकिन इसमें इस्तेमाल किए गए अस्पष्ट शब्दों को देखते हुए, इस अधिनियम का लागू होना हमेशा सफल नहीं होता है। यह एक और बड़ी समस्या कि ओर प्रकाश डालता है कि- आर्टिकल 15 और समानता का जो वादा किया गया था, चाहे कोई किसी भी लिंग का हो का क्या हुआ? सेंसर बोर्ड होने के बावजूद फिल्मों में यौन अपराधों के निरंतर चित्रन ने इस तरह की समानता के महत्व को कम कर दिया है। केवल स्त्री अशिष्ट रुपण प्रतिषेध अधिनियम 1986’  जैसे कानून  जो ‘समानता’ सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं, का  अस्तित्व काफी नहीं है ,   उनके उद्देश्यों को प्राप्त करनेके लिए।   इनके सक्षम होने के लिए ऐसे अधिकारियों का होना ज़रूरी है जो इनको लागू करने में मदद करेंगे। सामान्यता  का तमाशा तब तक जारी रहेगा जब तक अधिकारी अपने कर्त्तव्य का पालन नहीं करेंगे।

यद्यपि महिलाओं का पुरुषों के प्रति झुकने वाले समय से हम काफी आगे बढ़ चुके हैं, लेकिन यह समझना महत्वपूर्ण है कि अगर ऐसी फिल्में सकारात्मक रोशनी में यौन उत्पीड़न को चित्रित करना जारी रखेंगी, , तो सच्ची प्रगति कभी नहीं हो सकेगी । कानून मौजूद रहेगा, लेकिन केवल शब्दों में। एक आम आदमी की नजर में कानून का काम महत्वहीन रहेगा।

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